भूगोल / Geography

प्राकृतिक प्रकोप क्या है । आपदा प्रबन्धन | What is a natural outbreak in Hindi | Disaster management in Hindi

प्राकृतिक प्रकोप क्या है । आपदा प्रबन्धन | What is a natural outbreak in Hindi | Disaster management in Hindi

प्राकृतिक प्रकोप क्या है एवं आपदा-प्रबन्धन-

प्राकृतिक प्रकोपों तथा आपदाओं के न्यूनीकरण (इनके प्रभाव को कम करने) तथा प्रबन्धन के अन्तर्गत तीन पक्षों को सम्मिलित किया जाता है- (1) प्रकोप से प्रभावित क्षेत्रों के लोगों तक राहत सामग्री को तुरंत पहुँचाना, (2) प्रकोपों के सम्भावित आगमन की भविष्यवाणी करना एवं (3) प्राकृतिक प्रकोपों एवं आपदाओं के साथ समायोजन के उपाय करना।

(1) प्रकोप तथा आपदाओं से पीड़ित लोगों तक राहत सामग्रियों एवं राहत कार्यों की सुविधाओं को पहुँचाने के सन्दर्भ में निम्न उपायों का पालना होना चाहिए-(i ) प्रकोप तथा उससे उत्पन्न विनाश की प्रकृति तथा परिमाण की सही जानकारी होनी चाहिए। इस सन्दर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को घटना वाले देश के सरकारी विवरण एवं निवेदन पर ही राहत कार्य के लिए अमल करना चाहिए। अन्य समाचार साधनों, सम्वाददातओं, पर्यवेक्षकों तथा प्राइवेट एजेन्सियों की रपट के आधार पर कार्य के लिए शीघ्र तत्पर नहीं हो जाना चाहिए। (ii) राहत कार्य प्रारम्भ करने से पहले राहत, कार्य से सम्बन्धित प्राथमिकताओं को निश्चित कर लेना चाहिए। उदाहरण के लिए, किसी भी प्रकोप की घटना के घट जाने पर घटना से प्रभावित अधिक घने बसे क्षेत्र में राहत कार्य पर अधिक जोर देना चाहिए। दवाओं तथा चिकित्सकों की अपेक्षा मलवे में दबे लोगों की मुक्ति के लिए विशिष्ट प्रकार के बचाव उपकरण, संचार के उपकरण, मलवा को हटाने के लिए बड़ी-बड़ी मशीने, जल पम्प, सीमेण्ट, टेक्नीशियन (शिल्पी) आदि अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। (i) विदेशी देशों को उसी समय राहत सामग्री भेजनी चाहिए जब प्रकोप से प्रभावित देश उनसे सहायता के लिए निवेदन करे क्योंकि बिना मांगी गयी सामग्रियों को भेजने से अनेक कठिनाईयाँ उत्पन्न हो जाती है।

(2) प्राकृतिक प्रकोपों के प्रबन्धन के अन्तर्गत प्रकोप तथा आपदाओं के गहन शोध तथा उनकी भविष्यवाणी को प्राथमिकता देनी चाहिए। चरम घटनाओं तथा प्राकृतिक प्रकोपों एवं आपदाओं की निम्न आधारों पर भविष्यवाणी की जा सकती है –

(i) किसी निश्चित प्राकृतिक प्रकोप प्रभावित होने वाले क्षेत्र के विगत घटनाक्रम के इतिहास एवं अध्ययन के आधार पर। इस प्रणाली के अन्तर्गत अमुक क्षेत्र में किसी खास प्रकोप तथा घटना घी विगत आवृत्ति, पुनरागमन अन्तराल (recurrence interval) तथा उसके परिणाम का अध्ययन करके भावी घटना की भविष्यवाणी की जाती है। (ii) आगामी घटनाओं (precursor events) के आधार पर। उस मन्द घटनाओं को अग्रगामी घटनाये कहते हैं जो प्रमुख घटनाओं के आगमन का पूर्वसूचक होती है अर्थात् प्रमुख चरम घटनाओं के आगमन के पूर्व कुछ ऐसी मन्द घटनाये होती है जिनके द्वारा प्रमुख चरम घटनाओं की पहले ही आभास मिल जाता है, यथा किसी भी क्षेत्र में वृहदस्तरीय प्रमुख भूमिस्खलन के पहले लम्बी अवधि तक मन्द गति से भूपदार्थों का सर्पण (crecp) होता रहता है; किसी भी क्षेत्र में ज्वालामुखी के विस्फोटक उद्गार से पहले उस क्षेत्र की सतह में उठाव (bulging) होने लगता है तथा स्थानीय भूकम्पीय घटनाओं में तेजी आने लगती है आदि। (iii) चरम घटनाओं के लिए उत्तरदायी कारकों की प्रकृति के आधार पर। उदाहरण के लिए किसी क्षेत्र में सम्भावित बाढ़ की भविष्यवाणी उस क्षेत्र तथा उसके बाहर नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जलवर्षा की मात्रा तथा तीव्रता के आधार पर की जा सकती है। (iv) उत्पत्ति-क्षेत्रों में उष्ण कटिबन्धी चक्रवातों तथा तथा स्थानीय तुफानों की ताजा स्थिति की जानकारी तथा उनके गमन-पथ की लगातार ताजा सूचना के आधार पर चक्रवार्तों से उत्पन्न प्रकोरपों की अग्रिम चेतावनी दी जा सकती है।

प्राकृतिक प्रकोप तथा आपदाओं एवं पर्यावरणीय दशाओं में विश्व व्यापक परिवर्तनों का मापन तथा मानीटरिंग प्रकोप एवं आपदा प्रबन्धन (Disaster management) के अत्यधिक महत्वपूर्ण पक्ष है। इस कार्य के अन्तर्गत प्रकोप से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों का विभिन्न स्तरों (विश्व स्तर, प्रादेशिक स्तर तथा स्थानीय स्तर) पर गहन अध्ययन किया जाता है। ICSU (International Council of Scientific Unions) तथा अन्य कई संगठनों ने मनुष्य द्वारा पर्यावरण में किये गये परिवर्तनों तथा प्रकृतिक प्रकोपों के अध्ययन के लिए कई शोध कार्यक्रम प्रारम्भ किया है। इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत प्राकृतिक प्रकोपों तथा आपदाओं की उत्पत्ति की क्रियाविधि उनकी मानीटरिंग तथा उनके प्रभावों को कम करने के लिए उपयुक्त उपाया तथा तरीको का अध्ययन किया जाता है। प्रकोपों तथा आपदाओं के शोध से सम्बन्धित तथा प्रकोपों से उत्पन्न प्रभावों को कम करने के लिए चलाये गये निम्न कार्यक्रम उल्लेखनीय हैं।

(i) SCOPE (Scientific Committee on Problems of the Environment)

(ii) IGBP (International Geosphere Biosphere Programme)

(iii) HDGC (Human Dimension of Global Change)

(iv) IDNDR (International Decade for Natural Disaster Reducation)

(v) GIS (Geographic Information System)

तथा वायु आकाश सर्वेक्षण (Acrospace Survey) द्वारा प्रकोप तथा आपदा के न्यूनीकरण तथा प्रबन्धन में निम्न रूपों में सहायता मिल सकती है।

(अ) समस्याग्रस्त क्षेत्रों के विशद मानचित्रों को सुलभ कराके,

(ब) स्थानीय लोगों से प्राप्त घटना विशेष की ऐतिहासिक सूचनाओं को शोधकर्त्ताओं को उपलब्ध कराके ताकि वे क्षेत्र विशेष में चरम घटनाओं तथा प्रकोपों की आवृत्ति तथा परिमाण से सम्बन्धित बेहतर प्रतिरूपों (मॉडल) का निर्माण कर सके।

(स) स्थानीय राजनीतिज्ञों को परियोजना की रूपरेखा प्रदान करके तथा

(द) आम जनता को प्रकोप एवं आपदाओं से सम्बन्धित विगत विवरणों एवं अनुभवों के आधार पर प्रकोप न्यूनीकरण योजना से अवगत कराके तथा उनमें प्रकोप एवं आपदा के प्रति जागरूकता बढ़ाकर।

प्राकृतिक प्रकोपों के साथ समायोजन-

मानव समुदाय द्वारा प्राकृतिक प्रकोपों एवं आपदाओं के साथ समायोजन (Adjustment to natural hazards and disasters) के अन्तर्गत अग्रलिखित पक्षों को सम्मिलित किया जाता है-

(i) प्राकृतिक प्रकोपों एवं आपदाओं के विषय में व्यक्तियों, मानव समाज तथा संस्थाओं की मनःस्थिति तथा रवैया एवं बोध (Perception) में परिवर्तन,

(ii) प्राकृतिक प्रकोपों एवं आपदाओं के प्रति आम जनता की जागरूकता में वृद्धि

(iii) प्राकृतिक प्रकोपों एवं आपदाओं की समय रहते चेतावनी की व्यवस्था

(iv) भूमि उपयोग नियोजन (यथा-प्रकोप-प्रभावित क्षेत्रों का अभिनिर्धारण तथा सीमांकन करना एवं लोगों को उन क्षेत्रों में बसने के लिये निरूत्साहित करना)

(v) बीमा की योजनाओं द्वारा मानव-जीवन एवं सम्पत्ति की क्षति के लिए मुआवजे (Compensation) की व्यवस्था ताकि सम्भावित प्रकोपों की चेतावनी मिलने पर लोग अपने गांवों, कस्बों तथा नगरों को खाली करके सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए तैयार हो सकें,

(vi) प्राकृतिक प्रकोपों तथा आपदाओं के संकट से निपटने के लिए तैयारी की व्यवस्था आदि।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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