पंचवर्षीय योजनाओं से हुए विकास के भारतीय अनुभव

पंचवर्षीय योजनाओं से हुए विकास के भारतीय अनुभव | पंचवर्षीय योजनाओं के विकास

पंचवर्षीय योजनाओं से हुए विकास के भारतीय अनुभव | पंचवर्षीय योजनाओं के विकास | Indian experience of development through five year plans in Hindi | Development of five year plans in Hindi

पंचवर्षीय योजनाओं से हुए विकास के भारतीय अनुभव

भारत में सामाजिक नियोजन लाने के लिए समयबद्ध पंचवर्षीय योजनायें बनायी गयी, पंचायती राज्य का पुनर्गठन किया गया तथा सामुदायिक विकास जैसी योजनाओं की शुरूआत की गयी। वास्तव में, समाजवादी समाज की स्थापना करके भारतीय सरकार ने अपना वांछनीय लक्ष्य निर्धारित किया, जिसके लिए प्रजातांत्रिक रानीतिक प्रणाली एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था को साधनों के रूप में स्वीकार किया गया। भू-दान, ग्राम-दान तथा सर्वोदय जैसे गैर सरकारी प्रयासों द्वारा भी इस लक्ष्य की प्राप्ति की ओर कदम बढ़ाने में सहायता मिली है।

पंचवर्षीय योजनाओं में समाज कल्याण विशेष रूप से पिछड़े वर्गों के कल्याण की ओर काफी ध्यान दिया गया है। भारत में 1966 ई. में समाज कल्याग विभाग की स्थापना की गयी तथा केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड बनाया गया जो निम्नलिखित बारे में विशेष ध्यान देता है-

  1. समाज कल्याण
  2. शिशु कल्याण
  3. अनाथ बच्चों की देखभाल,
  4. अंतर्राष्ट्रीय शिशु शिक्षा धन,
  5. अपाहिजों की शिक्षा का प्रबंध
  6. सामाजिक सुरक्षा का कार्य
  7. मद्यनिषेध
  8. ग्रामीण महिलाओं को शिक्षा तथा
  9. अनुसंधान एवं प्रशिक्षण ।

भारत सरकार द्वारा समाज कल्याण के लिए किये गये कार्यों में मद्य निषेध, अनैतिक व्यापार पर रोक, बाल अपराधियों का सुधार, भिखारियों का सुधार, जेलों में समाज कल्याण, विस्थापित व्यक्तियों की सहायता एवं पुनर्वास, शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से आरोग्य व्यक्तियों का कल्याण, मातृत्व एवं बाल कल्याण समस्याओं का विकास तथा पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए शुरू की गयी विविध योजनायें विशेष रूप से उल्लेखनीय है। विभिन्न सामाजिक अधिनियमों को पारित करके भी समाजवाद के लक्ष्य की ओर बढ़ने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है। पंचवर्षीय योजनाओं ने सामाजिक एवं आर्थिक नियोजन एवं नियोजित सामाजिक परिवर्तन के महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है तथा हम यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन संभव एवं महत्वपूर्ण ही नहीं है अपितु हमारे देश की वर्तमान स्थिति इसी का परिणाम है।

भारत में नियोजन का केन्द्रीय लक्ष्य एक ऐसी विकास की प्रक्रिया का प्रारम्भ करता है जो लोगों के रहन-सहन के स्तर का ऊंचा उठा सके और उनके लिए आर्थिक समृद्ध और विभिन्नतापूर्ण जीवन की व्यवस्था कर सके। यह नियोजन तार्किक ढंग से भारतीय समाज की विभिन्न समस्याओं का हल ढूंढ़ता है, भारतीयों के बीच व्याप्त आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को दूर करता है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति नियोजन के अभाव में संभव नहीं है। योजना के विभिन्न क्षेत्रों में विकास संबंधी वरीयतायें रखी गयी है। यह नियोजन प्रजातांत्रिक ढंग से राजकीय निर्देशन में हो रहा है। नियोजन के संबंध में निम्न प्रविधियों का प्रयोग हुआ है-

  1. संगठनात्मक संरचना में परिवर्तन
  2. मूल्य नीति के द्वारा साधनों का वितरण
  3. पूंजी संग्रह व साख व्यवस्था का विकास
  4. वित्तीय नीति का एक यंत्र के रूप में प्रयोग तथा
  5. विभिन्न स्तरों पर नियंत्रण ।

प्रथम पंचवर्षीय योजना में देश के विकास हेतु योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त किया। इसका उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को गतिहीनता की स्थिति से बाहर निकालना तथा इसका संतुलित विकास करना था। इसमें कृषि, सिंचाई, ऊर्जा एवं यातायात के साधनों पर विशेष जोर दिया गया बल्कि औद्योगिक क्रांति की नींव डाली जा सके। सहकारिता को समाज के विकास के रूप में स्वीकार किया गया। यातायात व शक्ति के विकास को, विकास की नींव के रूप में निर्मित करने का प्रयास किया गया। मिश्रित अर्थव्यवस्था भारतीय विकास की स्वीकृति व्यवस्था मानी गयी। इसमें ग्रामीण पुनर्निर्माण कार्यक्रमों एवं भूमि सुधार पर भी बल दिया गया।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना में समाजवादी विकास प्रारूप को अपनाने की घोषणा की गयी। 1954 ई. में भारतीय संसद द्वारा समाज में आय एवं सम्पत्ति में समानता लाने हेतु आर्थिक नीति को समाजवादी प्रतिमान के अनुरूप ढालने का लक्ष्य घोषित किया गया। इससे राष्ट्रीय आय में 25 प्रतिशत की वृद्धि, भारी उद्योगों के विकास, रोजगार अवसरों के विस्तार तथा आय एवं सम्पत्ति की असमानताओं में कमी लाने को वरीयता प्रदान की गयी। जनसंख्या के नियंत्रण के गहन प्रयास किये गये। लोक क्षेत्र को विकास का प्रमुख दायित्व सौंपा गया। कृषि तथा लघु उद्योग अभी अपनी ही चाल से चल रहे थे, उनको आर्थिक प्रेरणा नहीं मिल पायी।

तृतीय पंचवर्षीय योजना में ‘आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था’ के निर्माण का लक्ष्य रखा गया तथा आर्थिक वृद्धि की विकास युक्ति को आधुनिक औद्योगिकरण के द्वारा आगे बढ़ाने के प्रयास जारी रखे गये। खाद्य पदार्थों में आत्मनिर्भरता लाने तथा उद्योग एवं निर्यात की आवश्यकताओं को पूरा करने  हेतु कृषि उत्पादन को बढ़ाने पर भी जोर दिया गया। विकास के अवसरों में समानता को स्थापित करने तथा आय की असमानताओं को दूर करने का संकल्प लिया गया। 1962 ई. में चीन के हमले, 1965 ई. में पाकिस्तान के साथ संघर्ष तथा प्रचण्ड अकाल के दो वर्षों के परिणमस्वरूप तीसरी योजना के बाद चौथी योजना तुरन्त न बन सकी और न ही उसे क्रियाशील किया जा सका। राष्ट्र एक आपातकालीन स्थिति से गुजर रहा था। मुद्रा का अवमूल्यन, मूल्यों में वृद्धि तथा संसाधनों की कमी से देश जूझ रहा था। इसलिए विकास के कार्यक्रम एक एक वर्ष तीन वार्षिक योजनाओं के आधार पर चले।

चौथी योजना के विकास की प्रक्रिया में सामाजिक न्याय व समानता के लक्ष्यों के लिए साहसिक कार्यक्रम अपनाये गये। कमजोर वर्गों की स्थिति में सुधार हेतु उनके रोजगार एवं शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया गया। ग्राम विकास व संतुलित भोजन के प्रसार के कार्य नवीन ढंग से बनाये गये। इन योजनाओं में नियोजन का प्रमुख उद्देश्य स्थायित्व के साथ वृद्धि रखा।

पांचवीं पंचवर्षीय योजना का सूत्रपात इस स्पष्ट स्वीकृति से हुआ कि हमारी योजनाओं में कुछ कमियाँ भी रह गई और चौथी योजना को सफल नहीं कहा जा सकता। इस योजना में गरीबी हटाओ और आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों की प्राप्ति का संकल्प रखा गया। गरीबी हटाओ एक नया नारा था तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कुछ विशिष्ट लक्ष्य रखे गये। मूल्य स्थायित्व, आय व उपभोग की असमानताओं में कमी करना अन्य लक्ष्य रहे। इस चेतना में विज्ञान व प्रौद्योगिकी के विकास को प्रथम बार वरीयता में सम्मिलित किया गया। पांचवीं योजना कुछ देर से प्रारम्भ की गयी थी और छः महीनों में ही कांग्रेस सरकार का पतन हो गया और 1977 ई. में जनता सरकार केन्द्र में सत्तारूढ़ हुई। जनता सरकार ने इस योजना को रद्द कर दिया और इसके स्थान पर नियोजन के लिए एक नवीन संप्रत्यय ‘रेलिंग प्लान’ राष्ट्र के सम्मुख रखा। इस संप्रत्यय का आशय प्रत्येक वर्ष की योजना का मूल्यांकन करना और इसके अनुभवों के आधार पर अगले वर्ष के लिए योजना बनाना था। वास्तव में यह विस्तार नियोजन की विचारधारा थी। योजना 1978-79 वार्षिक योजना के रूप में चालू की जा सकी।

छठीं योजना पिछले तीन दशकों के अनुभवों को सामने रखकर बनायी गयी। यह प्रयास किया गया कि दोषों की पुनरावृत्ति नहीं। इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पुनः सत्ता में लौट आयी थी। इस योजना में गरीबी हटाओ का तीव्र अभियान छेड़ा गया। इसलिए कृषि तथा उद्योग के लिए आर्थिक व्यापार को मजबूत बनाने के लिए अनेक उपायों को अपनाया गया। ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसरों को बढ़ाने पर भी जोर दिया गया।

सातवीं योजना में खाद्यात्र में आत्म-निर्भरता की वरीयता बनाये रखी गयी। तिलहन, दालों, सब्जियों और फलों के अधिक उत्पादन पर भी जोर दिया गया। उद्योग के लिए आधुनिकीकरण और उच्च तकनीकी लक्ष्य के रूप में रखे गये हैं। इस योजना की प्रमुख विशेषता मानव संसाधन का विकास है। शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नवीन तरीकों को अपनाने पर जोर दिया गया है। इस भांति रोजगार के अवसरों को भी बढ़ाने का प्रयास किया गया है।

केन्द्र में तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के चलते आठवीं पंचवर्षीय योजना (1990- 95) को कार्यान्वित नहीं किया जा सका। जून 1990-91 तथा 1991-92 को अलग अलग वार्षिक योजना माना जाये। इन दोनों वार्षिक योजनाओं का मुख्य लक्ष्य रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध कराना तथा सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देना रखा गया।

आठवीं योजना का प्रारूप शीघ्रता से तैयार किया गया। पहली बार नियोजन की पद्धति में भी परिवर्तन किया गया। इस नियोजन में प्रत्येक क्षेत्र के लिए कार्य क्षमता बढ़ाने के लिए लक्ष्य निर्धारित किये गये उदारणार्थ, कृषि क्षेत्र में प्रतिशत वृद्धि दर निर्धारित की गयी। औद्योगिक क्षेत्र के लिए यह लक्ष्य 12 प्रतिशत रखा गया। इसी भांति निर्यात के लिए 10 प्रतिशत वृद्धि दर निर्धारित की गयी।

नौवीं पंचवर्षीय योजना भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर प्रारम्भ की गयी। इस योजना में ‘बुनियादी न्यूनतम सेवाओं’ पर बल दिया गया। इन सेवाओं में स्वच्छ पेयजल की  आपूर्ति प्राथमिक सेवा सुविधायें उपलब्ध कराना, सबके लिए प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था, बेघर निर्धन परिवारों को सार्वजनिक आवास सहायता, बच्चों को पोषाहार सहायता, सभी गांवों और बस्तियों को सड़क से जोड़ना और गरीबी को ध्यान में रखकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत बनाना शामिल है। इस योजना में रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने तथा गरीबी उन्मूलन हेतु कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को प्राथमिकता दी गयी। इसके अतिरिक्त महिलाओं और सामाजिक दृष्टि से उपेक्षित समूहों की सामाजिक आर्थिक स्थिति ऊंची करने तथा उन्हें विकास के प्रतिनिधि के रूप में सामने लाने, पंचायती राज समस्याओं को अधिक मजबूत बनाने एवं इनमें लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने को प्राथमिकता दी गयी।

मार्च 2007 में समाप्त हुई दसवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी के अनुपात में कमी करने के लक्ष्यों स्कूलों व बच्चों के सार्वजनिक दाखिले, साक्षरता दर बढ़ाये जाने, शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी लाने, रोजगार व विकास दर बढ़ाने साफ पानी की दृष्टि से गांव की संख्या में सुधार लाने, साक्षरता और मजदूरी दरों के मामलों में लिंग भेद में कमी करने, प्रमुख प्रदूषित नदियों की सफाई, वन क्षेत्र चढ़ाने और जनसंख्या दर में कमी करने सहित अर्थव्यवस्था और विकास के सामाजिक व पर्यावरण संबंधी पहलुओं को प्राथमिकता देते हुए नियमों के विशेष लक्ष्य स्थापित किये गये।

अतः ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना पर सरकार ने बुनियादी तथा ढांचा गत विकास पर बल दिया गया है।

भारत में विकास हेतु पंचवर्षीय योजनाओं के अतिरिक्त अनेक अन्य प्रयास भी किये गये हैं जैसे- पंचायतीराज की स्थापना, सामुदायिक विकास योजनायें आदि। इन सरकारी प्रयासों के अतिरिक्त भू-दान तथा सर्वोदय जैसे गैर सरकारी प्रयासों द्वारा भारत को समाजवादी समाज के लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाने में सहायता मिली है।

इन पंचवर्षीय योजनाओं में मानव विकास मानव (मानव जीवन की गुणवत्ता के स्तर को बढाना और सभी को सुख-सुविधा तथा बुनियादी सामाजिक सेवायें उपलब्ध करना) की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। यद्यपि इन योजनाओं से अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी है, तथापि इन योजनाओं ने सामाजिक क्षेत्रों और ग्रामीण विकास की दृष्टि से भारत को प्रगतिशील राष्ट्र बनाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

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