सामाजिक असमानता

सामाजिक असमानता | सामाजिक असमानता के प्रमुख कारण | असमानता के प्रकार

सामाजिक असमानता | सामाजिक असमानता के प्रमुख कारण | असमानता के प्रकार | Social inequality in Hindi | Major causes of social inequality in Hindi | Types of inequality in Hindi

सामाजिक असमानता

(Social Inequality)

  1. आन्द्रे बेतले (Andre Betellic)- का कथन है- आधुनिक जगत का महान विरोधाभास यह है कि हर स्थान पर मनुष्य अपने को समानता के सिद्धान्त का समर्थक बताते हैं और हर स्थान पर वे अपने जीवन में तथा दूसरों के जीवन में भी असमानता की उपस्थिति का सामना करते हैं। इस कथन से ये बाते स्पष्ट होती है-

(क) प्रत्येक मनुष्य समानता के सिद्धान्त का प्रतिपादक है।

(ख) संसार का हर आदमी समानता असमानता के विरोधाभास में जी रहा है।

(ग) समाना एक आदर्श है।

(घ) असमानता एक यथार्थ है।

  1. बैडक्स एवं लिपसेट के अनुसार, “मानव के मध्यान्तर हजारो वर्षों से रहा है आज व्यवसाय, शिक्षा उपलब्धि जीवन-स्तर आदि अनेक प्रकार के अन्तर समाज में पाये जाते है। इन्हीं के कारण समाज में अनेक स्तरों को निर्माण हुआ और असमानता का जन्म हुआ।

आज सामाजिक वैज्ञानिकों के सामने विशेष सवाल है। मानवों के मध्य विद्यमान असमानता के पड़ने वाले प्रभावों से सामाकि संगठन को विघटित होने पर समझने का प्रयास किया। उसने यह भी अनुभव किया कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के कार्य आदान-प्रदान की भावना से करता है। उसकी धारणा थी कि व्यक्ति तथा समाज यदि अपने में निहित उत्तम गुणों द्वारा अपनी भूमिका सम्पन्न करे तो दूसरे के लिये कल्याणकारी सिद्ध हो सकते हैं। प्लेटों ने शिक्षा व्यवस्था के माध्यम से आदर्श राज्य की कल्पना की जिसमें व्यक्ति तथा समाज, दोनों का सुख निहित रह सके, लेकिन यह समस्या आज के संसार में ज्यों की त्यों विद्यमान है।

सामाजिक असमानता एक यथार्थ है। सामाजिक संस्तरण में सामाजिक असमानता की भूमिका अत्याधिक है। सामाजिक वर्ग (Social Class) सामाजिक संस्तरण (Social Stratification) तथा अन्य श्रेणी पेद इसी असमानता के परिचायक है।

  1. ऑक्सफोड शब्द कोश में असमानता के अर्थ इस प्रकार बताये गये है-
  2. असमानता होने की स्थिति या दशा समानता का अभाव।

(I) व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच समानता का अभाव

(अ) विस्तार भाग, संख्या गहनता अथवा अन्य भौतिक गुण से सम्बन्धित।

(आ) प्रतिष्ठा स्तर या परिस्थितियों से सम्बन्धित असमानता ।

(इ) श्रेष्ठता शक्ति या उपयुक्तता से सम्बन्धि असमानता सामाजिक असमानता कम या अधिक लाभ की स्थिति की प्राप्ति का तथ्य

(ई) किसी वस्तु की तुलना में उच्चता अथवा निन्नता की दशा।

(उ) किसी कार्य के लिए असमान होने की दशा, अपर्याप्तता अनुपयुक्तता।

(II) (अ) व्यक्तियों के द्वारा दूसरे व्यक्तियों के साथ असमान बर्ताव अनुचित व्यवहार पक्षपात।

(आ) वस्तुओं के उचित अंश की कमी असमान वितरण।

(ग) वस्तु व्यक्ति या प्रक्रिया में अनुरूपता का अभाव असमानता, अनियमितता

(अ) धरातल अथवा रूपरेखा में

(आ) मूल्य या गावा में असमान मात्राओं की बीच सम्बन्ध असमानता का चिन्ह

(इ) दो असमान मात्राओं के सम्बन्ध की अभिव्यक्ति

इन अर्थों पर गहन विचार करने से यह तो स्पष्ट है कि अनुरूपता का अभाव ही असमानता है। किसी भी गुण, मा प्रकृति, रूप स्थूल सूक्ष्म आदि में अनुरूपता भित्रता होना अर्थात वर्ग की ऊँच-नीच, जाति का उच्चोचक समाज में वैयक्तिक गुणों के आधार पर स्थिति और परिणामस्वरूप भूमिका में परिवर्तन आदि सभी सामाजिक असमानता के प्रतीक है।

सामाजिक असमानता के कारक

(Factors of Social Inequality)

सामाजिक असमानता अनेक कारकों से उत्पन्न होती हैं, ये कारक इस प्रकार है-

(1) प्राकृतिक कारक (Natural Causes) – सामाजिक असमानता अनेक प्राकृतिक कारणों का देन होती है। प्लेटों ने प्राकृतिक कारणों के विषय में कहा है- “प्रकृति से ही मनुष्य दास तथा स्वतंत्र हाता है। दासता, दासो के लिये उपयुक्त और न्याय संगत है। इसी प्रकार पुरूष का नारी से सम्बन्ध प्रकृति से ही जैसा है कि एक उच्च है तथा दूसरा निम्न। एक प्रभुत्व रखता है और अधीन रहती है। अरस्तु दृष्टि से यह असमानता तथा प्रकृति के कारण है। इसके विपरीत रूसो प्राकृतिक असमानता तथा सामाजिक असमानता दोनों को पृथक-पृथक मानता है।

(2) सम्पत्ति (Property)- आर्थिक विकास सामाजिक असमानता को उत्पन्न करने में विशेष योग देने हैं जिसके पास सम्पत्ति अधिक होती है वह समपत्तिविहीन की तुलना में श्रेष्ठ है, असमान अर्थात् ऊंचा है। रूसों के अनुसार, ‘सभी समाजों में अमीर-गरीब तथा नीच मनुष्य पाये जाते हैं। फर्ग्युसन की धारणा है धन प्राप्त करने की धारणा ने मनुष्य को समानता की ओर प्रेरित किया है। मेडिसन (James Madison), जी. मि (J. Miller), एडम स्मिथ (Adam Smoth) तथा कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने सम्पत्ति को ही सामाजिक असमानता का कारण बताया है। स्टेन  के अनुसार, वर्ग की रचना वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सम्पत्ति का विवरण समाज के सदस्यों में वैयक्तिक आधार पर आध्यात्मिक अधिकारों, वस्तुओं तथा प्रकार्यों का इस प्रकार बितरण कर देता है कि निरन्तरता और स्थायित्व के तत्व सम्पति से सामाजिक स्थिति तथा प्रकार्य को हस्तांतरित कर दिये जाते हैं।

मार्क्सवादी सामाजिक असमानता को दूर करने के लिये आर्थिक समानता को लाना चाहते हैं। मार्क्सवादी सामाजिक असमानता को दूर करने के लिये आर्थिक समानता को लाना चाहते हैं। सोवियत संघ, चीन आदि देशों में इस आधार पर विकसित सामाजिक असमानता को दूर करने के प्रयास किये है।

(3) युद्ध तथा विजय (War and Conquest ) – फर्ग्यूसन, ब्लॉच तथा हॉब्स आदि युद्ध और उससे प्राप्त विजय तथा पराजय को सामाजिक असमानता का कारण मानते हैं। सामन्तवादी युग में जगीरदारों तथा किसानों का सम्बन्ध जब पराजय के आधार पर विकसित था। इस व्यवस्था में पुजारी, सामन्त तथा श्रमिक तीन प्रकार के वर्ग पाये जाते हैं। हॉब्स की धारणा है कि मनुष्य ने शान्ति से रहने के लिये, युद्ध से बचने के लिये ही समाज की स्थापना की।

(4) श्रम विभाजन (Division of Labour ) – मार्क्स, ऐजिल, श्मोलर, दुर्खीम आदि ने सामाजिक असमानता के कारण श्रम विभाजन को माना है। समाज में अनेक प्रकार के श्रम करने पड़ते हैं। श्रम तथा व्यवसाय की प्रकृति ने ही समाज में प्रतिष्ठा की भावना उतपत्र की है। श्मोलर की धारणा है-सामाजिक स्थिति तथा समपत्ति में प्रतिष्ठा और आमदनी में अन्तर केवल मात्र सामाजिक भिन्नता का द्वितीयक परिणाम है। सामाजिक वर्गों में उत्पत्ति प्राथमिक रूप में न किसी समूह अथवा राष्ट्र के अन्दर श्रम विभाजन पर निर्भर करती है।

(5) प्रकार्यात्मक आवश्यकता (Functional Need)- टाल्कट पारसन्स तथा किंग्सले डेविस की धारणा है कि समाज की संरचना में अनेक प्रकार्य निहित होते हैं। इन प्रकारों को संस्तरण के द्वारा स्थापित किया जा सकता है। सामाजिक असमानता समाज के लिये अभिशाप न होकर वरदान है। समाज के अस्तित्व की रक्षा, व्यवस्था का स्थायित्व तथा निरन्तरता को बनाये रखने के लिये सामाजिक असमानता महत्वपूर्ण कार्य करती है। प्रकार्यात्मक असमानता में अनेक पद होते हैं और समाज के सदस्य इन पदों को प्राप्त करने के लिये निरन्तर प्रयास करते रहते हैं।

(6) मूल्यांकन (Evaluation)- आन्द्र बेले की धारणा है कि समाज में अनेक ऐसे तत्व होते हैं जो एक और तो उसमें व्यवस्था बनाये रखते है किन्तु दुसरी ओर सामाजिक असमानता भी उत्पन्न करते हैं। यह असमानता गुण तथा कर्म के मूल्यांकन द्वारा उत्पन्न होती हैं सामाजिक सम्मान तथा तिरस्कार इसी गुण मूल्यांकन के आधार पर होता है। व्यक्ति की स्थिति क्या है? इसकी शक्ति कितनी है, इसका एहसास सामाजिक मूल्यांकन द्वारा होता है।

(7) संगठन (Organisation)- आन्द्रे वेले ने सामाजिक असमानता का एक कारक संगठन को भी माना है। संसार का हर समाज किसी न किसी रूप में संगठित होता है, शक्ति तथा प्रभुत्व इस संगठन के आधार है। समाज में प्रमुख तथा अधीनता सार्वभौम रूप में पाई जाती है बेले के अनुसार- ‘मैंने मनुष्यों के असमानता के प्रचलन की व्याख्या को मुख्य घटनाओं के सन्दर्भ में करने का प्रयास किया है मूल्यांकन तथा संगठन है। वे एक ओर संस्कृति में दो दूसरी ओर शक्ति में निहित है। इनमें से एक के बिना भी मानव समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है।

असमानता के प्रकार

(Types of Inequality)

सामाजिक असमानता को विद्वानों ने अनेक प्रकार से विभाजित किया है प्लेटों सामाजिक तथा प्राकृतिक असमानता मानता है तो रूसों प्रकृति के तथा नैतिक असमानता पर बल देता है। छयूयिन ने

(1) भूमिका (2) भूमिका के आन्तरिक तत्व (3) सामाजिक मूल्य तथा आदर्श (4) प्रकार्यात्मक योगदान (5) सम्मति शक्ति और सम्मान की असमानतायें बताई है।

रेनफोर्ड ने

(1) शारीरिक लक्षण, चरित्र तथा रूचि (2) बुद्धि, प्रतिभा तथा शक्ति (3) समान श्रेणी वाले  पद (4) सामाजिक स्थिति की पद व्यवस्था में निहित सम्मान तथा पुरस्कार की असमानतायें बतायी है।

विद्वानों ने सामान्य रूप से असमानता के ये रूप निर्धारित किये है-

  1. दासता का स्वामित्व – एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के शरीर पर पूर्ण अधिकार कर वांछित कार्य करने को बाध्य करता हैं। दास, स्वामी की निजी सम्पत्ति माना जाता रहा। प्राचीन काल में दास प्रथा प्रचलित रहीं। आज बन्धुओं मजदूर के रूप में दास प्रथा प्रचलित है।
  2. स्टेट- सामनतवादी युग में शक्तिशाली व्यक्ति जमीनों के मालिक बन गये और वे अपने अधीनस्थ खेती कराने लगे। इससे भूमिपति तथा भूमिहीन असमानता का उदय हुआ। आप भी सामन्तवाद अनेक समाजों में व्याप्त है।
  3. जाति- भारत में जाति प्रथा सामाजिक असमानता का प्रमुख रूप है बेले, थाम्पसन, धूरिये आदि विद्वानों ने जाति प्रथम को सामाजिक असमानता के विकास के लिये उत्तरदायी माना हैं यह असमानता स्थायी है।
  4. वर्ग – वर्तमान समाज में अनेक वर्ग पाये जाते हैं। इन वर्गों का आधार शारीरिक, मानसिक बौद्धि, आर्थिक राजनैतिक अथवा सांस्कृतिक होता है। वर्ग की असमानता सर्वत्र व्याप्त है।
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