सूचना तकनीकी क्रांति

सूचना तकनीकी क्रांति | भारत में जनसंचार के माध्यम | संचार के साधन और सामाजिक विकास

सूचना तकनीकी क्रांति | भारत में जनसंचार के माध्यम | संचार के साधन और सामाजिक विकास | Information Technology Revolution in Hindi | Media of mass communication in India in Hindi | Means of communication and social development in Hindi

सूचना तकनीकी क्रांति

एक मनुष्य से लेकर पूरी मानवता तक एक परिवार से लेकर पूरे विश्व तक- संक्षेप में सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक जीवन के कुछ से लेकर सब कुछ के बारे में जनता में जागरुकता पैदा करने तथा उन्हे परिवर्तन और विकास के लिए प्रेरित करना राष्ट्र निर्माण के कार्यों में सक्रिय रूप से सहभागी बनाने में संचार के साधनों या माध्यमों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हम जानते है कि रेडियो (आकाशवाणी), टेलीविजन (दूरदर्शन), समाचार-पत्र, पत्रिकायें व अन्य मुद्रित सामग्री, चलचित्र (सिनेमा या फिल्म वृत्तचित्र व समाचार चित्र) डाक, तार व टेलीफोन आदि आधुनिक संचार के प्रमुख साधन या माध्यम हैं जो कि आज मानव के जीवन के प्रत्येक पक्ष से संबंधित हैं और उस जीवन को परिवर्तित करने में अपनी अहम भूमिका को निभा रहा है। इन्हीं साधनों या माध्यमों के कारण आज हमारा जीवन केवल अपने समाज या राष्ट्र तक ही सीमित नहीं है। अपितु वह अंतर्राष्ट्रीय बन गया है। इसीलिए विश्व के किसी भी कोने में घटित होने वाली कोई भी महत्वपूर्ण घटना आज हमारे जीवन को भी प्रभावित व परिवर्तित करने में सक्षम है। पर इस संबंध में अधिक कुछ विवेचना करने से पूर्व भारत में जनसंचार के माध्यमों के बारे में संक्षेप में कुछ जान लेना आवश्यक होगा।

भारत में जनसंचार के माध्यम

(Media of Mass communication in India)

भारत के संदर्भ में एक और परम्परागत तथा लोक माध्यमों और दूसरी तरफ उपग्रह संचार सहित आधुनिक दृश्य-श्रव्य माध्यमों के बीच कुशल समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। जनसंचार के क्षेत्र में प्रमुख मंत्रालय होने के कारण सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पास विभिन्न जनसंचार एककों का व्यापक तंत्र है। देश भर में इन एककों के प्रादेशिक एवं शाखा कार्यालय हैं और इनकी चलती फिरती इकाइयाँ भी हैं। भारत के कुछ प्रमुख जनसंचार के माध्यम इस प्रकार हैं-

  1. आकाशवाणी (रेडियो)- भारत में रेडियो प्रसारण का श्रीगणेश 1927 में हुआ, जब मुंबई और कोलकाता में दो प्राइवेट ट्रांसमीटरों ने काम शुरू किया। सरकार ने 1930 में इन्हें अपने हाथ में ले लिया इन्हें ‘इंडियन ब्राडकास्टिंग सर्विस’ के नाम से चलाना शुरू किया। सन् 1936 में इसका नाम बदलकर आल इंडिया रेडियो कर दिया गया। सन् 1957 से इसे आकाशवाणी कहा जाने लगा। आकाशवाणी स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने के साथ साथ जनता को शिक्षित करने और जानकारी प्रदान करने के कारगार माध्यम के रूप में कार्य कर रही है। देश में इस समय आकाशवाणी के 182 केन्द्र हैं।

सन् 1966 में आकाशवाणी से ग्रामीण कार्यक्रमों का प्रसारण होता है। इन प्रसारणों में मुख्यतः रोजमर्रा के कृषि कार्य, कृषि और पशुपालन के वैज्ञानिक तरीके, भूमि और जल की व्यवस्था, उर्वरकों का इस्तेमाल, पौध संरक्षण, भंडारण और विपणन के बारे में बताया जाता है। ग्रामीण कार्यक्रम महीने में 21 से 45 घंटे तक प्रसारित होते हैं। ग्रामीण महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम भी प्रसारित किये जाते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक परिवर्तन की आशा की जाती है।

  1. दूरदर्शन (टेलीविजन) – भारत में टेलीविजन की शुरुआत प्रायोगिक रूप से सितम्बर 1959 में की गयी थी। तब इससे सप्ताह में तीन दिन प्रसारण होता था। इसकी नियमित सेवा 1965 में शुरू हुई। 1976 में टेलीविजन को आकाशवाणी से पृथक कर दिया गया और दूरदर्शन के नाम से नया संगठन बनाया गया। 1982 के पश्चात दूरदर्शन का अभूतपूर्व विस्तार हुआ। आज देश में 75 प्रतिशत घरों में टेलीविजन सेट हैं।

दूरदर्शन ने भारत में पहली बार 1975-76 में उपग्रह प्रौद्योगिकी को अपनाया। 1982 में उपग्रह द्वारा दिल्ली और विभिन्न ट्रांसमीटरों के बीच नियमित सम्पर्क द्वारा राष्ट्रीय प्रसारण शुरू तथा दूरदर्शन ने रंगीन प्रसारण शुरू किया।

दूरदर्शन में तीन स्तरों वाली कार्यक्रम प्रसारण सेवा है राष्ट्रीय, प्रादेशिक और स्थानीय राष्ट्रीय कार्यक्रम में राष्ट्रीय एकता, साम्प्रदायिक सद्भाव पर जोर दिया जाता है और समाचारों, सामयिक विषयों, सांस्कृतिक पत्रिकाओं, धारावाहिकों तथा विज्ञान, संगीत, नृत्य नाटक और फिल्मों को शामिल किया जाता है। क्षेत्रीय कार्यक्रम राज्यों की राजधानियों से प्रारम्भ होते हैं और राज्य में लगे ट्रांसमीटरों से रिले किये जाते हैं। क्षेत्रीय कार्यक्रम भी राष्ट्रीय कार्यक्रमों के समान ही होते हैं लेकिन उनकी भाषा और मुहावरे स्थानीय होते हैं। स्थानीय कार्यक्रम विशेष क्षेत्र के लिए होते हैं और इसमें स्थानीय विषयों और स्थानीय लोगों को ही शामिल किया जाता है।

  1. समाचार पत्र और मुद्रित सामग्री- भारतीय समाचार पत्रों में 41 ऐसे हैं जो अपनी शताब्दी मना चुके हैं। गुजराती भाषा का मुंबई से प्रकाशित होने वाला बम्बई समाचार सबसे पुराना अखबार है। यह 1822 में प्रारम्भ हुआ था। प्रसार संख्या की दृष्टि से आनन्द बाजार पत्रिका, टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स का क्रमशः पहला, दूसरा और तीसरा स्थान है।

इस समाचार पत्र व पत्रिकाओं में समाचारों के अतिरिक्त खेलकूद, सिनेमा, विज्ञान, सांस्कृतिक कार्यक्रम मनोरंजन आदि विविध विषयों से संबंधित ज्ञानवर्द्धक सामग्री होती है जिनका सामाजिक परिवर्तन लाने में योगदान रहता है।

  1. चलचित्र (सिनेमा)- केन्द्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड (सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन) द्वारा प्रमाणित होने के बाद ही कोई चलचित्र भारत में दिखाया जा सकता है। चलचित्र अधिनियम 1952 के अनुसार स्थापित इस बोर्ड में एक अध्यक्ष और कम से कम 12 और अधिक से अधिक 25 गैरसरकारी सदस्य होते हैं। इनकी नियुक्ति सरकार करती है। बोर्ड का मुख्यालय मुंबई में है और नौ क्षेत्रीय कार्यालय है- बंगलौर, मुंबई, कोलकाता, तिरुअनंतपुरम, नई दिल्ली, कटक और गुवाहाटी। फिल्म सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनैतिक विषयों या समस्याओं पर आधारित होती है एवं उनका सीधा प्रभाव दर्शकों पर पड़ता है और इस प्रकार सामाजिक विकास लाने में महत्वपूर्ण होती है।
  2. डाक सेवायें- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से डाक सेवाओं का बड़ा तेजी से विस्तार हुआ है। आज देश में 1,52,037 डाकघर काम कर रहे हैं, जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय इनकी संख्या मात्र 23,321 थी। तब से डाक प्रणाली के बुनियादी ढांचे में निरंतर परिवर्तन होता चला आ रहा है और अब इसने एक आधुनिक और गतिशील संगठन का रूप ले लिया है। डाक के तेजी से वितरण को सुनिश्चित करने के लिए 1972 में डाक अभिसूचक संख्या कोड (पोस्टल इंडेक्स नम्बर कोड) जो पिन के नाम से जाना जाता है, शुरू किया गया। 1986 में स्पीड पोस्ट (द्रुतगामी डाक सेवा) का शुभारम्भ त्वरित डाक वितरण के क्षेत्र में डाकघर की उल्लेखनीय उपलब्धि है।
  3. टेलीग्राम व टेलीफोन- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से डाक सेवाओं के साथ-साथ टेलीग्राम व टेलीफोन सेवाओं में भी निरंतर वृद्धि हुई है और आज शहरी इलाकों में ही नहीं अपितु ग्रामीण इलाकों में भी इन सेवाओं का एक जाल सा बिछ गया है। इसके फलस्वरूप आज दुनिया के किसी भी कोने से सम्पर्क स्थापित करना हमारे लिए बहुत आसान हो गया है। डाक, टेलीग्राम व टेलीफोन सेवाओं ने सामाजिक आदान प्रदान व संबंधों के क्षेत्र को अत्यधिक विस्तृत करके सामाजिक परिवर्तन की संभावनाओं को बढ़ाया है।

संचार के साधन और सामाजिक विकास

(Means of Communication and Social Development)

हम सभी इस बात को जानते हैं कि आधुनिक जटिल समाजों में जनसंचार के विभिन्न माध्यम सामाजिक विकास लाने में महत्वपूर्ण विकास लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इसका कारण भी स्पष्ट है कि आधुनिक समाज केवल जटिल ही नहीं, अपितु आकार में भी अत्यधिक बड़ा होता है और इसलिए इसमें व्यक्तिगत संबंध बहुत कम पाये जाते हैं। अधिकांश सामाजिक संबंध अप्रत्यक्ष होते हैं और डाक-तार, टेलीफोन, टेलीग्राफ, टैलेक्स, पुस्तक, पत्र-पत्रिकायें, रेडियो, टेलीविजन आदि के माध्यमों से स्थापित किये जाते हैं। अतः सामाजिक विकास लाने में इन माध्यमों का बहुत बड़ा हाथ होता है। निम्नलिखित विवेचन से यह बात और भी स्पष्ट हो जायेगी-

  1. मुद्रित माध्यम या प्रेस (Print Media or Press) – जन माध्यम का इतिहास प्रेस से ही शुरू हुआ था और इसे एक क्रांतिकारी घटना ही कहा जा सकता है क्योंकि इसके द्वारा लेखक के विचार को एक साथ अनेक लोगों (पाठकगण) तक पहुंचाना संभव हुआ। छापने की कला या छापाखानों के आविष्कार के पश्चात धीरे-धीरे समाचारपत्र, पत्रिकायें, पुस्तक, विज्ञापनों आदि का मुद्रण बड़े पैमाने पर होने लगा और संदेश को एक साथ अनेक लोगों तक पहुंचाने की प्रक्रिया भी निरंतर तेज होती गयी। यह तेजी यातायात के साधनों जैसे रेलगाड़ी हवाई जहाज, मोटरकार आदि के कारण भी घटित हुई। इन साधनों की सहायता से कुछ ही घंटों में कोलकाता या दिल्ली या मुंबई से प्रकाशित होने वाली पुस्तकें समाचार पत्र, पत्रिकायें आदि देश के कोने-कोने में बसे लाखों करोड़ों लोगों में संदेश प्रसारित करने में सफल होती है। विज्ञापनों पत्रों द्वारा विशेष समस्या से संबंधित सूचनाओं व संदेशों को हर आम व खास लोगों तक पहुँचाना संभव होता है। उसी प्रकार पत्रिकाओं में विज्ञापन देकर, लेख प्रकाशित करके या कार्टून छापकर संदेशों को लोगों तक पहुँचाया जा सकता है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण माध्यम समाचार पत्र होते हैं समाचार पत्र मुख्यतः व्यावसायिक व राजनैतिक दृष्टि से प्रकाशित किये जाते हैं। ये ज्यादातर बड़े पैमाने पर छापे जाते हैं और इनका प्रचार व प्रसार भी काफी बड़ा होता है। इन समाचार पत्रों के माध्यम से देश-विदेश के समाचार, राजनैतिक व व्यावसायिक सूचनायें व संदेश लाखों करोड़ों लोगों से एक साथ प्रसारित करके उनके विचारों व्यवहारों को प्रभावित व परिवर्तित किया जाता है। इससे सामाजिक विकास की प्रक्रिया सरल हो जाती है।
  2. चलचित्र – सामाजिक विकास करने में सिनेमा या चलचित्र के महत्व को सभी लोग किसी न किसी रूप में निश्चय ही स्वीकार करते हैं। जन माध्यम के क्षेत्र में फिल्मों का प्रवेश 19वीं सदी में हुआ था और तभी से इनका महत्व धीरे-धीरे बढ़ता ही रहा है, विशेषकर उस समय से जब ‘सवाक’ फिल्में आनी प्रारम्भ हुई। समाचार पत्र, पुस्तकें, पत्रिकाओं आदि की एक बड़ी सीमा यह है कि इनका लाभ केवल उन्हीं को मिल सकता है जोकि शिक्षित है पर फिल्मों की पहुँच अशिक्षित जनता तक भी होती है। द्वितीय, चलचित्र अथवा फिल्म में देखना और सुनना चूंकि साथ-साथ होता है, इस कारण इसका प्रभाव मस्तिष्क पर अधिक पड़ता है। वास्तव में सम्पूर्ण जनता को राजनैतिक तथा सामाजिक शिक्षा देने और उसके फलस्वरूप सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए सिनेमा एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावपूर्ण साधन है। सिनेमा के माध्यम से जनता को सामाजिक घटनाओं व समाचारों से परिचित कराया जा सकता है। साथ ही इसके माध्यम से विभिन्न सामाजिक समस्याओं के प्रति जनता में न केवल जागरूकता उत्पन्न की जा सकती है बल्कि उनके वास्तविक साधनों के संबंध में भी सुझाव तथा निर्देश प्रभावपूर्ण ढंग से दिये जा सकते हैं। सिनेमा के पर्दे पर देश और दुनिया के नेताओं और विशेषज्ञों से इनके विचारों से जनता का परिचय होता है। वह उन्हें सुनती है, देश-विदेश में होने वाली प्रगति के झलक स्पष्टतया देखती है और समाज पर आने वाली आपत्तियाँ का आभास प्राप्त करती है। कहना न होगा कि ये समस्त परिस्थितियां सामाजिक परिवर्तन लाने में अत्यधिक सहायक सिद्ध होती है।
  3. रेडियो एवं टेलीविजन- जनसंचार माध्यम के रूप में भारत में रेडियो एवं टेलीविजन का इतिहास क्रमशः 77 व 45 वर्ष पुराना है। श्री रेमण्ड विलियम्स के अनुसार, पिछली सभी संचार तकनीक के विपरीत रेडियो तथा टेलीविजन ऐसी व्यवस्थायें हैं जिनका कि उद्देश्य पूर्ववर्ती अंतर्वस्तु की बहुत कम या बिल्कुल ही परिभाषा किये बिना अमूर्त प्रक्रियाओं के रूप में प्रसारण व अभिग्रहण (दर्शन-श्रवण) को क्रियान्दित करना हैं।” वास्तव में आधुनिक युग में सामाजिक परिवर्तन में रेडियो में खास बात यह है कि इसके द्वारा पल-भर में ही कोई भी विचार या समाचार सारी दुनिया में प्रसारित किया जा सकता है और इससे प्रभावित होने के लिए शिक्षा आदि की भी कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है। रेडियो को सुनकर ही लोग नाना प्रकार की समस्याओं, सूचनाओं को जान और समझ सकते हैं। रेडियो के कारण विचारों का आदान-प्रदान तथा प्रचार बहुत सरल हो गया है। इसके द्वारा देश में नेताओं, विशेषज्ञों, समाज सुधारकों, शिक्षाविदों आदि के भाषण, विचार, आलोचनात्मक विश्लेषण आदि देश को कोने कोने में सुने जा सकते हैं। यह सब बातें लोगों के विचारों, कार्यों व चिंतन की प्रक्रिया को और अंततः सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को निश्चित रूप से प्रभावित करती है।
  4. नवीन इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (New Electronic Media) वैसे तो जन-माध्यम में टेलीफोन, टेलीग्राफ, लाउडस्पीकर आदि का महत्व भी है लेकिन आधुनिक युग में इस क्षेत्र में कुछ नवीन इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से जुड़ गये है। वे है कम्प्यूटर नेटवर्क से जुड़े हुए बड़े आकार के सार्वजनिक टेलीविजन, स्क्रीन वीडियो द्वारा रिकार्ड किये गये प्रोग्राम व फीचर फिल्म, कम्प्यूटर द्वारा संचालित वीडियो गेम्स, वीडियो डिस्क व सैटेलाइट की सहायता से कार्यक्रमों का तत्काल प्रसारण, इंटरनेट आदि। इन सभी माध्यमों के कारण समाचार या संदेश को प्रसारित करने के मामले में दूरी और समय की कोई समस्या नहीं रह गयी है। पलक झपकते ही किसी भी घटना का आंखों देखा हाल पूरे विश्व क जन-जन तक पहुंचाना अब संभव हो गया है। इस रूप से स्पष्ट है कि सामाजिक विकास लाने में नवीन इलेक्ट्रानिक माध्यमों का भी पर्याप्त महत्व है।
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