समाज शास्‍त्र / Sociology

आधुनिकीकरण की प्रमुख बाधा | भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधा

आधुनिकीकरण की प्रमुख बाधा | भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधा

आधुनिकीकरण की प्रमुख बाधा

औद्योगीकरण, नगरीकरण, अंग्रेजी शिक्षा, धार्मिक आन्दोलन, लौकिकीकरण, पश्चिमीकरण, तीव्र आर्थिक विकास आदि ने भारत में आधुनिकता लाने का प्रयत्न किया किन्तु इन सभी को आसानी से नहीं लाया जा सका तथा इन्हें निरन्तर विरोधों एवं रुकावटों का सामना करना पड़ा जो कि निम्नलिखित हैं-

(i) पूर्व औद्योगिक तत्व-

औद्योगीकरण के प्रभाव के बाद भी भारतीय समाज में अनेक पूर्व औद्योगिक तत्व विद्यमान हैं। यह तत्व परिवर्तन अथवा आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं। इन तत्वों में हम सत्ता (Authority) पर निर्भरता का विशेष रूप से उल्लेख कर सकते हैं जो भारतीय परम्परागत समाज का एक महत्वपूर्ण तत्व है।इसका परिणाम यह है कि किसी भी नवीन आविष्कार को स्वीकार करने में काफी कठिनाई होती है। परम्परागत समाज में व्यक्ति किसी कार्य को अपनी आत्मा की सन्तुष्टि के लिये न कर जनहित के लिए करता है। किन्तु इसके स्थान पर आज हमें अहंलिप्सा (Ego involvement) के दर्शन होते हैं साथ ही साथ यह भी प्रवृत्ति पाई जाती है कि कोई भी गलती हो जाने पर उसका आरोप या तो भाग्य पर या किसी और के माथे पर लगा दिया जाता है।

(ii) परम्परागत समाज-

परम्परागत समाज आधुनिक तत्वों को केवल एक सीमा तक ही अपने में समा सकता है। इसी कारण से एक आधुनिक समय व्यवस्था भी एक सीमा तक परम्परागत मूल्यों को महत्व दे सकती है। लेकिन कभी भी ऐसा बिन्दु आ जाता है जबकि परम्परागत व्यवस्था तथा तकनीकी विचारों में समझौता होना कङ्गिन हो जाता है, तब आधुनिकता और परम्परा में द्वन्द्व होता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद देश के अभियोजकों ने देश के तीव्र आर्थिक विकास की दृष्टि से योजनायें बनायीं। किन्तु दुःख की बात यह है कि हम उस स्तर तक नहीं पहुंच सके जहाँ पहुँचकर विकास की प्रक्रिया स्वजनित हो जाती है। ‘निवेश’ (Inputs) तथा ‘निर्गत’ (Outputs) के दृष्टिकोण से हमारा विकास सही अनुपात में नहीं हुआ। भारतीय समाज परम्पराबद्ध समाज था। इसीलिए यह गतिहीन समाज बन कर रह गया था। भारतीय जाति व्यवस्था इस प्रकार की गतिहीनता का स्पष्ट उदाहरण है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति को एक निश्चित स्थान प्रदान कर दिया जाता है जिसको न धन, न सम्पत्ति, न सफलता, न असफलता बदल सकते हैं। भारत के सामने जाति तथा लोकतन्त्र में सामंजस्य उत्पन्न करने की समस्या अब भी है। हमारा बाहरी स्वरूप लोकतन्त्र का है किन्तु आन्तरिक रूप से हम जाति व्यवस्था में अभी भी बंधे हुए हैं।

(iii) परम्परागत तथा आधुनिक मूल्य का प्रश्न-

इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति परिवर्तन चाहता है किन्तु वह परिवर्तन को अपनने में संकोच करता है। अपने आपको परम्परावादी या रूढ़िवाददी कहलवाना नहीं चाहता किन्तु वह अपने परम्परगत मूल्यों को भी नहीं छोड़ना चाहता। वह प्रत्येक उस वस्तु को पसन्द करता है जो नवीन है या आधुनिक है लेकिन साथ ही साथ अपने पुरातन मूल्यों को इसलिए नहीं छोड़ता क्योंकि नवीन मूल्य उसे सन्तुष्टि प्रदान नहीं करते। परिवार नियोजन के आन्दोलन को ही हम लें तो देखेंगे कि यह आन्दोल आधुनिक, अग्रगामी एवं प्रगतिशील है। प्रत्येक व्यक्ति लगभग इस बात से सहमत है लेकिन साथ ही साथ लोग परिवार नियोजन (Family Planning) के आन्दोलन को ही हम ले तो देखेंगे कि यह आन्दोलन आधुनिक, अग्रगामी एवं प्रगतिशील विधियों का प्रयोग करके अपने आनन्द में कमी भी नहीं लाना चाहते। इस प्रकार हम देखते हैं कि और जो दूसरी योजनाएँ देश में चल रही हैं उनके प्रति भी देशवासियों की ऐसी ही विरोधी मनोवृत्ति है। सभी योजनाएं मनोवांछित उद्देश्यों को पूरा करने में लगभग असफल सी रही हैं। ‘हरित क्रान्ति’ (Geen Revolution) लाने के लिए ट्रैक्टरों, उन्नत कृषि यन्त्रों, उन्नत कृषि विधियों, ट्यूबवैलों इत्यादि के प्रयोगों को प्रोत्साहन दिया गया। किन्तु इस प्रकार की क्रान्ति नहीं आ पाई। परिवार की संख्या में, विवाह की आयु बढ़ाकर, विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार देकर, तलाक का अधिकार देकर, दहेज प्रथा को खत्म करके एक बहुत बड़ा परिवर्तन लाने का प्रयत्न किया है। किन्तु आज भी अधिकांशतः हम परम्परागत तरीके से ही विवाह को मान्यता देते हैं, अन्तर्जातीय विवाहों के प्रति कोई आशाजनक रूचि हमें देखने को नहीं मिलती। औद्योगीकरण के प्रभाव से संयुक्त परिवार व्यवस्था में दरारें पड़ गयी हैं और देश के विभिन्न भागों में एकाकी परिवारों की संख्या भी बढ़ी है। इसी प्रकार हमारे समाज में ऐसे व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है जो ‘हिप्पी लोगों’ (Happies) के रहन-सहन या विचारों से बहुत अधिक प्रभावित हैं। इस प्रकार के ‘मूल्य विरोधी व्यवहार’ (Non-Conformist behaviour) अपनाना ही आधुनिकता नहीं है। समाज में मदिरापान बढ़ रहा है, किन्तु यह आधुनिकता का सूचक नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों में शिक्षकों में तथा अन्य दूसरे समूहों में असन्तोष फैल रहा है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि यह सभी आधुनिकता से प्रभावित हैं। देश में अधिकांश व्यक्ति आज भी परम्परा को मानने वाले अन्धविश्वासी, आत्मतुष्टि चाहने वाले, दिल और दिमाग से बन्द हैं। भारत में हमने परम्परागत मूल्यों की नींव पर आधुनिकता का भवन निर्माण करने की कोशिश की है। आधुनिकता का अर्थ आमूल परिवर्तन अथवा निरन्तरगामी परिवर्तन से नहीं है। शायद ही कोई ऐसा समाज हो जो किन्हीं तत्वों के रूप में स्थिर न हो। आधुनिकता का अभिप्राय केवल परिवर्तन से न होकर अनेक ऐसे तत्वों एवं विशेषताओं से है जो किसी भी परम्परागत समाज में प्रवेश करके उसके आन्तरिक एवं बाहरी ढाँचे को एक ऐसा स्वरूप प्रदान करता है जो न पूर्णतया नवीन हो बल्कि दोनों का मिला-जुला एक ऐसा सम्मिश्रण होता है जो परिवर्तनगामी होता है और जिसे हम आधुनिकता के नाम से पुकारते हैं। आज समाजशास्त्रीय साहित्य में लौकिकीकरण (Socialization), पश्चिमीकरण (Westernization), संस्कृतिकरण (Sanskritization), सार्वभौमिकीकरण (Universalization), लोकतन्त्रीकरण (Democratization), राजनीतिकरण (Politicization), औद्योगीकरण (Industrialization), नगरीकरण (Urbanization) आदि प्रक्रियाओं की चर्चा है। यह सभी प्रक्रियायें किसी न किसी रूप में आधुनिकीकरण की किसी एक सीमा या इनके एक निश्चित स्तर की ओर संकेत करती हैं। किन्तु इनको आधुनिकीकरण समझ लेना या आधुनिकीकरण की अपेक्षा प्रयोग करना भ्रम उत्पन्न करना होगा। विद्वानों में अभी इन प्रक्रियाओं की सही प्रकृति के बारे में पर्याप्त मतभेद है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि बिना इनका सही सैद्धान्तिक अर्थ स्पष्ट किये हुए हम इनको ढीले तौर पर जहाँ कहीं चाहें वहाँ प्रयोग कर दें। समकालीन भारत में होने वाले विशाल परिवर्तनों को समझने के लिए अलग- अलग विद्वानों ने अलग-अलग शब्दों का सहारा लिया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न रूप में समझने के लिए विभिन्न अवधारणाओं का विकास किया गया है। अतः इन अवधारणाओं को आधुनिकीकरण के सन्दर्भ में प्रयोग करने से पूर्व हमें यह देखना चाहिए कि इन्हें किस क्षेत्र में तथा किस संदर्भ में विकसित किया गया है।

(iv) आधुनिकीकरण एवं परम्परावाद (Modernization and Traditionalization)- 

आधुनिक युग में अपने समाज में होने वाले परिवर्तनों को हम इस प्रक्रिया के अन्तर्गत सम्मिलित नहीं करते, आधुनिकवाद शब्द का प्रयोग परम्परावाद की सापेक्षता में करते हैं। परम्परावाद उन मूल्य प्रतिमानों,आदर्शों, विश्वासों, सामाजिक व्यवस्था इत्यादि की ओर संकेत करता है जो परम्परा से हमारे समाज की संस्कृति में संरक्षित चली आ रही हैं। कालान्तर में इस संचित निधि में कुछ गिरावट हुई है। किन्तु हमने कुछ और भी इसमें जोड़ दिया। हम अपनी इस संस्कृति को वर्षों से परिमार्जित एवं परिवर्द्धित करते आये हैं। आधुनिकीकरण हमारा इसी प्रकार का परमार्जित करने का एक प्रयास है जिसमें हम अपनी परम्परागत संस्कृति में कुछ ‘नवीन तत्वों’ (New Factor) को आत्मसात करके एक ऐसा नया जामा पहनाने का प्रयास करते हैं जो सभी को मान्य हो सकें। अन्य प्रक्रियायें केवल वर्तमान आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक समस्याओं में होने वाले परिवर्तनों की ओर संकेत करती हैं।

(v) शक्ति पर आधारित सामाजिक ढाँचा (Social Structure based on Power)-

भारतीय समाज का शक्ति पर आधारित ढाँचा (Power-structure) आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में बहुत बड़ी रुकावट है। भारतीय समाज में संपूर्ण शक्ति का वितरण विभिन्न कुलीन वर्गों में पाये जाने वाले प्रकार्यात्मक नियमों के द्वारा निश्चित होता है। जैसे धार्मिक,व्यावसायिक राजनीतिक तथा प्रशासनिक कुलीन वर्ग भारतीय समाज की शक्ति पर आधारित संरचना के प्रमुख तत्व हैं। इसे जातिवाद,नातेदारी, क्षेत्रवाद आदि में देखा जा सकता है। चुनाव इन्हीं छोटी-छोटी इकाइयों द्वारा प्रभावित होता है। पिछले 25 वर्षों से भारत की अर्थव्यवस्था एक संकटकालीन अर्थव्यवस्था रही है। इसमें एक ओर दक्षिणपन्थियों री प्रतिक्रियावादी राजनीति के दर्शन होते हैं तो दूसरी ओर ‘प्रयत्न एवं भूल’ (Trial and Error) प्रकार की वामपन्थी राजनीति के जिसके फलस्वरूप हमें ‘अराजनयीकरण’ (depoliticization) की क्रिया भी देखने को मिलती है। परिणामतः समाज का मध्यम वर्ग किसी भी प्रकार विकास के प्रति उदासीन है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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