आन्द्रे गुण्डर फ्रैंक का अल्पविकास का सिद्धान्त | समीर अमीन का अल्पविकास का सिद्धान्त
आन्द्रे गुण्डर फ्रैंक का अल्पविकास का सिद्धान्त | समीर अमीन का अल्पविकास का सिद्धान्त | Andre Gunder Frank’s theory of underdevelopment in Hindi | Samir Amin’s theory of underdevelopment in Hindi
आन्द्रे गुण्डर फ्रैंक का अल्पविकास का सिद्धान्त
फ्रैंक, बरान से बहुत अधिक प्रभावित थे। रोस्टो की द स्टेजेज ऑफ इकॉनोमिक ग्रोथ सन् 1971 में प्रकाशित हुई। फ्रैंक ने शुरू में ही रोस्टो के इस प्रसिद्ध योगदान की आलोचना की तथा बरान के दृष्टिकोण का समर्थन किया।
फ्रैंक विवस के समाजशास्त्र के स्थापित सिद्धान्तों के प्रखर आलोचक थे। इन्होंने अद्विकास और आधुनिकीकरण की प्रक्रियाओं को एक साथ जोड़ कर देखा। होजलिट ने किसी भी देश में विकास प्रक्रिया की व्याख्या पारसन्स द्वारा प्रस्तुत आधुनिकीकरण के प्रतिमान चरों के आधार पर की है। परन्तु फेंक का मानना है कि विकसित और अविकसित दोनों ही प्रकार के समाज के होजलिट या पारसन्स द्वारा सुझाए गए लक्षण नहीं पाए जाते हैं।
फ्रैंक, प्रसार सिद्धान्त को भी अस्वीकृत करते हैं। प्रसार सिद्धान्त की मान्यता है कि कम विकसित समाज इसलिए विकास नहीं कर पाते क्योंकि इन देशों पर विकास की बाधाओं के कारण, विकसित दुनिया में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव नहीं पड़ पाता। फ्रैंक के अनुसार आर्थिक प्रसार तीसरी दुनिया के देशो में कोई परिवर्तन नहीं ला पाता है।
डेविड मैक्लीलैण्ड और ई. हैगेन की भी आलोचना फ्रैंक करते हैं। फ्रैंक के अनुसार इन विद्वानों ने इस तथ्य की उपेक्षा की है कि ऐतिहासिक परिस्थितियाँ एक विश्व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना की ओर ले जाती हैं जिसमें तीसरी दुनिया पहली दुनिया के विकास के लिए कार्य करती हैं।
हालांकि निर्भरता के सिद्धान्तों का प्रतिपादन बरान ने किया परन्तु इसकी लोकप्रियता के लिए, श्रेय, फ्रैंक को दिया जाना चाहिए। अल्प विकास के सिद्धान्त के मूलतत्व इस प्रकार से है:-
- अल्प विकसित समाजों का ऐतिहासिक लेखा-जोखा ।
- अल्प विकास उन देशों के विकसित समाजो के साथ सम्बन्धों का परिणाम हैं।
- विकास एंव अल्पविकास एक ही व्यवस्था के दो पक्ष हैं।
- अल्प विकास, निर्भरता तथा विश्व व्यवस्था एक ही सिद्धान्त के अलग-अलग नाम हैं।
- यह सिद्धान्त कम विकसित देशों के धनी यूरोपीय देशों पर निर्भरता के सम्बन्धों का ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करता हैं।
फ्रैंक का मत है कि विश्व पूँजीवादी व्यवस्था का सम्बन्ध विकास और अल्प विकास दोनों से ही हैं। ये दोनों ही अवधारणाएं एक ही व्यवस्था के दो अलग-अलग पहलू हैं। कुछ क्षेत्रों में विकास, अल्प विकास का प्रत्यक्ष परिणाम हैं। फ्रैंक कहते हैं कि विश्व व्यवस्था राष्ट्रीय सीमाओं के महत्व को नकारती हैं। इन देशों के मध्य सम्बन्धों की प्रकृति महानगरीय/ उपग्रह नगरीय के तरह की होती हैं। इस प्रकार के सम्बन्ध सिर्फ पश्चिम के धनी महानगरीय देशों तथा दुनिया के निर्धन उपग्रह नगरीय देशों के बीच ही नहीं पाए जाते। यह सम्बन्ध किसी देश के भीतर एक शहर और उसके पार्श्व प्रदेश (Hinterland) के बीच भी पाया जाता है। पार्श्व प्रदेश शहर को आपूर्ति देता है, तथा शहर द्वारा उसका शोषण किया जाता है। फ्रैंक के अनुसार वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में महानागरीय देश, पिछलग्गू देशों के आर्थिक अधिशेष का हरण करके विकसित होते हैं। इस प्रकार से वे उपग्रह नगरीय देशों के अल्प विकास का स्थायी बनाते हैं।
आन्द्रे गुन्डर फ्रेक ने विश्व व्यवस्था के इतिहास का एक काल क्रम आधारित विवरण प्रस्तुत किया है। विकास एवं अल्प विकास दोनों ही प्रक्रियाएँ वाणिज्यिक काल (1500-1770) में आरम्भ हुई तथा औद्योगिक पूँजीवाद (1770-1870) से होती हुई, साम्राज्यवाद के काल (1870- 1930) में अपने चरम पर पहुंची। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के दौरान उपनिवेशों, अर्द्ध-उपनिवेशों तथा नव उपनिवेशों का अस्तित्व, मुख्य रूप से पूंजीवादी महानगरों के लाभ के लिए लगातार बना रहा। इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि ये सभी उपनिवेश अविकसित रह गए।
समीर अमीन का अल्पविकास का सिद्धान्त
अमीन के अनुसार पूँजीवाद का विकास इंग्लैंड में 19वीं सदी के मध्य में हुआ। इसकी प्रकृति शुरूआत में वाणिज्यिक थी, जो बाद में चलकर साम्राज्यवादी हो गई। पूर्व पूंजीवादी परिधीय देश भी इसके प्रभाव में परिवर्तित हो गए। आदिम साम्यवादी के स्थान पर पूँजीवादी हो गए। समीर अमीन विश्व व्यवस्था को दो क्षेत्रों में बांटते है:-
- आत्म केन्द्रित व्यवस्था वाले देश,
- परिधीय व्यवस्था वाले देश
आत्म केन्द्रित देशों की अपनी खुद की गत्यात्मक व्यवस्था है, जो बाह्य सम्बन्धों से प्रभावित नहीं होती है, जबकि वे देश जो परिधि पर हैं, केन्द्र के देशों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। समीर अमीन का यह मत है कि तीसरी दुनिया के देश पूँजीवादी विश्व के प्रत्यक्ष प्रभाव में रहे हैं। अपनी अलग उत्पादन प्रणाली के बावजूद, पाश्चात्य पूँजीवाद के प्रभाव में आकर इन देशों की अर्थव्यवस्था का स्वरूप लगभग उन्हीं के समान पूंजीवादी हो गया है।
समाजशास्त्र / Sociology – महत्वपूर्ण लिंक
- विकास के क्षेत्र में सरकारी संगठनों की भूमिका | Role of government organizations in the field of development in Hindi
- पंचवर्षीय योजनाओं से हुए विकास के भारतीय अनुभव | पंचवर्षीय योजनाओं के विकास
- सामाजिक असमानता | सामाजिक असमानता के प्रमुख कारण | असमानता के प्रकार
- सामाजिक असमानता विनिमय का अर्थ | आर्थिक असमानता | आर्थिक असमानता को दूर करने के उपाय | सामाजिक असमानता दूर करने के उपाय
- पंचवर्षीय योजनाओं का समाज के रूपान्तरण पर प्रभाव | पंचवर्षीय योजनाएं क्या हैं? | पंचवर्षीय योजनाओं से समाज को लाभ प्राप्त हुआ
- सूचना तकनीकी क्रांति | भारत में जनसंचार के माध्यम | संचार के साधन और सामाजिक विकास
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com