इतिहास / History

भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक | भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर | मुगल साम्राज्य में बाबर के योगदान का मूल्यांकन | बाबर का इतिहास में स्थान

भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक | भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर | मुगल साम्राज्य में बाबर के योगदान का मूल्यांकन | बाबर का इतिहास में स्थान

भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक

बाबर की गणना संसार के महानतम विजेताओं के मध्य की जाती है। अनेक विद्वान् उसे भारत में मुगल वंश शासन का संस्थापक मानते हैं। बावर का चचेरा भाई मिर्जा हैदर बाबर के सम्बन्ध में लिखता है.” बाबर अनेक गुणों से विभूषित था तथा अगणित विशिष्टताओं से सम्पन्न था। उसमें उच्चकोटि का शूरत्व तथा उच्चकोटि की मानवता थी। वास्तव में उससे पहले उसके परिवार में इतना प्रतिभा सम्पन्न अन्य कोई व्यक्ति नहीं हुआ और न उसकी जाति के किसी व्यक्ति ने ऐसे विस्मय तथा वीरतापूर्ण कार्य किए तथा न ऐसे विचित्र, साहसी तथा संकटमय जीवन का ही अनुभव किया था।” यहाँ हम बाबर के चरित्र पर संक्षेप में प्रकाश डाल रहे हैं-

(1) व्यक्ति के रूप में- बाबर का व्यक्तित्व अत्यन्त महान् और सर्वांगीण था। फरिश्ता ने उसके सम्बन्ध में लिखा है कि “शारीरिक दृष्टि से अत्यन्त सुन्दर था और उसकी बातचीत में आकषर्ण था। उसकी आकृति मनोरम एवं स्वभाव कोमल था। उसमें अपार शारीरिक बल था। बाल्यकाल की मुसीबतों के फलस्वरूप उसका शरीर अत्यन्त बलिष्ठ हो गया था। उसमें धैर्य, सहनशक्ति एवं साहस तथा स्वावलम्बन के गुण आ गये थे। कठिन से कठिन शीत में भी वह जंगली पशुओं का आखेट करने दूर-दूर तक चला जाता था। वह तुषाराच्छादित नदियों में स्नान किया करता था और यदि उसके मार्ग में कोई नदी आ जाती थी तो वह उसे तैर कर पार कर जाया करता था। उसमें इतना शारीरिक बल था कि दो व्यक्तियों को अपने दोनों पार्श्व में दबाकर दुर्ग की दीवारों पर निर्भीकतापूर्वक तथा बिना किसी असुविधा का अनुभव किए छोड़ सकता था। उसमें अचल आत्मविश्वास था और भयानक आपत्ति में भी उसका धैर्य भंग नहीं होता था ।अपने निराश तथा हतोत्साह सैनिकों में आशा तथा उत्साह उत्पन्न करने की उसमें अद्वितीय शक्ति थी। वह बड़ा ही महत्वाकांक्षी, उत्साही व प्रसन्न मन का व्यक्ति था।” डेनियस रास का विचार है कि बाबर उन व्यक्तियों में से था जिनके शरीर और मस्तिष्क में इस प्रकार की स्फूर्ति रहती है कि वे कभी अकर्मण्य नहीं होते और प्रत्येक कार्य को सम्पन्न करने के हेतु उन्हें समय मिल जाता है। केवल 3 वर्ष को छोड़कर, जबकि बाबर ने स्वयं को काश्गर के सुल्तान के संरक्षण में छुपा रखा था, उसने कभी विश्राम नहीं किया। बाबर ने स्वयं लिखा है कि किसी भी स्थान पर उसे कई-कई बार रमजान का व्रत रखने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।

स्वभाव से बाबर अत्यन्त उदार, दयालु और स्नेह से युक्त था। वह अपने सम्बन्धियों और मित्रों के प्रति अत्यन्त उदारता का व्यवहार करता था। साथ ही उसके शत्रु भी उसकी उदारता और दया से वंचित नहीं थे। अपने सैनिकों को वह विजित प्रदेशों को उजाड़ने नहीं देता था। इरैस्किन ने उसके सम्बन्ध में लिखा है, “वह वीर, साहसी तथा उत्साही था और उसमें स्वामित्व प्राप्त करने की प्रतिभा थी। एक बड़ा ही स्पष्टवादी, विश्वसनीय तथा प्रसन्नचित्त व्यक्ति था और सम्पूर्ण जीवन उसमें यौवन की पूर्ति बनी रही। उसमें अगाध प्रेम था और उच्च कोटि की कौटुम्बिक सद्भावनायें थीं। अपने सम्बन्धियों तथा मित्रों के प्रति उसका अपार प्रेम था और उच्चकोटि के व्यक्तियों के साथ उसकी बड़ी सहानुभूति थी। वह सौन्दर्य का प्रेमी तथा गुणग्राही था। वह बड़ा ही जिज्ञासु था और कठिन परिश्रम के साथ अधिकाधिक ज्ञानार्जन का प्रयास करता था। गौरव उसकी आकांक्षाओं को प्रज्ज्वलित कर देता था। अतएव महान शक्ति तथा यश को प्राप्त करने में वह सफल हुआ। अपने बाहुबल से उसने एक अत्यन्त गौरवान्वित पद प्राप्त कर लिया था। जब वह बालक था तब केवल फरगाना उसके अधिकार में था। उसके पास-पड़ोस के प्रदेश उसके सम्बन्धियों के अधिकार में थे। जब वह प्रौढ़ हुआ तब उसने सब कुछ खो दिया। परन्तु इस तूफान तथा आंधी से वह अपनी रक्षा कर सका। वह अधिक से अधिक आपत्ति पड़ने पर भी धैर्य तथा साहस को नहीं छोड़ता था और दृढ-प्रतिज्ञ बना रहता था। वह सदैव अपने वचनों का पालन करता था और कभी भी किसी के साथ विश्वासघात नहीं करता था। इरेस्किन पुनः लिखता है कि “उसके चरित्र का कोई भी अंग उतना अधिक प्रशंसनीय नहीं है जितनी उदारता और स्वभाव की कोमलता। कहा जाता है कि यदि कोई अमीर उसके विरुद्ध विद्रोह कर देता था और बाबर उसे कुचल देता था तो यदि वह अमीर बाबर से क्षमा मांग लेता था तो बाबर उसे माफ कर देता था।” फरिश्ता का विचार है कि बलात्कार को रोकने के लिए वह हिंसा का सहारा अवश्य लेता था। दौलत खाँ का कुटुम्ब बाबर की उपस्थिति के फलस्वरूप ही अपमानित होने से बच गया। उसे गाजी खाँ द्वारा एकत्रित किये गए सुन्दर पुस्तकालय की रक्षा करने का भी श्रेय प्राप्त है। इलियट ने लिखा है कि यदि बाबर का प्रशिक्षण यूरोप में हुआ होता तो वह हेनरी षष्ठम् के समान हो सकता था।

“Good humoured, brave, magnificent sagacious and frank in his character, he might have been Henry VI if his training had been in Europe.”

-Elliot.

(2) सैनिक के रूप में- एक सैनिक के रूप में बाबर का स्थान अत्यन्त गौरवपूर्ण है। वह एक कुशल सेनानी, सेनापति और संगठनकर्ता था और पराजय को भी विजय में बदलने की क्षमता रखता था। वह रणनीति का महान् पंडित था। तुलगम रणनीति और तोपखाने का प्रयोग उसने ही पहली बार भारत में किया। व्यूह रचना में वह अत्यन्त चतुर था। नेतृत्व का गुण उसमें असीमित रूप से विद्यमान था और वह अपने सैनिकों का स्वाभाविक नेता था। जब-जब इसके सैनिक हिम्मत हारने लगे, बाबर ने उनको जोश दिलाया। रण-क्षेत्र में वह सेनापति के वास्तविक महत्व को भली-भाँति समझता था और सैन्य-संचालन को ही वह अपना प्रमुख कर्त्तव्य मानता था। सैनिकों की कठिनाइयों का पता लगाने की उसमें अपर्व क्षमता थी और अपने विपक्षियों के संघ को तोड़ने में तथा उनमें फूट उत्पन्न करने में वह अत्यन्त चतुर था। कोई विजय प्राप्त कर लेने के पश्चात् वह अवसर नष्ट नहीं करता था और पराजित हो जाने पर भी आत्मविश्वास नहीं खोता था। वह सैनिकों की उद्दण्डता और अनुशासनहीनता को सहन नहीं कर सकता था, परन्तु सैनिकों के साथ उदारता और भाई-चारे का व्यवहार करता था। विजय प्राप्त हो जाने पर वह सैनिकों को खुले हाथों से पुरस्कार देता था। यही कारण था कि सैनिक हर आज्ञा का पालन करते थे और उसके लिए अपने प्राणों तक न्यौछावर करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। अपने वीर और स्वामिभक्त सैनिकों की सहायता से उसने फरगाना की रक्षा की थी, समरकन्द पर विजय प्राप्त काबुल में अपना स्थायी प्रभुत्व स्थापित किया और भारत में अफगानों एवं राजपूतों को छिन्न-भिन्न करके नये राजवंश की नींव रखी।

(3) शासक के रूप में- बाबर में एक अच्छे शासक के कुछ गुण अवश्य थे परन्तु वह एक अच्छा शासक प्रबन्धक नहीं था। वह अपने साम्राज्य में शान्ति नहीं स्थापित कर सका और न शासन का उचित प्रबन्ध कर सका। एक विद्वान् ने ठीक लिखा-

“Babar was a great conqueror but a good constructive genius.”

(4) एक साहित्यकार के रूप में- बाबर को साहित्य से विशेष प्रेम था। वह साहित्यकारों का आश्रयदाता था, साथ ही वह स्वयं भी अत्यन्त उच्चकोटि का विद्वान् भी था। उसके चचेरे भाई हैदर मिर्जा ने उसके सम्बन्ध मे लिखा है “वह एक ऐसा शाहजादा था जो भिन्न-भिन्न गुणों से विभूषित था ओर अपने भव्य गुणों के लिए प्रसिद्ध था। मनुष्यता तथा उदारता उसके सर्वोत्कृष्ट गुण थे। तुर्की कविता में मीर-अली शीर को छोड़कर कोई दूसरा उसकी समता नहीं कर सकता था। उसने एक अत्यन्त सुन्दर तथा ओजपूर्ण तुर्की दीवान की रचना की है। उसने धर्म तथा नीति पर भी एक ग्रंथ लिखा है जिसकी बड़ी प्रशंसा होती है। उसने छंदशास्त्र पर भी एक ग्रन्थ लिखा है जिसकी बड़ी ख्याति है तथा जो इस विषय पर तत्कालीन सभी ग्रन्थों में उत्तम है। हजरत इस्लाम के रिसालह को उसने छन्दबद्ध किया था। तुर्की में काव्य अपनी शैली की सरलता तथा शुद्धता के लिए प्रसिद्ध है। संगीत तथा अन्य कलाओं में भी वह दक्ष था। प्रतिभा-गुणों में कोई भी उसके वंश में उससे पहले उससे बढ़कर नहीं था। उसकी अद्भुत सफलताओं तथा साहसी कार्यों में उसके उत्तराधिकारियों के उससे बढ़ जाने की सम्भावना नहीं है। – बाबरनामा उसकी विद्वत्ता का महान् परिचायक है। “डॉ० आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव का विचार है कि यद्यपि बाबर उच्चकोटि का विद्वान् था परन्तु वह सैनिक पहले था और विद्वान् बाद में। उनके शब्दों में, “यद्यपि बाबर में उन सभी गुणों का समावेश था जो कि एक विद्वान् में पाये जाने चाहिए और उसे एक सैनिक विद्वान् कहा जाना चाहिये, परन्तु वह सैनिक पहले था और विद्वान् बाद में।”

“Though adorned with all the qualities needed for scholarship, Babar may be called a soldier scholar. He was a soldier first and the scholar only next.”

-Dr. A. L. Srivastava.

(5) शान्ति एवं कलाप्रेमी- बाबर यद्यपि एक उच्चकोटि का सैनिक था परन्तु कलाओं में भी उसका विशेष अनुराग था। युद्ध के बाद जब उसे अवकाश मिलता था, अवकाश के क्षणों में वह अपने शासन को सुधारने और प्रजा में शान्ति स्थापित करने में व्यतीत करता था। सभी भव्य कलाओं के प्रति उसका अनुराग था। शिल्पकला और वागवानी का उसे विशेष शौक था। प्रकृति से उसे अपार प्रेम था। झोल, झरने, सोते, पेड़-पौधे आदि उसके आकर्षण के प्रमुख केन्द्र थे। उसने इनका जो वर्णन किया है वह अत्यन्त सजीव और सच्चा था। अपनी मातृभूमि के प्रति वह अधिक आकर्षित होता था। वह कितना कला-प्रेमी था, यह इस बात से ही स्पष्ट है कि उसने राज्य के विभिन्न भागों में अनेक राज-उद्यान और उपवन लगवाये । फूलों एवं अन्य प्राकृतिक दृश्यों से उसे प्रेम था। उद्यान विद्या का वह पंडित था। संगीत में भी उसकी विशेष अभिरुचि थी। वह स्वयं उच्चकोटि का संगीतकार था।

(6) कट्टर धार्मिक- बाबर में कट्टर धार्मिकंता थी। वह एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था । हिन्दुओं और शियों को बुरी निगाह से देखता था। उसने अपने ग्रंथ में हिन्दुओं का उल्लेख बड़ी घृणित भाषा में किया है। उसने हिन्दुओं पर जजिया भी लगाया। परन्तु यह अवश्य स्वीकार किया जाएगा कि सल्तनत-युग के सुल्तानों की भांति उसने हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं किये। उसे अल्लाह की सत्ता में अटूट विश्वास था और हर युद्ध की विजय पर अल्लाह को कोटि-कोटि धन्यवाद देता था।

(7) बाबर की दुर्बलता- यद्यपि बाबर अनेक गुणों से सम्पन्न था परन्तु उसमें कुछ दुर्बलताएँ भी थीं । वह मदिरा का अत्यधिक सेवन करता था और आनन्दोत्सव में वह मदिरापान अत्यन्त आवश्यक समझता था परन्तु उसका यह मदिरा-पान उसके कार्य में बाधक कभी नहीं बना। वह स्वयं भी मदिरापान को अच्छा नहीं समझता था और कई साल बाद उसने मदिरा छोड़ने की प्रतिज्ञा भी की थी। परन्तु उसका पालन न कर सका। खानवा के युद्ध के उपरान्त उसने अल्लाह को साक्षी बना कर यह शपथ ली थी कि भविष्य में कभी भी वह मदिरा का सेवन नहीं करेगा परन्तु वह इस संकल्प को पूरा न सका। परन्तु उसके दुर्गुण पर आक्षेप करने से पूर्व उस युग की सभ्यता पर विचार कर लेना आवश्यक होगा। उस युग में वेश्याओं और कुटिल स्त्रियों का बाजार गर्म था। बाबर कम से कम इन दुर्गुणों से दूर था। हाँ, यह अवश्य है कि वह कभी-कभी बड़ा क्रूर हो जाता था। परन्तु यह क्रूरतायें भी जैसा कि इरेस्किन ने लिखा है, उसके युग की द्योतक थीं, उसके स्वयं के व्यक्तित्व की नहीं। साधारणतया मनुष्यों को मारने में उसे कोई आनन्द नहीं आता था।

बाबर का इतिहास में स्थान

बाबर की गणना उच्चकोटि के शासकों के मध्य की जाती है । वह एक महान् व्यक्तित्व वाला, महत्वाकांक्षी, योग्य सेनाध्यक्ष, कुशल पारखी तथा उच्च-कोटि का विद्वान् था। विन्सेंट स्मिथ उसके सम्बन्ध में लिखता है, “बाबर अपने काल के बादशाहों से सबसे अधिक देदीप्यमान था और किसी भी काल अथवा देश के बादशाहों में उच्च स्थान प्रदान करने योग्य है।”

हैवल ने बाबर के सम्बन्ध में लिखा है, “अपने मनोरथ, व्यक्तित्व, कलात्मक स्वभाव तथा अद्भुत चरित्र के कारण वह इस्लाम के इतिहास में सबसे अधिक चित्ताकर्षक हो गया।’ इलियट के शब्दों में, “यदि उसकी शिक्षा यूरोप में हुई होती तो अच्छे स्वभाव का दयालु, बुद्धिमान तथा स्पष्टवादी होने के कारण वह हेनरी षष्ठम का स्थान लिये होता।”

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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