शिक्षाशास्त्र / Education

जीवनपर्यन्त शिक्षा | जीवन पर्यन्त शिक्षा की कुछ विशेषताएँ | जीवनपर्यन्त शिक्षा की उपयोगिता

जीवनपर्यन्त शिक्षा | जीवन पर्यन्त शिक्षा की कुछ विशेषताएँ | जीवनपर्यन्त शिक्षा की उपयोगिता | lifelong education in Hindi | Some features of lifelong education in Hindi | Usefulness of lifelong education in Hindi

जीवनपर्यन्त शिक्षाअर्थ एवं परिभाषा

आज संसार बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवर्तन के अनेक कारण हो सकते हैं- आबादी का बढ़ना, ज्ञान का विस्फोट, वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति, आदि। आज की दुनिया कल की  दुनिया से भिन्न है, और कल की दुनिया आज की दुनिया से भिन्न होगी। यदि ऐसी बात है तो क्या कल को शिक्षा आज के लिए उपयुक्त है और इसी प्रकार) क्या आज को शिक्षा कल के लिए उपयुक्त होगो ? फिर वह कौन सी शिक्षा है जो कल (अतीत) और आज की अपेक्षा कल (अनागत) के लिए अधिक उपयुक्त हो ? शिक्षा की उपयुक्तता का प्रश्न हर व्यक्ति के सामने है। क्या वह आज की शिक्षा के सहारे अपना सारा जीवन सफलतापूर्वक व्यतीत कर सकेगा ? इसीलिए वह सोचता है कि उसे तो ऐसी शिक्षा चाहिए जो सदा बदलते रहने वाले परिवेश के लिए ठीक हो। बदलती दुनिया के लिए शिक्षा अथवा परिवर्तन का साथ देने वाली शिक्षा की अवधारणा उसके मस्तिष्क में चक्कर काट रही है। सम्भवतः वह इसोलिए शिक्षा की इस नवोदित संकल्पना के विषय में अधिक सोचने लगा है। शिक्षा जिसे ‘जीवनपर्यन्त शिक्षा’ के नाम से पुकारा जा रहा है, आज शिक्षाविदों तक के लिए चर्चा का विषय बन गयी है।

In the past our main concern has been to do more than before, and later on better than before. He must now ask ourselves how to do different than before because what was before is no longer suitable or relevant.

(Learning To Bc, 1973)

पहले की अपेक्षा अधिक करना अतीत में हमारा मुख्य लक्षय था, और बाद में पहले की अपेक्षा अधिक अच्छा करना हो गया। अब हम स्वयं से प्रश्न करते हैं कि पहले से भिन्न कैसे किया जा सकता है, क्योंकि जो  पहले था वह अब उपयुक्त अथवा संगत नहीं है। (लनिंग दू यी 1973)

पूरे जीवन चलती रहने वाली शिक्षा जीवनपर्यन्त शिक्षा कहलाती है। कुछ विचारक सोचते है कि जीवनपर्यन्त शिक्षा के अर्थ में शिक्षा का अधिक कापक और गूढ़ अर्थ छिपा है. जब कि कुछ अन्य का सोचना है कि शिक्षा के विषय में जीवनपर्यन्त शिक्षा की अवधारणा कोई नई अवधारणा नहीं है। शिक्षाविदों ने व्यापक अर्थ में, शिश्वा का अभिप्राय ‘जीवनपर्यन्त शिक्षा’ माना है।

Education in its wider sense includes all the influences which act upon an individual during his passage from the cradle to the grave.

(Dumville)

शिक्षा के व्यापक अर्थ में वे सभी प्रभाव सम्मिलित हैं जो व्यक्ति को जन्म से लेकर मरण तक प्रभावित करते हैं।

-(डमविल)

प्रत्येक व्यक्ति को जीवनपर्यन्त कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए। शिक्षा किसी भी उम्र में ग्रहण की जा सकती है।

(लर्निंग टू बी)

जीवन पर्यन्त शिक्षा की कुछ विशेषताएँ

  1. शब्दों के अर्थ से ही स्पष्ट है कि जीवनपर्यन्त शिक्षा पूरे जीवन (जन्म से मृत्यु तक) चलने वाली शिक्षा है।
  2. विद्यालयी शिक्षा की समाप्ति पर सीखना नहीं रुकता। सीखने की प्रक्रिया जीवन के अंतिम क्षण तक चलती रहती है।
  3. जीवनपर्यन्त शिक्षा का सम्बन्ध हर व्यक्ति से है, उसकी सभी अवस्थाओं की शिक्षा से है।
  4. जीवनपर्यन्त शिक्षा में अनौपचारिक, औपचारिक, न-औपचारिक (गैर औपचारिक) तीनों प्रकार के साधनों का प्रयोग होता है।

जीवनपर्यन्त शिक्षा की उपयोगिता

  1. सभी को समान शैक्षिक अवसर प्रदान करना- प्रजातंत्र की मांग है कि समाज के हर व्यक्ति को अपनी योग्यता बढ़ाने का पूरा-पूरा अवसर मिले। जीवनपर्यन्त शिक्षा इस माँग को पूरा करेगी।
  2. शिक्षा लागत को कम करना तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना-जीवनपर्यन्त शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति नये-नये कौशल सीखकर अपनी व्यावसायिक कुशलता बढ़ा सकेगा जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी।
  3. आत्मनिर्भर बनाकर जीवन-स्तर में सुधार करना- जीवनपर्यन्त शिक्षा को अपनाकर व्यक्ति आत्मनिर्भर बन सकेगा जिससे उसके जीवन स्तर में सुधार होगा और वह खुशहाली की ओर बढ़ेगा।
  4. व्यक्ति की कपियों की पूर्ति कर उसे जीवन के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ाना-बीवनपर्यन्त शिक्षा व्यक्ति की कमियों को पूरा करती है और उसे एक जिम्मेदार अभिभावक, एक सुयोग्य नागरिक और एक पूर्ण मानव बनाने का प्रयत्न करती है।
  5. समेकित व्यक्तित्व का विकास करना-जीवनपर्यन्त शिक्षा समेकित व्यक्तित्व का विकास करती है जिससे व्यक्ति अपने को समाज के बदलते परिवेश के अनुकूल करने के योग्य बनाता है।
  6. आत्म-अधिगम के लिए प्रेरित करना- जीवनपर्यन्त शिक्षा से आत्म-अधिगम की प्रेरणा मिलती है। आत्म-अधिगम से व्यक्ति की वास्तविक शिक्षा होती है। वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ होता है।
  7. अज्ञानता निर्धनता शोषण आदि से मक्ति दिलाना-जीवनपर्यन्त शिक्षा द्वारा व्यक्ति अज्ञानता, निर्धनता, शोषण आदि का शिकार नहीं बनता। यह शिक्षा उसको इन सबसे मुक्ति दिलाती है।
  8. समय-समय पर पुनर्शिक्षित करना- भैतिकवाद बढ़ रहा है। व्यावसायिक जगत की प्रकृति बदल रही है। एक ही प्रकार के कौशल से पूरे जीवन काम चलाना दुष्कर है। जीवनपर्यन्त शिक्षा व्यक्ति को समय-समय पर पुनशिक्षित करती रहती है, उसकी योग्यता और कुशलता को बढ़ाती रहती है। इससे व्यक्ति कभी बेकार नहीं होता। किसी भी व्यावसायिक संरचना में वह अपने को समायोजित कर लेता है।

ऊपर जीवनपर्यन्त शिक्षा का अर्थ समझा दिया गया है, कुछ परिभाषाएँ दे दी गयीं, इसकी कुछ विशेषताएँ स्पष्ट कर दी गयीं और इसकी उपयोगिता पर थोड़ा-बहुत प्रकाश डाला गया। यह सब इसका सैद्धान्तिक पक्ष है। कठिनाई तो तब होती है जब इसे व्यावहारिक रूप देने का प्रश्न उठता है। इस रूप को निर्धारित करते समय बहुत सी बातों पर विचार करना होगा। जीवनपर्यन्त शिक्षा के आधार क्या हों ? कैसे जीवनपर्यन्त शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित किये जायें। इस शिक्षा की पाठ्यचर्या क्या हो ? इसकी अधिगम प्रक्रिया क्या हो ? इन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए सामाजिक आवश्यकताओं एवं राष्ट्रीय आकांक्षाओं का विश्लेषण करना होगा, वर्तमान शिक्षा प्रणाली की समालोचना करनी होगी और तब जीवनपर्यन्त शिक्षा की उपादेयता सिद्ध करनी होगी। यह कोई सरल कार्य नहीं है। इसके लिए व्यापक प्रयास की आवश्यकता है। जीवनपर्यन्त शिक्षा के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित विषयों पर शोधकार्य करने होंगे जिससे कार्यान्वयन की दिशा में ठोस सुझाव मिल सकें। तब कहीं जीवनपर्यन्त शिक्षा की अवधारणा को व्यावहारिक पक्षरूप दिया जा सकेगा। इस सम्बन्ध में कुछ शिक्षाविदों के विचार है-

विद्यालयों के लिए प्रभावी कोर शिक्षा देना अनिवार्य होगा ताकि छात्र जीवन के अन्तिम क्षण तक सीखते रहने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशलों की प्राप्ति कर सकें। (डेलकर)

अध्यापकों के लिए इस शिक्षा मॉडल का पहला निहितार्थ है कि उनको स्वयं जीवनपर्यन्त शिक्षार्थी बने रहना होगा।

इस शिक्षा की अवधारणा (संकल्पना) अब भी, शिक्षा के बहुत से लेखों में, मूलतः एक दर्शन की अथवा शैक्षिक विकास की एक दिशा की है, न कि नियमों अथवा क्रियाओं का एक समुच्चय (सेट) की।

(ए.जे. क्रांपले)

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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