पंचवर्षीय योजनाओं का समाज के रूपान्तरण पर प्रभाव

पंचवर्षीय योजनाओं का समाज के रूपान्तरण पर प्रभाव | पंचवर्षीय योजनाएं क्या हैं? | पंचवर्षीय योजनाओं से समाज को लाभ प्राप्त हुआ

पंचवर्षीय योजनाओं का समाज के रूपान्तरण पर प्रभाव | पंचवर्षीय योजनाएं क्या हैं? | पंचवर्षीय योजनाओं से समाज को लाभ प्राप्त हुआ | Impact of five year plans on the transformation of society in Hindi | What are five year plans in Hindi? | Society benefited from five year plans in Hindi

पंचवर्षीय योजनाओं का समाज के रूपान्तरण पर प्रभाव

(Impact of five-year plans on Transformation of Society)

पंचवर्षीय योजनाओं का भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़े हैं। जिससे भारतीय समाज का रूपान्तरण हुआ। इन प्रभावों का मुख्य रूप से चार आधारों का उल्लेख निम्नलिखित है-

1. आर्थिक वृद्धि, 2. आधुनिकीकरण, 3. आत्मनिर्भरता और 4. सामाजिक न्याय ।

  1. आर्थिक वृद्धि (Economic Growth)-

हमारे पुरुषार्थों में भी अर्थ को प्रमुख स्थान दिया गया था। अर्थ के अभाव में न्यायोचित किसी भी व्यवहार का संपादन संभव नहीं है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात प्रारम्भ किये गये पंचवर्षीय योजनाओं में आर्थिक वृद्धि को एक प्रधान लक्ष्य माना गया। भारत में नियोजन के जन्मदाता प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आधार सामाजिक न्याय को माना। उनका मानना था कि न्याय के अंतर्गत वृद्धि (Growth with Justice) नही विशेषता हमारे प्राचीन भारत की रही है धर्म के अधीन अर्थ।

योजना के पहले तीस वर्षों में कुल सकल उत्पाद (G.N.P.) 17,300 करोड़ रु. से बढ़कर 52,500 रु. करोड़ रुपया हो गया। यह उपलब्धि 3.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से पाप्त हुआ। इन तीस वर्षों में (1951-1981) औद्योगिक उत्पादन 6.1 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से प्राप्त हुआ। 1951 ई. में जहाँ निर्यात 601 करोड़ रुपये का था वहीं 1983-84 में बढ़कर 9.743 करोड़ रुपये का हो गया। कुल सकल उत्पाद (G.N.P.) पर जहां 1950-51 ई. में 6.8 प्रतिशत का बचत देखा गया वहीं 1985 ई. तक 26 प्रतिशत हो गया। खाद्यान्नों के उत्पादन में सराहनीय सफलता मिली जहाँ 1950- 51 ई. में मात्र 51 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन होता था वहीं छठीं योजना के अंत तक 151 मिलियन टन हो गया। इस अवधि में कृषि उत्पादनों में 2.7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हुई।

आठवीं योजना के अंत में 1997 ई. कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में विकास की दर 3.7 प्रतिशत वार्षिक हो गयी और इस विकास दर से खाद्यान्नों का उत्पादन 191 मिलियन टन (19 करोड़ 10 लाख टन) हो गया। यह योजना की सफलता को इंगित करता है। आठवीं योजना के अंत में विकास दर 5.6 प्रतिशत रही। घरेलू बचत की दर प्रतिवर्ष वार्षिक बड़ी नियोजन के पिछले 48 वर्षों में जीवन की औसत आयु जो 1951 ई. में 33 वर्ष थी बढ़ कर 60 हो गयी है। साक्षरता का प्रतिशत 17 से बढ़कर 52 हो गया है। अमेरिका और रूस को छोड़कर बाकी अन्य सभी देशों से यहां वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों की संख्या अधिक है।

निम्नलिखित चार्ट द्वारा विभिनन योजनाओं में आर्थिक वृद्धि को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है।

क्र.सं. योजना संख्या

योजना काल

वृद्धि का लक्ष्य

वास्तविक वृद्धि

1. प्रथम पंचवर्षीय योजना

1951-1956

2.1 प्रतिशत

3.6 प्रतिशत

2. द्वितीय पंचर्षीया योजना

1956-1961

4.5 प्रतिशत

4.0 प्रतिशत

3. तृतीय पंचवर्षीय योजना

1961-1966

5.6 प्रतिशत

2.2 प्रतिशत

4. तीन एकवर्षीय योजनाएं

1966-1967, 1967-1968, 1968-1969   

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2.2 प्रतिशत

5. चतुर्थ पंचवर्षीय योजना

1969-1974

5.7 प्रतिशत

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6. पंचम पंचवर्षीय योजना

1974-1979

4.4 प्रतिशत

– –

7. छठीं पंचवर्षीय योजना

1980-1985

5.5 प्रतिशत

– –

8. सातवीं पंचवर्षीय योजना

1985-1990

5.5 प्रतिशत

3.3 प्रतिशत

9. आठवीं पंचवर्षीय योजना

1992-1997

5.6 प्रतिशत

5.2 प्रतिशत

10. नवीं पंचवर्षीय योजना

1997-2002

6.7 प्रतिशत

5.5 प्रतिशत

11. दसवीं पंचवर्षीय योजना

2002-2007

9 प्रतिशत

5.5 प्रतिशत

12. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना

2007-2012

10 प्रतिशत

5.6 प्रतिशत

13. बारहवीं पंचवर्षीय योजना

2012-2017

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उपरोक्त तथ्यों से पता चलता है कि तीसरी और चौथी पंचवर्षीय योजना अवधि में आर्थिक वृद्धि लक्ष्य के अनुरूप नहीं रही जिसका कारण 1962 में भारत-चीन युद्ध, 1965 ई. में भारत- पाक युद्ध और फिर 1971 ई. में पाकिस्तान भारत युद्ध रहा है बाकी सभी योजना कालों में आर्थिक वृद्धि लक्ष्य के अनुरूप रही है। स्वतंत्रता के पचास वर्षों में हमने दासता, शोषण, उत्पीड़न और अत्याचार के उस माहौल को बदला है जिसके कारण हमारे गांवों के लोग पिछड़े, दुखी, गरीब और अपेक्षित बने हुए थे।

आजादी के समय देश की जनसंख्या 36 करोड़ थी और अनाज का उतपादन केवल 5 करोड़ टन था। आज यद्यपि जसंख्या भी 90 करोड़ से अधिक हो गयी है लेकिन खाद्यान्नों में हमने उत्पादन 19 करोड़ टन तक बढ़ा लिया है।

  1. आधुनिकीकरण (Modernisation)-

भारतीय योजना का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य आधुनिकीकरण की प्राप्ति है। आधुनिकीकरण से तात्पर्य उस परिवर्तन से है जो प्रगति के लिए है। इसके लिए विभन्न प्रकार के संरचनात्मक तथा सांस्थानिक परिवर्तन आर्थिक गतिविधि के संदर्भ में आवश्यक है। अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि परम्परावादी आर्थिक व्यवस्था को बदला जाये। आधुनिकीकरण के लिए निम्नलिखित कार्य किये जा रहे हैं।

(i) औद्योगिक वृद्धि को प्रोत्साहन तथा उसमें विविधता- आधुनिकीकरण के क्षेत्र में यह पहला कदम है। इस्पात एक मूलभूत उद्योग है जिसका विकास औद्योगिक वृद्धि तथा औद्योगीकरण के लिए आवश्यक है।

(ii) सरकारी क्षेत्र का विकास- सरकारी क्षेत्र के विकास से एकाधिकार की प्रवृत्ति समाप्त होगी। यही कारण है कि भारतवर्ष में सभी महत्वपूर्ण कार्य सरकारी क्षेत्र (Public Sector) के अंतर्गत किये जा रहे हैं।

(iii) कृषि में विकास- कृषि क्षेत्र में उन्नति के लिए तथा खाद्यात्रों के लिए यह आवश्यक है कि प्राचीन काल से चली आ रही कृषि संबंधी गतिविधियों को बदला जाये। इससे न केवल कृषि के क्षेत्र की बाधाएं हल होगी अपितु कृषि उत्पादन भी बढ़ेगा। जमींदारी प्रथा का उन्मूलन इसी सुधार व्यवस्था का एक कार्यक्रम था। अब उन्नत बीज, आधुनिक सिंचाई के तरीके, कृषि संबंधित प्रौद्योगिकी तथा कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य से सभी किसान लाभान्वित हो रहे है। सरकारी समितियां इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही है सरकारी समितियां किसानों को महाजनों के चंगुल से छुड़ा कर उन्हें ऋणस्तता से मुक्त करा रही है।

  1. आत्मनिर्भरता (Self Reliance)-

योजना के कारण आत्मनिर्भरता में वृद्धि स्वाभाविक है विदेशी सहायता पर निर्भरता में कभी योजना की तरह महत्वपूर्ण सफलता है। घरेलू उत्पादन में वृद्धि के कारण आयात में कमी हुई है वहीं दूसरी ओर हम अनेक वस्तुओं का निर्यात भी करने लगे। न केवल खाद्यान्न अपितु विभिन्न प्रकार के औद्योगिक उत्पादनों में भी अब हम आत्मनिर्भर है। इधर कुछ वर्षों के वैज्ञानिक उपलब्धियों ने हमारे आत्मनिर्भरता को सिद्ध कर दिया है।

  1. सामाजिक न्याय (Social Justice) –

सामान्य लोगों के रहन-सहन में सुधार योजना का एक विशेष उद्देश्य है जिसे पूरा किया जा रहा है। वितरण प्रणाली को इस प्रकार बनाया जा रहा है ताकि सभी आवश्यक वस्तुएं सभी लोगों को उचित मूल्य पर मिल सके इस व्यवस्था के कारण पिछले 48 वर्षों में प्रति व्यक्ति खपत 46 प्रतिशत बढ़ा है। योग्यता के आधार पर पेशों का चुनाव भी सामाजिक न्याय सुलभ कराने में आश्रम रहा है। इसके प्रमुख उदाहरणों में सामाजिक न्याय सुलभ कराना, आंदोलन कार्यक्रमों का विस्तार पंचायती राज्य व्यवस्था को सशक्त करना लोक अदालतों का निर्माण करना आदि है।

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