शिक्षाशास्त्र / Education

पर्यावरण शिक्षा क्या है? | पर्यावरण शिक्षा का अर्थ | What is environmental education in Hindi | Meaning of Environmental Education in Hindi

पर्यावरण शिक्षा क्या है? | पर्यावरण शिक्षा का अर्थ | What is environmental education in Hindi | Meaning of Environmental Education in Hindi

पर्यावरण शिक्षा क्या है?

वर्तमान पर्यावरण शिक्षा के सम्प्रत्यय का ऐतिहासिक उद्गम पैट्रिक गैडेस नामक वैज्ञानिक से माना जा सकता है। उसने 1899 में इसका सूत्रपात एडिनबरा (इंग्लैण्ड) में किया जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण तथा शिक्षा में तर्कसंगत सुधार लाने से था। उसका विचार था कि शिक्षा एवं पर्यावरण- दोनों एक-दसूरे पर निर्भर करते हैं। अतः यदि बालकों को प्रारम्भ में ही पर्यावरण सम्बन्धी अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करें तो वह पर्यावरण के सन्दर्भ में जितना कुशलतापूर्वक अधिगम करेगा उसी प्रकार की सृजनात्मक क्षमताओं में भी वृद्धि करेगा। इसके बाद 1965 में कील विश्वविद्यालय में एक पर्यावरण शिक्षा के सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि पर्यावरण शिक्षा के द्वारा सभी शिक्षकों, छात्रों तथा मानव मात्र के लिए खोल दिये जाएं, बजाय इसे वैज्ञानियों के कटघरे में कैद करने के, जिससे यह एक जन-आन्दोलन का स्वरूप ले सके।

1972 में संयुक्त राष्ट्र ने जब मानव पर्यावरण पर एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया तो सर्वप्रथम इसे विश्व मानचित्र पर नवीन भूमिका की प्रेरणास्पद स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया जिससे विश्व समुदाय में सर्वप्रथम पर्यावरण सम्बन्धी बढ़ती समस्याओं के प्रति चेतना जाग्रत हुई। इसी के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environmental Programme, UNEP) की स्थापना भी हुई। 1975 में अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम को स्थापना हुई जिसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) सामंजस्य योजना,

(2) विचारों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान,

(3) परामर्शदात्री सेवायें प्रदान करना,

(4) अनुसन्धानों, सामंजस्य स्थापना उपलब्ध कराना,

(5) निर्देशात्मक कार्यक्रमों में सहयोग प्रदान करना,

(6) अधिकारियों को शिक्षा।

1975 में बेलग्रेड, यूगोस्लाविया में बेलग्रेड चार्टर के अन्तर्गत पर्यावरण शिक्षा की व्यावहारिकता पर बल दिया गया है जिसके मौलिक चार खण्ड हैं-

(1) पर्यावरण अवस्था (Environmental Situation),

(2) पर्यावरण लक्ष्य(Environmental Goal),

(3) पर्यावरण शिक्षा लक्ष्य (Environmental Education Goal),

(4) पर्यावरण शिक्षा उद्देश्य (Environmental Education Objectives).

1977 में एक अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण शिक्षा का सम्मेलन तिवलिसी, ज्योर्जिया (रूस) में सम्पन्न हुआ जिसने पर्यावरण शिक्षा के लिये 14 प्रमुख सस्तुतियां कीं जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय स्तर पर अनेक कार्यक्रम पर्यावरण शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये हुए और भविष्य में भी जारी रखा गया। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र संघ के अनेक संगठन इसमें मदद कर रहे हैं। जैसे –

(1) वर्ल्ड मौटिओरोलोजीकल आर्गनाइजेशन- WMO,

(2) वर्ल्ड हैल्थ आगेनाइजेशन- WHO,

(3) फूड एण्ड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन- FAO आदि।

पर्यावरण शिक्षा का अर्थ-

(Meaning of Environment Education)

पर्यावरण शिक्षा को परिभाषित करना एक कठिन कार्य है। इसका मुख्य कारण यह है कि इसके स्वरूप को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग प्रकार से विवेचित किया गया है जिसके अनुरूप परिभाषाओं का स्वरूप भी अनिश्चित् है। फिर भी कुछ प्रमुख परिभाषाओं का यहां उल्लेख किया जा रहा है-

(1) यूनाइटेड स्टेट्स पब्लिक लॉ के अनुसार- पर्यावरण शिक्षा एक ऐसी शैक्षिक प्रक्रिया है जिसका सम्बन्ध मानव एवं उसके प्राकृतिक वातावरण से मनुष्य एवं उसके द्वारा निर्मित वातावरण से होता है जिसके अन्तर्गत  जनसंख्या प्रदूषण, संसाधन में घटोत्तरी, बढ़ोत्तरी तथा उनकी समाप्ति, प्राकृतिक संरक्षण, यातायात एवं स्थानान्तरण, तकनीकी विकास, ग्रामीण एवं शहरीकरण नियोजन तथा सम्पूर्ण मानव पर्यावरण निहित रहता है।

(2) नेशनल एंटी-पोल्यूशन लॉ के अनुसार (जापान के सन्दर्भ)- पर्यावरण शिक्षा लोगों को सुन्दर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाती है तथा गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने को प्रेरित करती है जिससे कि मानव स्वास्थ्य सम्बन्धी हानिकारक प्रभावों को नियन्त्रित किया जा सके तथा हवा, पानी, मृदा, ध्वनि आदि के प्रदूषण को घटाया जा सके, जो कि मानव उवं उसके निर्मित वैज्ञानिक पुरस्कारों की देन हैं। पर्यावरण के अन्दर मानव, पशु, वनस्पतियां तथा उसका पारिस्थिति की तन्त्र सम्मिलित किया जाता है। इनमें निकटस्थ सूत्र स्थापित करना ही पर्यावरण शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है।

(3) नेवादे कान्फ्रेंस, 1970 के अनुसार- पर्यावरण शिक्षा से हमारा तात्पर्य ऐसे प्रबुद्ध नागरिकों में जागरूकता पैदा करने से है जो आवश्यक ज्ञान, कौशल, क्षमताएं अपने में संजोकर, सामूहिक रूप में कार्य कर सकें तथा गुणवत्तापूर्ण जीवन तथा गुणवत्तायुक्त पर्यावरण के मध्य गत्यात्मक सन्तुलन स्थापित करने में मदद दे सकें।

(4) यूनेस्को के अनुसार- पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्यों को कार्यान्वित करने की समस्त योजनाओं को ही हम पर्यावरण शिक्षा के सम्बोधन से प्रकट करते हैं।

(5) भारतीय पर्यावरण शिक्षा संघ के अनुसार- पर्यावरण शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो पर्यावरण के उद्देश्यों, मूल्यों को पहचानने में मदद करती है, उन्हें परिभाषित करने में मदद करती है तथा उनके अनुकूल नागरिकों में अभिवृत्तियों का विकास करने में मदद करती है जिससे कि मानव एवं प्राकृतिक वातावरण के मध्य अटूट सम्बन्ध स्थापित किया जा सके। इसके अतिरिक्त पर्यावरण शिक्षा नियन्त्रित व्यवहार तथा निर्णय शक्तियों के सम्बन्ध में भी मदद करती है जिनके आधार पर पर्यावरण गुणवत्ता की सुरक्षा की जाती है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि पर्यावरण शिक्षा एक बहु-आयामी बहुविषय प्रत्यय है, जिसमें प्राणि विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, पारिस्थिति की विज्ञान, रसायन विज्ञान, भू-विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान, भूगोल आदि सभी कुछ निहित है। अब वैज्ञानिकों में यह आम सहमति है कि पर्यावरण शिक्षा का सम्बन्ध पर्यावरण सम्बन्धी मूल्यों को पहचानने, उनका स्पष्टीकरण करने तथा पर्यावरण को समझने के लिये आवश्यक है जिससे मानव समुदाय में आवश्यक कौशलों तथा अभिवृत्नियों को उत्पन्न किया जा सके। इसके अन्तर्गत पर्यावरण को गुणवत्ता और इस पर पड़ने वाले प्रभावों का ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लेने को क्षमता का विकास करने से भी हैं।

आधुनिक समय में पर्यावरण शिक्षा के अतिरिक्त पर्यावरणीय अध्ययन तथा पर्यावरण उपागण प्रत्ययों का भी अधिकाधिक सहारा लिया जा रहा है। इनका मूल उद्देश्य पर्यावरण शिक्षा से मिलता-जुलता होने हुए भी कुछ अलग अस्तित्व रखता है। पर्यावरण अध्ययन का जहां पर्यावरण सम्बन्धी धारणाओं के अध्ययन से है जैसे विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों एवं वनस्पतियों की जानकारी एकत्रित करना, वहीं पर्यावरण उपागम एक प्रकार की शिक्षण विधा के रूप में मान्य है जिसका उपयोग कर विभिन्न विषयों, जैसे—विज्ञान, भाषा, गणित आदि के अध्ययन का पर्यावरण से जोड़ा जाता है जिससे धारणाओं को पर्यावरण से जोड़कर रचनात्मक वृत्तियों का विकास करने में है जिसका मूल प्रत्यय पर्यावरण अधिगम है। एक सामान्य पर्यावरण पाठ्यक्रम के मूल तत्व निम्नलिखित हो सकते हैं-

(1) पर्यावरण प्रबन्ध,

(2) पारिस्थितिकी व्यवस्था विश्लेषण,

(3) जलस्रोत,

(4) वायु प्रकाश,

(5) ध्वनि प्रदूषण,

(6) नागरिकों के कर्त्तव्य,

(7)पारिस्थतिकी,

(8) मानव एवं पर्यावरण,

(9) शहरीकरण एवं ग्रामीण पर्यावरण प्रदूषण,

(10) वन स्रोत संरक्षण,

(11) समाजशास्त्र एवं मानव पर्यावरण,

(12) पर्यावरण संरक्षण

उपर्युक्त व्याख्या के आधार पर पर्यावरण शिक्षा के निम्नलिखित गुणों को स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. पर्यावरण शिक्षा प्रकृति से अन्तःविषयक है जिसमें अनेक विषयों को समन्चित रूप से समाविष्ट किया जाता है।
  2. पर्यावरण शिक्षा उन समस्त पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं और प्रश्नों की और उन्मुख होती है जो कि दैनिक जीवन से जुड़ी हैं।
  3. पर्यावरण शिक्षा ऐसे मुद्दों को उठाती है जिनका समाज से सीधा सम्बन्ध होता है तथा समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ती है।
  4. पर्यावरण में समस्या सम्बन्धी उठाये जाने वाले कदम भी सम्मिलित किये जाते हैं।
  5. पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य मूल्यों के स्पष्टीकरण और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें बदलना है।
  6. पर्यावरण शिक्षा को सम्पूर्ण शिक्षा में समन्वित होना चाहिये, न कि इसे पृथक से जोड़ा जाय।
  7. पर्यावरण शिक्षा के अन्तर्गत किसी समस्या से सम्बन्धित सभी पक्षों- पारिस्थितिकी, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी एवं अन्य पक्षों पर ध्यान देना चाहिये।
  8. पर्यावरण शिक्षा में उन कौशलों को भी महत्त्व दिया जाता है जोकि पर्यावरण समस्याओं को सुलझाने में सहायता करते हैं।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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