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थांर्नडाइक के सीखने के नियम | सीखने के नियम | थांर्नडाइक के सीखने के नियम की उपयोगिता

थांर्नडाइक के सीखने के नियम | सीखने के नियम | थांर्नडाइक के सीखने के नियम की उपयोगिता

थांर्नडाइक के सीखने के नियम

डगलस व हालैण्ड के अनुसार- “सीखना कुछ नियमों के आधार पर चलता है।” वास्तव में किसी कौशल या क्रिया को सीखने के लिए हमें कुछ नियमों का सहारा लेना पड़ता है। हमारा जीवन भी कुछ नियमों के अनुसार ही व्यतीत होता है। इसी प्रकार सीखने के भी कुछ नियम होते हैं। थॉर्नडाइक ने सीखने के सिद्धान्तों का प्रतिपादन इस आधार पर किया है।

यॉर्नडाइक ने सर्वप्रथम सीखने के नियम का प्रतिपादन किया जो निम्नलिखित हैं-

(1) तत्परता का नियम (The Law of Readiness)-  थांर्नडाइक के अनुसार बालक जिन कार्यों को सीखने के लिए तैयार होता है वह उन कार्यों को शीघ्र सीख लेता है। अन्य शब्दों में जब व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रूप से कार्य करने के लिये तैयार होता है तभी वह किसी कार्य को सफलतापूर्वक कर सकता है। तैयार होने में इच्छा की भावना छिपी रहती है। प्रायः देखा गया है कि जिस विषय को बालक इच्छा से सीखना नहीं चाहता उसे वह किसी भी दशा में सीख नहीं पाता। इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी तथ्य को सीखने के लिये सर्वप्रथम बालक का तत्पर होना आधी मंजिल को पार कर लेना है।

(2) प्रभाव का नियम (Law of Effect)- प्रभाव के नियम को परिणाम या सन्तोष का नियम (Law of Effect or Satisfaction) भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार, हम उस कार्य को सीखने में रुचि रखते हैं जिसका परिणाम हमें सुख और संतोष देता है। इसके विपरीत जो कार्य करें हमें दुःख या असन्तोष देता है उसे हम नहीं सीखते। प्रायः देखा गया है कि जिस कार्य को करने में बालक पुरस्कृत किया जाता है उसे वह बार-बार उत्साह से करता है। इसके विपरीत जिस कार्य को करने में वह दण्डित किया जाता है उसे वह त्याग देता है।

(3) अभ्यास का नियम (Law of Exercise)- जब हम किसी क्रिया की बार- बार पुनरावृत्ति करते हैं तो वह क्रिया दृढ़ होती है। अन्य शब्दों में अभ्यास हमें कुशल बनाता है। किसी कार्य का अभ्यास करने में उसमें कुशलता आ जाती है और उसे हम सीख जाते हैं। चलना, फिरना, तैरना आदि ऐसी ही क्रियायें हैं जो अभ्यास द्वारा ही सीखी जाती हैं।

(4) अनभ्यास का नियम (Law of Disuse)- अनभ्यास के नियम के अनुसार यदि हम सीखे हुए कार्य की पुनरावृत्ति या अभ्यास नहीं करते हैं, तो हम उसको भूल जाते हैं। पाठ की पुनरावृत्ति इस कारण ही की जाती है कि उसके तथ्यों को भूला न जाय।

सीखने के गौण नियम

(1) मनोवृत्ति का नियम (Law of Disposition)- इस नियम के अनुसार हमारा सीखना हमारी मनोवृत्ति के ऊपर भी निर्भर करता है। किसी कार्य के प्रति हमारी जैसी मनोवृत्ति होती है उसी वेग से हमारी सीखने की गति होती है। यदि बालक की किसी कार्य को करने में अभिवृत्ति नहीं है तो वह उस कार्य को सीखने में बार-बार असफल होगा।

(2) बहु-प्रतिक्रिया नियम (Law of Multiple Response)- जब हम कोई कार्य सीखते हैं तो उसके प्रति हमारी अनेक प्रतिक्रियायें होती हैं। हम अनेक प्रकार की विधियों का प्रयोग करके नवीन कार्य को सीखने का प्रयास करते हैं। कुछ देर के पश्चात् हमें ठीक विधि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

(3) आत्मीकरण का नियम (Law of Assimilation)- आत्मीकरण के नियम के अनुसार हम प्रत्येक नवीन ज्ञान को अपने पूर्व ज्ञान का स्थायी अंग बना लेते हैं । हम जो भी नवीन ज्ञान प्राप्त करते हैं वह हमारे द्वारा आत्मसात कर लिया जाता है।

(4) आंशिक क्रियाओं का विकास (Law of Partial Activity)- इस नियम के अनुसार किसी कार्य को करने में यदि उसे छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर लिया जाय तो सीखने में सुविधा रहती है। छोटे खण्ड या भाग सरलता से सीखे जा सकते है। ‘अंश या पूर्ण की ओर’ का शिक्षण सिद्धान्त भी इस नियम पर ही आधारित होते हैं।

व्यवहारवादी (Behaviorism) और अवयवीवादी (Gestalt School) दोनों ही थार्नडाइक के सीखने के नियमों की सत्यता में संदेह करते हैं। उनके अनुसार स्थिति और प्रतिक्रिया के मध्य सम्बन्ध की स्थापना ही सीखना नहीं है।

सीखने के अन्य नियम

(Other Laws of Learning)

सीखने के अन्य नियम भी है; संक्षेप में हम उनका उल्लेख करेंगे-

(1) नवीनतम का नियम (Law of Recency)- इस नियम के अनुसार अभ्यास जितना ही नवीन होगा उतना ही अधिक सीखा जा सकता है। गेट्स (Gates) के अनुसार, “और सब बातें समान होने पर अभ्यास जितना नवीन होगा, परिस्थिति तथा प्रतिक्रिया के मध्य सम्बन्ध उतना ही दृढ़ होगा ।” (Other things being equal the more recent the exercise the stronger the connection between situation and response.)

(2) उद्देश्य का नियम (Law of Purpose)- जो कार्य हमारे उद्देश्य को पूरा करता है उसे हम शीघ्रता से सीख जाते हैं। उद्देश्य हमें सीखने के लिये तत्पर करता है। जितना अधिक उद्देश्य प्रबल होगा उतनी ही अधिक तत्परता होगी।

(3) परिपक्वता का नियम (Law of Maturation)- जब कोई बालक शारीरिक या मानसिक दृष्टि से परिपक्व होता है तभी वह किसी बात को सीख पाता है एक आठ वर्ष का बालक विज्ञान के जटिल नियमों को नहीं समझ सकता क्योंकि उसके लिए यह शारीरिक और मानसिक दृष्टि से परिपक्व नहीं है। परिपक्व होने पर ही वह उसको सीख सकेगा।

(4) बहु-अधिगम का नियम (Law or Multiple Learning)- इस नियम के अनुसार जब हम कोई बात सीखते हैं उस समय हम केवल एक बात नहीं सीखते वरन् उस सीखने के साथ-साथ अन्य बातें भी सीखते जाते हैं। विद्यालय में पढ़ने वाला छात्र केवल विषय का ज्ञान ही नहीं प्राप्त करता वरन् सामाजिकता और ध्यान केन्द्रित करना भी सीखता जाता है।

(5) अभ्यास वितरण का नियम (Law of Distribution of Practice)- इस नियम के अनुसार एक दिन एक घण्टे लगातार अभ्यास करके सीखने के बजाय यदि रोज 15 मिनट अभ्यास करके सीखा जाये तो उत्तम है। अन्य शब्दों में किसी कार्य को लगातार सीखने के बजाय योड़ा-थोड़ा सीखना अधिक उत्तम होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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