राजनीति विज्ञान / Political Science

अरस्तू के क्रान्ति सम्बन्धी विचार | Aristotle’s Views on Revolutions in Hindi

अरस्तू के क्रान्ति सम्बन्धी विचार | Aristotle’s Views on Revolutions in Hindi

अरस्तू के क्रान्ति सम्बन्धी विचार

अरस्तू ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘राजनीति’ में राज्य से सम्बन्धित अनेक समस्याओं पर विचार किया है। वह क्रान्ति के अर्थ एवं इसके कारणों आदि पर विस्तार से विचार करता है, परन्तु अरस्तू की क्रान्ति का स्वरूप वह नहीं है जो आधुनिक युग में क्रान्ति का है। अरस्तु संवैधानिक परिवर्तन को ही क्रान्ति मानता है। तत्कालीन यूनान में संवैधानिक परिवर्तन प्रायः हुआ करते थे। इसी कारण यूनानी विचारकों ने इस समस्या पर अपने विचार विस्तार के साथ व्यक्त किए हैं। प्लेटो इस समस्या पर ‘संविधान के चक्रीय परिवर्तन के सिद्धान्त’ के रूप में विचार करता है। परन्तु अरस्तू ने क्रांति के अर्थ एवं उसके कारणों की वैज्ञानिक व्याख्या की है।

क्रांतियों की प्रकृति (Nature of Revolutions)

प्राचीन यूनान में क्रान्ति शब्द का अर्थ केवल राजनीतिक संगठन के परिवर्तन से था । इसका सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन से कोई सम्बन्ध नहीं था । अरस्तू के अनुसार संविधान में प्रत्येक छोटा अथवा बड़ा परिवर्तन क्रान्ति का सूचक है। ये परिवर्तन अनिवार्य होते हैं। अरस्तू के अनुसार क्रान्ति कई प्रकार की होती है जो निम्नलिखित है-

  • आंशिक अथवा पूर्ण क्रांति-

जब संविधान के कुछ भागों में ही परिवर्तन किया जाये तो उसे आंशिक क्रांति कहेंगे तथा जब संविधान पूर्णतः बदल दिया जाये तो उसे पूर्ण क्रांति कहेंगे।

  • रक्तपूर्ण क्रांति अथवा रक्तहीन क्रांति-

क्रांति में जब मारकाट खून-खराबा हो तो उसे रक्तपूर्ण क्रांति कहेंगे। फ्रांस की 1789 की क्रांति इसी कोटि में रखी जाती है। जिस क्रांतिमें खून-खराबा न हो उसे रक्तहीन क्रांति कहेंगे, जैसे इंग्लैण्ड की 1688 ई० की गौरवपूर्ण क्रांति।

  • व्यक्तिगत अथवा गैर व्यक्तिगत क्रांति-

जब किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति को हटाकर शासन में परिवर्तन किया जाये तो वह व्यक्तिगत क्रांति कहलायेगी। किसी शासक को बदले बिना परिवर्तन को गैर व्यक्तिगत क्रांति कहेंगे।

  • वर्ग विशेष के विरुद्ध क्रांति-

किसी वर्ग विशेष को हटाकर सत्ता किसी अन्य के हाथ में दे दी जाय तो उसे वर्ग विशेष के विरुद्ध क्रांति कहेंगे।

  • वैचारिक (Demagogic) क्रांति-

जब किसी देश में कोई नेता अपने भाषणों के द्वारा राज्य में क्रांति ला दे तो इस प्रकार की क्रांति को वैचारिक क्रांति कहा जायगा।

क्रांतियों के कारण (Causes of Revolutions)

अरस्तू ने क्रांति के कारणों पर भी प्रकाश डाला है । उनके विचार में क्रांतियों के निम्नलिखित कारण होते हैं-

(1) सामान्य कारण (General Causes),

(2) विशेष प्रकार के राज्यों में क्रांतियों के कारण (Causes of revolutions in particular kinds of states) I

क्रांति के सामान्य कारण- अरस्तु ने क्रांतियों के सामान्य कारणों पर विचार करते हुये इनको दो भागों में विभक्त किया है-असमानता तथा न्याय प्राप्त करने की उत्कट अभिलाषा। असमानता को अरस्तू ने क्रांति का महत्त्वपूर्ण कारण बताया है। उसका विचार है कि असमानता प्रत्येक क्रांति का कारण होती है परन्तु जहाँ असमानता बहुत अधिक होती है वहाँ क्रांति अवश्यम्भावी हो जाती है। समानता की तीव्र भावना भी क्रांतियों को जन्म देती है। अरस्तू ने दो प्रकार की समानताएँ बताई हैं-पूर्ण तथा आनुपातिक समानता। लोग पूर्ण समानता प्राप्त करने की तीव्र इच्छा रखते हैं। समाज में कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जिन्हें विशेष अधिकार प्राप्त रहते हैं। इस परिस्थिति में इन दो वर्गों में संघर्ष अवश्यम्भावी हो जाता है। जिससे क्रांति को जन्म मिलता है।

अरस्तू के अनुसार दूसरा सामान्य कारण न्याय प्राप्त करने की भावना है। उसका विचार है कि अन्याय की भावना से भी क्रान्तियों को जन्म मिलता है। समाज का जब कोई वर्ग यह अनुभव करता है कि उसके साथ अन्याय हो रहा है तो वह उसके विरुद्ध आवाज उठाता है। और फल यह होता है कि क्रांति हो जाती है। इस प्रकार अन्याय व असमानता होने पर क्रांति होती है।

क्रांति के विशेष कारण

  • लाभ की इच्छा-

जब शासक या शासक वर्ग सार्वजनिक कल्याण को त्यागकर अपना स्वार्थ पूरा करने की चिन्ता में लग जाते हैं तो लोग उस शासक के विरुद्ध आवाज उठाते हैं। एवं उसके कारण परिवर्तन होता है।

  • सम्मान की इच्छा-

सम्मान पाने की इच्छा प्रत्येक व्यक्ति में होती है, परन्तु जब शासक वर्ग किसी को अनुचित ढंग से सम्मान देता है तो जनता विद्रोह के लिए प्रेरित होती है। और इस प्रकार क्रांति हो जाती है।

  • धृष्टता (Insolence)-

जब शासक धृष्टतावश जनहित की चिन्ता नहीं करता, तो ऐसे शासक के विरुद्ध जनता आवाज उठाती है।

  • भय (Fear)-

भय भी क्रांति का एक मुख्य कारण है। भय दो प्रकार से व्यक्तियों को विद्रोह के लिये उकसाता है। किसी अपराध करने वाले व्यक्ति को दण्ड का डर रहता है। यह उससे बचना चाहता है कुछ व्यक्तियों को डर रहता है कि उनका जीवन सुरक्षित नहीं है। इस कारण वे विद्रोह कर देते हैं।

  • व्यक्तियों की उत्कृष्टता-

किसी राज्य में जब कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह उच्च स्थान प्राप्त कर लेता है तो वह शासन सत्ता अपने हाथ में लेने का प्रयत्न करता है। फलत: क्रांति हो जाती है।

  • घृणा (Contempt)-

घृणा भी क्रांति का मुख्य कारण होता है। उदाहरण के लिए धनिकतन्त्र में जब गरीब जनता को हीनता की दृष्टि से देखा जाता है तो विद्रोह होता है। इसी प्रकार लोकतन्त्र में जब धनी व्यक्तियों को देश की अव्यवस्था व अराजकता से घृणा हो जाती है, तब भी क्रांति होती है।

  • छोटे परिवर्तनों की उपेक्षा-

जब शासक वर्ग कुछ ऐसे परिवर्तनों की उपेक्षा करता है। जिनके भविष्य में भयंकर परिणाम होते हैं, तो वे धीरे-धीरे क्रांति का रूप धारण कर लेते हैं।

  • निर्वाचन सम्बन्धी संघर्ष-

निर्वाचन सम्बन्धी संघर्ष भी बड़े-बड़े विस्फोट करते हैं। निर्वाचन सम्बन्धी बुराइयों में परिवर्तन आवश्यक हो जाते हैं जो शासन के रूप को भी बदल डालते है।

  • गैर वफादार व्यक्तियों को उच्व पद देना-

जब शासक वर्ग सरकारी पदों को बिना विचार किये ऐसे व्यक्तियों को देते हैं जिनके प्रति जनता में अविश्वास है तो वे विद्रोही हो जाते हैं।

  • शक्ति (Force)-

जब शासक वर्ग शक्ति के आधार पर जनता को अपनी बातें मनाने को बाध्य करता है तो प्रभावित वर्ग में विद्रोह की भावना बढ़ती है और लोग विद्रोह कर देते हैं।

  • पारिवारिक कलह (Family Intrigues)-

पारिवारिक कलह भी क्रांति को जन्म देते हैं। कई बार देखने को मिलता है कि दो राजकुमारों के प्रणय कलह व क्रांति का कारण बन जाते हैं। राजतन्त्र एवं कुलीनतन्त्र में यह क्रांति का कारण विशेष रूप से बन जाते हैं।

  • राज्य में परस्पर विरोधी वरगों का होना-

राज्य में परस्पर विरोधी वर्गों के होने से उनके हितों में संघर्ष चलता रहता है। आज के युग में यह वर्ग संघर्ष तो बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त करता जा रहा है। उनका संघर्ष क्रांति के रूप में फुट पड़ता है।

  • आर्थिक असमानता (Economic Inequality)-

आर्थिक असमानता भी क्रांति का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारण है। आर्थिक असमानता बढ़ने पर विद्रोह होते हैं। गरीब वर्ग क्रांति के लिए विशेष रूप से प्रेरित होता है।

  • मध्यम वर्ग का अभाव-

मध्यम वर्ग समाज में सन्तुलन रखता है। इसके अभाव में अमीर एवं गरीब की खाई गहरी हो जाती है; अतः इस वर्ग के न होने पर क्रांति शीघ्र सम्भव है।

  • राज्य के किसी अंग की असाधारण वृद्धि

यह भी क्रांति का एक प्रमुख कारण है। उदाहरणतः किसी देश की भौगोलिक स्थिति अच्छी है तो दूसरे स्थान की गरीब जनता विद्रोह कर देती है। राज्य के किसी भी अंग में असाधारण वृद्धि से दूसरे के हितों को चोट लगनी आवश्यक है।

विभिन्न प्रकार के राज्यों में क्रांति के कारण (Causes of Revolutions in Particular Kinds of States)

विभिन्न प्रकार के राज्यों में क्रांति क्यों होती है; इस पर भी अरस्तू ने अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त किए हैं जो निम्नलिखित हैं-

  • राजतन्त्र में क्रांति के कारण-

अरस्तू का विचार है कि राजतन्त्र में आन्तरिक विद्रोह के कारण क्रांति होती है। जब राज-परिवार के सदस्यों में संघर्ष होता है अथवा राजा या उसके कर्मचारी जनता के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते तो क्रांति की संभावना उत्पन्न हो जाती है।

  • कुलीनतंत्र में क्रांति के कारण-

इस शासन प्रणाली में शासन की बागडोर कुछ अनगिने लोगों के हाथ में होती है। फल यह होता है कि जनता अधिकार प्राप्त करने की इच्छा करने लगती है जिसके कारण क्रांति हो जाती है।

  • लोकतन्त्र में क्रांति के कारण-

इस शासन-प्रणाली में क्रांति के कई कारण हो सकते है। भाषण-कला में पटु नेता जनता को अपने पक्ष में कर लेते हैं और उन्हें क्रांति के लिए उकसाते हैं। जनता के इस असंतोष के और भी कई कारण हो सकते हैं।

  • धनिकतन्त्र में क्रांति के कारण-

अरस्तू का विचार है कि जब शासक वर्ग जनता के साथ बुरा व्यवहार करता है तो क्रांति हो जाती है। इसके अतिरिक्त शासक वर्ग के आपसी झेगड़े के कारण भी क्रांति का जन्म होता है।

  • एकतन्त्र या निरंकुश तन्त्र में क्रांति के कारण-

इस पद्धति में भी विद्रोह के कारण होते हैं। इसमें एक बड़ा कारण शासक वर्ग का अभद्र व्यवहार है। उनके विरोधी स्वभाव के कारण भी जनता में विद्रोह की भावना बढती है। अनेक षड्यन्त्र एवं विद्रोह के दमन पर भी क्रांति को प्रेरणा मिलती है। निकट के विरोधी राज्य भी उस राज्य की जनता को भड़काते हैं।

क्रांतियों को रोकने का उपाय (Measures to Prevent the Revolutions)

अरस्तू क्रांतियों के पक्ष में नहीं है क्योंकि इनके कारण शासन में अस्थिरता बनी रहती है; अतः उन्होंने क्रांतियों के कारणों की व्याख्या करने के बाद उसने उनको रोकने के उपायों पर भी अपने विचर व्यक्त किये हैं। अरस्तू के अनुसार क्रांति को निम्नलिखित उपायों द्वारा रोका जा सकता है-

  • जनता के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए-

अन्याय क्रांति को जन्म देता है; अत: आवश्यकता इस बात की है कि जनता के साथ अन्याय न हो और अन्याय की भावना को न फैलने दिया जाये और यदि इस तरह की भावना फैल चुकी है तो उसे दूर करने के उपाय करने चाहिए।

  • कानून के प्रति निष्ठा भाव-

अरस्तू का विचार है कि कानून की अवज्ञा क्रांतियों को जन्म देती है; अत: क्रांतियों को रोकने के लिये कानून की अवज्ञा को रोकना अनिवार्य है। इसके लिए नागरिकों में कानून-पालन की आदत उत्पन्न करना चाहिए। अरस्तू के ही शब्दों में “क्रांतियों को रोकने का सबसे प्रमुख उपाय लोगों में कानून के प्रति निष्ठा भाव बनाये रखना है।”

  • शासक वर्ग के सभी सदस्यों को सरकारी पदों पर नियुक्त करने की व्यवस्था होनी चाहिए-

इससे शासक निरंकुश नहीं हो पायेगा तथा शासक वर्ग के सदस्यों में किसी प्रकार का असन्तोष उत्पन्न नहीं होगा, अत: क्रांति भी नहीं होगी।

  • शासक एवं शासितों के आपसी सम्बन्ध अच्छे होने चाहिए-

अरस्तू की धारणा है कि क्रांति को रोकने के लिए शासक एवं जनता के मध्य अच्छे सम्बन्ध स्थापित किये जाने चाहिये ताकि उनमें सद्भाव बना रहे और जनता में शासकों के विरुद्ध असन्तोष न फैले।

  • धन का समान वितरण होना चाहिए-

राज्य में आर्थिक असमानता न हो। धन का वितरण इस ढंग से हो कि अमीर-गरीब में बहुत अधिक अन्तर न हो इससे आपसी तनाव और संघर्ष नहीं होता।

  • शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए-

अरस्तू शिक्षा का एक राजनीतिक उद्देश्य भी मानता है। शिक्षा के द्वारा नागरिकों को अपने कर्तव्य का ज्ञान होता है। अत: शिक्षा के द्वारा बहुत-सी क्रांतियाँ होने से बच सकती हैं।

  • स्वस्थ मध्यम वर्ग-

क्रांति से बचने का उपाय यह भी है कि समाज में एक मध्यम वर्ग हो जो समाज में संतुलन बनाये रखे; अतः एक स्वस्थ मध्यम वर्ग के होने से क्रांतियों की आशंका कम हो सकती है।

  • देश भक्ति की भावना-

शासक वर्ग को चाहिये कि वह जनता का ध्यान विदेशी आक्रमण एवं देश की समस्याओं की ओर आकृष्ट करें। विदेशी आक्रमण से जनता में देश भक्ति की भावना उत्पन्न करे। इससे जनता में देश के प्रति प्रेम की भावना पैदा होगी और वह विद्रोह के लिए प्रेरित न होगी।

  • निर्धनों को सन्तुष्ट रखना चाहिए-

धनिक तन्त्र में गरीबों को सन्तुष्ट रखकर क्रांति की संभावना को कम किया जा सकता है। यदि निर्धनों के साथ दुर्व्यवहार होता है तो उसे रोकने का प्रयत्न करना चाहिये। इस उपाय से भी क्रांतियों को रोका जा सकता है।

  • महत्त्वाकांक्षा पर रोक-

अरस्तू का कहना है कि राज्य में किसी भी व्यक्ति को ऐसा अवसर नहीं मिलना चाहिए कि वह शासन पर अधिकार करने की इच्छा करने लगे। इसके लिए यह आवश्यक है कि किसी एक व्यक्ति को अन्य की तुलना में अधिक महत्व न दिया जाये।

  • जनता की संविधान में आस्था हो-

क्रांतियों को रोकने का एक उपाय यह भी है। कि राज्य की अधिकांश जनता की संविधान में आस्था हो। यदि संविधान उनकी भावनाओं और आवश्यकताओं की उपेक्षा नहीं करता तो संविधान को बदलने का प्रश्न ही नहीं उठेगा। अतः क्रांति भी नहीं होगी।

  • संविधान के विरोधी लोगों पर निगरानी रखना-

राज्य को चाहिए कि वह लोकतन्त्र या धनिकतन्त्र में उन लोगों पर विशेष निगरानी रखे जिनका आचरण संविधान के अनुकूल नहीं है।

  • शासक वर्ग को शक्ति का दुरुपयोग करने का अवसर नहीं मिलना चाहिए-

कभी-कभी शासक वर्ग अपने पद का दुरुपयोग करके अपने आर्थिक हितों को पूरा करने लगते हैं। यह स्थिति जनता में असन्तोष पैदा करती है। इसलिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे शासकों को अपने आर्थिक हितों को पूरा करने का अवसर ही न मिले; अतः जनता संतुष्ट रहेगी और वह क्रांति के लिए प्रेरित नहीं होगी।

  • संकट के समय जनता को चेतावनी दी जाय-

अरस्तु का विचार है कि जब संविधान संकट में हो या सकट की सम्भावना हो तो शासक वर्ग को चाहिये कि वह जनता को चेतावनी दे, उन्हें सावधान करें। इससे जनता में संविधान के प्रति भक्ति की भावना उत्पन्न होती है और वह संकट के समय संविधान की रक्षा करने का प्रयत्न करती है।

  • संविधान के अनुकूल आचरण करने की शिक्षा-

क्रांतियों को रोकने के लिये यह भी आवश्यक है कि जनता की इस तरह शिक्षित किया जाय कि वह स्वाभाविक रूप में संविधान के नियमों का पालन करे। यदि जनता को संविधान में विश्वास है तो शासन में स्थायित्व रहेगा और क्रांति की सम्भावना समाप्त हो जायेगी।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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