आधुनिक जीवन की समस्याएँ क्या क्या हैं तथा इन समस्याओं पे पूर्ण चिंतन

आधुनिक जीवन की समस्याएँ क्या क्या हैं तथा इन समस्याओं पे पूर्ण चिंतन

आधुनिक जीवन की समस्याएँ क्या क्या हैं तथा इन समस्याओं पे पूर्ण चिंतन

रूपरेखा-

(1) प्रस्तावना,

(2) हमारा समाज और विविध समस्याएँ-(क) जातिगत भेदभाव, (ख) नारी-शोषण, (ग) दहेज-प्रथा, (घ) भ्रष्टाचार, (ङ) बेरोजगारी, (च) महंगाई, (छ) अनुशासनहीनता, (ज) जनसंख्या-वृद्धि, (झ) मद्यपान, (ञ) प्रदूषण की समस्या,

(3) उपसंहार।

आधुनिक जीवन की समस्याएँ क्या क्या हैं तथा इन समस्याओं पे पूर्ण चिंतन किया गया है यहाँ पर जो कुछ इस प्रकार से हैं-

प्रस्तावना

प्रत्येक समाज अपने सदस्यों की आकांक्षाओं और इच्छाओं को पूर्ति का साधन होता है। समाज के अस्तित्व के लिए यह आवश्यक है कि उसका प्रत्येक सदस्य प्रसन्न हो और समाज के साधनों का उपभोग सभी व्यक्ति समान रूप से कर सके। इसके लिए समाज कतिपय नियम व मान्यताएँ निर्धारित करता है; किन्तु समय के साथ-साथ जब सामाजिक मान्यताओं का हास होने लगता है और कुछ शक्तिशाली व्यक्ति केवल अपने स्वार्थ के लिए समाज के साधनों और सुविधाओं का उपभोग करने लगते हैं, जिससे अधिकांश व्यक्ति साधनहीन हो जाते हैं तो समाज में अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इसी प्रकार नैतिक और चारित्रिक पतन के कारण भी अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याएँ हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती हैं।

हमारा समाज और विविध समस्याएँ

दीर्घकालीन परतन्त्रता के कारण हमारे समाज में अनेक प्रकार की कुरीतियों ने जन्म ले लिया। वही कुरीतियाँ आज हमारे सामने चुनौती बनकर खड़ी हैं। इसके साथ-साथ बदली हुई परिस्थितियों और नैतिक मूल्यों में भी बदलाव आने से हमारे देश में अनेक नई आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक बुराइयाँ भी उत्पन्न हो गई। इनमें मुख्य इस प्रकार हैं-

(क) जातिगत भेदभाव

ईश्वर की दृष्टि में सभी मनुष्य समान हैं, किन्तु हमने अपनी सुविधा के लिए समाज में अनेक वर्गों की रचना कर दी है। इनमें हमारी सेवा करने वाला वर्ग शूद्र घोषित कर दिया गया और सेवा कराने वाला वर्ग सवर्ण। इस प्रकार हमारा समाज जाति और धर्म की संकीर्ण दीवारों में बँट गया। हजारों वर्षों पूर्व किए गए इस वर्ग-विभाजन को आज भी हम उसी रूप में मानते चले आ रहे हैं वस्तुत: इस प्रकार के जातिगत भेदभाव से जहाँ मानवता की भावना पर आधारित दृष्टिकोण धूमिल होता है, वहीं अनेक प्रतिभा-सम्पन्न युवक अपनी प्रगति से वंचित भी रह जाते हैं। इसमे सन्देह नहीं कि समाज के किसी भी युवक का विकास समाज या राष्ट्र का विकास है। अत: इस प्रकार की संकीर्ण विचारधाराओं के फलस्वरूप पूरा राष्ट्र उस प्रगति से वंचित हो जाता है।

(ख) नारी-शोषण

कभी हमारे देश में नारी को पुरुष के समान अधिकार प्राप्त थे, किन्तु आज पुरुष उसे सेविका से अधिक नहीं समझता और उस पर अनेक प्रकार के अत्याचार करता है। जिस नारी को त्याग और ममता को प्रतिमूर्ति समझा जाता रहा है, जो पुरुष की जन्मदात्री है, वही नारी आज पुरुष द्वारा ही शोषण का शिकार हो रही है। यद्यपि भारतीय संविधान में नारी को पुरुषों के समान ही अधिकार प्रदान किए गए हैं, फिर भी व्यावहारिक रूप से वह उन अधिकारों से वंचित है और उसे आज भी पुरुष की कृपा पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

(ग) दहेज-प्रथा

दहेज की कलंक पूर्ण प्रथा ने नारी-समाज को असह्य पीड़ा दी है। हमारा सभ्य समाज इस दृष्टि से नारी जाति के प्रति जंगलियों जैसा व्यवहार कर रहा है। कितनी ही युवतियाँ प्रतिदिन दहेज की वेदी पर बलि चढ़ाई जा रही है; फिर भी हमारी आँखें बन्द हैं और दहेज का यह दानव हमारी बुद्धि पर ताला डाले बैठा है। मारी सोचने और विचारने की शक्ति पूरी तरह कुण्ठित हो चुकी है। दहेज के इस अभिशाप के कारण सुयोग्य और सुन्दर कन्याओं को अयोग्य और कुरूप युवकों के साथ ,बाँध दिया जाता है और वे निरीह पशुओं की भाँति उनका बोझ ढोती रहती हैं।

(घ) भ्रष्टाचार

समाज की आर्थिक समस्याओं के अन्तर्गत भ्रष्टाचार की समस्या सुरसा की तरह मुंह फाडे खड़ी है और समाजरूपी हनुमान् उसके जबड़ों के बीच फँसा हुआ है। सरकारी कार्यालयों में बिना रिश्वत लिए कोई काम नहीं होता। यद्यपि रिश्वत लेना और देना कानूनी अपराध है; किन्तु फिर भी आज तक यह ‘दस्तूर’ के रूप में प्रचलित है। अपना उचित काम कराने हेतु भी आप रिश्वत देने के लिए विवश हैं और रिश्वत देकर आप अपना कोई अनुचित काम भी करा सकते हैं, यहाँ तक कि –

कह काका कवि, काँप रहा क्यों रिश्वत लेकर?

रिश्वत पकड़ी जाय, छूट जा रिश्वत देकर।

रिश्वत के कारण भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है। भ्रष्टाचार का दूसरा रूप है-कालाबाजारी या चोरबाजारी। अधिक लाभ कमाने के लालच में व्यापारी सामान को गोदामों में छिपाकर रख देते हैं और कृत्रिम अभाव पैदा करके उसे ऊँचे दामों पर बेचते हैं। इस काले धन का उपयोग पुनः सामाजिक भ्रष्टाचार को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार इस रोग का इलाज कर पाना अत्यन्त कठिन हो गया है।

(ङ) बेरोजगारी

हमारा देश शिक्षित और अशिक्षित दोनों प्रकार की बेरोजगारी से ग्रस्त है। जब योग्य व्यक्ति इच्छित काम नहीं प्राप्त कर पाता तो अपना पेट भरने के लिए दूसरे रास्ते अपनाता है। ये रास्ते चोरी, वह डकैती और इसी प्रकार के अन्य आर्थिक-सामाजिक अपराधों के हो सकते हैं। वस्तुतः बेरोजगारी की समस्या वर्तमान समाज के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है।

(च) महँगाई

हमारी चालीस प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या गरीबी के स्तर से नीचे अपना जीवन व्यतीत कर रही है और महँगाई इतनी अधिक बढ़ गई है जितनी पहले कभी नहीं थी। वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि का क्रम इतना तीव्र है कि हम जब किसी वस्तु को दोबारा खरीदने जाते हैं तो वस्तु का मूल्य पहले से अधिक पाते हैं। हमारा देश गरीब देश है। अधिकांश जनसंख्या के आय के स्रोत सीमित हैं। अधिक लाभ कमाने के लालच में व्यापारी चीजों के दाम बढ़ाते चले जाते हैं। सरकार की नीतियाँ भी महँगाई बढ़ाने में सहायक हो रही हैं; अत: देश के विकास के लिए महँगाई की समस्या पर नियन्त्रण करना आवश्यक है।

(छ) अनुशासनहीनता

जब छात्र को यह आभास हो जाए कि उसके भविष्य का कोई लक्ष्य नहीं है और उसे खाली और बेकार बैठकर ही अपना जीवन नष्ट करना है तो वह अनुशासनहीनता की ओर प्रवृत्त हो जाता है। इसी प्रकार जब पढ़ा-लिखा युवक नौकरी की खोज में मारा-मारा फिरता है और नौकरी प्राप्त नहीं कर पाता तो वह सड़कों पर आवारागर्दी करता है। इस अनुशासनहीनता से समाज में अव्यवस्था का प्रसार होता है। परिणामतः सामाजिक समस्याएँ बढ़ती ही चली जाती हैं।

(ज) जनसंख्या-वृद्धि

जनसंख्या-वृद्धि हमारे समाज की ऐसी समस्या है, जिसका निदान हमारे ही हाथ में है: किन्तु अज्ञानतावश हम इस ओर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। वस्तुतः समाज की सभी समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या में अनपेक्षित गति से सतत वृद्धि होना है। हमारे साधन सीमित हैं; जो बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण अधिक लोगों में बटते जा रहे हैं; परिणामतः न तो हमें अच्छा भोजन मिलता है और न ही अच्छी सुविधाएँ; न अच्छे कपड़े और न ही रहने के लिए अच्छा मकान। यदि हमें समाज को समृद्ध बनाना है तो उसे जनसंख्या-वृद्धि के अभिशाप से मुक्त करना होगा। सरकार विविध प्रकार से इस समस्या को रोकने का प्रयास कर रही है; किन्तु सामाजिक चेतना के अभाव में इस समस्या से छुटकारा पाना असम्भव-सा प्रतीत होता है।

(झ) मद्यपान

मद्यपान एक ऐसी सामाजिक बुराई है, जी समाज के साधनों को कुण्ठित कर देती है। इससे गरीब और अधिक गरीब होता जाता है और धनी और अधिक धनवान। मात्र कुछ देर की उत्तेजना के लिए व्यक्ति शराब पीता है; किन्तु मद्यपान एक ऐसी बुराई है, जो समाज के नैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मूल्यों को नष्ट करने में मुख्य भूमिका निभाती है। जब एक मजदूर अपने सारे दिन की कमाई को शराब की दुकान पर फूँक आता है तो न ही वह अपने बच्चों का पेट भर सकता है और न उन्हें शिक्षा दे सकता है। इस प्रकार वह समाज को तो प्रदूषित करता ही है; साथ-साथ अपने परिवार का जीवन भी अन्धकारमय बना देता है।

(ञ) प्रदूषण की समस्या

मानव-निर्मित समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण की समस्या है। ‘अपने स्वार्थ के लिए मानव प्राकृतिक साधनों का अन्धाधुन्ध दोहन कर रहा है। हरे-भरे जंगल काटे जा रहे हैं। कारखानों का धुआँ और कचरा इस प्रदूषण को बढ़ाने में अत्यधिक सहयोग कर रहा है। एक ओर वायु दूषित हो रही है तो दूसरी ओर नदियों का जल भी विषैला होता जा रहा है। परमाणु-केन्द्रों से उत्पन्न प्रदूषण से तो हमारी आने वाली पीढ़िया भी प्रभावित हो जाएगी। प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार व सामाजिक संस्थाएँ निरन्तर प्रयत्न कर रही हैं, किन्तु ये प्रयास ऊँट के मुंह में जीरा ही सिद्ध हो रहे हैं।

उपसंहार

यदि हम अपने समाज और राष्ट्र का कल्याण चाहते हैं,; यदि हम समाज के प्रबुद्ध सदस्य हैं, यदि हम देश के अच्छे नागरिक हैं तो हमारा कर्तव्य है कि हम इन सामाजिक बुराइयो को दूर करें।

सामाजिक समस्याओं का निदान केवल कानून बनाकर ही नहीं हो सकता। ये समस्याएँ शक्ति और हथियारों के बल पर भी दूर नहीं हो सकतीं। इसके लिए आवश्यक है कि समाज की मानसिकता को बदला जाए। जब समाज का प्रत्येक सदस्य इन बुराइयां को दूर करने के लिए कृतसंकल्प और कटिबद्ध हो जाएगा3 तभी इनका निदान खोजा जा सकेगा। इसके विपरीत स्थिति में ये बुराइयाँ घुन की तरह समाज के शरीर को चाट जाएंगी और समाज का यह ढांचा चरचराकर गिर पड़ेगा।

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