छात्रों में असन्तोष के कारण क्या हैं और निवारण क्या हैं
छात्रों में असन्तोष के कारण क्या हैं और निवारण क्या हैं
रूपरेखा-
(1) प्रस्तावना,
(2) छात्र-असन्तोष के कारण- (क) असुरक्षित और लक्ष्यहीन भविष्य, (ख) दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली, (ग) कक्षा में छात्रों की अधिक संख्या, (घ) पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का अभाव, (ङ) घर का दूषित वातावरण, (च) दोषपूर्ण परोक्षा-प्रणाली, (छ) छात्र संघ, (ज) गिरता हुआ सामाजिक स्तर, (झ) आर्थिक समस्याएँ. (ञ) निर्देशन का अभाव,
(3) छात्र-असन्तोष के निराकरण के उपाय- (क) शिक्षा-व्यवस्था में सुधार, (ख) सामित प्रवेश, (ग) आर्थिक समस्याओं का निदान, (घ) आवश्यकतानुसार कार्य (ड) छात्रों को राजनीति से दूर रखा जाए, (च) छात्रों में जीवन-मूल्यों को पुनर्स्थापना, (छ) सामाजिक स्थिति में सुधार,
(4) उपसंहार
प्रस्तावना
छात्रों में असन्तोष के कारण क्या हैं और निवारण क्या हैं आज हम यहाँ इसी के बारे में चर्चा करेंगे।
मानव-स्वभाव में विद्रोह को भावना स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है, जो आशाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति न होने पर ज्वालामुखी के समान फूट पड़ता है।
छात्र असन्तोष के कारण
हमारे देश में, विशेषकर युवा-पीढ़ी में प्रबल असन्तोष की भावना विद्यमान है। छात्रों में व्याप्त असन्तोष को इस प्रबल भावना के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण इस प्रकार है-
(क) असुरक्षित और लक्ष्यहीन भविष्य
आज छात्रों का भविष्य सुरक्षित नहीं है। शिक्षित बेरोजगारो की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि से छात्र असन्तोष का बढ़ना स्वाभाविक है। एक बार सन्त विनोबाजो से किसी विद्यार्थी ने अनुशासनहीनता को शिकायत को। विनोबाजी ने कहा, “हां, मुझे भी बड़ा आश्चर्य होता है कि इतनी निकम्मी शिक्षा और उस पर इतना कम असन्तोष!”
(ख) दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली
हमारी शिक्षा-प्रणाली दोषपूर्ण है। वह न तो अपने निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करती है और न ही छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान देतो है; परिणामतः छात्रों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता छात्रों का उद्देश्य केवल परीक्षा उत्तीर्ण करके डिग्री प्राप्त करना हो रह गया है। ऐसी शिक्षा-व्यवस्था के परिणामस्वरूप असन्तोष बढ़ना स्वाभाविक हो है।
(ग) कक्षा में छात्रों की अधिक संख्या
विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है, जो कि इस सीमा तक पहुंच गई है कि कॉलेजों के पास कक्षाओं तक के लिए पर्याप्त स्थान नहीं रह गए हैं। अन्य साधनों; प्रयोगशाला पुस्तकालयों आदि का तो कहना ही क्या। जब कक्षा में छात्र अधिक संख्या में रहेंगे और अध्यापक उन पर उचित रूप से घ्यान नहीं देंगे तो उनमें असन्तोष का बढ़ना स्वाभाविक ही है।
(घ) पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का आभाव
पाठ्य सहगामी क्रियाएँ छात्रों को आत्माभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करती हैं। इन कार्यों के अभाव में छात्र मनोरंजन के निष्क्रिय साधन अपनाते हैं; अत: छात्र-असन्तोष का एक कारण पाठ्य-सहगमी क्रियाओं का अभाव भी है।
(ङ) घर और विद्यालय का दूषित वातावरण
कुछ परिवारों में माता-पिता बच्चों पर कोई ध्यान नहीं देते और वे उन्हें समुचित स्नेह से वंचित भी रखते हैं। आजकल अधिकांश विद्यालयों में भी उनकी शिक्षा-दीक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। दूषित पारिवारिक और विद्यालयीय वातावरण में बच्चे दिग्भ्रमित हो जाते हैं। ऐसे बच्चों में असन्तोष की भावना का उत्पन्न होना स्वाभाविक हो है।
(च) दोषपूर्ण परीक्षा-प्रणाली-हमारी परीक्षा
प्रणाली छात्र के वास्तविक ज्ञान का मूल्यांकन करने में सक्षम नहीं है। कुछ छात्र तो रटकर उतीर्ण हो जाते हैं और कुछ को उत्तीर्ण करा दिया जाता है। इससे छात्रों में असन्तोय उत्पन्न होता है।
(छ) छात्र गुट
राजनीतिक भ्रष्टाचार के कारण कुछ छात्रों ने अपने गुट बना लिए हैं। वे अपने मन के आक्रोश और विद्रोह को तोड़-फोड़, चोरो, लूटमार आदि करके शान्त करते हैं।
(ज) गिरता हुआ सामाजिक स्तर
आज समाज में मानव-मूल्यों का हास हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति आदर्शों को हेय समझता है। उनमें भौतिक स्तर ऊँचा करने की होड़ मची है। नैतिकता और आध्यात्मिकता का लोप हो गया है। ऐसे स्थिति में छात्रों में असन्तोष का पनपना स्वाभाविक है।
(झ) आर्थिक समस्याएँ
आज स्थिति यह है कि अधिकांश अभिभावकों के पास छात्रों की शिक्षा आदि पर व्यय करने के लिए पर्याप्त घन नहीं है। बढ़ती हुई महँगाई के कारण अभिभावक अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति भी उदासीन होते जा रहे हैं: परिणामस्वरूप छात्रों में असन्तोष बढ़ रहा है।
(ञ) निर्देशन का अभाव
छात्रों को कुमार्ग पर जाने से रोकने के लिए समुचित निर्देशन का अछात्रो हमारे देश में व्याप्त छात्र असन्तोष का प्रमुख कारण है। यदि छात्र कोई अनुचित कार्य भी करते हैं तो भी कही-कहा उन्हें और बढ़ावा दिया जाता है। इस प्रकार उचित मार्गदर्शन के अभाव में वे पथभ्रष्ट हो जाते हैं।
छात्र असन्तोष के निराकरण के उपाय
छात्र-असन्तोष को समस्या के निदान के लिए अग्रलखित सुझाव दिए जा सकते हैं-
(क) शिक्षा-व्यवस्था में सुधार
हमारी शिक्षा-व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जो छात्रों को जीवन के लक्ष्यों को समझने और आदर्शों को पहचानने को प्रेरणा दे सके। रटकर मात्र परीक्षा उत्तीर्ण हो जाने को ही छात्र अपना वास्तविक ध्येय न समझे।
(ख) सीमित प्रवेश
विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या निश्चित को जानी चाहिए; जिससे अध्यापक प्रत्येक छात्र के ऊपर अधिक-से-अधिक ध्यान दे सके; क्योंकि अध्यापक ही छात्रों को जीवन के सही मार्ग की ओर अग्रसर कर सकता है। ऐसा होने से छात्र-असन्तोष स्वतः ही समाप्त हो जाएगा।
(ग) आर्थिक समस्याओं का निदान
छात्रों की आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए-
(1) निर्धन छात्रों को ज्ञानार्जन के साथ-साथ धनार्जन के अवसर भी दिए जाएं।
(2 ) शिक्षण संस्थाएँ छात्रों के वित्तीय भार को कम करने में सहायता दें।
(3) छात्रों को रचनात्मक कार्यों में लगाया जाए।
(4 ) छात्रों को व्यावसायिक मार्गदर्शन प्रदान किया जाए।
(5) शिक्षण संस्थाओं को सामाजिक केन्द्र बनाया जाए।
प्रोफेसर हुमायूँ कबीर के अनुसार, “इस प्रकार के कार्यक्रमों से अध्यापकों को अपने छात्रों के घनिष्ठ सम्पर्क में आने का अवसर मिलेगा और छात्रों को अपनी शक्ति के प्रयोग के अनेक सृजनात्मक अवसर मिल जाएँगे।”
(घ) आवश्यकतानुसार कार्य-छात्र
असन्तोष को दूर करने के लिए आवश्यक है कि छात्रों को उनकी आवश्यकतानुसार कार्य प्रदान किए जाएँ। किशोरावस्था में छात्रों को समय-समय पर समाज-सेवा हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सामाजिक कार्यों के माध्यम से उन्हें अवकाश का सदुपयोग करना सिखाया जाए तथा उनकी अवस्था के अनुसार उन्हें रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखा जाना चाहिए।
(ङ) छात्रों को राजनीति से दूर रखा जाए
छात्रों को दलगत राजनीति से दूर रखा जाए। इसके लिए सभीराजनीतिक दलों को निश्चित करना होगा कि वे छात्रों को अपनी राजनीति का मुहरा नहीं बनाएंगे। छात्रों के लिए भी यह आवश्यक है कि वे राजनीति में भाग लेना उचित न समझे। इस सम्बन्ध में मौलाना आजाद ने ठीक ही कहा था-“एक विद्यार्थी को राजनीतिक आन्दोलनों का ज्ञान होना चाहिए. परन्तु उसे यह ज्ञान एक विद्यार्थी के रूप में ही प्राप्त करना चाहिए। सामान्यतः: राजनीति में कूदने का यह समय नहीं होता। विद्यार्थियों द्वारा राजनीतिक उत्तेजनाओं में जान देने से बढ़कर कोई दूसरा बड़ा नुकसान देश का नहीं हो सकता।”
(च) छात्रों में जीवन-मूल्यों की पुनर्स्थापना
छात्र असन्तोष दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों में सार्वभौम जीवन-मूल्यों की पुनर्स्थापना को जाए। इसके लिए छात्रों में निम्नलिखित गुणों का विकास किया जाना चाहिए-
(1) धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम का एक अंग बनाया जाए।
(2) विद्यालय के कार्य प्रार्थना-सभा से आरम्भ हों।
(3) इतिहास का शिक्षण वैज्ञानिक ढंग से हो।
(4) राष्ट्रीय उत्सवों को उत्साह के साथ मनाया जाए।
(5) छात्रों को जीवन की वास्तविकता का बोध कराया जाए।
(6) छात्रों में सहयोग तथा स्वस्थ प्रतियोगिता के विकास की भावना को विकसित किया जाए।
(छ) सामाजिक स्थिति में सुधार
युवा-असन्तोष की समाप्ति के लिए सामाजिक दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आवश्यक है। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने भौतिक स्तर को ऊँचा उठाने को आकांक्षा छोड़कर, अपने बच्चों की शिक्षा आदि पर अधिक ध्यान दें तथा समाज में पनप रही कुरीतियों एवं भ्रष्टाचार आदि को मिलकर समाप्त करें।
यदि पूरी निष्ठा तथा विश्वास के साथ इन सुझावों को अपनाया जाएगा तो राष्ट्र-निर्माण की दिशा में युवा-शक्ति का सदुपयोग किया जा सकेगा।
उपसंहार
इस प्रकार हम देखते हैं कि छात्र असन्तोष के लिए सम्पूर्ण रूप से छात्रों को ही उत्तरदायां नहीं समझा जा सकता। युवा समुदाय में इस असन्तोष को उत्पन्न करने के लिए भारतीय शिक्षा-व्यवस्था की विसंगतियां (अव्यवस्था) अधिक उत्तरदायी हैं; फिर भी शालीनता के साथ अपने असन्तोष को व्यक्त करने में ही सज्जनों को पहचान होती है तोड़-फोड़ और विध्वंसकारी प्रवृत्ति किसी के लिए भी कल्याणकारी नहीं होती।
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