Gregor Mendel

ग्रेगर जॉन मेंडल | Gregor Mendel in Hindi

ग्रेगर जॉन मेंडल | Gregor Mendel in Hindi (Gregor Mendel)

पुरखों से रूप, गुण, स्वभाव की प्राप्ति ग्रेगर जॉन मेंडल। ग्रेगोर मेंडेल 8 वर्ष लगातार मटर की फलियां उगाता रहा। ऐसा लगता था कि यह आदमी पागल हो गया है, परंतु नहीं वही एक निष्ठावान व्यक्ति था। उसी का फल है कि आज सभी जानते हैं कि जैसा बीज बोओगे वैसा ही फल प्राप्त होगा। यदि आप गेहूं बोते हैं तो चना प्राप्त नहीं होगा। परंतु यदि आप रद्दी किस्म का गेहूं बोते हैं तो आपको बढ़िया किस्म का गेहूं भी प्राप्त नहीं होगा। ऐसा वंश परंपरागत गुणों के कारण होता है। आज विभिन्न मनुष्य में पाए जाने वाले अनेक रोगों के संबंध में इस विचार को भी सामने रखा जाता है कि उस व्यक्ति के पुरखों में से तो किसी को यह रोग नहीं था।

उन्नीसवीं शताब्दी में भौतिक और रसायन विज्ञान का प्रारंभ हो चुका था, परंतु वंश परंपरा से प्राप्त होने वाली बातों के संबंध में किसी को कुछ ज्ञात न था। इस संबंध में विचार भी नहीं किया गया था। कोई यह  सोचता भी नहीं था कि अमुक व्यक्ति की आंखों या बालों का रंग ऐसा क्यों है? क्या यह बातें मनुष्य तथा पशु पक्षी अपने माता-पिता से प्राप्त करते हैं या यह सब अनायास ही हो जाता है। प्राणियों अथवा वनस्पतियों को वंश परंपरागत रूप में गुण, कर्म और स्वभाव की प्राप्ति होती है।

ग्रेगर जॉन मेंडल के मन में यह प्रश्न उठाऔर उन्होंने मटर के पौधे लगाकर उसमें परागण का कार्य अपने हाथ से किया, तितलियों अथवा मक्खियों से उन्हें बड़े यत्नपूर्वक बचाया। इस प्रकार वह 8 वर्ष तक उन पर परीक्षण करते रहे। उन्होंने अपने इन परीक्षणों के लिए 10 हजार से अधिक मटर के पौधे उगाए। विभिन्न प्रकार के बीजों की जातियों को मिला कर उसने जो संकर जातियां उत्पन्न की उनसे उन्होंने यह परिणाम निकाले कि उनका विकास वंश परंपरा से प्राप्त नियमों के आधार पर होता है। इसे “मेंडेल का सिद्धांत” कहा जाता है- यह जीव विज्ञान का नियम है।

ग्रेगर जॉन मेंडल मोराविया, ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले थे परंतु आज वह भाग चकोस्लोवाकिया में हैं। उनका जन्म जुलाई, 1822 में हुआ था। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी और गणित में तो वह बहुत ही दक्ष थे। उनकी विशेष रुचि वनस्पति विज्ञान में थी। वह पेशे से पादरी थे, परंतु एक छोटे-से नगर में रहने के कारण उनके पास समय और स्थान की कमी न थी। इसलिए व विभिन्न जातियों के इतने अधिक पौधे लगाने और उनकी संकर जातियां उत्पन्न करने में सफल हुए।

उस समय तक लोगों का विचार था कि गुण, स्वभाव और आदतें माता पिता के समान होना संयोग की बात है, आवश्यक नहीं। ग्रेगर जॉन मेंडल का कहना था कि यह तो गणित के सामान्य अनुपात का प्रश्न है, और ऐसा होना आवश्यक है। 1865 में उन्होंने अपने परीक्षण परिणामों की घोषणा की, परंतु किसी ने ध्यान नहीं दिया। इससे वह बहुत निराश हुए, परंतु उनकी मृत्यु के बाद उन्नीस सौ (1900) में जब एक दूसरा विज्ञानिक इस विषय पर कार्य कर रहा था तो उसे ग्रेगोर मेंडेल सिद्धांत वाले कागजात प्राप्त हुए। उस समय उनके महत्व का लोगों को भान हुआ और उनकी प्रसिद्धि हुई। 1884 में जब उसकी मृत्यु हुई थी तो किसी ने भी यह अनुभव नहीं किया था कि कोई वैज्ञानिक उठ गया।

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