समाज और संचार माध्यम | समाज पर संचार माध्यम के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव
समाज और संचार माध्यम | समाज पर संचार माध्यम के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव | Society and communication media in Hindi | Positive and negative effects of media on society in Hindi
समाज और संचार माध्यम
(Society and Communication Media)
संसार एक ऐसा माध्यम है जो लोगों तक दैनिक घटनाओं की सूचना पहुँचाता है। सूचना में सभी क्षेत्रों का समावेश होता है, चाहे वह मौसम की जानकारी हो या स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय घटनाएँ तथा राजनीति, युद्ध एवं प्राकृतिक विपदा। बड़े नगरों और शहरों में लोग एक दूसरे से काफी अलग-अलग रहते हैं, जन संचार इन्हें अपने पास की घटनाओं से अवगत कराते रहते हैं।
मनोरंजन संचार का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है। लोग न केवल फिल्म जैसे मनोरंजन के साधनों के द्वारा अपना मनोरंजन करते हैं बल्कि जन संचार द्वारा दी गई सूचना से भी अपना मनोरंजन करते हैं, उदाहरण के लिए, स्थानीय समचार कार्यक्रम हिंसक अपराधों तथा खेलकूद विषयों का विवरण देकर लोगों को न केवल सूचना देते है बल्कि उनका मनोरंजन भी करते है। अधिकांश स्थानीय टेलीविजन चैनल लोगों का पप्ति मनोरंजन कर मुनाफा कमाते हैं।
बच्चों के समाजीकरण में संचार की भूमिका काफी बढ़ गई है। जैसा कि आप जानते हैं, परिवार समसमूह तथा विद्यालय सामान्यतः समाजीकरण के मुख्य कारक है। फिर भी, जनसंचार के विकास के कारण बच्चों पर संचार व्यवस्था काफी सक्रिय प्रभाव पड़ रहा है संगीतज्ञ, नर्तक, खेलकूद के हीरों, अभिनेता तथा अभिनेत्रियाँ सभी तरूणों को नया विचार देते है कि कैसे व्यवहार करना चाहिए और किस प्रकार की पोशाक पहननी चाहिए। संचार के माध्यमों द्वारा चित्रित मूल्यों, मनोवृत्तियों और विश्वासों को भी तरूण अधिकार कर लेते है। मार्टिन इसलिन ने अपनी पुस्तक ‘द एज ऑफ टेलीविजन’ में बताया है कि टेलीविजन हमारे घरों में सामूहिक दिवा स्वप्न का अंतहीन प्रवास लाता है जिससे तथ्य एवं वास्तविकता, वास्तविक संसार तथा स्वप्न चित्रित संसार का भेद धुंधला हो जाता है। टेलीविजन धनवान होने की हमारी इच्छा को तृप्त करता है और कामुक ईच्छाओं की संतुष्टि का प्रबंध करता है। संसार के प्रभाव का यह पक्ष हमारा ध्यान यथार्थ जीवन से हटाता है। और तार्किक रूप से सोचने की क्षमता में कमी लाता है।
सांस्कृतिक निरंतरता को बनाए रखने में संचार हमारी मदद करता है। संस्कृति को जीवित रखने में इसकी अहम भूमिका है। तेजी से बदलते विश्व में संस्कृति के कई तत्व दृश्य से ओझल हो रहे हैं। इन तत्वों को कार्यक्रमों में सम्मिलित कर लोगों को इसके अस्तित्व को भान कराया जाता है। उदाहरणास्वरूप भारत में रेडियों ने शास्त्रीय संगीत के प्रसारण द्वारा इस परम्परा को जीवित रखने की कोशिश की है।
अब हम का संचार के नकरात्मक प्रभावों की चर्चा करते हैं कई विद्वानों शिक्षा कर्मियों तथा अन्य लोगों ने संचार के प्रभावों की तीखी आलोचना की है। उनमें से कुछ आलोचनाएँ इस प्रकार हैं-
(क) जन संचार पलायनवाद को बढ़ावा देता है।
(ख) जन संचार निष्क्रियता उत्पन्न करता है और जीवन की गंभीर वस्तुओं से ध्यान हटाता है।
(ग) जन संचार व्यक्तिगत रूचियों को नष्ट कर सांस्कृतिक एकरूपता की ओर अग्रसर करता है।
(घ) जन संचार सामग्रियों को बेचने के लिए विज्ञापनों में महिलाओं का इस्तेमाल करता है।
(ङ) जन संचार वास्तविकता की गलत तस्वीर प्रस्तुत करता है।
ये आलोचनाएं अधिकांशता जन संचार के माध्यमों के विरोध में नहीं है, इनका सम्बन्ध मूलत: उन कार्यक्रमों के फलस्वरूप तथा विषय-वस्तु पर केन्द्रित है जो इन माध्यमों द्वारा प्रस्तुत किए जाते है। ये तर्क राज्य एवं समाज की संचार नीति की सीमाओं को भी प्रतिबंधित करते है। जहाँ उन चैनलों का संचालन होता है। जन संचार से समाज पर भले ही नकारात्मक प्रभाव पड़े हो, परन्तु इसके सकारात्मक प्रभाव भी महत्वपूर्ण हैं, और आधुनिक समाज में जन संचार की बढ़ती गति को रोका नहीं जा सकता है और हमें उनके साथ ही रहना होगा।
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