समाज शास्‍त्र / Sociology

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में महिलाओं की स्थिति का विश्लेषण | हिन्दू तथा मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति की तुलनात्मक विश्लेषण

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में महिलाओं की स्थिति का विश्लेषण | हिन्दू तथा मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति की तुलनात्मक विश्लेषण | Analysis of the status of women in India after independence in Hindi | Comparative analysis of the status of women in Hindu and Muslim societies in Hindi

महिलाओं की स्थिति परिवर्तन –

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से ही महिलाओं की स्थिति में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। अब उनकी स्थिति में काफी सुधार भी हुआ है। पश्चिमीकरण, आधुनिकीकरण, लोकिकीकरण तथा जातीय गतिशीलता ने महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को उन्नत करने में काफी योग दिया है। कई महिलाएँ औद्योगिक संस्थाओं और विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी करने लगी हैं। वर्तमान समय में महिलाओं की स्थिति में निम्नलिखित परिवर्तन हुए जो इस प्रकार हैं

  1. सामाजिक जागरूकता में वृद्धि- पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की सामाजिक जागरूकता में काफी वृद्धि हुई है। अब महिलाएँ पर्दा प्रथा को बेकार समझने लगी हैं। अब बहुत-सी महिलाएँ घर की चहारदीवारी के बाहर खुली हवा में सांस ले रही हैं। आजकल कई महिलाओं के विचारों और दृष्टिकोणों में इतना अधिक परिवर्तन आया है कि अब वे अन्तर्जातीय विवाह, प्रेम-विवाह और विलम्ब-विवाह को अच्छा समझने लगी हैं। जातीय नियमों और रूढ़ियों के प्रति महिलाओं की उदासीनता बराबर बढ़ रही है। अब वे रूढ़िवादी सामाजिक बन्धनों से मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील हैं। आज अनेक महिलाऐं महिला संगठनों और क्लबों की सदस्य हैं। कई महिलाएँ तो समाज कल्याण के कार्य में लगी हुई हैं।
  2. आर्थिक क्षेत्र में वृद्धिग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाली करीब 75 प्रतिशत महिलाएँ आर्थिक दृष्टि से कोई-न-कोई कार्य करती हैं। नगरों में भी निम्न वर्ग की महिलाएँ घरेलू कार्यों और उद्योगों के माध्यम से कुछ-न-कुछ कमाती हैं। साधारणतः मध्यम और उच्च वर्ग की महिलाओं द्वारा आर्थिक दृष्टि से कोई काम करना बुरा समझा जाता रहा है, लेकिन औद्योगीकरण एवं आधुनिकीकरण ने महिलाओं की पुरुष पर आर्थिक निर्भरता को कम करने और उनकी स्थिति को उन्नत करने में योग दिया है। शिक्षा के व्यापक प्रसार, नयी-नयी वस्तुओं के आकर्षण, उच्च जीवन बिताने की बलवती इच्छा तथा- बढ़ती हुई कीमतों ने अनेक मध्यम एवं उच्च वर्ग की महिलाओं को नौकरी या आर्थिक दृष्टि से कोई-न-कोई काम करने के लिए प्रेरित किया। अब मध्यम वर्ग की महिलाएँ उद्योगों, दफ्तरों, शिक्षण संस्थाओं, अस्पतालों, समाज कल्याण केन्द्रों एवं व्यापारिक संस्थाओं में काम करने लगी हैं। वर्तमान में भारत में विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं का कुछ कार्यशील जनसंख्या में प्रतिशत 19.77 है।
  3. राजनैतिक चेतना में वृद्धि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् महिलाओं की राजनैतिक चेतना में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। जहाँ सन् 1937 में महिलाओं के लिए, 41 स्थान सुरक्षित थे, वहाँ केवल 10 महिलाओं ने ही चुनाव लड़ा। भारत के नवीन संविधान के अनुसार सन् 1950 में महिलाओं को पुरुषों के बराबर नागरिक अधिकार प्रदान किये गये। 1952 में 23 महिलाएँ लोकसभा के लिए चुनी गयी थीं जबकि 1984 के चुनावों में 65 महिलाओं ने सांसद के रूप में चुनाव में सफलता प्राप्त की। 1999 के लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 26 थी परन्तु उनकी राजनीतिक चेतना काफी बढ़ी हुई है। पार्लियामेण्ट और विधानमण्डलों में महिला प्रतिनिधियों की संख्या और विभिन्न गतिविधियों में उनकी सहभागिता, राज्यपाल, मन्त्री, मुख्यमन्त्री और यहाँ तक कि प्रधानमन्त्री तक के रूप में उनकी भूमिकाओं से स्पष्ट है कि इस देश में महिलाओं में अपने वोट का स्वतन्त्र रूप से उपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। भारतीय महिलाओं ने राज्यपालों, केबिनेट स्तर के मन्त्रियों और राजदूतों के रूप में यश प्राप्त किया है।
  4. महिला शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् महिला शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ है। इसके पूर्व न तो माता-पिता लड़कियों को शिक्षा दिलाने के पक्ष में ही थे और न ही शिक्षा की दृष्टि से समुचित सुविधाएँ उपलब्ध थीं। सन 1882 में लिखी-पढ़ी महिलाओं की कुल संख्या 2,054 थी जो सन् 1971 में 5 करोड़ 94 लाख तथा 1981 में 7 करोड़ 91.5 लाख से अधिक हो गयी। अब यह संख्या 10 करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। 1991 की जनगणना के अनुसार महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत 39. 29 तथा पुरुषों में 64.13 है। वर्तमान में लड़कियाँ व्यावसायिक शिक्षा भी ग्रहण कर रही हैं। शिक्षण से सम्बन्धित ट्रेनिंग कॉलेजों एवं मेडिकल कॉलेजों में लड़कियों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ती ही जा रही हैं। वे अब कला, विज्ञान, वाणिज्य, गृहविज्ञान, शिल्पकला और संगीत की शिक्षा भी प्राप्त कर रही हैं।

हिन्दू तथा मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति की तुलनात्मक विश्लेषण

यदि हम हिन्दू एवं मुस्लिम समाज में महिलाओं को दी गयी स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पायेंगे कि कुछ अर्थों में हिन्दू महिला की स्थति अच्छी है तो कुछ में मुस्लिम महिला की। हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों ही महिलाएँ पर्दा-प्रथा का पालन करती है, किन्तु मुसलमानों में इसका कठोर रूप पाया जाता है। हिन्दू महिलाओं में मुस्लिम महिलाओं की तुलना में अधिक शिक्षा पायी जाती है। वे आर्थिक, राजनैतिक एवं सार्वजनिक क्षेत्र में मुस्लिम महिलाओं की अपेक्षा अधिक क्रियाशील हैं, किन्तु विधवा पुनर्विवाह एवं तलाक देने की छूट दी गयी है। हिन्दुओं में अब विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 एवं हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के द्वारा विधवा महिलाओं को पुनर्विवाह की एवं महिलाओं को तलाक देने की वैधानिक छूट दी गयी है, किन्तु व्यवहार में इन अधिकारों का प्रयोग कम ही हुआ है। सम्पत्ति की दृष्टि से मुस्लिम महिला को माँ, पुत्री एवं पत्नी के रूप में हिस्सेदार एवं उत्तराधिकारी बनाया गया है और वह अपनी सम्पत्ति का मनमाना उपयोग कर सकती है, किन्तु हिन्दू महिला को सम्पत्ति के अधिकारों से वंचित किया गया है, यद्यपि हिन्दू महिला सम्पत्ति अधिकार अधिनियम, 1937 एवं हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के द्वारा हिन्दू महिला को भी अब माता, पत्नी एवं पुत्री के रूप में सम्पत्ति के अधिकार प्रदान किये गये हैं, तथापि व्यवहार में इसका प्रयोग नगण्य है। हिन्दुओं में बाल-विवाह का प्रचलन है। मुसलमानों में भी बाल-विवाह होते हैं, किन्तु ख्याल-उल-बुलूग के अधिकार द्वारा मुस्लिम महिला बालिंग होने पर ऐसे विवाह को रद्द घोषित कर सकती है, किन्तु हिन्दू महिला ऐसा नहीं कर सकती। मुसलमानों मेंज्ञविवाह के उपलक्ष्य में वर वधू को मेहर देता है, इससे महिला की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है। हिन्दुओं में दहेज के कारण महिलाओं की स्थिति निम्न हो जाती है। मुसलमानों में बहुपत्नीत्व की प्रथा के प्रचलन के कारण मुस्लिम महिला की स्थिति हिन्दू महिला की तुलना में निम्न है। मुसलमानों में विवाह से पूर्व लड़की से स्वीकृति ली जाती है, किन्तु हिन्दुओं में ऐसा नहीं होता।

इस प्रकार हम देखते है कि सिद्धान्ततः मुस्लिम महिलाओं को हिन्दू महिलाओं की तुलना में अधिक अधिकार प्रदान किये गये हैं, किन्तु पर्दा-प्रथा के प्रचलन एवं अशिक्षा के कारण वे अपने अधिकारों का प्रयोग करने में असफल रही हैं और आज भी उनकी स्थिति काफी दयनीय है।

महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन- स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से ही महिलाओं की स्थिति में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। अब उनकी स्थिति में काफी सुधार भी हुआ है। पश्चिमीकरण आधुनिकीकरण, लौकिकीकरण तथा जातीय गतिशीलता से महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को उन्नत करने में काफी योग दिया है। कई महिलाएं औद्योगिक संस्थाओं और विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी करने लगी हैं। वर्तमान समय में महिलाओं की स्थिति में निम्नलिखित परिवर्तन हुए जो इस प्रकार हैं-

  1. सामाजिक जागरूकता में वृद्धि- पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की सामाजिक जागरूकता में काफी वृद्धि हुई है। अब महिलाएँ पर्दा प्रथा को बेकार समझने लगी हैं। अब बहुत- सी महिलाएं घर की चहारदीवारी के बाहर खुली हवा में सांस ले रही हैं। आजकल कई महिलाओं के विचारों और दृष्टिकोणों में इतना अधिक परिवर्तन आ चुका है कि अब वे अन्तर्जातीय विवाह, प्रेम-विवाह और विलम्ब-विवाह को अच्छा समझने लगी हैं। जातीय नियमों और रूढ़ियों के प्रति महिलाओं की उदासीनता बराबर बढ़ रही है। अब वे रूादेवादी सामाजिक बन्धनों से मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील हैं। आज अनेक महिलाएं महिला संगठन कों और क्लबों की सदस्य हैं। कई महिलाएँ तो समाज-कल्याण के कार्य में लगी हुई हैं।
  2. आर्थिक क्षेत्र में वृद्धि- ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाली करीब 75 प्रतिशत महिलाएँ आर्थिक दृष्टि से कोई-न-कोई कार्य करती हैं। नगरों में भी निम्न वर्ग की महिलाएं घरेलू कार्यों और उद्योगों के माध्यम से कुछ-न-कुछ कमाती हैं। साधारणतः मध्यम और उच्च वर्ग की महिलाओं द्वारा आर्थिक दृष्टि से कोई काम करना बुरा समझा जाता रहा है, लेकिन औद्योगीकरण एवं आधुनिकीकरण ने महिलाओं की पुरुष पर आर्थिक निर्भरता को कम करने और उनकी स्थिति को उन्नत करने में योग दिया है। शिक्षा के व्यापक प्रसार, नयी-नयी वस्तुओं के आकर्षण, उच्च जीवन बिताने की बलवती इच्छा तथा बढ़ती हुई कीमतों ने अनेक मध्यम एवं उच्च वर्ग की महिलाओं को नौकरी या आर्थिक दृष्टि से कोई-न-कोई काम करने के लिए प्रेरित किया। अब मध्यम वर्ग की महिलाएं उद्योगों, दफ्तरों, शिक्षण संस्थाओं, अस्पतालों, समाज कल्याण केन्द्रों एवं व्यापारिक संस्थाओं में काम करने लगी है। वर्तमान में भारत में विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं का कुछ कार्यशील जनसंख्या में प्रतिशत 19.77 है।
  3. राजनीतिक चेतना में वृद्धि- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् महिलाओं की राजनीतिक चेतना में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। जहाँ सन् 1937 में महिलाओं के लिए 41 स्थान सुरक्षित घे, वहाँ केवल 10 महिलाओं ने ही चुनाव लड़ा। भारत के नवीन संविधान के अनुसार सन् 1950 में महिलाओं को पुरुषों के बराबर नागरिक अधिकार प्रदान किये गये। 1952 में 23 महिलाएँ लोकसभा के लिए चुनी गयी थीं जबकि 1984 के चुनावों में 65 महिलाओं ने सांसद के रूप में चुनाव में सफलता प्राप्त की। 1999 के लोकसभा चुनाव में महिला सांसदों की संख्या 26 थी परन्तु उनकी राजनीतिक चेतना काफी बढ़ी हुई है। पार्लियामेण्ट और विधानमण्डलों में महिला प्रतिनिधियों की संख्या और विभिन्न गतिविधियों में उनकी सहभागिता, राज्यपाल, मन्त्री, मुख्यमन्त्री और यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक के रूप में उनकी भूमिकाओं से स्पष्ट है कि इस देश में महिलाओं में अपने वोट का स्वतन्त्र रूप से उपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। भारतीय महिलाओं ने राज्यपालों, कैबिनेट स्तर के मन्त्रियों और राजदूतों के रूप में यश प्राप्त किया है।
  4. महिला शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् महिला शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ है। इसके पूर्व न तो माता-पिता लड़कियों को शिक्षा दिलाने के पक्ष में ही थे और न ही शिक्षा की दृष्टि से समुचित सुविधाएँ उपलब्ध थीं। सन् 1882 में लिखी-पढ़ी महिलाओं की कुल संख्या 2.054 थी जो सन् 1971 में 5 करोड़ 94 लाख तथा 1981 में 7 करोड़ 91.5 लाख से अधिक हो गयी। अब यह संख्या 10 करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। 1991 की जनगणना के अनुसार महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत 39.29 तथा पुरुषों में 64.13 है। वर्तमान में लड़कियाँ व्यावसायिक शिक्षा भी ग्रहण कर रही है। शिक्षण से सम्बन्धित ट्रेनिंग कॉलेजों एवं मेडिकल कॉलेजों में लड़कियों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ती ही जा रही है। वे अब कला, विज्ञान, वाणिज्य, गृहविज्ञान, शिल्पकला और संगीत की शिक्षा भी प्राप्त कर रही है। महिला शिक्षा के व्यापक प्रसार ने महिलाओं को अपने व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के समुचित अवसर प्रदान किए हैं, उन्हें रूढ़िवादी विचारों से काफी सीमा तक मुक्त किया है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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