वैश्विक तापमान वृद्धि का अर्थ । वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण एवं प्रभाव | Meaning of global temperature rise in Hindi | Causes and effects of global temperature rise in Hindi
वैश्विक तापमान वृद्धि का अर्थ । वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण एवं प्रभाव | Meaning of global temperature rise in Hindi | Causes and effects of global temperature rise in Hindi
वैश्विक तापमान वृद्धि का अर्थ
वैज्ञानिकों के अनुसार इस समय विश्व के समक्ष आतंकवाद के अतिरिक्त सबसे बड़ी चुनौती ग्लोबल वार्मिंग की है जिसके तहत पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इसके कारण विश्व को विभिन्न आपदाओं, जैसे- सूखा, बाढ़, मलेरिया आदि जैसी समस्याओं से निपटने में कठिनाइयाँ आ रही हैं और इनसे जुड़ी घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है।
“पृथ्वी के वायुमण्डल में हरित गृह गैसों की सान्द्रता बढ़ने से सम्पूर्ण पृथ्वी के औसत तापमान वृद्धि होना ही वैश्विक तापमान वृद्धि (Global Warming) कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ने से दुनिया को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है; जैसे-बाढ़, सूखा आदि।
डॉ० रवीन्द्र सिंह के अनुसार- “मुख्य रूप से मानव जनित कारणों से वायुमण्डलीय एवं धरातलीय तापमान में क्रमशः वृद्धि एवं भूमण्डलीय विकिरण संतुलन में परिवर्तन तथा उसके कारण स्थानीय, प्रादेशिक तथा वैश्विक स्तर पर जलवायु में परिवर्तन होना है।” यह अनुमान है कि विगत एक सौ वर्षों में धरातलीय वायु तापमान में 0.5 से 0.7°C तक की वृद्धि हुई है।
तापमान-वृद्धि में कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा 360PPM व लगभग 5 5% योगदान है। क्लोरो फ्लोरो कार्बन्स का 24% (लगभग) योगदान है। नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा 210 पीपीबी (Particles Per Billion) और योगदान लगभग 6 है। मीथेन की मात्रा 1720PP6 और योगदान 15% है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण-तापमान-वृद्धि के निम्नलिखित कारण है-
- औद्योगीकरण
- मशीनीकरण
- स्वचालित वाहनों की बढ़ती संख्या से भी तापमान में वृद्धि हुई है।
- वायुमण्डल में कार्बन डाइ-ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि गैसों की मात्रा बढ़ी है जिसे वायुमण्डल की तापमान अवशोषण क्षमता बढ़ी है।
- हरित गृह प्रभाव के लिए उत्तरदायी क्लोरों फ्लोरों कार्बन्स से ओजोन परत के क्षरण के कारण और ऊर्जा का अधिकाधिक भाग पृथ्वी पर आने से उसका तापमान बढ़ता है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव (वैश्विक तापमान-वृद्धि के प्रभाव)-
वायुमण्डल में तापमान वृद्धि के निम्न प्रभाव देखने को मिलते हैं-वैज्ञानिकों ने अध्ययनों के पश्चात् निष्कर्ष निकाला कि तापमान-वृद्धि के कारण पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने की गति भी लगातार कम हो रही है। जर्मनी के वैज्ञानिक के शोध के अनुसार तापमान-वृद्धि के कारण भविष्य में पैदा होने वाली संतानों में लड़कों की संख्या बढ़ेगी क्योंकि लड़कों का लिंग निर्धारित करने वाले ‘Y’ गुणसूत्र में गर्मी को सहने की क्षमता अधिक होती है। नासा (अमेरिकी अंतरिक्ष एजेन्सी) के गोडारड इन्स्टीट्यूट के अनुसार प्रत्येक दशक में पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 0.3°F की दर से बढ़ रहा है। दक्षिण अमेरिका के क्षेत्र में पिछले चार वर्षों से सूखा है और उश क्षेत्र का औसत तापमान पिछले चालीस वर्षों की तुलना में लगभग 2F से अधिक रहा है। इसके ,विपरीत यूरोप में मौसम ठंडा रहा है ।
ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि तापमान-वृद्धि के कारण सन् 2080 तक अकेले ब्रिटेन में बाढ़ के कारण होने वाली मौते दुगुनी हो जायेंगी। ब्रिटेन का हरित गृह गैसों के उत्पादन में योगदान 2% है जबकि अमेरिका, जहाँ की जनसंख्या वैश्विक जनसंख्या की तुलना में महज चार प्रतिशत है, हति गृह गैसों का 20% से अधिक उत्पादन कर रहा है।
स्वचालित वाहनों, उद्योगों, तापविद्युत घरों, जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइ-ऑक्साइड का उत्पादन बहुत अधिक हो रहा है जिसके कारण तापमान-वृद्धि लगातार हो रही है। और अग्रलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो रही है-
- जलवायु/मौसम परिवर्तन (Change in Climate/Seasons) – वायुमण्डल में तापवृद्धि के कारण वहाँ वायुदाब पेटियों में परिवर्तन होने से जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। गर्मी के समय वर्षा एवं सर्दी और वर्षा के समय गर्मी हो रही हैं। वर्षाकाल तो विशेष रूप से अनिश्चितता से भरा हुआ है।
” May, 1992 को संयुक्त राज्य अमेरिका कन्वेन्स ने जलवायु परिवर्तन पर विचार किया और कहा -“Acknowledging the change in the earth, its climate and its adverse effects are common concern to mankind.”
वैश्विक जलवायु परिवर्तन की प्रकृति के कारण सभी देशों से सम्भव सहायता व योगदान की अपील की गई और कहा गया-“Determine to protect the climatic system for present and future generations.
- कृषि पर प्रभाव- अध्ययनों से पता चलता है कि गर्म वातावरण में चावल और गेहूँ का उत्पादन अपेक्षा से कम होता है। वैश्विक तापमान-वृद्धि से भारत के समुद्री तटों पर बसे राज्यों जैसे महाराष्ट्र व गुजरात आदि में कृषि फसलों की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। गर्मी के कारण कीट-पतंगों की संख्या में वृद्धि कृषि पर बहुत बुरा प्रभाव डाल सकती है।
- हिमनदों पर प्रभाव- तापमान-वृद्धि के कारण हिमनदों का पिघलना जारी है। हिमलाय के 95% ग्लेशियर (हिमनद) सिकुड़ रहे हैं। पिण्डारी ग्लेशियर 13 मीटर/ वर्ष की दर से और गंगोत्री ग्लेशियर 30 मीटर/वर्ष की दर से सिकुड़ रहे हैं। ध्रुवों पर पेंगूइनों के अस्तित्व को खतरा है। यदि तापमान वृद्धि इसी प्रकार होती रही तो माना जा रहा है कि इक्कीसवीं सदी के अन्त तक पृथ्वी के तापमान में लगभग 5-8°C तक की वृद्धि हो सकती है जिसके कारण ध्रुवों पर जमीं बर्फ व हिमनदों के पिघलने से समुद्र का जल-स्तर लगभग पाँच मीटर तक बढ़ सकता है। इसके परिणामस्वरूप मालद्वीप सहित भारत व यूरोप के कई देशों के तटीय भाग जल डूब जायेंगे।
ग्लेशियरों (हिमनदों) के पिघलने से समुद्र की सतह का तापमान बढ़ेगा, शुद्ध पानी की मात्रा घट जायेगी और वर्षा भी अनियमित हो जायेगी और वर्षा चक्र बदल जायेगा मौसम में भारी फेरबदल होगा। खेती व मत्सय (मछली) पालन उद्योग खतरे में पड़ जायेगा। बाढ़, सूखा व तूफान आदि का प्रभाव बढ़ेगा, मौसम गर्म होगा और बीमारियाँ व महामारियाँ फैलेगी।
- जल-स्त्रोतों के स्तर पर प्रभाव- तापमान-वृद्धि के कारण मानसून चक्र अत्यधिक रूप से प्रभावित होता है। मानसून चक्र भूमि के अन्दर जल-स्रोतों के स्तर को बनाये रखता है। वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार सर्दियों में वर्षा की दर 5-25% तक कम हो सकती है। जिससे गर्मियों में सुखा पड़ सकता है और पृथ्वी के अन्दर जल-स्तर नीचे चला जायेगा।
- जैव-विविधता पर प्रभाव- वैश्विक तापमान वृद्धि का जैव-विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, जीव-जन्तु विभिन्न स्थानों पर विभिन्न वातावरण में रहते हैं। कुछ विशिष्ट फूलों वाले पौधे व जन्तु गर्म वातावरण को सहन करने में सक्षम नहीं होते हैं, इसलिए उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है जबकि कुछ जीव अपना स्थान बदल देते है। कच्छ की खाड़ी के जन्तु बढ़ते समुद्र स्तर के कारण अपना स्वभाव बदल सकते हैं। हिमालय पर स्थित पेड़ों की ऊँचाई अपेक्षा के विपरीत बढ़ सकती है। वर्तमान में जो पेड़ ऊँचे हैं वे समाप्त हो सकते हैं। समुद्र जल का तापमान बढ़ने से उसमें पाये जाने वाले मूंगे समाप्त हो सकते हैं।
- समुद्र-तट पर बसे राज्यो/शहरों एवं द्वीपों पर प्रभाव- वेश्विक तापमान-वृद्धि के कारण मलेशियों के पिघलने से समुद्र जल का स्तर बढ़ता है। समुद्र जल-स्तर बढ़ने से मालद्वीप, भारत व यूरोप के कई देशों के तटीय क्षेत्र जल मग्न हो जायेगें गोवा का अधिकतम भाग समुद्री जल में डूब जायेगा। विशेषज्ञों के अनुसार समुद्र तल का स्तर एक मीटर बढ़ने पर बांग्लादेश की स्थलीय सीमाएं लगभग 17.15% तक कम हो जायेगी। गर्म हवाओं के कारण उठे समुद्री तृफान से निचले तटीय क्षेत्रों की स्थलीय सीमाएँ कम हो जायेगी।
वैश्विक तापमान-वृद्धि (Global Warming) के कुछ चौंकाने वाले प्रभाव-
- पिछले कुछ दशकों में ध्रुवीय समुद्रों में बर्फ की मात्रा में 50% तक की कमी के कारण बर्फीले मौसम में रहने वाले जीरवों के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न होना।
- ग्रीनलैण्ड पर बर्फ पिघलने से समुद्र तल का स्तर 23 फीट तक बढ़ना।
- सन् 1950 तक अलास्का में गर्मी के दिनों की संख्या अस्सी (80) थी जो 1990 तक बढ़कर सौ (100) हो गयी।
- पूर्वी रूस, पश्चिमी कनाडा व अलास्को में सर्दियों के औसत तापमान में 4- 7°F तक की वृद्धि होना।
- सन् 2003 में यूरोप के तापमान में सामान्य से 5°C बढ़ने से लगभग 35,000 (पैंतीस हजार) व्यक्तियों की मृत्यु होना और पश्चिमी यूरोप म लू का प्रकोप होना।
- रॉकीज ग्लेशियर का मौसम विश्व के मौसम की अपेक्षा दुगुना गर्म हो रहा है जिसके कारण वे समाप्त हो रहे हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के रेगिस्तानों में सन् 2004 के अन्त में हुई भयंकर बर्फबारी के कारण ‘रास-अल-खयमा’ के पहाड़ पहली बार बर्फ की सफेद चादर से ढक गये।
- सन् 2004 के अन्त में आया सुनामी तूफान तापवृद्धि का ही फल है।
- तापमान-वृद्धि के कारण ही 2005 में मुम्बई में मानसून की मात्रा 942mm तक पहुँच गई और एक ही दिन में 838mm वर्षा के कारण बाढ़ का भयंकर रूप देखा गया।
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