भूगोल / Geography

औद्योगिक विकास एवं पर्यावरण के मध्य सम्बन्ध | औद्योगिक विकास एवं पर्यावरण के मध्य सम्बन्धों का वर्णन कीजिये

औद्योगिक विकास एवं पर्यावरण के मध्य सम्बन्ध | औद्योगिक विकास एवं पर्यावरण के मध्य सम्बन्धों का वर्णन कीजिये

औद्योगिक विकास एवं पर्यावरण के मध्य सम्बन्ध

बढ़ते औद्योगिकीकरण से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि पर्यावरण के संतुलन का खतरा मंडराने लगा है। औद्योगिकी विकास का सबसे अधिक प्रभाव महानगरों एवं अन्य धनी आबादी वाले शहरों में देखने को मिलती है। शहरों व महानगरों में जनसंख्या घनत्व अधिक होने से मोटर वाहनों, गाड़ियों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है।

ये वाहन अपने धुएँ में कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी विषेली गैस छोड़ते हैं जो हमारी श्वास प्रक्रिया में बाधक नाती है तथा साथ ही अनेक बीमारियों को जन्म देती है। वायु प्रदूषण फैलने के वातावरण में बाधक बनाती है तथा साथ ही अनेक बीमारियों को जन्म देती है। वायु प्रदूषण फैलने से वातावरण में ऑक्सीजन (O2) की मात्रा कम होती जा रही है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार जापान की राजधानी ‘टोक्यो’ को विश्व का सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया है, टोक्यो में आज स्थिति यह है कि वहाँ जगह-जगह आक्सीजन के सिलेंडर लगाये गए हैं, जिससे आवश्यकता पड़ने पर मनुष्य आक्सीजन ले सकता है।

यातायात के साधनों के अतिरिक्त बड़े-बड़े कारखाने, मिले आदि न केवल वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं, अपितु जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के लिये भी उत्तरदायी है।

औद्योगीकरण ऐसा ही एक चरण है, जिसमें देश को आत्म निर्भरता मिलती है, और व्यक्तियों में समृद्धि की भावना को जागृत करती है। भारत देश इसका अपवाद नहीं है। सन् 1947 में आजाद देश ने इस दिशा में सोचा और अपने देश की क्रमबद्ध प्रगति के लिये चरणबद्ध पंचवर्षीय योजनायें बनाई।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना ( 1956-61) में देश में औद्योगिकी क्रान्ति का सूत्रपात हुआ जो निरन्तर बढ़ता ही रहा (आर्थिकं मन्दी के कारण इसमें शिथिलता भी आई) और लगभग 31 लाख लघु एवं मध्यम उद्योग वर्तमान में कार्यरत हैं।

औद्योगिक प्रदूषण (Industrial Pollution)- औद्योगिक प्रगति के साथ ही इसका संबंधित परिणाम ‘प्रदूषण’ भी साथ ही नियत है। यद्यपि मोटे-मोटे तौर से इस क्षेत्र के प्रदूषण को हम ‘वायु प्रदूषण’ के साथ ले सकते हैं। पर यह वास्तव में सामान्य से अधिक भयावह है। इसका कारण ही स्पष्ट है, एक उद्योग से संबंधित कम से कम निम्न प्रतिक्रियायें होती ही हैं-

  1. विषैली गैसों का चिमनियों से उत्सर्जन साथ ही बहुत सूक्ष्म पदार्थों के कण।
  2. उद्योगों में काम में आये हुये जल का बहिःस्राव जो अनेक अशुद्धियों अथवा उद्योगों में प्रयोग किये गये कच्ची सामग्री के अंश साथ लाता है।
  3. उद्योगों में कार्य में आने के बाद शेष अवशेष।
  4. चिमनियों में प्रयुक्त ईंधन के अवशेष। so2x

ये सभी दृष्टिकोण औद्योगिक प्रदूषण के परिप्रे्ष्य में महत्त्वपूर्ण हैं।

उद्योगों के प्रदूषित पदार्थ (Emission form Different Industries) –

क्र.

उद्योग

प्रदूषक तत्व (उत्सर्जित तत्त्व)

1.

तेल शाधक

SO2, NOx, HC, CO, NH3, SPM कई गन्धे।

2.

पत्थर खदान, भाटटियाँ

सूक्ष्म कण, रेत

3.

शराब भट्टियाँ

CO, HC, NOx, तथा सूक्ष्मकण

4.

खाद्य (नाइट्रेट)

अमोनिया, नाइट्रिक ऑक्साइड्स

5.

खाद ( फास्फेट)

CO, SOx, सिलिकॉन, टेट्राफ्लोराइड

6.

कॉपर स्मेल्टिंग

SOx, सूक्ष्मकण, धूल

7.

लैंड स्मेल्टिंग

रेत, SO2, धुआँ

8.

जिंक स्मेल्टिंग

रेत, SO2, धुआँ

9.

सल्फ्यूरिक अम्ल

तेजाबी धुन्ध

10.

नाइट्रिक अम्ल

नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई आक्साइड

11.

सिन्थेटिक धागा

CO2, HC, धुन्ध।

12.

चीनी

CO, HC, NOx, तथा सूक्ष्म कण

13.

सूती उद्योग

कास्टिक सोडा, सोडियम सिलीकेट

14.

सीमेण्ट उद्योग

सूक्ष्म कण।

15.

 

चमड़ा उद्योग

NOx, SOx, एल्डीहाइड्स, धुआँ

और रेत, हाइड्रोजन सल्फाइड

16.

 

एल्युमिनियम

सूक्ष्म कण, फ्लोराइड्स, गैसीय क्लोराइड

17.

कार्बन ब्लैक

CO, HC, NOx,

18.

 

आयरन और स्टील

मैंगनीज ऑक्साइड, NOx, CO2, क्लोरीन, गैस, सूक्ष्मकण ।

औद्योगिक प्रदूषण कम करने के उपाय-

अद्योगिक प्रदूषण कम करने हेतु निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं-

(1) उद्योगों के स्थान का चयन बहुत सोच-समझ कर करना चाहिये।

(a) वह न तो अधिकृत वन क्षेत्र हो और न ही कृषि भूमि ।

(b) क्षेत्र में ठोस अपशिष्ट का भण्डारण हो सके।

(c) आबादी से काफी दूर हो जिससे वहाँ के लोग प्रदूषण से बच सकें।

(d) पानी की प्रचुर मात्रा करीब में ही उपलब्ध हो।

(3) उद्योगों में कार्य कर रहे ऊर्जा संयत्र तथा गैसों व सूक्ष्म कणों को उत्सर्जित करने वाली चिमनियों से प्रदूषकों की मात्रा कम हो, इस हेतु प्रचलन में आ रहे, स्क्रूबर्स (अवशोषक), साइक्लोन्स और बैगफिल्टर्स संयंत्रों का भरपूर उपयोग किया जाय।

(4) जलीय अपशिष्टों तथा ठोस उपशिष्टों की जितनी भी उपचारात्मक प्रक्रिया सम्भव हो, उसी के बाद उन्हें अपने क्षेत्र में विसर्जित किया जाये।

(5) चिमनियों की ऊँचाई भी गैसीय उत्सर्जन द्वारा किये जा रहे प्रदूषण कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इनके मानदण्ड निर्धारित है जिनका उपयोग किया जाना चाहिये।

(6) ऐसे वृक्षों को उद्योग परिसर में लगाया जाए जो विशेष विषेली गैसों का अवशोषण कर सकें। वृक्षों की सघन पट्टियाँ (Green belts) ध्वनि अवशोषक भी होती है, इनकी मोटाई 8-10 मीटर तक हो सकती है।

(7) उद्योग से संबंधित होने वाली घटनाओं के बारे में जानकारी सभी श्रमिकों को दी जाए तथा उन्हें बताया जाय कि अमुख स्थिति में उन्हें क्या करना है।

(8) आपत्तिकाल की स्थिति में श्रमिकों का उत्तरदायित्व निश्चित किया जाना चाहिये।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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