भूगोल / Geography

पर्यावरण की परिभाषा । पर्यावरण की अवश्यकता । पर्यावरण का महत्व

पर्यावरण की परिभाषा । पर्यावरण की अवश्यकता । पर्यावरण का महत्व

पर्यावरण की परिभाषा । पर्यावरण की अवश्यकता । पर्यावरण का महत्व | Definition of environment in Hindi | Environmental requirements in Hindi | Importance of environment in Hindi

अर्थ ‘पर्यावरण’ शब्द ‘परि’ एवं ‘आवरण’ शब्दों से मिलकर बना है। ‘चारों ओर के’ ‘आवरण’ को पर्यावरण कहा जा सकता है। चारों ओर के आवरण के भीतर जो कुछ भी सम्मिलित रहता है, पर्यावरण के अंतर्गत आता है। जिन विषयों की सहायता से इस ‘आवरण’ के अध्ययन का प्रयत्न संभव हो सकता है, वे सभी पर्यावरण विज्ञान के अंतर्गत आते हैं।

पर्यावरण का नाम आते ही भूपटल के बृहद् पक्षों-जल, मृदा, मरुस्थल, पहाड़, आदि की कल्पना मन में आ जाती है। पर्यावरण के इन प्रकारों की ओर भी अधिक सटीक अभिव्यक्ति, भौतिक प्रभावों-नमी, ताप, पदार्थों के गठन इत्यादि की विभिन्नताओं तथा जैवीय प्रभावों के रूप में की जा सकती है। मृदा तथा चट्टानों के समान ही दूसरे जीव भी पर्यावरण के ही अंग हैं। इस प्रकार प्रकृति में जो कुछ भी हमें परिलक्षित होता है, वायु, जल, मृदा, पादप तथा प्राणी- सभी सम्मिलित रूप में पर्यावरण की रचना करते हैं।

पर्यावरण एक व्यापक शब्द है। पर्यावरण का तात्पर्य समूचे भौतिक एवं जैविक विश्व से है जिसमें जीवधारी रहते हैं, बढ़ते है, पनपते हैं और अपनी स्वाभाविक प्रकृतियों का विकास करते हैं।

परिभाषित रूप में पर्यावरण शब्द जीवों की अनुक्रियाओं को प्रभावित करने वाली समस्त भौतिक (Physical) तथा जीवीय (biotic) परिस्थितियों का योग है। दूसरे शब्दों में, इसे हम ‘जीव मंडल (Biosphere) भी कह सकते हैं, जो जलमंडल (Hydrosphere), स्थलमडल (Lithosphere) तथा वायुमंडल (atmosphere) के जीवनयुक्त भागों का योग होता है।

परिभाषा

(1) डगलस एवं रोमन हालैण्ड के अनुसार- “पर्यावरण उन सभी बाहरी शक्तियों एवं प्रभावों का वर्णन करता है, जो प्राणी जगत के जीवन, स्वभाव, व्यवहार, विकास और परिपक्वता को प्रभावित करता है।”

(2) बुडबर्थ के अनुसार- “पर्यावरण शब्द का अभिप्राय उन सभी बाहरी शक्तियों और तत्वों से है, जो व्यक्ति को आजीवन प्रभावित करते हैं।”

(3) एनास्टैसी के अनुसार- “पर्यावरण प्रत्येक वह वस्तु है जो जीन्स (Genes) के अतिरिक्त व्यक्ति को प्रभावित करती है।”

(4) रॉस के अनुसार- “पर्यावरण कोई भी वह बाहरी शक्ति है जो हमको प्रभावित करती है। ” (Environment is any external force which influences us.)

(5) हर्सकोविट्स के अनुसार- “पर्यावरण उन समस्त बाह्य दशाओं एवं प्रभावों का योग है जो प्राणी के जीवन एवं विकास पर प्रभाव डालते हैं।”

(6) अर्नेस्ट हैकेल के अनुसार- “पय्यावरण का तात्पर्य मनुष्य के चारों ओर पायी जाने वाली परिस्थितियों के उस समूह से है जो उसके जीवन और उसकी क्रियाओं पर प्रभाव डालती है।”

(7) बोरिंग के अनुसार- “एक व्यक्ति के पर्यावरण में वह सब कुछ सम्मिलित किया जाता है जो उसके जन्म से मृत्युपर्यन्त उसे प्रभावित करता है।”

क्षेत्र

सामान्यतः पर्यावरण का अभिप्राय मात्र भौतिक या प्रकृति प्रदत्त कारक, जैसे- भूमि, जल, जलवायु वनस्पति, खनिज, मृदा और जीव जंतुओं से लगा लिया जाता है, लेकिन पर्यावरण एक व्यापक शब्द है, जिसमें भौतिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक सभी प्रभावशील कारक सम्मिलित है। इस प्रकार पर्यावरण को दो वृहद वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-(1) प्राकृतिक पर्यावरण (2) सांस्कृतिक पर्यावरण अथवा भौतिक पर्यावरण एवं अभौतिक या मानवीय पर्यावरण। कभी-कभी इसे जैविक और अजैविक पर्यावरण में भी विभक्त किया जाता है, किन्तु भौगोलिक पर्यावरण से आशय भौतिक और सांस्कृतिक दोनों के सम्मिलित स्वरूप से है।

पर्यावरण की अवश्यकता

मानव एक सामाजिक प्राणी है, अतः उसका परिवार एवं समाज से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। पर्यावरण का अर्थ है-वातावरण । जिसमें सम्पूर्ण प्रकृति ( नदियाँ, जलाशय, वन-उपवन, वाटिका, झरने, पर्वत शृंखलाएँ, चट्टान, खनिज, पेड़-पौधे, वायु एवं जल का संयोग) आती है। मनुष्य पर्यावरण में ही जी रहा है, अतः शुद्ध पर्यावरण की अत्यन्त आवश्यकता है। कक्षा में छात्र को विस्तृत पर्यावरण के बारे में ज्ञान नहीं कराया जाता है। अवलोकन, प्रायोजना एवं पर्यटन विज्ञान शिक्षण की ऐसी विधियाँ है, जो उसे अपने चारों ओर की प्रकृति के रहस्य के बारे में अवगत कराती है। प्रकृति का क्षेत्र विस्तृत है, जो कि पर्यावरण के साथ जुड़ा हुआ है। वह प्राकृतिक घटनाओं की जानकारी तथा उसके कारण ढूँढ़ता है। प्राकृतिक वन सम्पदा प्राथमिक स्तर पर एक मनोहर रूप प्रस्तुत करती है। खेत, बगीचे, झरने, नदी, वाटिकाएँ एवं विभिन्न जीव-जन्तु आदि सभी इस पर्यावरण को सुन्दर एवं स्वच्छ बनाते हैं। बालक प्रकृति की गोद में जाकर प्राकृतिक दृश्यों का बाध करता हे और निरीक्षण कर उन्हें समझ लेता है। आजकल प्राथमिक स्तर पर यूनिसेफ ने एक योजना पर्यावरणीय शिक्षा विद्यालयों में प्रारम्भ कर दी है। इसके द्वारा छात्रों को शिक्षण दिया जाता है, वह अपव्ययी नहीं है। प्राथमिक स्तर पर ही छात्रों को प्रकृति के रहस्य का बोध एक अन्वेषणकर्त्ता के रूप में करना चाहिए।

पर्यावरण का महत्व

  1. प्रकृति की गोद में झाँक कर बालक की निरीक्षण शक्ति विकसित होती है। उसमें क्या, क्यों, कैसे की प्रवृत्ति विकसित होती है।
  2. छात्रों को प्रकृति के रहस्य जानने की जो स्वाभाविक लालसा रहती है, उससे उनका व्यक्तित्व विकसित होता है।
  3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण को परिपक्व बनाने के लिए तथा उसे स्वस्थ बनाने के लिए प्रकृति का सम्पर्क छात्र के लिए आवश्यक है। स्वाध्याय के लिए भी यह बहुत आवश्क है।
  4. प्राकृतिक वातावरण में सुखी एवं खुश रहने के लिए पर्यावरण का उपयोग आवश्यक है।
  5. छात्रों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक के माध्यम से सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का विकास किया जा सकता है।
  6. पर्यावरण प्रदूषण से कौन सी बीमारियाँ पनप सकती हैं? और उनसे बचाव आदि के बारे में जाना जा सकता।

प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन द्वारा भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान एवं जीव विज्ञान से जुड़े तथ्यों, सिद्धान्तों, प्रक्रियाओं का अध्ययन पर्यावरण में उपलब्ध साधनों से कराया जाना चाहिए। छात्रों को प्रकृति का निरीक्षण कर, आँकड़ों का संग्रह कर सूचनाएँ एकत्रित कर निष्कर्ष निकालना चाहिए। यह छात्रों को वास्तविक जीवन, परिस्थिति तथा अनुभवों से ज्ञान सिखाने हेतु एक प्रमुख साधन है। इस प्रकार पर्यावरण विज्ञान शिक्षण में एक महत्वपूर्ण योगदान करता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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