भूगोल / Geography

पर्यावरण का स्वरूप | Structure of Environment in Hindi

पर्यावरण का स्वरूप | Structure of Environment in Hindi

पर्यावरण का स्वरूप – पर्यावरण में भौतिक तथा नैतिक तत्व होते हैं जिन्हें जैविक तथा अजैविक घटक भी कहते हैं। इस प्रकार पर्यावरण का विभाजन दो घटकों में किया जाता है वह उसका स्वरूप भी होता हैं-

(1) भौतिक अथवा अजैविक पर्यावरण (Physical or abiotic) तथा

(2) जीव अथवा जैविक पर्यावरण (Biological or biotic) ।

भौतिक तत्वों की विशेषताओं के आधार पर इन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया गया है- (अ) ठोस पदार्थ (ब) तरल पदार्थ तथा (स) गैस पदार्थ। ठोस पदार्थों में पृथ्वी तथा भूमि को सम्मिलित करते हैं, तरल पदार्थों में जल को तथा गैस पदार्थों के लिए वायु तथा वायुमण्डल को सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार भौतिक पर्यावरण को तीन वर्गों – भूमण्डल, वायुमण्डल तथा जलमण्डल में विभाजित किया जाता है। इन्हें उपवर्गों में भी विभाजित किया गया जैसे-भू-मण्डल को पहाड़, पठार, मैदान पर्यावरण में विभाजित करते हैं । इसी प्रकार अन्य मण्डलों का भी उपविभाजन किया जाता है इसका विस्तृत विवरण भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है।

जैविक तत्वों के पर्यावरण में पौधों तथा जानवरों व मनुष्यों को सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार जैविक पर्यावरण को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-पौधों का वातावरण तथा जानवरों व जीवों का वातावरण। सभी जीव एक सामाजिक समूह में कार्य करते हैं तथा अपने कार्य हेतु पदार्थों को भौतिक पर्यावरण से लेते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक पर्यावरण उत्पन्न करती है। मानव अधिक सभ्य तथा कुशल प्राणी है इसकी सामाजिक व्यवस्था बहुत ही सुव्यवस्थित है। मनुष्य के तीन महत्वपूर्ण पक्ष होते हैं- भौतिक, सामाजिक तथा आर्थिक, इनकी विशेषताएँ एक दूसरे से भिन्न होती है।

भौतिक मानव-

भौतिक वातावरण से मूल तत्वों को प्राप्त करता है जैसे भूमि, वायु, पानी, तथा भोजन आदि।

सामाजिक मानव-

सामाजिक व्यक्ति, संस्थाओं की स्थापना करता है। कानून बनाता है सुरक्षा हेतु साधनों की व्यवस्था करता है।

आर्थिक मानव-

भौतिक तथा जैविक साधनों एवं स्रोतों का अपनी कुशलता तथा तकनीकी से उपयोग करता है।

इस प्रकार मनुष्य तथा पर्यावरण के मध्य अन्तःप्रक्रिया होती है जिससे पदार्थों एवं ऊर्जा का संचालन होता रहता है। इसके फलस्वरूप पर्यावरण में सन्तुलन बना रहता है।

भौतिक पर्यावरण को जलवायु की परिस्थितियों के रूप में समझा जाता है। जलवायु व्यक्तियों की कार्यक्षमताओं, आदतों, स्वभाव को प्रभावित करती है। विभिन्न जलवायु के निवासियों की भाषा, स्वभाव, रहन-सहन में साथक अन्तर होता है। इसके अतिरिक्त सामाजिक तथा आर्थिक कार्य-प्रणाली एवं संस्थाओं में भी भिन्नता होती है। मानव वातावरण के साथ किस प्रकार की अन्तःप्रक्रिया करे, यह क्षेत्र पर्यावरण शिक्षा का है। इसकी जानकारी शिक्षा द्वारा ही दी जा सकती है।

पर्यावरण का अध्ययन विषयों से सम्बन्ध (Relationship of Environment with Susy Subjects)-

पर्यावरण के स्वरूप तथा उसके तत्वों से ही अध्ययन क्षेत्र एवं विषयों का बोध हो जाता है। पर्यावरण के तत्वों को प्रमुख रूप से दो वर्गों में विभाजित किया है-(1) भौतिक या अजैविक तत्व तथा (2) जैविक तत्व । इस प्रकार पर्यावरण भौतिक एवं जैविक तत्व सम्मिलित होते हैं। अध्ययन विषयों से सम्बन्ध अधोलिखित चार्ट से स्पष्ट किया गया है।

इस प्रकार प्रत्येक अध्ययन विषय का सम्बन्ध पर्यावरण के विशेष तत्व या तत्वों से कुछ विषय एक ही तत्व का अध्ययन करते हैं। जैसे-वनस्पति विज्ञान तथा जीव-विज्ञान तथा अन्य विषय एक से अधिक तत्वों का अध्ययन करता है- जैसे-कृषि विज्ञान में भौतिक एवं जैविक दोनों ही तत्वों का अध्ययन किया जाता है। इसी प्रकार भूगोल विषय का क्षेत्र सम्पूर्ण पर्यावरण का अध्ययन करता है। मनुष्य भी पर्यावरण का एक तत्व है तथा पर्यावरण को प्रभावित करता है। मनुष्य तथा पर्यावरण के मध्य अन्तःप्रक्रिया होती हैं। जिसका अध्ययन कई विषयों में किया जाता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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