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पारिस्थितिकी की परिभाषा | पारिस्थितिकी की विशेषताएँ | Definition of ecology in Hindi | Characteristics of ecology in Hindi

पारिस्थितिकी की परिभाषा | पारिस्थितिकी की विशेषताएँ | Definition of ecology in Hindi | Characteristics of ecology in Hindi

पारिस्थितिकी की परिभाषा

हैकल (Hacckel) के अनुसार, “पारिस्थितिकी उन सभी जटिल पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन है जो डार्विन के अनुसार जीवन संघर्ष से सम्बद्ध है।” वे आगे कहते हैं कि “पारस्थितिकी प्रकृति की अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित ज्ञान है। अर्थात् यह प्राणियों के कार्बनिक एवं अकार्बनिक पर्यावरण के साथ सम्पूर्ण सम्बन्धों का अध्ययन है। इससे प्राणियों के उन सभी अन्य प्राणियों और वनस्पतियों के साथ जो उनके सम्पर्क में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से आते हैं, मैत्रीपूर्ण अथवा शत्रुतापूर्ण सम्बन्धों का भी समावेश है।

अमेरिका के फ्रेडरिक क्लीमेंट्स (Clements) के अनुसार “पारिस्थितिकी जैव समुदाय का विज्ञान है।” प्राणि पारिस्थितिकीविज्ञ चाल्ल्स एल्टन (Elton) के अनुसार, “पारिस्थितिकी प्राणियों का सामाजिक व अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित विज्ञान-सम्मत प्रकृति विज्ञान है।” भारत के प्रमुख पादप पारिस्थितिकीविज्ञ आर. मिश्रा के अनुसार, “जीवों के आकार कार्यों और कारकों की प्रक्रियाओं का अध्ययन पारिस्थितिकी है।” विलिंग्स (Willings) के अनुसार, “वनस्पतियों और प्राणियों के पर्यावरण के साथ सम्बन्धों को समझने का प्रयास ही पारिस्थितिकी है जिससे ज्ञात होता है कि वे कहाँ, कैसे और क्यों रहते हैं।”

क्रिस्टमैन (Christman) के अनुसार, “पारिस्थितिकी जैविकीय तत्वों का उनके रासायनिक और भौतिक पर्यावरण के साथ प्रक्रियाओं का अध्ययन है या जैविक और अजैविक पर्यावरण के मध्य की प्रक्रियाओं का अध्ययन है ।” ई. पी. ओडम (Odum) के अनुसार, “पारिस्थितिकी प्रकृति की संरचना और कार्य प्रणाली का अध्ययन है।” प्रो. सत्येश चक्रवर्ती (Satyesh Charkraberty) के अनुसार, “पारिस्थितिकी वह विज्ञान है जो समस्त जैविकीय जीवों के अन्तर्सम्बन्धों व उन सभी के भौतिक पर्यावरण के सम्बन्धों का अध्ययन है जो उनके वातावरण क्षेत्र में स्थित हो।” टी. एन. खुशु (Khoshoo) के अनुसार, “पारिस्थितिकी जैविक तत्वों तथा उनके पर्यावरण के मध्य परस्पर सम्बन्धों का विज्ञान है।”

जैसे-जैसे यह स्पष्ट होता गया कि जीवों को उनके पर्यावरण से पृथक नहीं किया जा सकता है, पारिस्थितिकी का क्षेत्र भी बढ़ता गया। आजकल पृथ्वी को समस्त जीवों और वायुमण्डल सहित एक इकाई माना जाता है जिसे जैव-मण्डल (Biosphere) या पारिस्थितिकी मण्डल कहा गया है। जैव मण्डल को सुविधानुसार छोटी-छोटी इकाइयों में विभक्त किया जा सकता है जहाँ जीव व पर्यावरण निरन्तर आपस में तथा एक दूसरे के साथ पारस्परिक प्रक्रियार रहते हैं। इन छोटी इकाइयों को पारिस्थितिकी तंत्र की संज्ञा दी गई है। इन्हीं पारिस्थितिकी तंत्रों के अध्ययन को ही पारिस्थितिकी कहा गया है।

पारिस्थितिकी की विशेषताएँ

  1. पारिस्थितकी के अन्तर्गत विशाल प्रकृति के स्वरूप तथा कार्यों का ज्ञान प्राप्त होता है।
  2. पारितंत्र तथा उनके वातावरण के सम्बन्धों के विश्लेषण का अध्ययन करता है।
  3. यह वैज्ञानिक अध्ययन का एक आयाम है जिसमें जीव-प्राणियों के कल्याण हेतु नियंत्रण तथा संचालन का अध्ययन किया जाता है।
  4. पारिस्थितिकी में प्राणियों तथा उनके वातावरण के सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन है।
  5. यह पारितंत्र का विज्ञान है। पारितंत्र परिस्थितिकी की इकाई होती है।
  6. इसमें प्राणियों तथा उनके वातावरण में आन्तरिक सम्बन्धों तथा आन्तरिक निर्भरता का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।
  7. पारिस्थितिकी एक दार्शनिक विचारधारा भी है इसमें विश्व जीवन का अर्थात् प्राकृतिक प्रक्रियाओं के रूप में अध्ययन किया जाता है।
  8. पारिस्थितिकी वह विज्ञान है जिसमें सम्पूर्ण प्राणियों तथा उनके सम्पूर्ण वातावरण के सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
  9. पारिस्थितिकी पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन है जो पर्यावरण की अन्तःक्रियाओं के विस्तार, वितरण, पर्याप्तता, उत्पादकता एवं विकास की दृष्टि से नियन्त्रित एवं संचालित करती है।
  10. पारिस्थितिकी में प्राणियों तथा उनके वातावरण के आन्तरिक सम्बन्धों, प्राणियों के आन्तरिक सम्बन्धों तथा जीवों के मध्य आन्तरिक सम्बन्धो के बारे में अध्ययन किया जाता है।

पारिस्थितिकी का क्षेत्र

जैविक पारिस्थितिकी के अन्तर्गत निम्नलिखित दो प्रवृत्तियाँ हैं-

(1) स्व-पारिस्थितिकी- स्व पारिस्थितिकी में अलग-अलग पौधों और प्राणियों की जातियों के बीच तथा उनकी संख्या अर्थात् एक जाति के जीवित पौधों व प्राणियों की संख्या और उनके पर्यावरण का अध्ययन किया जाता है।

(2) सह-पारिस्थितिकी- सह-पारिस्थितिकी अर्थात् जैव समूह विज्ञान या जैव-भू- समूह विज्ञान में पौधों व प्राणियों का उनके प्राकृतिक समूह में अर्थात् पारिस्थितिकी प्रणालियों में और पर्यावरण के साथ उनके सम्पर्कों का अध्ययन किया जाता है।

जैविक पारिस्थितिकी अनुसंधान के विकास की मुख्य प्रवृत्तियों ने जो बहुत पहले पैदा हुई थी सामान्य वैज्ञानिक संकल्पनाओं के विकास में अत्यधिक योगदान किया है। उदाहरण के लिए डार्विन के ‘सह-पारिस्थितिकी’ के प्रेक्षण प्राणि आकारिकी के अध्ययन के साथ मिलकर उनके क्रम-विकास के सिद्धान्त के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गई है। पर्यावरण के अन्दर जीवित अंगियों के पारिस्थितिक अनुकूलन की भूमिका से सम्बन्धित हैकल के विचार भी ‘क्रम विकास के सिद्धान्त’ के लिए महत्वपूर्ण थे। अनुकूलन की संकल्पना के स्थापित हो जाने के फलस्वरूप एक नए वैज्ञानिक क्षेत्र का उद्भव हुआ जो हैकल द्वारा दिए गए पारिस्थितिकी के नाम से विख्यात हुआ। सह-पारिस्थितिकी के विचारों के स्रोत जलवायु और पौधों की जातियों के मध्य के सम्बन्ध पर वोन हम्बोल्ट की रचनाएँ भी प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त कुछ रूसी वैज्ञानिकों ने भी मनुष्य द्वारा प्रकृति के सक्रिय रूपान्तरण पर ध्यान दिया था। जैव-प्रकृति के अध्ययन के प्रति पारिस्थितिकी दृष्टिकोण को जैविक विज्ञानों की सीमा से बाहर निकले पर्याप्त समय बीत चुका है। और अब इसमें विज्ञान के अन्य क्षेत्रों के लिए भी सामान्य बनने की स्पष्ट प्रवृत्ति पैदा हो गई है।

वैज्ञानिक और तकनीकी क्रान्ति ने सम सामयिक समाज तथा प्रकृति के बीच के सम्बन्धों को बहुत अधिक जटिल बना दिया है। इसका प्रमुख कारण प्राकृतिक संसाधनों का गहनतम उपयोग, औद्योगीकरण और नगरीकरण की प्रक्रिया द्वारा प्रकृति पर मनुष्य के प्रभाव की सम्भावनाएँ बढ़ी हैं। इससे मनुष्य को भौतिक समृद्धि तो मिली है किन्तु इसके साथ ही पर्यावरण में अवरोध भी उत्पन्न हुआ है जिससे अनेक अवांछित दुष्परिणाम के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का अभाव भी अनुभव हुआ। इन समस्याओं से बचने के लिए प्रकृति की सुरक्षा, पर्यावरण में सुधार, प्राकृतिक संसाधनों के अधिक विवेकपूर्ण उपयोग व प्राकृतिक संसाधनों पुर्नवीकरण के समर्थन में एक व्यापक सामाजिक आन्दोलन प्रारम्भ हो गया है।

अमेरिका के पर्यावरणीय विज्ञान के विश्व कोष में पारिस्थितिकी शब्द की चार संकल्पनाएँ प्रस्तुत की गई हैं-

(1) पारिस्थितिकी (2) व्यावहारिक पारिस्थितिकी (3) मानवीय पारिस्थितिकी (4) क्रिया वैज्ञानिक (पौधों की) पारिस्थितिकी।

इस विश्वकोष में प्रत्येक पारिस्थितिकी के मध्य अन्तर स्पष्ट किया गया है।

पारिस्थितिकी को “अंगियों तथा उसके पर्यावरण के मध्य के सम्बन्धों अथवा पर्यावरणीय जैविकीय” कहा गया है। इस अध्ययन का विषय अंगियों के समूहों की जीविकी तथा भूमि, समुद्र तथा मीठे जल में उनके साथ सम्बन्धित कार्यिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करना बताया है। सामान्यतया इसे जीवित प्रकृति की संरचना और कार्यों के अध्ययन के रूप में लिया गया है तथा जैविकी का एक मुख्य उप भाग माना गया है। इसलिए पूर्ण पारिस्थितिकी जैविकी की एक मुख्य शाखा ही नहीं अपितु उसकी सभी शाखाओं का अभिन्न भाग भी है।

मानवीय पारिस्थितिकी को ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें सिर्फ जैविकी ही नहीं, अपितु प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के अनेक क्षेत्र भी सम्मिलित हैं। उदाहरण के लिए व्यक्तियों की पारिस्थितिकी के आधार रूप में शरीर क्रिया विज्ञान, हाईजीन, मनोविज्ञान तथा जलवायु विज्ञान और सामाजिक पारिस्थितिकी के आधार रूप में वनस्पति विज्ञान, जनांकिकीय, अर्थशात्र, भूगोल, भू-विज्ञान, इतिहास, राजनीति विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और प्राणि विज्ञान। इसके अतिरिक्त इसमें व्यावहारिक शाखाओं के रूप में कृषि व पशु फार्मिंग, वनों व मत्स्य क्षेत्रों का संरक्षण, स्वास्थ्य की रक्षा तथा क्षेत्रीय प्रबन्ध भी सम्मिलित किए गए हैं।

आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार पारिस्थितिकी प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान के मिलन स्थल पर विकसित एक विज्ञान है जिसमें पारिस्थितिकीय वैज्ञानिक चिंतन का विशेष महत्व है। पारिस्थितिकी विज्ञान पारिस्थितिकी को केवल एक वैज्ञानिक विषय के रूप में ही नहीं लेता है अपितु एक ऐसे दृष्टिकोण के रूप में भी लेता है जिसमें जीवन और पर्यावरण को प्रभावित करने वाली प्रत्येक वस्तु का जिसमें मानव समाज व उसके कार्य सम्मिलित हैं, अध्ययन करता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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