प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना | Criticism of Plato’s ideal state in Hindi
प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना | Criticism of Plato’s ideal state in Hindi
प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना
प्लेटो के आदर्श राज्य की अधिक आलोचना की गई है। आलोचकों में प्रमुख अरस्तू हैं। जो दर्शन की सम्प्रभुता के स्थान पर कानून की सम्प्रभुता चाहते हैं। अन्य आलोचक डनिंग, वार्कर, सेबाइन और मैक्सी आदि हैं। अरस्तू तथा बार्कर लिखते हैं, “प्लेटो का आदर्श राज्य एक आध्यात्मिक निरंकुशवाद है। अरस्तू के कथनानुसार, “प्लेटो ने आदर्श राज्य में कानून की उपेक्षा की है।” मैक्सी का कहना है कि “आदर्श राज्य कल्पना की कोरी उडान है।” बार्कर के कथनानुसार, “प्लेटो के आदर्श राज्य में ता्किक असंगति है।” अरस्तू के शब्दों में, “आदर्श राज्य में प्लेटो समाज का अभिभावक और उत्पादक वर्ग में विभाजन कर देता है जो वर्ग संघर्ष का कारण हो सकता है।” आदर्श राज्य की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की गई है।
(1) सिद्धान्तों की अव्यावहारिकता- कुछ आलोचकों के अनुसार प्लेटो का आदर्श राज्य काल्पनिक है, आदर्श राज्य के प्रमुख तत्त्व जैसे परिवार एवं सम्पत्ति का साम्यवाद, शिक्षा- योजना एवं दार्शनिक शासक की राज्य सभी में व्यावहारिकता की कमी है।
(2) वर्गों का अवैज्ञानिक वर्गीकरण- कुछ आलोचकों के अनुसार प्लेटो के आदर्श राज्य का तीन वर्गों में विभाजन वैज्ञानिक नही है। यह आवश्यक नही है कि इन तीन प्रवृत्तियों के दारा ही वर्ग विभाजन हो। एक व्यक्ति में एक साथ कई प्रवृत्तियां प्रमुख हो सकती हैं। यह भी आवश्यक नहीं है कि मनुष्य केवल तीन प्रवृत्तियों द्वारा ही चलता हो और किसी व्यक्ति में एक ही प्रवृत्ति का आधिक्य जीवन भर बना रहे; अतः यह अवैज्ञानिक है।
(3) बहसंख्यकों की उपेक्षा- प्लेटो के आदर्श राज्य में उत्पादक वर्ग को कोई महत्त् नहीं दिया गया है। उनके लिये वह न कोई शिक्षा-योजना प्रस्तुत करता. है, न साम्यवाद की कल्पना; अतः वह बहुसंख्यकों की उपेक्षा करता है।
(4) दास प्रथा का समर्थन- प्राचीन यूनान राज्य में सभी स्थानों पर दास प्रथा प्रचलित थी। प्लेटो इस सार्वभौमिक प्रथा का तनिक भी वर्णन नहीं करता; अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उनकी अवस्था में वह किसी प्रकार के परिवर्तन के पक्ष में नहीं था। न्याय के अंग्रदूत द्वारा दास-प्रथा का मौन-समर्थन न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता ।
(5) अधूरी न्याय-व्यवस्था- प्लेटो के आदर्श राज्य की न्याय-व्यवस्था भी अधूरी है। यह केवल कर्त्तव्य का ज्ञान कराती है। इसमें अधिकारों का कोई वर्णन नहीं ।
(6) कानून की उपेक्षा- प्लेटो के आदर्श राज्य में कानून का कोई वर्णन नहीं है। बिना कानून के शासन केवल एक कल्पना ही लगेगा। सम्भवत: प्लेटो ने इस त्रुटि को स्वयं अनुभव किया तथा अपने अगले ग्रन्थ में कानून को उपयुक्त स्थान दिया; अत: कानून का अभाव भी आदर्श राज्य की एक बहुत बड़ी कमी है।
(7) साम्यवाद की दूषित प्रणाली- प्लेटो द्वारा साम्यवाद की व्यवस्था भी आलोचना का विषय है। साम्यवादी व्यवस्था केवल दो वर्गों के लिए है; अत: यह उत्पादक वर्ग की उपक्षा करती है। प्लेटो स्त्री-पुरुष में केवल शारीरिक बनावट का ही अन्तर मानता है जो वस्तुतः गलत है। पति-पत्नी के सम्बन्ध केवल यौन सम्बन्ध ही नहीं वरन् आध्यात्मिक सम्बन्ध भी हैं।
(৪) बहुसंख्यकों की शिक्षा की उपेक्षा- प्लेटो की शिक्षा योजना भी इसी प्रकार से अधूरी है। यह योजना व्यावहारिक नहीं है। शिक्षा की अवधि लम्बी है। उसकी शिक्षा-योजना व्यक्ति की अपेक्षा राज्य के हित को अधिक महत्त्व देती है। इस शिक्षा-योजना में देश का बहुसख्यक वर्ग अर्थात् उत्पादक वर्ग नहीं आता।
(9) अधिनायकतन्त्र का समर्थन- प्लेटो के आदर्श राज्य में दार्शनिक शासक की स्थिति बहुत कुछ एक तानाशाह जैसी ही है क्योंकि उस पर किसी कानून अथवा परम्परा आदि का नियन्त्रण नहीं है। उसके लिए जनमत को देखना भी आवश्यक नहीं, अतः प्लेटी उसको निरंकुश बना डालता है।
(10) वैयक्तिक स्वतंत्रता का अभाव- प्लेटो के आदर्श राज्य में व्यक्ति स्वतंत्र नहीं है। यह एक राज्य का रूप रखता है। उसके आदर्श राज्य में व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास सम्मव नहीं है।
(11) नैतिकता पर विशेष बल- प्लेटो एक नैतिकवादी विचारक है न कि राजनीतिक। उसका यह विचार कि राज्य में नागरिकों को कार्य का संचालन करना चाहिए गलत है। इसके लिये वह राज्य के अन्य आवश्यक तत्वों, उच्च अधिकारियों को नियुक्ति, न्यायालयों की स्थापना आदि के बारे में कुछ भी नहीं बताता है।
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