प्लेटो स्त्रियों का साम्यवादी सिद्धांत | स्त्रियों के साम्यवाद की आलोचना
प्लेटो स्त्रियों का साम्यवादी सिद्धांत | स्त्रियों के साम्यवाद की आलोचना
स्त्रियों का साम्यवाद (Communism of Wifes)
प्लेटो अपने साम्यवाद को सम्पत्ति तक ही सीमित नहीं रखता। वह परिवार जैसी संस्था पर भी चोट करता है। प्लेटो का पारिवारिक साम्यवाद एक प्रकार से परिवारों का राष्ट्रीयकरण है। वस्तुतः प्लेटो के साम्यवाद का दूसरा पक्ष स्त्रियों का साम्यवाद है। प्लेटों संरक्षक वर्ग को न केवल सम्पत्ति से ही वंचित करता है वरन् वह उसे परिवार से भी वंचित करना चाहता है। प्लेटो का विचार था कि संरक्षक तथा सैनिक वर्ग को न केवल सम्पत्ति से ही वरन् परिवार के आकर्षण से भी दूर रहना ही उचित है । प्रोफेसर बार्कर के शब्दों में, “इस प्रकार संरक्षक वर्ग के लिए पारिवारिक जीवन को समाप्त करना व्यक्तिगत सम्पत्ति के उन्मूलन का एक उपसिद्धांत प्रतीत होता है।” इस भाँति प्लेटो के अनुसार संरक्षक वर्ग का सम्पत्ति संग्रह से ध्यान हटाने के लिये परिवार का उन्मूलन अपेक्षित है। प्लेटो ने स्त्रियों के साम्यवाद के विषय में दो बातें कही है- प्रथम स्रियों की दासता से मुक्ति तथा द्वितीय विवाह प्रणाली में सुधार।
(1) स्त्रियों की दासता से मुक्ति- प्लेटो यूनानी ख्त्रियों की तत्कालीन स्थिति से अधिक दुःखी था| यूनान में उस समय स्त्रियों की बड़ी दुर्दशा थी। स्त्रियों को सामाजिक जीवन में भाग लेने का अधिकार नहीं था। लड़कियों का विवाह अल्प आयु में ही कर दिया जाता था, उनका कार्य केवल सन्तान उत्पन्न करना ही था । विवाह पुरुषों की इच्छानुसार हुआ करते थे। प्लेटो स्त्रियों को इस स्थिति से बहुत दुखी था; अत: उसने स्त्री स्वतन्त्रता का समर्थन किया। प्लेटो स्त्रियों को घर की चाहारदीवारी से निकाल कर बाहर लाना चाहता था। उसकी मान्यता थी कि स्त्रियों में भी वे सभी क्षमताएँ निहित होती हैं जो शासक वर्ग में पाई जाती हैं; अत: प्लेटो स्त्रियों को परिवार की सेवा से मुक्त करके राज्य की सेवा में लगाना चाहता था। प्लेटो की मान्यता है कि स्तरियाँ भी पुरुषों के समान राज्य के संरक्षक का कार्य कर सकती हैं; अतः वह स्त्रियों के लिये पुरुषों के समान ही शिक्षा एवं प्रशिक्षण का प्रबन्ध करता है। नेटलशिप के शब्दों में, “प्लेटो यह तर्क उपस्थित करते हैं कि कोई भी इस बात में सन्देह नहीं कर सकता है कि राज्य के हित के लिये उसमें निवास करने वाली स्त्रियों तथा पुरुषों को उतना ही अच्छा होना चाहिये जितना कि सम्भव हो और यह कि यदि शिक्षा का एक निश्चित पाठ्यक्रम अच्छे पुरुषों का निर्माण करना है तो यह अच्छी स्त्रियों का भी निर्माण करेगा ।”
इस प्रकार प्लेटो राज्य के प्रशासन तथा उसकी रक्षा-व्यवस्था में स्तरियों को पुरुषों के समान महत्त्व प्रदान करता है।
(2) विवाह-व्यवस्था में सुधार- प्लेटो जहोाँ एक ओर स्तरियों को पुरुषों के समान स्थान प्रदान करने के पक्ष में था वहाँ वह ख्रियों तथा पुरुषों के यौनि सम्बन्धों में भी सुधार करना चाहता था| प्लेटो विवाह को ख्री-पुरुषों के मध्य आध्यात्मिक सम्बन्ध न मानकर दो विरोधी यौन का मिलन मानता है। उसके अनुसार विवाह का उद्देश्य सन्तानोत्पत्ति है। वह विवाह संस्था का राज्य की भलाई का साधन मानता है: अत: वह उसमें सुधार करना चाहता है। परिवार के साम्यवाद की उद्देश्य काम-वासना की पुर्ति मात्र नहीं है, वरन प्लेटो उसके निम्नलिखित तीन आधार बताता है-
(1) राजनीतिक आधार- प्लेटो स्त्री तथा पुरुष में राजनीतिक एकता लाना चाहता है। उसके अनुसार स्त्रियाँ भी वे सभी कार्य कर सकती हैं जो पुरुष कर सकता है। राज्य में वे उसी प्रकार भाग ले सकती हैं जैसे पुरुष । यह व्यवस्था व्यक्तिगत एवं राजनीतिक जीवन की विषमता को दूर करती है; अतः स्त्रियों को भी पुरुषों के समान अधिकार देना उचित है।
(2) नैतिक आधार- प्लेटो का स्त्रियों के साम्यवाद के पीछे नैतिक उद्देश्य भी निहित है। वह चाहता था-कि उसके आदर्श राज्य में उत्पन्न सन्तान की जानकारी माता पिता को न हो। इससे वे व्यक्तिगत स्वार्थ से दूर रहेंगे और समाज की सेवा ईमानदारी से कर सकेंगे; अतः वह अपने राज्य में यह व्यवस्था करता है कि एक निश्चित समय तक प्रत्येक बच्चे का पालन- पोषण राज्य द्वारा किया जायेगा। ये बच्चे राज्य द्वारा स्थापित शिशु-गृहों में रहेंगे। इस साम्यवादी व्यवस्था में मेरे-तेरे की भावना नहीं होगी। आपस में मतभेद नहीं होगा तथा सभी प्रेम से एक साथ रहेंगे। इस प्रकार सम्पूर्ण राज्य में एकता स्थापित हो जायेगी। प्रोफेसर बार्कर के शब्दों में, “न्लेटो के अनुसार राज्य एकता के बन्धन के अतिरिक्त दूसरी कोई अच्छी वस्तु नहीं हो सकती । राज्य के सर्वाधिक हित में और राज्य के अधिक सुख के लिये यह आवश्यक है। कि इसके सदस्य अपने को शरीर का वह अंग ही समझें तथा जहाँ तक सम्भव हो सके उस एकता के निकट पहुँच जायें जो एक व्यक्ति की होती है।” अतः प्लेटो की विवाह-सुधार योजना का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य राज्य के शासक वर्ग में एकता की स्थापना करना है।
(3) सुप्रजनन का आधार- प्लेटो अपनी विवाह सुधार की योजना के द्वारा मनोवैज्ञानिक उद्देश्य की पूर्ति करना चाहता है। उत्तम सन्तान पैदा करने के लिये वह सुप्रजनन के आधार को भी मान्यता देता है। जिस प्रकार अच्छी नस्ल के जानवरों का समागम कराया जाता है, उसी प्रकार श्रेष्ठ सन्तान के लिये वह श्रेष्ठ स्त्री-पुरुष का सहवास उचित मानता है। वह अस्थायी विवाहों के पक्ष में है। प्लेटो के अनुसार स्त्रियाँ 20-40 वर्ष की अवस्था तक एवं पुरुष 25-55 वर्ष तक योग्य सन्ताने उत्पन्न कर सकते है। प्रोफेसर बार्कर के शब्दों में, “पुरुष एवं स्त्री संरक्षक एक सामान्य स्थल पर रहते हुये और एक साथ सामान्य कार्य. करते हुये स्वाभाविक रूप से एक दूसरे से यौन सम्बन्ध स्थापित करेंगे, परन्तु यह यौन-सम्बन्ध नियमित अवश्य होना चाहिये और इसे राज्य के सर्वाधिक लाभ को ध्यान में रखते हुये नियमित किया जायगा।” इस प्रकार प्लेटो के स्रियों के साम्यवाद का उद्देश्य राज्य को आदर्श रूप देने के लिये अच्छी सन्तान उत्पन्न करना है।
स्त्रियों के साम्यवाद की आलोचना
(1) प्लेटो ने परिवार जैसी महत्त्वपूर्ण संस्था को समाप्त करने का सुझाव दिया है जो बड़ा ही अव्यावहारिक है। मनुष्य परिवार में अपना बचपन व्यतीत करता है तथा नैतिकता की अनेक बातें सीखता है। परिवार में ही बच्चे प्रेम, सौहार्द्र, उत्तरदायित्व एवं कर्त्तव्य-पालन आदि सीखते हैं। परिवार से उन्हें पृथक् कर देने से उनका स्वाभाविक विकास रुक जायेगा।
(2) स्त्रियों को पुरुषों के समकक्ष स्थान प्रदान करना व्यावहारिक नहीं है। प्लेटो स्त्री तथा पुरुष के मध्य मूलभूत अन्तर का ही उपेक्षा कर देता है। पुरुष-स्त्री की आपेक्षा कठोर होता है। उनमें कठिनाइयों का साहसपूर्ण ढंग से सामना करने की क्षमता रहती है। स्त्रियों में इन गुणो का अभाव पाया जाता है।
(3) प्लेटो ने अपनी साम्यवादी योजना में पैतृक गुणों पारिवारिक पर्यावरण तथा परम्पराओं की उपेक्षा कर दी है जबकि मनुष्य के विकास में इनकी बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(4) अरस्तू ने प्लेटो के स्त्रियों के साम्यवाद की आलोचना करते हुये कहा है कि यह सामाजिक एकता के स्थान पर सामाजिक असंतुलन उत्पन्न करता है।
(5) प्लेटो के साम्यवाद का एक दोष यह है कि वह स्त्रियों को उनकी स्रियोचित गुणों तथा कार्यों से दूर रखकर उन्हें मनुष्योचित कार्यों को करने के लिये विवंश करता है।
(6) प्लेटो ने स्त्रियों को सन्तानोत्पत्ति की मशीन मात्र बना दिया है। वह यह भूल जाता है। कि स्त्री तथा पुरुष में यौन-सम्बन्ध के अतिरिक्त आध्यात्मिक एवं भावनात्मक सम्बन्ध भी होता है जो अधिक दृढ़ एवं स्थायी होता है।
(7) स्त्रियों के साम्यवाद से समाज में आत्म-संयम के समाप्त होने की सम्भावना है। इससे समाज में उच्छृंखलता फैलने का डर है ।
(8) राज्य द्वारा स्त्री तथा पुरुष के जोडों का निर्धारण अव्यावहारिक है।
निष्कर्ष- इस प्रकार प्लेटो का साम्यवाद अव्यावहारिकै है । वह सामाजिक कुरीतियों का निदान आध्यात्मिक साधन से करना चाहता है। प्लेटो अपने आदर्श राज्य में संरक्षक तथा सैनिक वर्ग को सामाजिक तथा आर्िक रूप से शेष समाज से अलग कर देता है। संरक्षक वर्ग समाज के उन अनुभवों से वंचित रह जाता है जो कि उत्पादक वर्ग को प्राप्त होते हैं। इसी कारण प्लेटो के साम्यवाद को प्रोफेसर बार्कर ने आधा-साम्यवाद (Half-Communism) कहा है।
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