ऊर्जा संकंट क्या है?

ऊर्जा संकंट क्या है? | What is energy consumption in Hindi 

ऊर्जा संकंट क्या है? | What is energy consumption in Hindi 

ऊर्जा संकंट क्या है?

ऊर्जा संकट-तीव्र औद्योगिकरण, बढ़ती जनसंख्या, उच्च जीवनस्तर, अधिकाधिक यंत्रीकरण और अविवेकपूर्ण दोहन के कारण पारम्परिक ऊर्जा का भण्डार तेजी से घटा है और साथ ही उसकी कीमत में बेतहाशा वृद्धि हुई है। फलतः ऊर्जा संकट की दोहरी मार आधुनिक समाज को झेलनी पड़ रही है। हाल के वर्षों में विकासशील देश अपनी आर्थिक दशा को सुधारने के लिए हर सम्भव प्रयास में जुट गये हैं जिसके फलस्वरूप इन देशों में ऊर्जा खपत कई गुनी बढ़ गई है। साथ ही तेल उत्पादक देशों ने 1970 के बाद तेल की कीमत में कई गुनी वृद्धि कर दी है जिससे विकसित और विकासशील देश संकट का सामना करने के लिए बाध्य है। यह भी उल्लेखनीय है कि पारम्परिक ऊर्जा की सुलभता के कारण गैर पारम्परिक स्त्रोतों के विकास पर उचित ढंग से ध्यान नहीं दिया गया और अब खपत की सीमा बढ़ जाने के कारण कठिनाई का अनुभव किया जा रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट (Development Report, 1992) के अनुसार विकसित और विकासशील देशों में ऊर्जा स्रोतों का उपयोग समान नहीं है।

विश्व में जीवाश्म वर्ग के ऊर्जा स्रोतों का उपयोग विगत दशकों में तीव्र गति से बढ़ा जिसके कारण जहां इन स्रोतों के भण्डार में तेजी से कमी आई है, वहीं प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। विकसित राष्ट्र अपने उद्योग, यातायात और सुख सुविधा को बनाये रखने के लिए यदि इसी गति से इन स्रोतों का उपयोग करते रहे तो तीन प्रकार के संकटों का प्रकट होना अनिवार्य है।

  1. 2030 ई0 के बाद परम्परिक ऊर्जा स्रोतों में केवल कोयला और गैस ही उपलब्ध होंगे। फलतः आर्थिक उत्पादन और परिवहन पर सबसे अधिक कुप्रभाव पड़ेगा।
  2. प्रदूषण इतना बढ़ सकता है कि मानव-स्वास्थ्य को बचाने के लिए राष्ट्रीय आय का एक महत्वपूर्ण अंश खर्च करना पड़ेगा।
  3. विकासशील देशों का विकास अवरुद्ध होगा क्योंकि उनकी कम आय के कारण महंगे ऊर्जा स्रोतों का क्रय कठिन हो जायेगा।

इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए विश्व बैंक की रिपोर्ट में इंगित किया गया है कि अविलम्ब शाश्वत स्रोतों (Sustainable Sources) यथा-पन-बिजली, बायोगैस, पवन-शक्ति जैसे स्रोतों का तीव्रगति से विकास आवश्यक है। पेट्रोल और कोयला आधारित तकनीकों की प्रधानता के कारण इनको किसी भी कीमत पर प्राप्त करने की जैसे होड़-झपटी के कारण पेट्रोल उत्पादन करने वाले देश उसकी कीमत तेजी से बढ़ाते जा रहे है।

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