भूगोल / Geography

हरित क्रान्ति की सफलता के लिए सुझाव | SUGGESTIONS FOR THE SUCCESS OF GREEN REVOLUTION in Hindi

हरित क्रान्ति की सफलता के लिए सुझाव | SUGGESTIONS FOR THE SUCCESS OF GREEN REVOLUTION in Hindi

हरित क्रांति के स्थायित्व तथा उसकी सफलता के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जाते हैं:

(1) संस्थागत परिवर्तनों को प्रोत्साहन- हरित क्रान्ति की सफलता के लिए भूमि सुधार कार्यक्रमों को प्रभावी और विस्तृत रूप से लागू किया जाना चाहिए। बंटाईदारों को स्वामितव का अधिकार दिलाया जाना चाहिए। सीमा निर्धारण से प्राप्त अतिरिक्त भूमि को भूमिहीन कृषकों में वितरित किया जाना चाहिए। चकबन्दी को प्रभावी बनाकर जोतों के विभाजन पर प्रभावी रोक लगायी जानी चाहिए। हरित क्रांति की सफलता के लिए संस्थागत सुधारों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। कृषि भूमि के नवीनतम रिकॉर्ड तैयार करने की आवश्यकता है। जोत की उच्चतम सीमा के परिणामस्वरूप प्राप्त हुई अतिरिक्त भूमि को छोटे किसानों में बाँटना चाहिए। काश्तकारों के हितों की रक्षा की जाए। इसके अतिरिक्त जोतों के विभाजन को रोका जाए तथा चकबन्दी को पूर्णतः लागू किया जाए। इन सुधारों से निर्धन किसानों को भी लाभ होगा।

(2) कृषि वित्त की सुविधा- कृषि वित्त की सुविधाएं बढ़ाते समय छोटे किसानों को रियायती दर पर साख की सुविधा उपलब्ध करायी जानी चाहिए, ताकि वे आवश्यक उन्नत बीज, रासायनिक खाद तथा कृषि उपकरण क्रय कर सक।

(3) रोजगार के अवसरों में वृद्धि- श्रम प्रधान तकनीको को अपनाया जाना चाहिए तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बेकारी की समस्या के समाधान के लिए कटीर एवं ग्राम-उद्योगों का से विस्तार किया जाना चाहिए।

(4) सिंचाई के साधनों का विकास- हरित क्रांति को सफल बनाने के लिएसिंचाई का बहुत अधिक महत्व है। अधिक उपज देने वाले बीजों के प्रयोग के लिए सिंचाई अनिवार्य है। इसके लिए अधिक से अधिक क्षेत्र में सिंचाई की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस सन्दर्भ में सिंचाई की छोटी योजनाएं, जैसे-कुएं, नलकूप, तालाब आदि काफी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । भारत की आधी से अधिक सिंचित भूमि छोटी योजनाओं द्वारा सींची जाती है। देश में सिंचाई की सुविधाओं का पर्याप्त विकास किया जाना चाहिए ताकि कृषक अधिक उपज देने वाली किस्मों का पूरा लाभ उठा सकें। इस सन्दर्भ में लघु सिंचाई परियोजनाओं के विस्तार पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

(5) अन्य संरचनात्म्क सुधारों का विस्तार– कृषि के विकास के लिए आवश्यक बिजली, परिवहन सहित अन्य संरचनात्मक सुविधाओ का विकास किया जाना चाहिए। तभी हरित क्रान्ति अन्य फसलो एवं क्षेत्रों तक फैल सकेगी।

(6) हरित क्रांति का अंत फसलों तक फैलाव- हरित क्रांति को सफलूता के लिए यह आवश्यक है कि इसका विस्तार चावल तथा अन्य फसलों की खेती तक किया जाय। चावल के साथ दालें, कपास, गन्ना, तिलहन, जूट आदि व्यापारिक फसलों के संबंध मे भी उत्पादन वृद्धि संतोषजनक नहीं रही है। अत: इन फसलों को भी हरित क्रांति के प्रभाव मे शामिल किया जाना चाहिए। अभी तक हरित क्रांति का प्रभाव गेहूँ के उत्पादन पर ही सबसे अधिक हुआ है इसे गेहूं तक ही सीमित नहीं रहने दिया जाए। इसे चावल एवं अन्य खाद्यान्नों तथा व्यापारिक फसलों की कृषि पर भी लागू किया जाना चाहिए। चावल, दालों, तिलहन, कपास, चाय, गन्ना, पटसन आदि के उत्पादन को बढ़ाने की विशेष आवश्यकता है।

(7) छोटे खेतों और छोटे किसानों को संबद्ध करना– छोटे खेतों तथा छोटे किसानों को भी हरित क्रांति से संबद्ध करना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि (i) भूमि सुधार कार्यक्रमों को शीघ्रता और प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए, (ii) छोटे- छोटे किसानों को उन्नत बीज, खाद आदि आवश्यक चीजों को खरीदने के लिए उदार शर्तों एवं दरों पर साख सुविधाएं उपलब्ध करायी जानी चाहिए। (iii) साधारण कृषि उपकरणों की खरीद के सम्बन्ध में दी गयी सुविधाओं के अतिरिक्त बड़ी-बड़ी फार्म मशीनरी यथा-ट्रैक्टर, हार्वेस्टर आदि सरकार की ओर से किराए पर दिया जाना चाहिए। (iv) बहुत छोटी-छोटी जोतों वाले किसानों को सहकारी खेती की अपनाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

(8) समन्वित फार्म नीति- हरित क्रांन्ति की सफलता के लिए एकीकृत फार्म नीति अपनाई जानी चाहिए। इसके अन्तर्गत किसानों को उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक औषधियाँ, कृषि यन्त्र आदि उचित मूल्य पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराए जाते हैं। इससे निर्धन किसान भी पुर्ण लाभ उठा सकेंगे। इसके अतिरिक्त सरकार को समस्त कृषि उपजों की बिक्री का प्रबन्ध किया जाना चाहिए तथा उचित मूल्य पर कृषि उत्पादों को खरीदने की गारन्टी भी देनी चाहिए।

(9) व्यापक क्षेत्र- अभी तक हरित क्रांति का प्रभाव केवल पंजाब, हरियाणा तथा कुछ अन्य क्षेत्रों तक ही सीमित है यह पर्याप्त नहीं है। हरित क्रांति से पूरा लाभ उठाने के लिए इसे देश के सभी भागों में फैलना आवश्यक है। पूर्वी तथा दक्षिणी भागों में कृषि उत्पादन बढ़ाने की विशेष आवश्यकता है।

(10) बहु-फसली प्रणाली- उपजाऊ भूमि में सिंचाई का पूरा लाभ उठाने के लिए साल में एक से अधिक फसलों को बोना आवश्यक है। इससे कृषि उत्पादन बढेगा और बेरोजगारी की समस्या को कम करने में भी सहायता मिलेगी।

(11) . नई कृषि नीति में सुधार- नई कृषि नीति में दो सुधार कि जाने चाहिए- (i) जिन क्षेत्रों में अधिक खाद उपलब्ध नहीं है वहां भी खाद उपलब्ध कराकर अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग किया जाना चाहिए, जिससे उपज में वृद्धि हो सके। (ii) रासायनिक उर्वरकों के उत्पादन के लिए खनिज तेल पर आधारित तकनीक के स्थान पर कोयले पर आधारित तकनीक का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि भारत में खनिज तेल की कमी है और कोयला पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। गोबर तथा कम्पोस्ट खाद का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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