भूगोल / Geography

ओजोन क्षरण | Ozone layer degradation in Hindi

ओजोन क्षरण | Ozone layer degradation in Hindi | ओजोन परत का निर्माण | ओज़ोन परत का क्षरण | ओजोन छिद्र | ओजोन क्षरण का प्रभाव |ओजोन परत की रक्षा एवं अनुरक्षण

ओजोन क्षरण

ओजोन क्षरण (Ozone layer degradation)की क्रिया विधि के अंतर्गत ओजोन के निर्माण, ओज़ोन के विनाश तथा ओजोन के पुनर्निर्माण या अनुरक्षण को सम्मिलित करते हैं | यहां पर वायुमंडलीय ओजोन का संबंध समताप मंडल ओजोन से है | ओज़ोन परत के पतला होने के कारण पराबैगनी सौर्यिक विकिरण तरंगे अधिक मात्रा में धरातल सतह पर पहुंचती हैं जिस कारण सूर्यातप की मात्रा में वृद्धि होने से धरातलीय सतह एवं निचले वायुमंडल के तापमान में वृद्धि होती है और अंततः भूमंडलीय उष्मन होने लगता है |

 ओजोन परत का सर्वाधिक सांद्रण समताप मंडल में 12 से 35 किलोमीटर की ऊंचाई (सागर तल से) के बीच पाया जाता है | इस ओजोन परत को पृथ्वी की रक्षा कवच या पृथ्वी का छाता भी कहते हैं क्योंकि यह गैस सौर्यिक विकिरण की पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है तथा उन्हें पृथ्वी तक पहुंचने से रोकती है परिणाम स्वरूप ओजोन परत भूतल को अत्याधिक गर्म होने से रोकती है | इस गैस परत के अभाव में जीवमंडल में किसी प्रकार का जीवन संभव नहीं हो सकता क्योंकि इस ओजोन परत के अभाव में सौर्यिक विकिरण की सभी पराबैगनी किरणें भूतल तक पहुंच जाएंगे जिस कारण भूतल का तापमान इतना अधिक हो जाता है जिससे जीवमंडलीय जैविक भट्टी धमन भट्टी में बदल जाएगी, अर्थात समस्त जीवन नष्ट हो जाएगा |

ओजोन परत का निर्माण

ऑक्सीजन के तीन ऐटम से बनी गैस को ओज़ोन (O3) कहते हैं | यह हल्के नीले रंग की होती है तथा गंध तीखी होती है | ओज़ोन वायुमंडल की हर ऊंचाई पर किसी न किसी मात्रा में अवश्य विद्यमान पाई जाती है परंतु उसका वायुमंडल में सर्वाधिक सांद्रण 10 से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाया जाता है तथा इस परत में भी ओज़ोन का अधिक सांद्रण 12 से 35 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाया जाता है | इस परत को ओजोन मंडल या ओज़ोन परत कहते हैं |

ओज़ोन गैस स्थिर ना होकर अस्थिर गैस होती है क्योंकि एक तरफ इसका निर्माण होता रहता है तो दूसरी तरफ इसका विघटन एवं विनाश भी होता रहता है | 80 से 100 किलोमीटर के बीच ऑक्सीज़न (O2) के अणुओ में सौर्यिक पराबैंगनी किरणों के कारण विलगाव होने लगता है | क्षोभ मंडल में भी तड़ित झंझा के समय ऑक्सीजन या हवा में विद्युत विसर्जन के कारण O2 के अणुओ में विलगांव होता है |

O2 → O+O

ओजोन (O3) का निर्माण निम्न रूप में संपन्न होता है

उपर्युक्त क्रिया के दौरान अलग किए गए ऑक्सीजन के एक अणु (O)ऑक्सीजन के दो अणुओ (O2) से पुनः मिल जाते हैं तथा ओजोन का निर्माण करते हैं:-

O2+O+M → O3+M

या

O2+O → O3

जबकि M= तीसरे अणु तथा ऑक्सीजन के दो अणु के टकराव से उत्पन्न ऊर्जा तथा मोमेंटम संतुलन |

अधिकांश पराबैगनी किरणों का अवशोषण 30 किलोमीटर के ऊपर हो जाता है परिणाम स्वरूप 30 से 60 किलोमीटर के मध्य ही O तथा O2 का टकराव संभव होता है | इस प्रक्रिया को प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया कहते हैं |

अधिकांश समताप मंडल ओज़ोन का निर्माण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के ऊपर वायुमंडल में होता है जहां से वायुमंडलीय परिसंचरण द्वारा कुछ ओज़ोन का ध्रुवीय क्षेत्रों में ऊपर स्थित निचले वायुमंडल में परिवहन हो जाता है | ज्ञातव्य है कि ओज़ोन गैस स्वयं में अस्थिर होती है तथा इसका ऑक्सीजन में पुनः रूपांतरण भी हो जाता है यद्यपि (1) इस आयोजन का मोनाटामिक (1 एटम वाली) ऑक्सीजन से टकराव हो जाए अर्थात जब ओजोन का ऑक्सीजन के एक कण से टकरा हो जाता है तो O2 पुनः मुक्त हो जाती है तथा ओज़ोन का विनाश हो जाता है |

O3+O → O2+O2

(2) या जब ओजोन पर सौर्यिक विकिरण का प्रभाव होता है तो इस ओजोन का ऑक्सीजन में रूपांतरण हो जाता है |

ओज़ोन परत का क्षरण (Ozone layer degradation ) एक पर्यावरणीय समस्या

समतापमंडलीय ओजोन परत के क्षरण तथा विनाश को लेकर काफी विश्व व्यापी रूप धारण कर लिया है क्योंकि ओजोन परत के क्षरण तथा विनाश के भयावह समस्या ने जीव मंडल के समस्त जीवधारियों के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है | वास्तव में ओजोन परत जीव मंडलीय तंत्र के सभी जीवधारियों (पौधों, जंतुओं, सूक्ष्मजीवों तथा मानव जाति) को सूर्य की हानिकारक प्रखर पराबैगनी किरणों से बचाती है क्योंकि यह ओजोन गैस इनके अधिकांश भाग का अवशोषण कर लेती हैं | इस तरह साफ हो जाता है कि वायुमंडल में ओजोन के संतुलित स्तर में यदि किसी भी तरह का परिवर्तन होता है तो उससे जीवमंडल के जीवधारी सीधे प्रभावित होते हैं |

समतापमंडलीय ओज़ोन की अल्पता के विषय में चेतावनी देने के लिए संभवत: पहला ठोस प्रयास कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (संयुक्त राज्य अमेरिका) के एम० मलीना तथा एस० रोलैंड द्वारा 1974 – 75  में किया गया था | उन्होंने यह भी बताया कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन के द्वारा वायुमंडलीय ओजोन में तेज गति से क्षरण हो रहा है |

  • डॉबसन (Dobson) द्वारा ओजोन की मोटाई मापी जाती है, यह एक इकाई है |
  • एक डॉबसन ईकाई = 01 मिलीमीटर मोटाई |
  • पराबैगनी तरंग 240 नैनो मीटर (nm) की द्वारा प्रकाश रसायनिक अभिक्रिया में ओजोन का कण टूटता है |

ओजोन छिद्र

ओजोन क्षरण एवं अल्पता ही ओजोन क्षिद्र के रूप में जानी जाती है | ओज़ोन परत या ओजोन मंडल में इन ओज़ोन रहित भागों को ओजोन छिद्र कहा जाता है | ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा 1987 में अंटार्कटिका के ऊपर वायुमंडलीय ओजोन में 50% की गिरावट पायी तथा ओजोन सांद्रण में कमी को प्राप्त किया जिससे ओजोन पूर्णतया लुप्त हो गयी, जिस कारण ओजोन रहित छोटे-छोटे क्षेत्र बन गए |

ओजोन क्षरण (Ozone layer degradation ) तथा ओजोन क्षिद्र के निर्माण के कारण तथा क्रियाविधि, यह दो प्रक्रिया द्वारा संपन्न होती है | 1. प्राकृतिक प्रक्रिया 2. मानव जनित प्रक्रिया

  1. प्राकृतिक प्रक्रिया – यह प्रक्रिया तीन प्रकार की होती है | (1) 11 वर्षीय चक्र के अंत में सौर्य कंलक में अधिकतम वृद्धि के कारण अधिकतम ऊष्मा के विसर्जन के परिणाम स्वरूप सौर्यिक क्रिया कलाप में वृद्धि हो जाती है | इस कारण नाइट्रोजन का नाइट्रस ऑक्साइड में रूपांतरण हो जाता है | यह नाइट्रोजन ऑक्साइड, क्लोरीन द्वारा होने वाले ओजोन के विनाश की प्रक्रिया को तेज कर देती है | (2) ओजोन के पराबैंगनी सौर्यिक विकिरण द्वारा भी विनाश होता है क्योंकि ओजोन का इस विकिरण द्वारा ऑक्सीजन एवं एकल ऑक्सीजन में विलगाम हो जाता है | (3) गतिक क्रियाविधि द्वारा वायुमंडलीय संचार के माध्यम से ओजोन का वायुमंडल में पुनः वितरण होता रहता है | दक्षिण ध्रुव के ऊपर से ओजोन का वायुमंडल के ऊपरी भाग में पवन संचार द्वारा 60 डिग्री से 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के बीच वाले भाग में परिवहन परिवहन हो जाता है इस तरह दक्षिणी ध्रुव के ऊपर से ओजोन परत पतली हो जाती है जिस करण ओज़ोन छिद्र का निर्माण होता है |
  2. मानव जनित क्रियाविधि – यह प्रक्रिया भी तीन प्रकार की होती है | (1) क्लोरीन परिकल्पना -क्लोरोफ्लोरोकार्बन तथा हैलन के प्रयोग से चलने वाले उपकरणों के खराब होने एवं रखरखाव के दौरान इन कृत्रिम रसायनों का वायुमंडल में विमोचन होता है | (2) सल्फेट परिकल्पना – ओजोन के क्षरण तथा विनाश में बादलों की सतह के रासायनिक गुणों का अत्याधिक महत्व होता है यह विश्वास किया जाता है कि प्राकृतिक ज्वालामुखियों के उदभेदन तथा असंख्य मानव ज्वालामुखियों) (कारखानों की चिमनियों) से निकला सल्फेट वायुधुंध का वायुमंडल में प्रत्येक अक्षांश पर 15 से 22 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच सतत संग्रह होता रहता है | यह सल्फेट वायुधुध ओजोन के सामान्य ऑक्सीजन में रूपांतरण को उत्प्रेरित करता है | (3) नाइट्रोजन ऑक्साइडस परिकल्पना – इस परिकल्पना के अनुसार सुपरसोनिक जेट विमानों से निस्सृत नाइट्रोजन ऑक्साइड द्वारा समताप मंडल ओजोन का क्षय होता है | संयुक्त राज्य अमेरिका की नेशनल साइंस अकैडमी में तथा अमेरिकी नेशनल इंजीनियरिंग अकदमी द्वारा किए गए अध्ययनों से भी यह उभर कर सामने आया है कि नाइट्रोजन ऑक्साइड का ओजोन क्षय पर भारी प्रभाव होता है |

ओजोन क्षरण (Ozone layer degradation ) का प्रभाव

वायुमंडल पर प्रभाव – ओजोन अल्पता के कारण वायुमंडल में सौर्यिक पराबैगनी विकिरण का न्यूनतम अवशोषण होता है, परिणाम स्वरूप अधिक से अधिक मात्रा में पराबैगनी विकिरण धरातल तक पहुंच जाएगा जिस कारण भूतल का तापमान अत्यधिक हो जाएगा इसके विपरीत समताप मंडल का तापमान कम हो जाएगा क्योंकि पराबैगनी किरणों का अवशोषण कम होगा | इस प्रक्रिया के कारण भूतल का शीतलन होगा क्योंकि समताप मंडल से धरातल की ओर प्रतिलोम विकिरण में पर्याप्त कमी हो जाएगी

यह विश्वास किया जाता है कि ओजोन में अल्पता तथा विनाश के कारण आगामी 40 वर्षों में पृथ्वी तल तक पहुंचने वाले पराबैगनी वितरण में 5 से 20% तक वृद्धि हो जाएगी |

तापमान में वृद्धि के कारण हिम नदियों एवं ग्रीनलैंड तथा उष्णकटिबंधीय अंटार्कटिका की वृहत चादरों का द्रवण हो जाएगा जिस कारण सागरतल में वृद्धि हो जाएगी |

वायुमंडल में सी० एफ० सी० एस० ओजोन को नष्ट करने के अलावा वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के हरितगृह प्रभाव को भी बढ़ाती है |

मानव समुदाय पर प्रभाव – गोरी चमड़ी वाले लोगों में त्वचा कैंसर का रोग बढ़ जाएगा | रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाएगी | स्वसन तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ेगा जैन समुदाय पर प्रभाव पड़ेगा |

जैव समुदाय पर प्रभाव – पराबैगनी सौर्यिक विकिरण में वृद्धि के कारण तापमान में संभावित वृद्धि होने के फलस्वरूप प्रकाश संश्लेषण, जल उपयोग तथा पौधों की उत्पादकता एवं उत्पादन में भारी कमी हो जाएगी | तापमान में वृद्धि के कारण जलीय सतह तथा मिट्टियों की नमी का वाष्पीकरण अधिक हो जाएगा जिस कारण मिट्टी में नमी की निहायत कमी हो जाएगी |

पारिस्थितिकीय प्रभाव – विश्वव्यापी विकिरण तथा ऊष्मा संतुलन में जरा भी परिवर्तन होने से पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता, पारिस्थितिकीय स्थिरता तथा पर्यावरण की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा |

ओजोन परत की रक्षा एवं अनुरक्षण

ओजोन परत को नष्ट करने वाले तत्वों की पाबंदी के लिए 33 देशों ने मॉन्ट्रियल मसौदे पर सितंबर 1987 में हस्ताक्षर किया | इस समझौते में यूनाइटेड नेशसन्स इन्वायरमेंट प्रोग्राम ने अहम भूमिका निभाई है |

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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