औद्योगिक प्रदूषण । औद्योगिक प्रदूषण के दुष्प्रभाव और उसको रोकने के उपाय
औद्योगिक प्रदूषण । औद्योगिक प्रदूषण के दुष्प्रभाव और उसको रोकने के उपाय
औद्योगिक प्रदूषण
औद्योगिक ऐसा ही एक चरण है जिससे देश को आत्मनिर्भरता मिलती है और व्यक्तियों में समृद्धि की भावना को जाग्रत करती है। औद्योगिक प्रगति के साथ ही इसका सम्बन्धित परिणाम प्रदूषण भी साथ ही नियत है। यद्यपि मोटे तौर से इस क्षेत्र के प्रदूषण को हम ‘वायु प्रदूषण’ के साथ ले आते हैं, पर यह वास्तव में सामान्य से अधिक भयावह है। इसका कारण भी स्पष्ट है। एक उद्योग से सम्बन्धित कम-से-कम निम्न प्रक्रिया तो होती है-
- विषैली गैसों का चिमनियों से उत्सर्जन, साथ ही बहुत सूक्ष्म पदार्थों के कण,
- चिमनियों में एकत्रित हो जाने वाले पदार्थ, सूक्ष्म कण,
- उद्योगों में काम में आये हुए जल का बहि:स्नाव जो अनेक अशुद्धियाँ अथवा उद्योगों में प्रयोग किये गये कच्ची सामग्री के अंश साथ लाता है,
- उद्योगों में कार्य में आने के बाद शेष
- चिमनियों में प्रयुक्त ईंधन के अवशेष।
ये सभी दृष्टिकोण औद्योगिक प्रदूषण के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण हैं, जिन पर हमें चर्चा करनी चाहिए।
औद्योगीकरण प्रदूषण के दुष्प्रभाव
जैसा कि हमने अभी ऊपर उल्लेख किया है कि किसी भी उद्योग के क्रियाशील होने पर कुछ संक्रियाएँ तो आवश्यक हैं ही जिससे कच्चे माल से वांछित उत्पादन मिल सक, अतः हम उन्हें यहाँ उदाहरणों के साथ देना चाहेंगे जिससे उसे सहजता से समझा जा सके तथा साथ ही उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभावों को भी जाना जा सके।
(1) उद्योगों से वायु प्रदूषण (Air Pollution due to Industries)- किसा भी उद्योग की मशीनों को चलाने के लिए ऊर्जा उत्पादन तथा कच्चे माल की निर्धारित क्रियाविधि के फलस्वरूप जो भी उत्सर्जन होता है उसका गैसीय भाग चिमनियों से निकलता है इन चिमनियां से हानिकारक पदार्थ जब वायुमण्डल में विसर्जित होते हैं तो प्रदूषण फैलाते हैं।
(2) उद्योगों से जल प्रदूषण (Waler Pollution due to Industries)- जिन उद्योगों में जल का उपयोग होता है, वहाँ पर उपयोग के बाद बहि:स्राव को बाहर निकाल दिया जाता है। निःसन्देह इसमें अनेक विषैले पदार्थ मिले होते हैं। यदि यह सीधे ही नदियों तथा झीलों में डाल दिया जाता है तो उन जलाशयों का पानी पीने योग्य नहीं रहता । अनेक पशु जल चर, मानव, पक्षी अकाल मौत मर जाते हैं अथवा अनेक कठिन रोगों से ग्रसित हो जाते हैं।
(3) उद्योगों से भूमिगत जल प्रदूषण (Ground Water Pollution due to Industries)- सतही जल की कमी के कारण अब भूमिगत जल का दोहन इस गति से हो रहा है कि पानी का स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है। वहाँ भी जल अनेक प्रकार के संकटमय और विषैले रसायनों से मिश्रित है, जिससे पीने के लिए भी उस पानी का उपयोग उपयुक्त नहीं लगता है। भारी उद्योगों की यूँ ही निस्तारण करने की प्रक्रिया इसके लिए दोषी है।
(4) उद्योगों के बहिः स्त्राव से पेड़ और फसलों की बर्बादी (Destruction of trees and crops by industries effluent)- कई प्रकार के उद्योग जिनमें जल की मात्रा का अधिक उपयोग होता है, वह अपने कारखाने के बहिःस्राव को बिना उपचार के ही नदियों में, खाली जमीन पर तथा खेतों में निकाल देते हैं। जो बिना उपचार किया जल खेतों में पहुँचता है, वह वहाँ की फ़सल को नष्ट कर देता है और किसान असहाय होकर रह जाता है।
(5) उद्योगों से जन हानि (Casualties from Industries)- भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में उद्योगों की संख्या लाखों में है। अतः इसमें कार्य करने वाले लोगों की संख्या निःसन्दह करोड़ों में होगी। अलग-अलग प्रकार के उद्योगों से निकलने वाले उत्सर्जन अलग-अलग प्रकार के रोग फैलाते हैं और उनसे न जाने कितने लोग अपनी जीवन लीला का अन्त कर देते हैं। डब्ल्यू. एच. ओ. कमीशन की रिपोर्ट जो सन 1992 में प्रसारित हुई है, में यह बताया गया है। कि पूरे विश्व में एक वर्ष में लगभग 3.27 करोड़ औद्योगिक क्षेत्र की दुर्घटनाएँ होती हैं। इनमें 1,46,000 व्यक्ति मृत्यु के शिकार हो जाते हैं।
क्योंकि भारत जैसे देश में (1) अनीमिया, (2) आँखों के रोग, (3) हड्डियों के रोग, (4) वायुजनित रोग, (5) श्वसन सम्बन्धी रोग आदि बहुतायत से होते हैं। अतः उद्योगों में कार्य करने वाले सदैव अस्वस्थ ही रहते हैं।
उद्योगों से प्रदूषण कम करने के लिए उपाय
विभिन्न उद्योगों से प्रदूषण कम हो सके, इस हेतु कुछ उपाय यहाँ समेकित किये जा रहे हैं-
- उद्योगों के स्थान का चयन बहुत सोच-समझ कर करना चाहिए-
-वह न तो अधिकृत वन क्षेत्र हो और न ही कृषि भूमि ,
– क्षेत्र इतना बड़ा हो जहाँ पर काफी संख्या में वृक्षारोपण किया जा सके, अच्छे वातावरण निर्मित करने के लिए यथेष्ट फुलवारी, पार्क, फुब्बारा आदि भी लगाये जा सकें,
-क्षेत्र में ठोस अपशिष्ट का भण्डारण हो सके,
-आबादी से काफी दूर हो जिससे वहाँ के लोग प्रदूषण से बच सकें,
– वायु के वेग के समानान्तर हो, जिससे उत्सर्जित गैसें शीघ्र बह सकें,
– पानी की प्रचुर मात्रा करीब में ही उपलब्ध हो,
– कच्चे माल को लाने तथा तैयार माल के ले जाने में सुविधा के लिए राजमार्ग के करीब 500 मीटर लगभग तथा रेलवे स्टेशन के नजदीक लगभग 2 किमी होना उचित रहता है।
- एक उद्योग की अन्य उद्योग से दूरी लगभग 25 किमी होना वांछनीय है. यद्यपि यह सम्भव नहीं है।
- उद्योगों में कार्य कर ऊर्जा संयन्त्र बॉयलर्स तथा गैसों व सूक्ष्म कणों को उत्सर्जित करने वाली चिमनियों से प्रदूषको की मात्रा कम हो, इस हेतु प्रचलन में आ रहे-(1) स्क्रबर्स अवशोषक (2) साइक्लोन्स, (3) इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर्स और (4) बैग फिल्टर्स संयन्त्रों का भरपूर उपयोग किया जाय।
- ठोस द्रव तथा गैसीय अपशिष्टों की पुनः चक्राकन प्रक्रिया से अपशिष्टों की मात्रा भी इन अतिरिक्त उत्पादनों से आर्थिक लाभ होता है।
- जलीय अपशिष्ट तथा ठोस अपशिष्टों की जितनी भी उपचारात्मक संक्रिया सम्भव हो, उसी के बाद उन्हें अपने क्षेत्र से विसर्जित किया जाय ।
- चिमनियों की ऊँचाई भी गैसीय उत्सर्जन द्वारा किये जा रहे प्रदूषण कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इनके मानदण्ड निर्धारित हैं जिनका उपयोग किया जाना चाहिए।
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मुझे इससे शिक्षा मिली है मै यह जानकारी ओर को भी दूँगी धन्यवाद 👍 👍