भूगोल / Geography

तापीय प्रदूषण । तापीय प्रदूषण के स्रोत । तापीय प्रदूषण के दुष्प्रभाव तथा नियन्त्रण के उपाय

तापीय प्रदूषण । तापीय प्रदूषण के स्रोत । तापीय प्रदूषण के दुष्प्रभाव तथा नियन्त्रण के उपाय

तापीय प्रदूषण

अनेक औद्योगिक प्रक्रियाओं में शीतलन (Cooling) के लिए जल का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार गर्म हुआ जल-प्रवाह या तालाबों में छोड़ दिया जाता है। कोयला-तेल भट्टियों से विद्युत उत्पादन तथा परमाणु-ऊर्जा संयन्त्रों से तो बड़ी मात्रा में मर्ग जल जल – स्रोतो प्रमुखतः नदी, सागर, तालाबों, नालों में प्रवाहित किया जाता है, जो तापीय प्रदूषण को जन्म देता है। 30-35 डिग्री ताप का जल जलीय पारिस्थितिक तन्त्र के लिए मरुस्थल के समान कार्य करता है और उसमें प्रभावी परिवर्तन उत्पन्न कर देता है। जल-तन्त्र के ताप में 10 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि अनेक रासायनिक अभिक्रियाओं का वेग दुगुना कर देती है, कार्बनिक पदार्थ का अपघटन तेज कर देती है और लोहे में जंग लगने की क्रिया और लवण की विलेयता को एकदम बढ़ा देती है। अतः तापीय प्रदूषण जलीय पारिस्थितिक तन्त्र में प्रभावी परिवर्तन उत्पन्न करता है।

परिभाषा-

ताप के प्रभाव से जलीय या वायुमण्डलीय पारिस्थितिक-तन्त्र में प्रभावी परिवर्तन तापे-प्रदूषण कहलाता है।

तापीय प्रदूषण के स्रोत

तापीय प्रदूषण के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं-

  1. विद्युत उपकरण नदियों और तालाबों के तापीय-प्रदूषण में प्रमुख स्रोत हैं।
  2. विद्युत उत्पादन की ताप-भट्टियाँ शीतलन प्रणाली द्वारा काफी मात्रा में गर्म जल नदियों, तालाबों तथा जल-प्रवाहों में छोड़ती है।
  3. परमाणु-ऊर्जा उत्पादन संयन्त्र भी तापीय-प्रदूषण के बड़े स्रोत है।
  4. शीतलन-टॉवर से गिरने वाला गर्म जल भी तापीय-प्रदूषण का स्रोत है, जो वाष्पन क्रिया द्वारा वायुमण्डल में तापीय प्रदूषण का कारण होती है।
  5. शुष्क प्रकार के शीतलन-टॉवर में शीतलन की प्रक्रिया वायु के प्रभाव से की जाती है, जो वायुमण्डल के तापीय-प्रदूषण का कारण होती है।
  6. उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में सूर्य से प्राप्त तापमान बहुत अधिक रहता है।

तापीय प्रदूषण के दुष्प्रभाव

तापीय प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करता है, जबकि तापीय प्रदूषण से नदियों, तालाबों, स्रोतों के जल का ताप बढ़ने के कारण जल की गुणवत्ता तथा जलीय जीवन में परिवर्तन उत्पन्न हो जाते हैं, यथा-

  1. तापमान पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं दोनों को ही प्रभावित करता है । समस्त जैविक क्रियायें ताप द्वारा प्रभावित होती हैं। जीवों की ताप सहने की क्षमता भिन्न-भित्न होती है। उदाहरण के लिए मनुष्य के लिए इष्टतम तापमान (Optimum (cmperaturc) की सीमा लगभग 2.5 डिग्री सेल्सियस है। अधिकांश जीव 0 डिग्री सेल्सियस से कम तथा 50 डिग्री सेल्सयस से अधिक तापमान को सहने नहीं कर पाते। क्योंकि तापमान की इस सीमा के बाहर उनकी जैविक क्रियायें अवरुद्ध हो जाती हैं केवल कुछ ही ऐसे जीव हैं जो इस नियम के अपवाद कहे जा सकते हैं, जैसे बैक्टीरिया जो 240 डिग्री सेल्सयस पर भी जीवित रहने की क्षमता रखते हैं। इसी प्रकार कुछ अन्य बैक्टीरिया 120 डिग्री सेल्सियस पर जीवित रहने की क्षमता रखते हैं। अधिक ताप पर जीवों के शरीर के आवश्यक पदार्थ जैसे प्रोटीन और वसा अथवा चर्बी में ऐसे परिवर्तन हो जाते हैं जिसमें जीव की मृत्यु अवश्यम्भावी हो जाती है ।
  2. ऊष्मा को सहने की क्षमता भी पर्यावरण के अन्य कारकों, जैसे आर्द्रता इत्यादि से प्रभावित होती है। यही कारण है कि मरुस्थलों में बहने वाली शुष्क वायु मनुष्य कां अधिक कष्टप्रद प्रतीत नहीं होती। इसके विपरीत उष्ण कटिबन्ध क्षेत्रों में सापेक्षिक आर्द्रता अधिक होने से इसी तापक्रम पर वातावरण कष्टप्रद व असहनीय हो उठता है।
  3. पौधों में तापमान के प्रभाव- पौधों में जल अवशोषण, प्रकाश संश्लेषण, श्वसन तथा वाष्पोत्सर्जन इत्यादि सभी प्रमुख कायकीय क्रियाएँ तापमान से प्रभावित होती हैं। प्रत्येक जीवित वस्तु एक निश्चित तापमान से सीमित होती है। अधिकांश जैविक क्रियाएँ 0-50 डिग्री से तापमान के अन्तर्गत सुचारु रूप से चलती है। इस तापमान सीमा के बाहर सामान्यतः जैविक क्रियाएँ धीमी पड़ जाती हैं अथवा बिल्कुल ही समाप्त हो जाती है।
  4. तापमान का जन्तुओ पर प्रभाव- तापमान के विपरीत प्रभावों से वनस्पतियों की वृद्धि कम होती है जिससे उन पर निर्भर जन्तु परोक्ष रूप से निश्चित ही प्रभावित होते हैं। इसके अतिरिक्त तापमान के कुछ प्रभाव जन्तुओं में भी देखे जाते हैं।

तापीय प्रदूषण नियन्त्रण के उपाय

तापीय प्रदूषण की समस्या को कृत्रिम शीतलन कुण्डों और शीतलन टॉवरों के उपयोग से काफी हद तक कम किया जा सकता है-

(1) कृत्रिम शीतलन कुण्डों तालाबों का उपयोग- संयन्त्रों से निकलने वाले गर्म जल को तालाब के 1 या 2 मीटर गहरे उथले सिरे में डाल दिया जाता है तथा शीतलन के लिए यह तालाब के दूसरे सिरे में पहुँच जाता है, जो 15 मीटर तक गहरा होता है।

(2) शीतलन टॉवर- वाष्प द्वारा गर्म जल से ताप वायुमण्डल में स्थानान्तरण के लिए शीतलन टॉवरों का उपयोग किया जाता है। ये प्राकृतिक ड्राफ्ट टॉवर हो सकते हैं अथवा यांत्रिक ड्राफ्ट टॉवर हो सकते हैं।

(3) विकसित विद्युत उत्पादक संयन्त्रों का उपयोग- तापीय प्रदूषण को बहुत अधिक हद तक कम करने के लिए ताप को सीधे विद्युत में परिवर्तित करना उपयुक्त तकनीक है। संगलन संयन्त्रों (Fusion reactors) की तापीय कार्य कुशलता प्रवर्धित तापीय विद्युत संयन्त्र के उपयोग द्वारा 96 प्रतिशत तक बढ़ायी जा सकती है।

(4) तापीय प्रदूषण को रोकने का एक कारगर तरीका है- गर्म जल के बेकार ताप का-

  1. भवनों को गर्म करने में उपयोग
  2. तरण पुष्करों को गर्म करने में उपयोग।
भूगोल – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!