भूगोल / Geography

वाष्पोत्सर्जन का अर्थ एवं परिभाषा | Meaning and Definition of Transpiration in Hindi

वाष्पोत्सर्जन का अर्थ एवं परिभाषा | Meaning and Definition of Transpiration in Hindi

वाष्पोत्सर्जन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Transpiration)

वाष्पोत्सर्जन का अर्थ एवं परिभाषा- वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) वह क्रिया है जिसके द्वारा जलवाष्प जीवित पौधों की पत्तियों से निकलकर वायुमण्डल में प्रदेश करती है। वाष्पोत्सर्जन जलीय चक्र की मुख्य क्रिया है। पेड़ों के पत्ररन्ध्र (Stomata) द्वारा हुए वाष्पीकरण को वाष्पोत्सर्जन कहा जाता है। समस्त पादप समुदाय अपनी जड़ों के माध्यम से मिट्टी या वर्षा से नमी अवशोषित करते है जिसके द्वारा पादप समुदाय की कोशिकाओं का विकास होता है। पादप कोशिकाओं द्वारा उपलब्ध नमी का 1 प्रतिशत भाग ही उपयोग में लाया जाता है शेष नमी का अंश पौधों की पत्तियों के माध्यम से वाष्प के रूप में वायुमण्डल में संचरित हो जाता है। एक स्वतन्त्र जलाशय से वाष्पीकरण के दौरान जिस प्रकार जल परमाणु पलायित होते हैं ठीक उसी प्रकार पत्ररन्ध्र से भी जल परमाणु वाष्प के रूप में पलायित होते रहते हैं जिसे वाष्पोत्सर्जन की संज्ञा दी जाती है।

वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा धरातल पर होने वाला वर्षण वाष्प के रूप में वायुमण्डल में विसर्जित हो जाता है। वाष्पोत्सर्जन एवं वाष्पीकरण को अलग कर पाना मुश्किल है अतः जलवैज्ञानिक दोनों का साथ साथ अध्ययन करते हैं। वाष्पीकरण एक अजैविक क्रिया है जबकि वाष्पोत्सर्जन एक जैविक क्रिया है क्योंकि इसका सम्बन्ध सजीव पौधों की पत्तियों से होता है।

 

के० जी० गुरेविच (K. G. Gurevich, 1980) के अनुसार

“पेड़ पौधे जल की बहुत बड़ी मात्रा वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से वाष्प के रूप में परिवर्तित करते हैं। वाष्पोत्सर्जन तन्तु विकास से सम्बन्धित एक तन्तु वानस्पतिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में पेड़ पौधे वानस्पतिक मौसम के दौरान विभिन्न गहराइयों से (जड़ तंत्र के विकास के परिमाण पर आधारित) नमी का अवशोषण करते हैं, किन्तु अवशोषित इस नमी का केवल सीमित भाग संचित रखते हैं जबकि शेष भाग वाष्पोत्सर्जित करते हैं।”

Dictionary of Geography (1984, Edited by J. Smith) के आधार पर

“वाष्पोत्सर्जन पेड़ पौधों से जल वाष्प की क्षति है। पादप तन्तु जड़ों से जल ऊपर की ओर भेजते हैं इस प्रकार एक अनवरत प्रवाह मृदा को पत्तियों की सतह से जोड़ता है जिसके द्वारा सूक्ष्म रन्ध जल वाष्प वायुमण्डल को सड़पते है। वाष्पोत्सर्जन पेड़ पौधों के माध्यम से प्रमुख खनिजों के संचरण को व्यवस्थित करता है किन्तु अत्यधिक जल क्षति से विल्टिंग होती है। वाष्पोत्सर्जन की दर वायुमण्डलीय तापमान से घनिष्ठ रूप में सहसम्बन्धित है (उच्च तापमान से वाष्पोत्सर्जन बढ़ता है) और पत्ररन्ध्र के खुलने एवं बन्द होने से नियन्त्रित होता है।

आर० जी० बेरी और आर० जे० शोर्ले के अनुसार (According to R. G. Barry and R. J. Chorley, Atmosphere, Weather and Climate, 1968) :

“पादप सतह मुख्यतया पत्तियों से जल ह्रास वाष्पोत्सर्जन नाम की एक जटिल प्रक्रिया है। पत्र कोशिकाओं का वाष्प दाब जब वायुमण्डलीय वाष्प दाब से अधिक होता है तो यह उत्पन्न होता है और यह जीवन प्रकार्य के रूप में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मृदा से पौधों के पोषक तत्वों की वृद्धि तथा पत्तियों को शीतल करता है । यह दिन के समय सम्पादित होता है जब पत्ररन्ध जिसके माध्यम से वाष्पोत्सर्जन सम्भव होता है, खुलते हैं। पौधों की जड़ों द्वारा मिट्टी से ग्रहण किया गया जल पौधों के द्वारा उनकी पत्तियों के अन्तराकोशीय भागों को स्थानान्तरित हो जाता है। पत्तियों के रन्ध्रीय भागों से वायु पत्तियों में प्रवेश करती है और पत्तियों में उपस्थित हरित लवक (Chloroplast) वायु की कार्बन डाई आक्साइड (CO,) का कुछ अश ग्रहण कर लेती है साथ ही पौधों को प्राप्त अल का कुछ भाग ग्रहण कर पौधों की वृद्धि के लिए कार्बोहाइड्रेड का निर्माण करती है शेष जल पत्तियों के रन्धों से वाष्प के रूप में निकलकर वायुमण्डल में मिल जाता है। यही वाष्पोत्सर्जन क्रिया है।

पौधों के वायवीय अंगो द्वारा आवश्यकता से अधिक जल का वाष्प के रूप में उड़ते रहने (त्यागने) को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। यह जल पौधों के वायवीय अंगों, स्तम्भ, पत्तियों, कलियों एवं पुष्पों के वाष्प के रूप में बाहर निकलता रहता है। यह सम्पूर्ण अवशोषित जल का लगभग 95% होता है। इस क्रिया से चूषक दाब उत्पन्न होता है।

 

वाष्पोत्सर्जन की क्रिया विधि (Processing of Transpiration):

पौधों के जड़ तन्त्र द्वारा अवशोषित जल रसारोहण की क्रिया द्वारा पत्तियों की दारु (Xylem) कोशिकाओं तक पहुँचता है अतः इन कोशिकाओं का स्फीति दाब (Turgor Pressure) समीप स्थित पर्णमध्यातक (MesophyIl) की कोशिकाओं से अधिक हो जाता है। जल अधिक स्फीति दाब से कम स्फीति दाब की ओर चलकर पर्णमध्योतक कोशिकाओं (पत्तियों के आन्तरिक मध्य कोशिकाओं) में पहुँच जाता है। इन कोशिकाओं की भित्तियों से यही जल वाष्प में परिवर्तित होकर पर्णमध्योतक कोशिकाओं के अन्तराकोशिकीय स्थानों में पहुँचता रहता है। सभी अन्तराकोशीय स्थान एक दूसरे से तथा अधोरन्ध्रीय रन्ध्रों से सम्बन्धित होते हैं। अतः वाष्प एक दूसरे से होती हुई अन्त में अधोरन्ध्रीय रन्धों में पहुँचती है जहाँ से रन्ध्रों द्वारा विसरित होकर वायुमण्डल में चली जाती है। रात्रि में वाष्पोत्सर्जन नहीं होता है जबकि दिन में वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है। दिन में पत्तियों पर सूर्य प्रकाश पड़ता है जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा पौधे अपना भोजन बनाते हैं तथा पत्तियों के रन्ध्र खुल जाते हैं। पौधों का जीवित कोशिकाओं द्वारा हरी पत्तियों तथा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में CO, तथा H,O के संयोग से कार्बोहाइड्रेड के निर्माण की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते है। इस क्रिया से आक्सीजन बाहर निकलती है। रात्रि में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं होती जिससे पत्ररन्ध बन्द हो जाते हैं अतः वाष्पोत्सर्जन नहीं के बराबर होता है। श्वसन एवं प्रकाश संश्लेषण क्रिया में अन्तर है। श्वसन क्रिया पत्तियों द्वारा दिन रात सदैव होती है। इसमें पत्तियाँ आक्सीजन ग्रहण करती हैं और कार्बन डाई आक्साइड छोड़ती हैं। प्रकाश संश्लेषण द्वारा आक्सीजन गैस निकलती है। वाष्पोत्सर्जन क्रिया से अनावश्यक जल पौधों के शरीर से बाहर निकल जाता है.यह पौधों का ताप नियन्त्रित करता है जिससे रसारोहण होता है। वाष्पोत्सर्जन की गति शुष्क वायु और आँधी में तीव्र हो जाती है। शुष्क वायु में पानी की कमी होती है इसलिए पेड़ों से अधिक पानी भाप बनकर उड़ता है। वर्षा के दिनों में वायुमण्डलीय आर्द्रता अधिक होती है इसलिए नम वायु जलावशोषण की न्यून आवश्यकता के कारण पेड़ों से पानी कम ग्रहण करती है फलस्वरूप वाष्पोत्सर्जन की क्रिया एवं गति कम होती है।

 

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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