मध्य गंगा मैदान के अधिवासों के प्रतिरूप | मध्य गंगा मैदान के मकानों के प्रकार | मध्य गंगा मैदान के अधिवासों पर भौगोलिक वातावरण का प्रभाव
मध्य गंगा मैदान के अधिवासों के प्रतिरूप | मध्य गंगा मैदान के मकानों के प्रकार | मध्य गंगा मैदान के अधिवासों पर भौगोलिक वातावरण का प्रभाव
मध्य गंगा मैदान के अधिवासों के प्रतिरूप
मकानों का वर्गीकरण कई दृष्टियों से किया जाना चाहिए। मकानों की आकृति, आकार, निर्माण की सामग्रियों तथा उपयोग आदि की दृष्टि से बड़ी भिन्नता मिलती है। इसलिए वर्गीकरण के समय इन्हीं तथ्यों को आधार बनाना उचित होता। कई विद्वानों ने मकानों का वर्गीकरण करने के प्रयास किये हैं, परन्तु उनके दृष्टिकोण किसी एक पक्ष पर विशेष बल देने के कारण अपूर्ण समझे जाते हैं। कुछ के वर्गीकरण निम्नवत् है:
डिमांजियाँ (Demangeon) ने मकानों को कार्य के आधार पर निम्न वर्गों में बाँट रखा है:
(1) साधारण मकान (Rudimentary House) – यह साधारण प्रकार का मकान होता है जिसमें केवल एक ही भाग होता है। उसी में किसान अपने कृषि-यन्त्रों, पशुओं तथा बीज को रखता है।
(2) असाधारण मकान (Straggling House)- इस प्रकार के मकान वे होते हैं जिनमें निवास, पशुओं, कृषि के यन्त्रों को रखने के लिए अलग इमारतें बनी होती हैं। निवास की इमारत में भी खोने-पीने तथा सोने के कमरे अलग-अलग तथा अनाज रखा जाता है।
(3) ऊर्ध्वाधर मकान (Vertical House)- ये मकान कई मंजिल के होते हैं, जिनमें पशुओं तथा कृषि यन्त्रों को रखने के लिए निचले मंजिल तथा निवास के लिए ऊपरी मंजिल होती है। उनके ऊपर अर्थात् तीसरी मंजिल पर बीज तथा अनाज रखा जाता है।
मारगेरिट जेफर (Marguerite Lefver) ने मकानों को दो प्रमुख वर्गों में रखा-
(1) प्रविकीर्ण मकान (Disperesed Houses) – इसमें इन्होंने पाँच भेदों का उल्लेख किया है-(अ) तटीय मकान (Coastal), (ब) विशाल एकाकी फार्म (Large isolated farms), (स) वर्गों में विभक्त प्रविकीर्ण मकान (Dispersal in groups), (द) पुरवों के प्रविकीर्ण मकान (Dispersal in hamlets) तथा (च) अधिक प्रविकीर्ण (Maximum dispersal) मकान।
(2) संकेन्द्रित मकान (Concentrated Houses)- इस वर्ग में लेफर ने चार भेद बताया है- (अ) नीहारिकीय गाँव (Nebular villages), (ब) न्यष्ठित गाँव (Nuclear villages) (स) सड़कों के क्रॉस पर बसे गाँव (Cross road village), (द) बिना गाँव के प्रदेश।
परन्तु लेफर का उपर्युक्त वर्गीकरण अपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने मकानों के स्थान पर गाँवों के प्रारूपों का उल्लेख किया है।
विद्वानों के दृष्टिकोणों में व्याप्त कमियों को ध्यान में रखकर डॉ.एस. डी. कौशिक ने मकानों का वर्गीकरण उनकी आकृति, आकार, निर्माण सामग्रियों तथा कार्यों आदि के दृष्टिकोण से निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया है, जिसे संक्षिप्त में यहाँ दिया जा रहा है:
(क) आकृति (Shape) के अनुसार
(1) ढालू छत के मकान- अधिक वर्षा होने वाले क्षेत्रों तथा ऊँचे पर्वतीय भागों, जैसे- असम, बंगाल, बिहार, केरल, तमिलनाडु के तटीय भाग पर और हिमालय प्रदेश में पाये जाने वाले मकान।
(2) सपाट छत के मकान- अल्प वर्षा के क्षेत्रों, जैसे-राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा उत्तरी मध्य प्रदेश के मकान।
(3) ढालू और सपाट छत के मिश्रित मकान- उपर्युक्त दोनों वर्गों के बीच मध्यम वर्षा के क्षेत्रों में, जैसे-मध्य एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेया के जबलपुर, कटनी आदि जिले तथा मध्य आन्ध्र प्रदेश के मकान।
(4) चौकोर या आयताकार मकान- प्रायः भारत में सर्वत्र मिलते हैं।
(5) वृत्ताकार मकान- उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्रों, विशाखापत्तनम के पृष्ठ प्रदेश तथा जगदलपुर के आदिम जन-जातियों के झोपड़े। (6) द्विछतीय मकान। (7) चहारदीवारी से घिरे मकान। (8) दो दिशाओं में दरवाजे वाले मकान।
(ख) आकार (Function) के अनुसार
(1) छोटे आश्रय, (2) झोपड़ियाँ, (3) एक मंजिले मकान, (4) दो मंजिलें मकान, (5) तीन मंजिलें मकान, (6) अन्य आकार के मकान।
(ग) निर्माण सामग्रियों के अनुसार
(1) छप्पर के बने झोपड़े, (2) बाँस और लकड़ी के बने मकान, (3) मिट्टी की दीवार तथा घास-फूस की छतवाले मकान, (4) पक्की ईंट तथा लकड़ी और खपरैल की छत वाले मकान, (5) ईंट, पत्थर; लोहा तथा सीमेण्ट से निर्मित मकान।
(घ) कार्यो (Functions) के अनुसार
(1) निवास के लिए मकान, (2) पशुओं के लिए छप्पर, (3) कृषि-यन्त्रों के लिए शेड, (4) संयुक्त मकान, जिनमें मकान व निवास, पशुओं को बाँधने का स्थान, कृषि-यन्त्रों को रखने का स्थान तथा अनाज आदि रखने का भण्डार एक साथ पास-पास होते हैं, (5) बहुतंजिला मकान, आदि जिनके नीचे के भाग में पशु तथा कृषि यन्त्र, बीच के भाग में मानव-निवास तथा ऊपर के मंजिल में अनाज आदि रखने के स्थान होते हैं, (6) मिश्रित मकान, जो मिले-जुले उद्देश्यों के लिए बने होते हैं।
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