पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व

पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व । पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य | Need and importance of environmental education in Hindi | Objectives of environmental education in Hindi

पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व । पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य | Need and importance of environmental education in Hindi | Objectives of environmental education in Hindi

पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व

पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता-

पर्यावरण शिक्षा एक नया प्रत्यय है। परन्तु इसकी जड़ें अधिक प्राचीन ऋग्वेद सभी वेदों में प्राचीन है इसमें पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता का उल्लेख मिलता है।

ऋग्वेद की ऋचाओं में कामना की गयी है कि “पृथ्वी माता की धूल तथा पितृ-तुल्य आकाश का प्रकाश मंगलमय हो, सूर्य अपने पूर्ण तेज के साथ अपने अश से जुड़ा रहे। अस्तु प्रत्येक प्रणाली प्रभु को विराट सत्ता के समक्ष अपने को उन्मुक्त कर दे तो वह सत्ता उसमें समाहित हो जायेगी। सम्पूर्ण विश्व अखिल ब्रह्माण्ड प्रभुमय होगा। आनन्द और शांति का अभ्युदय होगा।

किन्तु वर्तमान परिस्थतियों में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में आनन्द और शान्ति का स्थान क्रमशः शोक और अशांति ने ले लिया है। जिसका मुख्य कारण है पृथ्वी माता को धूल और पिता समान आकाश के प्रकाश का अमगलकारी हो जाना, प्रदूषित हो जाना। पृथ्वी माता को धुल और पिता आकाश के प्रकाश को बनाये रखने के लिए नितान्त आवश्यक है कि मानव का जागरुक होना। जागरुकता शिक्षा से ही उत्पन्न होती है आम लोगों की अपेक्षाकृत शिक्षित मानव अपने वातावरण के प्रति अत्यधिक सचेत होगा।

वातावरण के प्रति जागरुता लाने के लिए आज आवश्यकता है पर्यावरण शिक्षा की। इसी उद्देश्य के लिए 6 जून को पूरे विश्व में ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है। विश्व के सभी देश आज किसी न किसी प्रकार के पर्यावरणीय संकट से ग्रस्त हैं पर्यावरणीय संकट को शिक्षा के माध्यम से कुछ कम तो किया जा सकता है किन्तु उसका पूर्व रूप नहीं प्राप्त किया जा सकता है।

जनसंख्या वृद्धि के दुष्प्रभाव, औद्योगिक क्रान्ति, प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग, मानव के अदूरदर्शिता पूर्ण कार्य व्यवहार से जल, वायु, भूमि का दोहन ही पर्यावरण को आन्दोलित एवं असंतुलित करते हैं।

इंदिरा गाँधी ने (1987) में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में कहा था कि अधिक जनसंख्या गरीबी को बुलावा देती है और गरीबी प्रदूषण को जन्म देती है, अतः यदि हम यह कहें कि विश्व में जनसंख्या विस्फोट ने प्रकृति से मिले विरासत में मिले बहुमूल्य पदार्थ वायु, वनस्पति और जल को कम करने के साथ-साथ प्रदूषित ही नहीं किया है, बल्कि पूरी प्रकृति के चक्र को ही विविध प्रकार से डगमगा दिया है तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अतएव जनसंख्या पर नियन्त्रण करने के लिए साक्षरता बढ़ानी होगी। पर्यावरण संतुलन को विधघटन करने वाले कारकों की जानकारी देना ही पर्यावरण शिक्षा के अन्तर्गत आता है। पर्यावरण संतुलन को बनाये रखने में आम आदमी की क्या भूमिका हो? उसकी जानकारी प्राप्त करना या कराना ही पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य है।

वास्तव में पर्यावरण शिक्षा से तात्पर्य उस शिक्षा से है जो विश्व समुदाय को पर्यावरण की समस्याओं के सम्बन्ध में जानकारी देता है। जिससे वे समस्याओं से अवगत होकर उनका हल खोज सकें और साथ ही भविष्य में आने वाली समस्याओं को रोक सरकें। पर्यावरण शिक्षा एक सामान्य शिक्षा नहीं बल्कि पर्यावरणीय समस्याओं में उनके निदान, हल और सम्मावित बचाव सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करने की शिक्षा । “पर्यावरण शिक्षा” प्राणी मात्र को वर्तमान में बचाये रखने तथा सुरक्षित भविष्य प्रदान करने की शिक्षा है।

पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य-

  1. जागरुकता (Awareness)- सम्पूर्ण पर्यावरण और उससे सम्बन्धित समस्याओं के प्रति जागरुकता और संवेदनशीलता देने में सहायक हो।
  2. ज्ञान (Knowledge)- सम्पूर्ण पर्यावरण और उससे सम्बन्धित समस्याओं की आधारभूत समझ प्राप्त करने तथा उसमें मनुष्य की जिम्मेदारी की भूमिका निभाने में सहायक हो।
  3. अभिवृत्ति (Attitude)- पर्यावरण के लिए गहरी चिन्ता करने, सामाजिक दायित्व निभाने तथा उसकी सुरक्षा और सुधार लाने के लिए किये जा रहे कार्यों में प्रेरित करने में सहायक हों।
  4. कौशल (Skills)- पर्यावरण समस्याओं के हल खोजने के कौशल प्राप्त करने में सहायक हो।
  5. मूल्यांकन कुशलता (Evaluation Ability)- पर्यावरणीय उपाय तथा शैक्षिक कार्यक्रमों को पारिस्थितिक, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सौन्दर्यपरक और शैक्षिक घटकों के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन करने में सहायक हो। और
  6. संभागिता (Participation)- पर्यावरणीय समस्याओं तथा समस्याओं के उचित एंग से हल निकालने की आश्वस्तता के प्रति महत्ता और जिम्मेदारी की भावना विकसित करने में सहायक हो। उद्देश्यों के आधार पर विश्व के अलग-अलग देशों में स्थानीय परिवेश में पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य प्रसारित हुए हैं। मूल में सभी उद्देश्यों में बेलग्रेड चार्टर के शब्दों में-

“पर्यावरण को सम्पूर्ण रूप से देखो-चाहे वह प्राकृतिक हो अथवा मानवकृत और चाहे वह पारिस्थितिक, राजनीतिक, आर्थिक, औद्योगिकीय, सामाजिक, वैधानिक, सांस्कृतिक और सौन्दर्यपरक हो।”

पर्यावरण शिक्षा का महत्व

  1. सौर मण्डल में केवल पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन सम्भव है। इसे नष्ट होने से बचाना है तथा उस पर बसने वाले प्राणी मात्र को सुखद जीवन उपलब्ध कराना है।
  2. जनसंख्या में जिस गति से वृद्धि प्रतिवर्ष हो रही है उससे सारा प्रकृति चक्र गड़बड़ा गया है। प्रकृति को पुनः संतुलित करने तथा भावी पीढ़ियों को विरासत में सुंदर और व्यवस्थित भविष्य छोड़ने हेतु जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना है।
  3. प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भण्डार भी अन्ततः सीमित ही है। उनका उचित और बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग हो, यह लोगों को सिखाना है और पृथ्वी पर निवास करने वाले प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में बैठाना है।
  4. पेड़ और वनस्पति ही केवल कार्बन-डाई -आक्साइड को प्राण वायु ऑक्सीजन में परिवर्तित कर सकते हैं। अतः वायु मण्डल में ऑक्सीजन की आवश्यक मात्रा बनाये रखने तथा कार्बन डाई ऑक्साइड की वृद्धि से होने वाली पर्यावरणीय विकृतियों से अवगत कराने हेतु व्यक्तियों को ‘करने’ योग्य अथवा ‘न करने’ योग्य की बातें बतानी हैं।
  5. औद्योगिक क्रान्ति तथा वैज्ञानिक उपलब्धियों के फलस्वरूप सुख-सुविधाओं के उपकरणों ने चारों ओर विविध प्रकार का प्रदूषण फैलाया है। उसे नियंत्रित करना तथा बचाव के उपाय सुझाने हेतु कार्यक्रम चलाना है। यह सभी पर्यावरण शिक्षा से ही सम्भव है, अतः पर्यावरण शिक्षा इस समय की ‘आवश्यकता’ है।
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