अर्थव्यवस्था का उद्भव व विकास | विश्व में कोयला का वितरण एवं उत्पादन का वितरण
अर्थव्यवस्था का उद्भव व विकास
प्राचीन समय में मानव जंगली पशुओं तथा मछलियों का शिकार करके व वनों से विभिन्न खाद्य सामग्री एकत्रित कर अपनी उदर पूर्ति करता था और यही प्रारम्भिक मानव की प्रमुख आर्थिक क्रियाएँ थीं, जो उनकी अर्थव्यवस्था को बनाती थीं। धीरे-धीरे मानवीय सभ्यता के विकास के साथ- साथ सिर्फ इन्हीं क्रियाओं पर निर्भर रहना सम्भव नहीं हुआ तो मानव ने अन्य आर्थिक क्रियाए प्रारम्भ की, परन्तु आज भी संसार के कुछ हिस्सों में मानव मामूली से परिवर्तनों के साथ सिर्फ इन्हीं क्रियाओं पर निर्भर हैं। इनमें उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र (1) कांगो बेसिन, (2) अमेजन बेसिन, (3) द. पूर्वी एशिया के वन क्षेत्र, मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों के उ. अमेरिका के उत्तरी भाग, (4) कनाडा व यूरेशिया के शीतोष्ण वन क्षेत्रों में (क) दक्षिण चिली (ख) भूमध्य सागरीय वन क्षेत्र सम्मिलित हैं। यद्यपि यह समाज अपने जीवन निर्वाहन मे पूर्णतया आत्मनिर्भर है फिर भी सभ्य समाज के सम्पर्क में आने से इनकी वस्तुओं का आदान-प्रदान होने से इनकी जीवन शैली में भी परिवर्तन आने लगा है।
अर्थव्यवस्था के विकास के क्रम में दूसरी अवस्था चलवासी पशुचारण की थी। इसमें मानव अपने पशुओं के साथ चारे की तलाश में इधर-उधर घूमता रहता था। यह लोग मौसम की प्रतिकूलता से बचने के लिए प्रातु प्रवास भी करते थे। यह चरवाहा जातियाँ जंगली जानवरों का शिकार भी करते थे। दीर्घ अवधि तक इस व्यवसाय में संलग्न रहने से विभिन्न पशुचारक वर्गों के अपने क्षेत्र व सीमाएँ निश्चित हो गयीं चलवासी पशुचारणता को विस्तृत निर्वाहक कृषि भी कहा जाता है, क्योंकि इस व्यवसाय के अन्तर्गत प्रति हेक्टेयर न्यूनतम मानवीय श्रम का उपयोग होता है। इसमें भूमि की उत्पादकता व जनसंख्या का घनत्व दोनों ही कम रहते थे।
यह पशुचारण आज भी। (1) मध्य एशिया में मंगोलिया, चीन में तिब्बत का पठार, सिक्यांग व अल्टाई क्षेत्र, भारत व पाकिस्तान के उत्तरी भाग, (2) दक्षिण-पश्चिम एशिया में अफगानिस्तान, ईरान-ईराक व अरब प्रायद्वीप तथा (3) अफ्रीका में-सहारा व कालाहारी मरुस्थल में प्रचलित है। अब चलवासी पशुचारकों ने अपनी जीवन शैली में काफी परिवर्तन कर लिया है, और कुछ स्थानों पर तो यह धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। अरब के बदलते आर्थिक परिदृश्य ने यहाँ के पशुचारकों की जीवन शैली को बदलने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।
कृषि का भी आज व्यापारिक स्वरूप पूर्णतः स्थापित हो चुका है। कनाडा व मध्य संयुक्त राज्य अमेरिका बसनतकालीन गेहूँ का बड़ा उत्पादक बन गया है जो पशुपालन के साथ-साथ निर्यात के दृष्टिकोण से गेहूं उत्पन्न करने वाले क्षेत्र हैं। अर्जेन्टाइना, रूस, आस्ट्रेलिया आदि व्यापारिक कृषि के बड़े देश बन गए हैं। व्यापारिक कृषि के अन्तर्गत अनेक देशों में आज रोपण कृषि भी की जाने लगी है। कृषि दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में खड़, चाय, नारियल, गन्ना, केकेला, जूट व दक्षिण अमेरिका में कोको व कहवा उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। यह कृषि वैज्ञानिक प्रबन्धन से युक्त बड़े-बड़े फार्मों पर होती है तथा उत्पादों का प्रसंस्करण करके उन्हें निर्यात किया जाता है। अब बागाती कृषि में भी बहुफसली प्रवृत्ति विकसित होती जा रही है।
अर्थव्यवस्था का सबसे आधुनिक विकसित रूप उद्योग आधारित कृषि है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान हित अनक देशों में उद्योगों का संकेन्द्रण बढ़ने लगा। इनमें से कुछ उद्योग कृषि आधारित थे और कुछ खनिज आधारित। पश्चिमी एशिया के अनेक देश खनिज तेल की उपलब्धता के कारण औद्योगिक देशों की श्रेणी में आ गए। संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैण्ड व रूस में आयुध व अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित अनेक नए उद्योग भी विकसित हुए और यह देश इनके बल पर आज विश्व के अनेक देशों के अगुआ बन गए हैं। उद्योगों के विकास से सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े उत्पादों के उत्पादन की भी विश्व में में होड़ लगी है और आज पूरा विश्व औद्योगिक विकास की दृष्टि से तीन श्रेणियों में विभाजित हो गया है।
आज कृषि एवं पशुपालन दोनों सम्मिलित रूप में ही पाई जाती हैं। पशुपालन आज व्यापारिक डेरी फार्मिंग का और कृषि व्यापारिक कृषि का रूप ले चुकी हैं। व्यापारिक डेरी फार्मिंग आज यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुका है। आज पशुओं की अनेक उच्च प्रजातियाँ विकसित की गयी हैं जिन्होंने पशुपालन के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन कर विश्व की जनसंख्या की पोषण की समस्याओं का निदान प्रस्तुत किया है।
(1) विकसित अर्थव्यवस्था (Development Economy)
इस प्रकार की अर्थव्यवस्था को व्यावसायिक अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है। इनमें प्रति व्यक्ति का स्तर अत्यधिक ऊँचा होता है। प्राकृतिक व मानवीय संसाधनों का प्रयोग विकसित होअवस्था में मिलता है। तकनीक व प्रौद्योगिकी उच्च स्तर की होती है। उत्पादन प्रक्रिया पूर्ण विकसित होती है। संसाधनों से विकसित वस्तुओं का निर्माण होता है, जिससे इनकी उच्च आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। विकसित परिवहन और दूरसंचार सेवाएँ, तकनीकी शिक्षा की पर्यापतता, कम जनसंख्या वृद्धि दर व अर्थव्यवस्था मुख्यतः तृतीयक व चतुर्थक क्रियाओं के चरम विकास को छूने का प्रयास करती हैं। ऐसी अर्थव्यवस्थाएं निम्न है-(1) व्यावसायिक मत्स्य पालन- यह चीन, जापान यूरोपीय देश, कनाडा, यू. एस. ए. में प्रचलित है। (2) व्यावसायिक पशुपालन- यह व्यवसाय यू.एस.ए., यूशिया, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका व आस्ट्रेलिया के घास क्षेत्रों में विकसित हुआ है। (3) व्यावसायिक लकड़ी काटना- यह व्यवसाय कनाडा, फिनलैण्ड, नार्वे, स्वडन व रूस में व्यावसायिक रूप से विकसित हो गया है। (4) व्यावसायिक मिश्रित व अन्न कृषि- मिश्रित कृषि में कृषि व पशुपालन का प्रचलन व्यापारिक स्तर पर होता है। यूरेशिया में अटलांटिक से प्रशान्त तट तक की लम्बी पेटी, यू. एस. ए. का पूर्वी व पश्चिमी तटीय भाग, मध्य मैक्सिको, द. अमेरिका व दक्षिण अफ्रीका में मिश्रित कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्थाएँ विकसित हुई हैं। दक्षिण रूस व उजबेकिसतान अमेरिका का अलवर्टा, सस्केचवान व मेनीटोबा राज्यों में व्यावसायिक अन्न कृषि का प्रचलन बढ़ा है। (5) व्यावसायिक खनन- व्यावसायिक स्तर पर खनन विश्व के अनेक भागों में प्रचलित है, परन्तु पश्चिमी एशिया के देश व दक्षिण अफ्रीका व्यावसायिक खनन से ही विकास की इस श्रेणी में पहुँचे हैं। (6) विनिर्माण उद्योग-व्यावसायिक विनिर्माण उद्योग यूरोप, रूस, एंग्लो अमेरिका व जापान में केन्द्रित हैं जापान तो उच्च प्रौद्योगिकी और मानवीय कुशलता का ऐसा उदाहरण है। जो कि सिर्फ मानवीय संसाधन के बल पर ही एशिया का पहला विकसित देश बना।
इस प्रकार विकसित अर्थव्यवस्थाएं विभिन्न व्यवसायों व विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से अपना वर्चस्व बनाती जा रही हैं।
(2) विकासशील अर्थव्यवस्था (Developing Economy)
विकासशील अर्थव्यवस्था में विश्व के ऐसे समस्त राष्ट्र सम्मिलित किए जाते हैं जो आर्थिक विकास के लिए सतत् प्रयत्नशील रहते हैं। वर्तमान में विश्व के अनेक राष्ट्र इसमें सम्मिलित हैं। विकासशील अर्थव्यवस्था में एक ओर तो मानवीय श्रम का एक बड़ा भाग व्यर्थ जाता है और दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों का भी अनुकूलतम शोषण नहीं हो पाता, जिसके मुख्य कारण यहाँ की संस्थागत अक्षमताएँ, पूँजी की कमी व तकनीकी पिछड़ापन है।
(3) अविकसित अर्थव्यवस्थाएँ (un developing Economy)
अविकसित अर्थव्यवस्थाएँ अधिकांश उन क्षेत्रों में देखने को मिलती हैं जहाँ मानव आज भी वन-वस्तु संग्रहण, पशुचारण शिकार, आदि में संलग्न रहते हैं और उनका जीवन आज भी प्रत्यक्ष रूप से प्राकृतिक उत्पादों से जुड़ा है। ऐसी अर्थव्यवस्थाएँ मध्य एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, उ. अमेरिका महाद्वीपों में पायी जाती हैं। यह लोग दैनिक भ्रमण या मौसमी प्रवास करते हैं। इनकी अर्थव्यवस्था पूर्णतः जीव-जन्तु व वनस्पतियों पर ही आधारित होती है तथा उनकी आवश्यकताएँ भी सीमित होती हैं।
इन देशों में लोगों का जीवन स्तर निम्न होता है। यह लोग उद्योगों से लगभग दूर ही होते हैं। यहां कुपोषण, बीमारियाँ, भुखमरी, अशिक्षा व अंधविश्वास चरम सीमा में पाया जाता है। अब यह लोग कुछ अन्य आर्थिक क्रियाँ भी करने लगे हैं जिससे इनमें जागरूकता व शिक्षा का धीरे-धीरे प्रसार हो रहा है।
अर्थव्यवस्था अपने आरम्भिक स्वरूप से निकलकर विकास की ओर अग्रसर है परन्तु विकास की यह आर्थिक प्रक्रिया सभी क्षेत्रों में समान नहीं है। कहीं-कहीं यदि वह प्रारम्भिक से विकसित होकर विकसित स्वरूप को प्राप्त हो चुकी हैं तो कहीं यह आज भी अपने उसी स्वरूप में जीवित है। इस प्रकार यह सतत् प्रक्रिया तब तक अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पायेगी, जब तक कि यह विकास सभी क्षेत्रों में न हो जाये।
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