प्रमुख पारिस्थिकी तन्त्र । प्रमुख पारिस्थिकी तन्त्रों का वर्णन | Major ecology system in Hindi | Description of major ecological systems in Hindi

प्रमुख पारिस्थिकी तन्त्र । प्रमुख पारिस्थिकी तन्त्रों का वर्णन | Major ecology system in Hindi | Description of major ecological systems in Hindi
प्रमुख पारिस्थिकी तन्त्र
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वन पारिस्थितिक तन्त्र (Forest Ecosystem)-
जलवायु दशाओं पर आधारित वन को-ऊष्ण कटिबन्धीय वन (Tropical forest), उप-ऊष्ण कटिबन्धीय वन (Sub-tropical forest) एवं शीतोष्णीय वन (Temperate forest) में विभाजित करते हैं अथवा जलवायु भौमिकी, मिट्टी एवं जल की उपलब्धि के अनुसार वन तीन प्रकार के होते हैं-
(i) ऊष्ण कटिबन्धीय वर्षा वाले वन (Tropical rain forest),
(i) शकुल वन (Coniferous forest),
(i) पर्णपाती वन (Deciduous forest),
प्रत्येक प्रकार के वनों के स्वयं के लक्षण, पादप (flora) एवं प्राणी (fauna) समूह होते हैं। एक वन पारिस्थितिक तन्त्र में मुख्य घटक निम्नलिखित पाये जाते हैं-
(i) अजैविक (Abiotic) : मिट्टी में उपस्थित खनिज पदार्थों के अतिरिक्त वनों की धरातल मृत (dead) एवं सड़े-गले कार्बनिक पद्र्थों (organic matter) से अधिक परिपूर्ण होता है।
(ii) उत्पादक (Producers) – वनों के पारिस्थितिक तन्त्र में प्रमुख रूप से बीज वाले पौधे, पेड़ कुछ झाड़ियाँ (Shrubs) एवं सतही वनस्पति (ground vegetation) उत्पादक होते हैं। ये पोषण/भोजन का स्रोत, जीवों, प्राणियों के लिए आश्रय एवं मिट्टी के निर्माण में सहायक होते हैं। इनकी पत्तियाँ पतझड़ के समय गिर जाती है।
(iii) उपभोक्ता (Consumers)- (i) प्रायमरी उपभोक्ताओं (Primary consumers) के अन्तर्गत कीट (insects), चाटा, मच्छर, भ्रंग (beetles), मकड़ी बड़े आकार के प्राणियों में हाथी, हिरन, गिलहरी आदि होते हैं, जो उत्पादक पेड-पौधों वनस्पति आदि को खाते हैं।
द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers)- इसके अन्तर्गत मासाहारी प्राणी आते हैं, सर्प, छिपकली, लोमड़ी (foxes) पक्षी (birds) जो कि शाकभक्षियों को खाते हैं।
तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers)-इसके अन्तर्गत बड़े आकार के माँसाहारी प्राणी आते हैं- शेर, बाघ, चीता, आदि जो कि शाकभक्षियों एवं माँसभक्षी को खाते हैं।
अपघटक (Decomposer)- इसके अन्तर्गत जीवाणु (bacteria) कवक/फपफूद (fungi)। यह मृत प्राणियों एवं पादप पदारथों, उनके भागों को अपघटित (decompose) कर पुनर्उपयोग हेतु आवश्यक पदार्थों को बनाते हैं। ऊष्ण कटिबन्धीय वनों एवं उपोष्ण (sub-tropical) वनों में अपघंटन (decomposition) की दर शीतोष्ण वनों की अपेक्षा अधिक तीव्र होती है। खनिज लवण आदि जल के साथ मिट्टी के द्वारा अवशोषित कर लिये जाते हैं। इन खनिज लवणों का उपयोग उत्पादक प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) विधि के द्वारा भोजन के निर्माण में सहायता करते हैं।
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घास क्षेत्र पारिस्थितिक तंत्र (Grassland Ecosystem)-
पृथ्वी (Earth) की लगभग 10 प्रतिशत सतह/ क्षेत्र चारागाहों/घास क्षेत्र के द्वारा अधिकृत किया हुआ है। यह पारिस्थितिक तन्त्र थलीय पारिस्थितिक (Terrestrial ecosystem) के अन्तर्गत आता है। इस तन्त्र में निम्नलिखित घटक (components) आते हैं-
(a) अजैविकी (Abiotic)-
इसके अन्तर्गत – C,H,N,O,P,S,CO2, पानी, नाइट्रेट्स (nitrates), साल्फेट्स (sulphate), फास्फेट्स (phosphate) द्वितीयक उपभोक्ता एवं अन्य सूक्ष्म मात्रिक तत्व (Trace elements) पाये जाते हैं। वायुमण्डल में गैसे -CO2 एवं जल आदि पाया जाता है।
(b) उत्पादक (Producers)- इसमें मुख्य रूप से घास पाई जाती है, इसके अतिरिक्त शाकीय (herbs), झाड़ी (shrubs) एव वितरित रूप में एक-दो पेड़ पाये जाते हैं। घास की प्रमुख जातियाँ हैं- डाइकोटूलम (Ditantalum), सायनेडोन (Cyanidin), डेस्मेडियम (Desmidian), स्पाइरोबोलस (Spiro bolus), सेटेरिया (Steria), ब्रेकिएरिया (Brachialis) आदि।
(c)उपभोक्ता (Consumers)-
(i) प्रायमरी उपभोक्ता (Primary Consumers)-इसके अन्तर्गत प्रमुख रूप से चरने वाले (grazing) प्राणी आते हैं-गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, हिरन, खरगोश, चूहे एवं कुछ कीट (insects) टिङ्डा (grasshopper),धान का कीट लेप्टोकोराइजा, (Leprosaria), कपास का कीट डिस्कस (Desiderius) सब्जियों (Vegetables) वाले कीट-सिसिनडेला (Cicindelid), कॉक्सीनेला (Cuccinelli), कुछ दीमक (Termites) आदि।
(ii) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers)- इसमें माँसभक्षी प्राणी आते हैं जो कि शाकभक्षियों (herbivores) को खाते हैं। उदाहरण -लोमड़ी (fox), सियार (Jackals), सर्प (Snakes), छिपकली, मेंढक एवं पक्षी आदि।
(ii) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumer)-इस प्रकार के घटक में-बाज (hawks), चील (Eagle), शेर, बाघ, चीता आदि जो कि शाकाहारी एवं माँसाहारी दोनों प्रकार के प्राणियों को खाते हैं।
(d) अपघटक (Decomposers)- इनका सूक्ष्म उपभोक्ता (micro consumers) भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत जीवाणु (bacteria), कवक/फफूंद (moulds) तथा फरफुँद/ कवक-म्यूकर (macer), पेनिसिलियम (Penicillium) आदि। यह प्राणियों एवं पौधों के मृत शरीर एवं भागों को सड़ाने एवं अपघटन (decompose) करने में सहायता करते हैं। यह अपघटक जटिल कार्बनिक पदार्थों को साधारण खनिजों में परिवर्तित करके मिट्टी को पुनः वापस कर देते हैं और उत्पादकों को उपलब्ध कराते हैं।
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मरुस्थलीय पारिस्थितिक तंत्र (Desert Ecosystem)-
रुस्थल क्षेत्र उन स्थानों पर पाये जाते हैं जिन स्थानों/क्षेत्रों में वर्षा 25 सेमी. प्रतिवर्ष से कम होती है। मरुस्थल संपूर्ण भूमि का लगभग 17 प्रतिशत भाग को अधिकृत किये हुए है। यहाँ का तापक्रम भी अधिक होता है। इस पारिस्थितिक तंत्र के घटक निम्न प्रकार से हैं।
(a) अजैविकी (Abiotic)- इसके अन्तर्गत जल आता है। इसकी मात्रा बहुत ही कम पाई जाती है जब कि आज जल वेग प्रवाही (Torrential) वर्षा के द्वारा ही संग्रहीत होता है, तापक्रम अत्यधिक होता है दिन के समय अधिक गर्म और रात के समय ठण्डा होता है। निम्न आपेक्षिक आद्द्रता (low relative humidity) एवं धूल ऑधी (dust storms) आदि भी आते हैं।
(b) प्रमुख उत्पादक (Chief Producers)- झाड़ियों (shrubs) छोटी झाड़ियों/झाड़ (bushes) एवं कुछ पेड़, पौधे जिनकी जड़ें व्यापक रूप से स्थित होती है तथा तने (stern) एवं पत्तियाँ जल को संग्रहीत करने के लिए तथा वाष्पीकरण या प्रसेदन (Transpiration) के द्वारा पानी की कम क्षति होने के लिए रूपांतरित होती है। निम्न जाति के पौधे जैसे कि लाइचेन्स (Lichens), मॉस (moss), नील हरित शैवाल (blue green algae), सूक्ष्म/लघु उत्पादक के रूप में होते हैं।
(c) प्रायमरी उपभोक्ता (Primary Consumers)-इसके अन्तर्गत खरगोश आते हैं। जो रसदार पौधो/गूदेदार पौधों (Succulent plants) से जल को प्राप्त करते हैं। यह जल को पीते नहीं हैं यदि जल स्वतंत्र रूप से प्राप्त होता है। ऊँट (Camel) भी ग्रायमरी उपभोक्ता है।
(d) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers)- इसके अन्तर्गत मांसाहारी प्राणी आते हैं जैसे सरीसृप प्राणी (reptiles) जिनकी त्वचा अप्रभावनीय होती है जो कि पानी की क्षति को शरीर की सतह के द्वारा बनाए रखते हैं। सरीसृप प्राणी मरुस्थली दशाओं में रह सकते हैं।
(e) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers)-इसके अन्तर्गत केवल पक्षी आते हैं, जो कि ठोस यूरिक अम्ल को उत्सर्जित कर पानी का संग्रहण करते हैं। कुछ रात्रिचर रोडेन्ट्स (Rodents) भी आते हैं।
(f) अपघटक (Decomposer)- जीवाणु (bacteria) एवं कवक/फफूँद इसके अन्तर्गत आते हैं, जो कि गर्म जलवायु में जीवित रह सकते हैं या फलते-फूलते हैं।
पादप एवं प्राणियों की कम संख्या में उपस्थिति के कारण मृत कार्बनिक पदार्थ बहुत कम मात्रा में प्राप्त होते हैं और इसी कारण अपघटन भी बहुत कम मात्रा/संख्या में होता है।
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जलीय पारिस्थितिक तंत्र
जलीय पारिस्थितिक तंत्र के अन्तर्गत दो प्रमुख प्रकार के पारिस्थिति तंत्र आते हैं- (I) स्वच्छ जलीय पारिस्थितिक तंत्र (Fresh water ecosystem) एवं (II) समुद्री/लवणीय जल पारिस्थितिक तंत्र (marine ecosystem)।
(I) स्वच्छ जलीय/ अलवणीय जल पारिस्थितिक तंत्र (Fresh Water Ecosystem)- वर्षा का पानी स्थान-स्थान पर तालाबों, झीलों, झरनों, नदियों आदि के रूप में प्राकृतिक स्वच्छ जल भण्डारों का निर्माण करता है। इस प्रकार के जल भण्डारों में लवण की मात्रा कम होती है। इसमें तीव्र समरूपी धाराएँ पाई जाती हैं। स्वच्छ जल समद्री जल की अपेक्षा मौसम एवं जलवायु से अधिक प्रभावित होता है। बड़ी झीलों को छोड़कर स्वच्छ जल के अन्तर्गत तालाब (Pools), झील (Lakes), नदियाँ (Rivrs) एवं सरिताएँ (Streams) जलीय आवास आते हैं। तालाब एवं झीलें स्थिर जलीय पारिस्थितिक तंत्र में आते हैं।
5. तालाब/जलाशयी एवं झील पारिस्थितिक तंत्र (Pond Lake Ecosystem)
जलाशयी/तालाब पारिस्थितिक तंत्र एक आत्मनिर्भर एवं आत्म नियंत्रक (Self-regulating) तंत्र है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित घटक आते हैं।
(a) अजैविकीय घटक (Abiotic Components)- इसमें अकाब्बनिक (Inorganic) एवं कार्बनिक (Organic) यौगिक (Components) आते हैं जैसे कि जल, ऑक्सीजन, कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) खनिज (minerals), कैल्शियम (Calcium), फास्फोरस एवं नाट्रोजन यौगिक एवं ह्यूमिक अम्ल (Humic acid) आदि आते हैं। इन पोषक तत्वों का कुछ भाग घाल के रूप में जो कि जीवों को आसानी से उपलब्ध होते हैं। जबकि अधिकांश भाग ठोस रूप में सुरक्षित रहता है। यह सुरक्षित तत्व जीवों में स्वयं और आधारीय खण्डों में विभक्त पदार्थों (particulate matter) के रूप में पाये जाते हैं। पोषकों (nutrients) को ठोस पदार्थों से मुक्ति, सौर्य ऊर्जा प्राप्ति, दिन की लम्बाई/अवधि, तापक्रम चक्र एवं अन्य जलवायु दशाएँ तालाब/ जलाशय पारिस्थितिक तंत्र के कार्य की दर को निर्धारित करती है।
(b) जैविकी घटक (Biotic Components) :
(i) उत्पादक (Producers)- इसके अन्तर्गत पादप प्लवक (phytoplankton), तन्तुमयी शैवाल (filamentous algae), निमग्न पौधे (submerged plants), तटीय एवं निर्गत (emergent) पोधे और जल की सतह पर तैरने वाले पौधे आते हैं। उदाहरण वाल्वाक्स, युग्लीना, यूडोराइना, क्लोस्टेरियम, स्पाइरोगायरा, कारा, ओइडोगोनियम, वेलिस्नेरिया, ओरेलिया, आइपोमिया, सिंघाड़ा एवं पिस्टिया, लेम्ना, ऐजौता आदि।
(ii) दीर्घ उपभोक्ता (Macro Consumers)- इसके अन्तर्गत प्राणि समूह आता है। जो कि तीन वर्गों- प्रायमरी, द्वितीयक एवं तृतीयक गुरु उपभोक्ता कहलाते हैं।
प्रायमरी गुरु उपभोक्ता : प्राणि प्लवक (Zooplankton) तरण (nektons) एवं नितल (benthos) प्राणी आते हैं। डाइनोफ्लैजेलेंट्स एवं रोटीफर आते हैं जो कि जल की सतह पर जीवन व्यतीत करते हैं।
तरणक (Nektons): जलीय कीट (Insects) कीटप्लावी, मछलियाँ जो तैर सकती हैं।
नितल (Benthos) : ऐनेलिड्स, क्रस्टेशियन्स, मोलस्क, मछलियाँ आती हैं जो कि जल के धरातल में पाई जाती हैं। ये जीवित पौधे के अवशेषों को खाती हैं। द्वितीयकः माँसाहारी प्राणियों के अन्तर्गत भक्षक कीट (predatory insects), मेंढक एवं मछलियाँ आती हैं। तृतीयक गुरु उपभोक्ता के अन्तर्गत बड़े आकार की मछलियाँ आती हैं जो कि छोटी मछलियों एवं अन्य प्राणियों को खाती हैं।
(iii) अपघटक (Decomposer) या मृतोपोषी (Saprotrophs) इसके अन्तर्गत जलीय जीवाणु, कवक/फफ्फूँद एवं कशाभिकीय (filagelletes) जीव आते हैं। यह संपूर्ण तालाब में वितरित रहते हैं।, लेकिन सतह पर दलदली मार्ग में अधिक होते हैं जहाँ पर प्राणियों एवं पौधों का शरीर या उनके भाग आकर एकत्रित होते हैं। तापक्रम की अनुकूल दशाओं में अपघटन की क्रिया तीव्रता से होती है। मृत जीव परन्तु अपघटित/विघटित हो जाते हैं और सूक्ष्मजीवियों के द्वारा अपरदीय पोषी जीवों के द्वारा उपभोग कर लिया जाता है और पोषक तत्वों को पुनः उपयोग करने के लिए मुक्त कर दिया जाता है।
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