भूगोल / Geography

जैवमंडल किसे कहते हैं? | जीवमंडल क्या है | What is the biosphere called in Hindi | What is biosphere in Hindi

जैवमंडल किसे कहते हैं? | जीवमंडल क्या है | What is the biosphere called in Hindi | What is biosphere in Hindi

जैवमंडल किसे कहते हैं?

जैव मण्डल की सर्वप्रथम संकल्पना लगभग एक सौ साल पहले आस्ट्रियन, भू- वैज्ञानिक एडवर्ड सुएस ने की थी। उस समय इस धारणा को विशेष महत्व नहीं दिया गया, परन्तु आज जैव मण्डल मानव के सम्मुख सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समस्या बन गया है।

जैव मण्डल का विशिष्ट अभिलक्षण यह है कि यह जीवन को आधार प्रदान करता है। अनुमान है कि जैव मण्डल में शैवाल, फंगस और काइयों से लेकर उच्चतर किस्म के पौधों की साढ़े तीन लाख जातियाँ हैं तथा एक कोशिकीय प्राणी प्रोटोजोआ से लेकर मनुष्य तक एक करोड़ दस लाख प्रकार की प्राणि-जातियाँ इसमें सम्मिलित हैं। जैव मण्डल इन सभी के लिए आवश्यक सामग्री; जैसे–प्रकाश, ताप, पानी, भोजन तथा आवास की व्यवस्था करता है।

जैव मण्डल या पारिस्थितिकी व्यवस्था, जैसे कि यह सामान्यतया जानी जाती है, एक विकासात्मक प्रणाली है। इसमें अनेक प्रकार के जैविक और भौतिक घटकों का सन्तुलन बहुत पहले से ही क्रियाशील रहा है। जीवन की इस निरन्तरता के मुल में अन्योन्याश्रित सम्बन्धों का एक सुघटित तन्त्र काम करता है। वायु, जल, मनुष्य, जीव-जन्तु, वनस्पति, प्लवक, मिट्टी और जीवाणु ये सभी जीवन-धारण प्रणाली में अदृश्य रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए है और यही व्यवस्था पर्यावरण कहलाती है।

पारिस्थितिकी तन्त्र या पर्यावरण की अपनी लय और गति होती है, जो नाजुक रूप से सन्तुलित आवर्तनों के सम्पूर्ण सेट पर आधारित है। सभी जीवाणु, पेड़-पौधे, पशु वर्ग और मनुष्य, ये सभी पर्यावरण के साथ स्वयं अपना समायोजन करके और उसकी लय के साथ अपने जीवन को सुव्यवस्थित करने के कारण, आज तक जीवित हैं। इसलिए यह नितान्त आवश्यक है। कि इन आवर्तनों को अक्षुण्ण बनाये रखा जाय।

सौर ऊर्जा जैव मण्डल को बनाये रखती है और जैव मण्डल को मिलने वाली कुल ऊर्जा का 99.88 प्रतिशत भाग इसी से प्राप्त होता है। सूर्य सतत् रूप से सौर-ताप के रूप में अपनी ऊर्जा उड़ेलता रहता है। प्रकाश क्वान्टम कहलाने वाली ऊर्जा पुंज होती है। प्रकाश क्वान्टम का ऊर्जा अंश उसकी आवृत्ति का समानुपाती होता है। तरंग की लम्बाई जितनी छोटी होती है, उतनी ही उसकी आवृत्ति उच्च होती है और उसमें ऊर्जा का अंश अधिक होता है।

जिस प्रक्रिया के द्वारा सौर ऊर्जा अणुओं में अन्तरित हो जाती है, उसे प्रकाश- रासायनिक प्रक्रिया कहते हैं। इस प्रक्रिया में सूर्य का प्रकाश अणु में इलेक्ट्रॉन अपने पड़ोसी परमाणु या अणु से निकले इलेक्ट्रॉन के साथ जोड़ बनाते हैं और इस प्रकार निर्मित इलेक्ट्रॉन युग्मों से नये अणुओं का सृजन होता है।

जैव मण्डल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रकाश रासायनिक क्रिया-कलाप, पौधों में होने वाला प्रकाश संश्लेषण है। प्रकाश संश्लेषण एक जटिल प्रक्रिया है, इसमें क्लोरोफिल अणुओं और पौधों में अन्य वर्णकों द्वारा अवशोषित प्रकाश इस प्रकार से इलेक्ट्रॉनों में स्थानान्तरित होता है, जिससे मजबूत ऑक्सीकारकों का निर्माण हो जाय। जो अणु अन्य अणुओं से इलेक्ट्रॉनों को तुरन्त अलग करते हैं, उनका ऑक्सीकरण कर देते हैं। जो अणु अन्य अणुओं को इलेक्ट्रॉन की आपूर्ति करते हैं, उनका अपचयन कर देते हैं।

ये ऑक्सीकारक और अपचायक ही कार्बन डाइ-ऑक्साइड और पानी के अणुओं से कार्बोहाइड्रेट और ऑक्सीजन उत्पन्न करने में पौधों की सहायता करते हैं। पौथे साँस छोड़ने में ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं, लेकिन उस कार्बाहाइड्रेट को बनाये रखते हैं, जो ऊर्जा में बद जाते हैं और रासायनिक बॉण्ड के रूप में संचित हो जाती है, जिसमें एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट (A. T. P) उल्लेखनीय है, जो कि सभी जीवित कोशिकाओं के लिए आधारभूत ऊर्जा का काम करता है। A. T. P. के उच्च ऊर्जा फॉस्फेट बॉण्डों में 12,000 कैलोरी होती है और जब वे तोड़े जाते हैं। तो वे 7,500 कैलोरी का मोचन करते हैं।

शाक-सब्जियों और पौधों से भोजन पाने वाले शाक भक्षियों तथा अपने भोजन के लिए शाक भक्षियों पर निर्भर रहने वाले माँसाहारी प्राणियों द्वारा यह ऊर्जा आहार श्रृंखला तक ले जायी जाती हैं। पौधों और पशुओं (मनुष्य सहित) द्वारा प्राप्त की गयी अधिकांश ऊर्जा जीवनप्रक्रिया को बनाये रखने के लिए उपयोग की जाती है और खर्च की जाती है।

जीवन के क्रम में जो ऊर्जा व्यय नहीं की जाती है, वह मृत पदार्थ में संचित हो जाती है। वियोजित जीवाणु मृत पदार्थ को तोड़ देते हैं और उसे ह्यरुमक या जैव अवसादों में परिवर्तित करके जैव मण्डल में कार्बन डाइ-ऑक्साइड, पानी और ताप का मोचन करते हैं। इस प्रकार जीवन के बुनियादी, संघटक मिट्टी में वापस आ जाते हैं। पौधे मिट्टी से अपने पोषक तत्व प्राप्त करते हैं और यह चक्र चलता रहता हैं।

ताप आवर्तन-

ताप जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है। इसकी आपूर्ति सौर विकिरण द्वारा की जाती है। गणना की गयी है कि पृथ्वी की कक्षा तक (वायु मण्डल के ठीक ऊपर) पहुँचने वाला सौर ताप प्रति मिनट प्रति वर्ग सेण्टीमीटर लगभग दो कैलोरी होता है, लेकिन पृथ्वी वायुमण्डल के शीर्ष तक पहुँचने वाले विकिरण का आधे से कम भाग प्राप्त कर पाती है।

लगभग दो प्रतिशत भाग वायु मण्डल में ओजोन परत द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। वायु मण्डलीय जल वाष्प, कार्बन डाइ-ऑक्साइड और धूल कण लगभग 18 प्रतिशत भाग का अवशोषण कर लेते हैं। मेघ लगभग 23 प्रतिशत भाग का आकाश में परावर्तन कर देते हैं। पृथ्वी को केवल शेष 38 प्रतिशत भाग ही प्राप्त होता है। लेकिन यह प्रक्रिया यही समाप्त नहीं हो जाती। प्राप्त 38 प्रतिशत और विकिरण में से पृथ्वी दीर्घ तरंग विकिरण द्वारा 7 प्रतिशत भाग का पुनः विकिरण कर देती है, जिसमें पार्थिव ऊर्जा का स्टॉक घटकर 31 प्रतिशत रह जाता है ।

इसी के साथ, वायुमण्डल द्वारा विकीगित 23 प्रतिशत भाग में से 16 प्रतिशत भाग अन्ततोगत्वा विसरित विकिरण के रूप में पृथ्वी तक पहुँचता है, जबकि शेष 6 प्रतिशत भाग असाध्य रूप से आकाश में नष्ट हो जाता है। इस प्रकार कुल मिलाकर, वायु मण्डल तक पहुँचने वाली सौर ऊर्जा से लगभग 47 प्रतिशत ऊर्जा पृथ्वी को प्राप्त होती है। इसी बीच, सूर्य और पृथ्वी के धरातल के बीच मध्यस्थ के रूप में काम करने वाला वायु मण्डल सवेद्य ऊष्मा के रूप में 5 प्रतिशत ऊर्जा और जल वाष्प में गुप्त ऊष्मा के रूप में लगभग 24 प्रतिशत ऊर्जा रोक लेता है।

यह आवश्यक है कि ऊष्मा का अवशोषण और पुनः विकिरण सन्तुलित रहे। अन्यथा, विकिरण से ऊष्मा परिणामों की वृद्धि या कमी के अनुसार पृथ्वी को ऊष्मा में सकल वृद्धि या सकल कमी का अनुभव होगा। अवशोषण और पुनः विकिरण के बीच सन्तुलन के नियमन मुख्यतया वायु मण्डल में जल वाष्प द्वारा होता है।

वायु मण्डल में बहुत कम परिमाण में लगभग 0.001 प्रतिशत जल है। वायु मण्डलीय जल का यह नगण्य परिमाण पृथ्वी की जलवायु पर प्रभाव डालता है। ऊष्मा के अवशोषण और विकिरण के बीच सन्तुलन बनाये रखने के अलावा यह जल आवर्तन को नियन्त्रित रखता है और हमारी जलवायु सम्बन्धी दशाओं का निर्धारण करता है।

ऑँक्सीजन आवर्तन-

ऑक्सीजन केवल जीवन को ही आधार प्रदान नहीं करती, बल्कि जीवित तत्त्वों के अन्दर व्यावहारिक रूप से महत्त्वपूर्ण चौथाई भाग के लगभग परमाणुओं के इमारती खण्ड के रूप में आधारभूत भूमिका निभाती है।

ऑक्सीजन आवर्तन को प्रभावित करने वाला घटक स्वयं मनुष्य है, जो कि पृथ्वी में सबसे नव्य प्राणी है। वह श्वसन की प्रक्रिया में ऑक्सीजन का स्टॉक कम करके कार्बन डाइ- ऑक्साइड की आपूर्ति में वृद्धि करता है। इससे भी आगे बढ़कर वह फोजिल ईंधनों को जलाता है और ऑक्सीजन आपूर्ति और अधिक कम कर देता है। वह वनों को काटकर और उन पर शहर बसाकर प्रकाश संश्लेषण क्रिया को कम कर देता है।

कुछेक खगोलज्ञों का विचार है कि वायु मण्डल में ऑक्सीजन की मूल आपूर्ति सूर्य की पराबैंगनी किरणों से हुई थी, जिसने ऊपरी वायु मण्डल में जल अणुओं को तोड़कर उन्हें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभक्त कर दिया। वाय मण्डल में ऑक्सीजन का चाहे जो मूल स्रोत रहा हो, महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पौधे प्रकाश संश्लेषण के जरिये ऑक्सीजन की आपूर्ति में वृद्धि कर रहे हैं। वे हमारी ऑक्सीजन की आपूर्ति में ही वृद्धि नहीं कर रहे, बल्कि उस कार्बन डाइ-ऑक्साइड की कुल आपूर्ति में भी कमी कर रहे हैं, जो खतरे की स्थिति तक बढ़ती चली जा रही है।

नाइट्रोजन आवर्तन-

जिस रूप में नाइट्रोजन वायु मण्डल में प्राप्त होता है, उस रूप में उच्च प्राणियों द्वारा उसका उपयोग नहीं किया जा सकता, इसे यौगिकीकृत करना हाता है अर्थात इसका रासायनिक यौगिक में समावेश करना होता है। दूसरे शब्दों में, नाइट्रोजन को अमानिया या एमानो एसिडों में बदलना होता है, जिससे कि उनका उपयोग पौधों और प्राणियों द्वारा किया जा सके।

भूमि पर वायु मण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण डाइजोट्राक नामक जीवों द्वारा किया जाता है, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण को उत्तेजित करने वाले एन्जाइम नाइट्रोजिनेस की संश्लेषण के लिए आनुवांशिक कूट रखते हैं। ये जीव मोटे रूप में दो वर्गों में रखे जा सकते हैं- सहजीवी और गैर सहजीवी। सहजीवी डाइजोट्राफ शिबी जैसे पौधों की कुछेक प्रजातियों के सहयोग में क्रियाशील होते हैं। शेष (17प्रतिशत) का योगदान कंरने वाले गैर-सहचारी एजेन्ट में नीले-हरे शैवाल, ऑक्सीजन की अपेक्षा रखने वाले वायुजीवी, अवायवीय तथा बैक्टीरिया शामिल हैं।

जल आवर्तन-

जल, जैव मण्डल के प्रकार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह जीवन के सभी रूपों पौधों, प्राणियों और मनुष्य के लिए आवश्यक है। जल आवर्तन की दो सुस्पष्ट शाखाएँ हैं- वायु मण्डलीय शाखा और पार्थिव शाखा। वायु मण्डल में पानी मुख्यतया गैसीय रूप में होता है। पृथ्वी पर यह अधिकांशतया तरल रूपों में और ठोस (हिम) रूपों में है।

जैव मण्डल के लिए पानी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि पानी से ही जैव मण्डल अपने सर्वाधिक प्रचुर तत्व हाइड्रोजन को प्राप्त करता है। कार्बोहाड्रेट के रूप में हाइड्रोजन सभी जीवित जीवों के लिए ऊर्जा के अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत का निर्माण करता है। यद्यपि महासागरों में जल की आपूर्ति प्रचुर मात्रा में है, फिर भी यह प्रत्यक्ष रूप से हमारे उपयोग में नहीं आता।

हम अपनी नदियों और मीठे पानी की झीलों और अवमृदा में समाविष्ट जल के छोटे स्टॉक एक प्रतिशत से कम पर निर्भर है। पानी का यह छोटा स्टॉक चलते जल के इससे भी छोटे स्टॉक 0.001 प्रतिशत द्वारा फिर से भरा जाता है, जो जल वाष्प के रूप में वायु मण्डल में प्रवाहित रहता है और जिसका अधिकांश भाग वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरता है।

जैव मण्डल का एक आवर्तन वाष्पन एवं वर्षण के अन्योन्य विनिमय पर निर्भमर करताहै। पृथ्वी पर तरल जल वाष्पन और वाष्पोत्सर्जन के जरिये वाष्प के रूप में वायुमण्डल में चला जाता है। वाष्प या हिम के रूप में यह वाष्प पृथ्वी पर लौट आती है।

भूगोल –महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!