भारत के नियोजन प्रदेश | नगर एवं देश नियोजन संगठन की योजना
भारत के नियोजन प्रदेश | नगर एवं देश नियोजन संगठन की योजना | Planning Regions of India in Hindi | town and country planning organization in Hindi
भारत के नियोजन प्रदेश
देश के संतुलित एवं बहुमुखी विकास के लिये नियोजन आवश्यक है। एक नियोजन प्रदेश एक क्षेत्र का टुकड़ा या भाग होता है जिस पर आर्थिक निर्णय लागू किये जाते हैं। ऐसा प्रदेश एक प्रशासनिक या राजनीतिक प्रदेश जैसे-राज्य, जिला या ब्लॉक हो सकता है। चूंकि नियोजन सांख्यिकीय आँकड़ों पर आधारित होता है, जो प्रायः सामान्यतः प्रशासनिक ईकाइयों के स्तर पर एकत्रित किये जाते हैं, अतः नियोजन प्रदेश प्रशासनिक प्रदेशों से संपत्ति होते हैं।
प्रत्येक नियोजन प्रदेश का एक विशिष्ट संरचनात्मक तथा प्रकार्यात्मक स्वरूप होता है। भारत की नियोजन प्रदेशों के सीमांकन के लिये निम्नलिखित आधार महत्त्वपूर्ण हैं-
(i) राष्ट्रीय क्षेत्र के प्रशासनिक विभागों के पदानुक्रम में यथासंभव सबसे छोटी क्षेत्रीय इकाई का चयन।
(ii) प्रत्येक इकाई के लिये आवश्यक आँकड़ों तथा सूचनाओं का एकत्रण।
(iii) नियोजन प्रदेश के उद्देश्य तथा उसके विधितंत्र के अनुसार विकास के चरों (variables) का चयन।
(iv) चरों का परिकलन (calculation)
(v) गणितीय/सांख्यिकीय विधियों के आधार पर लघु या सूक्ष्म (micro) क्षेत्रीय इकाइयों का प्रादेशिक समूहन।
(6) सूक्ष्म इकाइयों का मध्यम (meso) तथा वृहत (macro) इकाइयों में पुनर्समूहन।
(7) विभिन्न क्रमों (orders) के नियोजन प्रदेशों का मानचित्रण
नियोजन प्रदेशों की पहचान करने में प्राकृतिक प्रदेशों का महत्व व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। किंतु, यह भी व्यक्त किया गया है कि आर्थिक नियोजन या विकास के लिये नियोजन में प्राकृतिक प्रदेशों की प्रासंगिकता सीमित होती है। एक नियोजन प्रदेश के सीमांकन में आर्थिक संभाव्यता (variability) को अधिक महत्व दिया गया है।
विभिन्न विद्वानों द्वारा विकसित नियोजन प्रदेशों की कुछ योजनाएँ निम्नवत् हैं-
वी० नाथ की योजना
वी. नाथ (V. Nath) 1964), योजना आयोग के भूतपूर्व सलाहकार, ने नियोजन प्रदेशों की एक योजना तैयार की। उन्होंने सामाजिक-आर्थिक दशाओं तथा उनके बढ़ते हुए अंतरों के आधार पर पाँच प्रमुख प्रदेश सीमांकित किये- (1) दक्षिणी, (2) पश्चिमी, (3) उत्तर पश्चिमी, (4) उत्तरी मध्य एवं पूर्वी एवं (5) पर्वतीय, वनाच्छादित एवं शुष्क प्रदेश।
(i) दक्षिणी प्रदेश- इसमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल तथा पुडुचेरी सम्मिलित हैं। सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से यह प्रदेशका देश के औसत से ऊपर हैं तथा नगरीयकरण, देश की कुल श्रम शक्ति से श्रमिकों का प्रतिशत, प्रमुख फसलों की उत्पादकता, सामान्य तथा महिला साक्षरता, जनसंख्या वृद्धि की घटती हुई दर, विद्युतीकृत गाँवों की संख्या तथा निर्धनता रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के अनुपात के संदर्भ में निरंतर सुधार दर्ज कर रहा है। इस प्रदेश में चेन्नई, बंगलौर, हैदराबाद, कोयंबटूर, विशाखापट्टनम, मंगलौर तथा कोचि बृहत औद्योगिक केंद्र बन गये हैं, जिनमें से प्रथम तीन सूचना प्रौद्योगिकी के केंद्र हैं। केरल तथा तमिलनाडु में मानव विकास सूचकांक का उच्च मान (D.600 से अधिक) दर्ज होता है।
(ii) पश्चिमी प्रदेश- इसमें महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, दमनक एवं दीव, दादरा एवं नगर हवेली सम्मिलित हैं। इनमें प्रथम कदो राज्य (महाराष्ट्र एवं गुजरात), देश की 25 प्रतिशत जनसंख्या तथा 36 प्रतिशत कारखाना रोजगार सहित देश के सर्वाधिक औद्योगीकृत राज्य हैं। महाराष्ट्र में मुंबई-पुणे/नासिक की औद्योगिक रूप से विकसित धुरियाँ तो विद्यमान हैं ही, साथ ही कृषि-संपन्न मराठवाड़ा प्रदेश भी हैं जहाँ वाणिज्यिक फसलें तथा बागानी फसले राष्ट्रीय बाजार तथा विदेशों में निर्यात के लिये उगायी जाती हैं। गुजरात को ‘औद्योगिक वर्कशाप’ कहा जाता है। विगत कुछ वर्षों में जामनगर एक विशाल पेट्रो-रसायन काम्पलैक्स बनकर उभरा है। यहाँ एशिया की विशालतम तेल शोधनशाला स्थित है। कोंदला, पोसित्रा, सूरत, पीपावाव में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) स्थित हैं जबकि माण्डोवी देश के सबसे गहरे पत्तन के रूप में विकसित हो रहा है। इस प्रदेश के सभी राज्यों में मध्यम मानव विकास सूचकांक (0.600-0.450) दर्ज होता है।
(iii) उत्तर पश्चिमी प्रदेश- इसमें पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश सम्मिलित हैं। इस प्रदेश में ‘हरित क्रांति’ तथा ‘श्वेत क्रांति’ ने अभूतपूर्व प्रगति की है। अवसंरचना के विकास के कारण अनेक स्थानों पर औद्योगीकरण हो गया है जिनमें लुधियाना, अमृतसर, कपूरथला, पानीपत, भिवानी, गुड़गाँव, फरीदाबाद, नोयडा, ग्रेटर नोयडा, मथुरा एवं आगरा सम्मिलित हैं। दिल्ली, पंजा, हरियाणा तथा चंडीगढ़ में देश की उच्चतम प्रति व्यक्ति आय दर्ज होती है। इन्हीं राज्यों में सामाजिक विकास के सूचकों में उच्च मान (HDI 1997) में 0.600 से अधिक) मिलते हैं।
(iv) उत्तर-मध्य एवं पूर्वी प्रदेश- इसके अंतर्गत पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा तट सम्मिलित हैं। पश्चिम बंगाल 1960 तक औद्योगिक रूप से विकसित प्रदेश था किंतु साठ के दशक में बिगड़ते हुए औद्योगिक संबंधों का राज्य की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। प्रतिकूल कृषि पारिस्थितिकीय दशाओं (बाढ़, सूखा, चक्रवात, विषम धरातल) तथा कमजोर अवसंरचना के कारण प्रदेश में निम्न कृषि उत्पादकता दर्ज होती है। मानव विकास सूचकांक में भी प्रदेश निम्न 0.450 से कम) स्तर पर आता है।
(v) पर्वतीय, वनाच्छादित एवं शुष्क प्रदेश- इनके अंतर्गत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान तथा गुजरात एवं महाराष्ट्र के वनाच्छादित क्षेत्र सम्मिलित हैं। इस प्रदेश में जनजातीय जनसंख्या की अधिकता है। इस खनिज संपन्न प्रदेश में अनेक बड़े पैमाने के सार्वजनिक उद्यम स्थापित हुए हैं जिनमें चार समेकित इस्पात संयंत्र, एल्युमीनियम उद्योग, सुपर तापीय विद्युत केंद्र आदि सम्मिलित हैं। किंतु इन विकासों से स्थानीय लोग कम लाभान्वित हुए हैं। उनका सामाजिक विकास का स्तर भी निम्न () 0.450 से कम) है।
(vi) अवर्गीकृत प्रदेश- उपरोक्त पाँच प्रमुख प्रदेशों के अतिरिक्त अवर्गीकृत प्रदेश में असम तथा उत्तर पूर्वी राज्य, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर आते हैं जिनमें विषम एवं दुर्गम धरातल के कारण सीमित कृषीय एवं औद्योगिक विकास हो पाया है। हिमाचल प्रदेश (HDI 0.450-0.600) के अपवाद सहित जहाँ कुछ क्षेत्रों में बागवानी तथा पर्यटन विकसित हुआ है, अन्य सभी क्षेत्र समस्याग्रस्त तथा मानव विकास में निम्न स्तर पर हैं।
नगर एवं देश नियोजन संगठन की योजना
नगर एवं देश नियोजन संगठन (Town and Country Planning Organisation) ने 1968 में नियोजन प्रदेशों की एक योजना प्रस्तावित की जो वृहत् एवं मध्यम स्तरों पर आर्थिक संभाव्यता, आत्म निर्भरता तथा परिस्थितिक संतुलन के सिद्धांतों पर आधारित थी। इस योजना में आर्थिक विकास के प्रादेशिक कारक पर बल दिया गया।
वृहत प्रादेशीकरण में किसी एक प्रकार के संसाधनों वाले क्षेत्रों के समुच्चय (set) को पूरक संसाधनों वाले क्षेत्रों या संसाधन-विहीन क्षेत्रों के साथ जोड़ने की कल्पना की गयी जिससे प्रथम प्रकार के क्षेत्रों में होने वाली आर्थिक क्रियाओं से द्वितीय प्रकार के क्षेत्र लाभान्वित हो सकें। ऐसे नियोजन प्रदेश राज्य की सीमाओं को तो काटते हैं किंतु आधारभूत प्रशासनिक इकाइयों पूर्णतः उपेक्षा नहीं करते हैं।
इस वर्गीकरण में 13 वृहत् प्रदेश निम्नवत् हैं-
(1) दक्षिण प्रायद्वीपीय (केरल एवं तमिलनाडु) ।
(2) मध्यवर्ती प्रायद्वीपीय (कर्नाटक, गोवा, आंध्र प्रदेश)।
(3) पश्चिमी प्रायद्वीपीय (पश्चिमी महाराष्ट्र)।
(4) मध्यवर्ती दकन (पूर्वी महाराष्ट्र, मध्यवर्ती एवं दक्षिणी मध्य प्रदेश)।
(5) पूर्वी प्रायद्वीपीय (उड़ीसा, झारखंड, उत्तर पूर्वी आंध्र प्रदेश एवं छत्तीसगढ़)।
(6) गुजरात।
(7) पश्चिमी राजस्थान।
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