समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं

समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं | भारतीय समाज की सतत् विकास प्रक्रिया

समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं | भारतीय समाज की सतत् विकास प्रक्रिया | Features of socialist economy in Hindi | Continuous development process of Indian society in Hindi

समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं

इतिहासकारों के अनुसार भारतीय समाज लगभग पांच हजार वर्ष प्राचीन है। जिसे चार भागों में बाँटा जा सकता है –1. प्राचीन काल (300 ई.पू. से 700 ईसवी), 2. मध्यकाल (700 ई0 से 1750 ई0) 3. आधुनिक काल (1750 से 1947 ई0) और 4. समकालीन काल (1947 ई0 से अब तक) भारत का यह इतिहास दीर्घकालिक विकास की सतत् प्रक्रिया को स्पष्ट करता है। इस संपूर्ण काल में भारतीय समाज की परंपराओं का क्रामिक विकास होता रहा। वैदिक युग में हिंदुओं का सामाजिक समाज की परंपराओं का क्रामिक विकास होता रहा। वैदिक युग में हिंदुओं का सामाजिक संगठन की संस्थागत आधारशिलाओं में वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, पितृ-सत्ता, लिंग-भेद जाति-भेद, ग्रामों की प्रधानता, कर्म एवं पुनर्जन्म आदि था। मध्य व आधुनिक काल में यद्यपि इनमें परिवर्तन होते रहें किंतु समकालीन समाज इन मूल मान्यताओं को स्वीकार करता है।

भारतीय भूगोल, इसके प्राकृतिक तत्व, पर्वत, नदियाँ, मरुस्थल, नदियों एवं महासागरों ने किसी भी अन्य देशकी अपेक्षा भारत के इतिहास को अधिक प्रभावित किया है। भारत अपने आरंभिक काल से ही एक पृथक भू-भाग के रूप में रहा है। अतः भारत को एशिया का उपमहाद्वीप भी कहते हैं। अनुश्रुति के अनुसार ‘अगस्त्य ऋषि ने उत्तरी भारत में प्रयाण कर दक्षिणी भारत में प्रवेश किया और संपूर्ण भारत को एक सूत्र में आबद्ध करने का प्रयास किया। राम ने उत्तर से चलकर दक्षिण में रावण को परास्त करके संपूर्ण भारत को एकीकृत किया। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक संपूर्ण भारत का एकीकरण सतत् विकास की प्रक्रिया है। भारतीय समाज में विभिन्न असमानाएँ प्राचीन काल में थीं और समकालीन समाज में भी हैं। प्रत्येक प्रकार के विकास के बाद भी भारत में क्षेत्रीय असंतुलन और असमानताएँ कम नहीं हो पायी है।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारत में चेचक, मलेरिया, तपेदिक, प्लेग, आदि रोगों से प्रति वर्ष अनगिनत लोग मारे जाते थे। इलाज के लिए न तो चिकित्सक थे, न दवाइयों, न अस्पताल और न उपकरण ही । सामकालीन भारत में ये अभाव दूर होते जा रहे हैं। आज देश के विभिन्न स्थानों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पैथेलॉजी सेंटर्स, अल्ट्रासाउण्ड, ई. सी. जी. एवं कैंट स्कैन जैसी सुविधाओं के कारण अविलंब रोग की पहचान, उपयुक्त औषधियों सर्जरी की नई तकनीक, आदि से मृत्यु दर कम हो गई है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में सतत् प्रक्रिया जारी है।

भारत के विभिन्न राज्यों क्षेत्रों में विद्यमान भौगोलिक असमानताओं के कारण विकास की गति सभी क्षेत्रों में एक सी नहीं है। फलस्वरूप राज्यों में परस्पर ईर्ष्या एवं वैमनस्य पैदा हुआ है। कभी- कभी पड़ोसी राज्य परस्पर संघर्ष करने लगते हैं। देश में आर्थिक विकास की गति भी असमान है। महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा अग्रणी राज्य हैं तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, बिहार आर्थिक विकास में पिछड़े हुए हैं। सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से आर्थिक विकास की गति बढ़नी चाहिए। सबको समान हिस्सा मिलना चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, कृषि, वाणिज्य, व्यवसाय सब कुछ अर्थ व्यवस्था पर ही निर्भर करते हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व तक भारतीय समाज उग्र जातिवादी भेदभाव एवं साम्प्रदायिकता से ग्रसित था। किंतु सामाजिक परिवर्तन के प्रभाव से यह भेदभाव कुछ कम हुआ। सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में पारस्परिक मेल-जोल और सद्भाव देखा जाने लगा। अचानक 1989 ई0 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा मंडल आयोग लागू किये जाने से आतिगत विद्वेष पुनः जीवित हो उठा। देश भर में इसका विरोध हुआ। वी0पी0 सिंह तो राजनीतिक की कब्र में चले गये, किंतु इस अंधकार से देश को बाहर निकालने का प्रयास किसी ने भी नहीं किया। राज्य स्तर के नेताओं ने खुलकर जातिवाद को बढ़ाया और अपनी जाति को लाभान्वित करके राज्य के सिंहासन पर आसीन हो गए। कालांतर में ऐसे क्षेत्रीय राजनेता केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी सम्मिलित किए गए। जातिवाद के कारण भी भारत में सामाजिक परिवर्तन के सतत् विकास की अपेक्षित गति नहीं प्राप्त हो पाती।

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