आर्थिक विकास की अवधारणा | आर्थिक सवृद्धि | आर्थिक विकास के कारक

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आर्थिक विकास की अवधारणा | आर्थिक सवृद्धि | आर्थिक विकास के कारक | Concept of economic development in Hindi | Economic growth in Hindi | Factors of economic development in Hindi

आर्थिक विकास की अवधारणा

आर्थिक विकास की अवधारणा

सर्वप्रथम हम आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की चर्चा करने से पूर्व आर्थिक विकास क्या हे समझने का प्रयास करें।

आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थव्यवस्था की प्रति व्यक्ति की पवित्र राष्ट्रीय आय में दीर्घकालीन वृद्धि अधिक विकास का सम्बन्ध प्रतिव्यक्ति आय आर्थिक विकास अर्थशास्त्री अवधारणा है।

मेयर तथा वाण्डर्थन के अनुसार- आर्थिक विकास एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में दीर्घ कालीन वृद्धि होती है।

आर्थिक विकास के कारकों का संक्षित रूप

  1. जनसंख्या- किसी भी देश की जनसंख्या का घनत्व, बनावट और गुण उस देश की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। अर्थात् आर्थिक विकास में जनसंख्या एक महत्वपूर्ण कारक है।
  2. नियोजन की समस्या- आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण अवरोध में दूसरा कारक नियोजन का सही ढंग से अनुपालन न करना है। क्योंकि कोई भी राष्ट्र योजनाबद्ध प्रयत्नों के द्वारा ही एक निश्चित समय में सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। हैरिस के अनुसार- “नियोजन मुख्य रूप से उपलब्ध साधनों के संगठन और उपयोग की ऐसी स्थिति पद्धति है। जिसके द्वारा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर अधिकत्तम लाभ प्राप्त किया जा सकता है।”
  3. जातिवाद- जातिवाद वह संकीर्ण मानसिकता है जिसके वशीभूत हो व्यक्ति समाज और राष्ट्र को विशेष महत्व नहीं देकर अपने जाति हितों को सर्वोपरि मानता है और अपनी जाति के स्वार्थी की दृष्टि से सोचता है।
  4. साम्प्रदायिकता- आर्थिक विकास को प्रभावित करने में साम्प्रदायिकता भी महत्वपूर्ण कारक है। साम्प्रदायिकता के कारण समाज आर्थिक प्रगति अवरूद्ध हो जाती है। उपद्रवों के समय कई कारखानों एवं उद्योगों में तोड़फोड़ एवं आगजनी की घटनाओं से निर्माण कार्य बन्द हो जाता है। ऐसे क्षेत्रों में पूंजीपति पूँजी को नहीं लगाना चाहते जहाँ साम्प्रदायिक तनाव पैदा होते रहते हैं। परिणाम स्वरूप आर्थिक विकास अवरूद्ध हो जाता है।
  5. क्षेत्रवाद- क्षेत्रवाद की भावना को जन्म देने में आर्थिक कारकों ने भी योग दिया। आर्थिक रूप से पिछड़े हुए क्षेत्रों ने अपने यहाँ उद्योग खोलने की मांग की। ऐसा करते समय वे यह भूल जाते हैं कि आर्थिक दृष्टि से वह उद्योग उस क्षेत्र में लाभदायक सिद्ध होता या नहीं।

नियन्त्रण करने के उपाय :

आर्थिक विकास को तीव्र करने हेतु महत्वपूर्ण कारकों का अध्ययन कर योजनाओं से सम्बन्धित ढाँचे में सुधार कर चुस्त-दुरूस्त सुशासन एवं योजना के सही क्रियान्वयन द्वारा ही आर्थिक विकास की राह को अग्रसर किया जा सकेगा। इसके लिए मुख्य बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. जनसंख्या पर प्रभावशाली नियंत्रण- बढ़ती जनसंख्या को रोकने हेतु परिवार नियोजन जिसे आजकल परिवार कल्याण का नाम दिया गया है ही एकमात्र कारगर साधन है। जिसे प्रभावशाली ढंग से प्रचार-प्रसार एवं जनता में जागरूकता लाकर रोका जा सकता है।
  2. योजनाओं का क्रियान्वयन : जैसा कि सभी लोग जानते हैं ‘भारत सरकार पंचवर्षीय योजना के माध्यम द्वारा इस समस्या का समाधान करने का प्रयास कर रही है। दस पंचवर्षीय योजनाओं के बाद भी परिस्थिति में मामूली परिवर्तन हो पाया है, जिसका समुचित कारण ढूँढकर लागू करने से आर्थिक विकास संभव है।
  3. जातिवाद का उन्मूलन करके : डा. श्रीनिवास ने कहा है कि सांस्कृतिक एकीकरण को प्रोत्साहन देकर ही जातिवाद से मुक्ति पायी जा सकती है।

जातिवाद को समाप्त करने हेतु जाति के नाम पर बनने वाले क्षेत्रीय एवं प्रांतीय संगठनों पर रोक लगा दी जाए क्योंकि संगठन ही जातिवाद पैदा करने एवं उभारने के लिए उत्तरदायी है।

  1. साम्प्रदायिकता का उन्मूलन- साम्प्रदायिक दंगों समस्याओं के उन्मूलन हेतु कानून के साथ-साथ नैतिक, शैक्षिक, समान नागरिक संहिता तथा साम्प्रदायिक संगठन राजनैतिक नेताओं, जो भी हो उन पर दण्डात्मक कार्रवाई कर रोक लगायी जा सकती है। क्योंकि वर्तमान वैश्विक परिवर्तन में आर्थिक विकास ही लोगों में खुशहाली ला सकता है।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने साम्प्रदायिकता को समाप्त करने के लिए लोगों द्वारा सहजीवन व्यतीत करने का सुझाव दिया हैं।

गाँधी जी तथा विनोबा भावे जी ने साम्प्रदायिकता को समाप्त करने के लिए शान्ति सेना बनाने का सुझाव दिया है जो विभिन्न स्थानों पर शान्ति कायम करने, दंगा का दमन करने, पारस्परिक एकता, विश्वास एवं भैत्री पैदा करने का कार्य करें।

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