
आर्थिक वृद्धि तथा सामाजिक विकास एक दूसरे के पूरक हैं? | Are economic growth and social development complementary to each other in Hindi
आर्थिक वृद्धि तथा सामाजिक विकास एक दूसरे के पूरक हैं?

अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण से आर्थिक वृद्धि का आशय किसी देश की राष्ट्रीय आय के विस्तार से है। आर्थिक वृद्धि के अंतर्गत मात्र इसी बात पर ध्यान देते हैं कि किसी कालावधि इसके पूर्व के काल की तुलना में मात्रात्मक रूप में अधिक उत्पादन हो रहा है कल्पना (Quantitative Concept) है, जो कि अधिक उत्पादन से संबद्ध होती है। आर्थिक वृद्धि में एक और अधिक मात्रा में आदानों (Inputs) के कारण अधिक उत्पादन को सम्मिलित किया जाता है, तो दूसरी और इसमें प्रति इकाई आदान के बदले अधिक उत्पादन का समावेश भी रहता है। कुछ अर्थशास्त्री आर्थिक वृद्धि और आर्थिक विकास शब्दों को एक-दूसरे के पर्यायवाची के रूप में प्रयुक्त करते रहें, किन्तु दोनों अवधारणाएं पृथक-पृथक हैं।
आर्थिक विकास की अवधारणा आर्थिक वृद्धि से अधिक व्यापक हैं। इसके उत्पादन की संरचना में होने वाले परिवर्तनों एवं क्षेत्र के अनुसार आदानों (Inputs) के आवंटन में परिवर्तन को सम्मिलित किया जाता है। अतः आर्थिक विकास के बिना आर्थिक वृद्धि तो संभव है, किंतु आर्थिक वृद्धि के बिना आर्थिक विकास संभव नहीं है, क्योंकि तकनीकी और संस्थानात्मक व्यवस्था में परिवर्तन का उद्देश्य राष्ट्रीय आय से प्राप्त वृद्धि को विभिन्न क्षेत्रों तथा जनसंख्या के विभिन्न वर्गों में सापेक्षता अधिक न्यायोचित रूप में बाँटना है। जब तक कोई अर्थव्यवस्था अपनी निर्वाह आवश्यकताओं में अधिक उत्पन्न नहीं करती, तब तक वह देश की जनसंख्या के जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा उसे अधिक न्यायपूर्ण वितरण सुलभ कराने में सफल नहीं हो सकती, ताकि जनता की वास्तविक आय में बढ़ोत्तरी हो सके।
आर्थिक विकास की अवधारणा की व्याख्या किसी समाज में नीति-उद्देश्यों के रूप में ही की जा सकती है। इस अवधारणा का आधार समाज द्वारा स्वीकृत के मूल्य हैं, जिनके आधार पर समाज के निर्माण का संकल्प किया गया हो। इस दृष्टि से आर्थिक विकास गुणात्मक रूप से आर्थिक वृद्धि से मित्र है। प्रो. जी. एस. मेयर ने अर्थिक विकासको परिभाषित करते हुए लिखा है कि, “आर्थिक विकास की परिभाषा एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में की जा सकती है, जिसके परिणामस्वरूप कोई एक देश लंबी कालावधि में अपनी वास्तविक प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करता है, बशर्ते कि ‘परम निर्धनता रेखा’ के नीचे रहने वाली जनसंख्या में वृद्धि न हो तथा आय का निर्माण और अधिक असमान न हो जाये।”
आर्थिक वृद्धि एवं आर्थिक विकास का प्रभाव अनिवार्य रूप से सामाजिक विकास पर पड़ता है। आर्थिक विकास के फलस्वरूप समाज में विद्यमान निर्धनता कम होती है। लोगों की वास्तविक आय में दीर्घकालीन वृद्धि होती है समाज में आर्थिक विषमता कम होती है, बेकारी दूर होती है, जीवन स्तर ऊँचा होता है, शिक्षा का प्रसार होता है। विभिन्न क्षेत्रों के विकास तथा समृद्धि में भारी अंतर कम होता है, अर्थव्यवस्था ‘का विशाखन तथा आधुनिकीकरण संभव होता है। सामाजिक विकास होने से आर्थिक वृद्धि सुदृढ़ होती है। स्पष्ट है कि इस प्रकार आर्थिक वृद्धि एवं सामाजिक विकास एक दूसरे के पूरक हैं।
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