
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के मध्य सम्बन्ध | भारत में औद्योगिक विकास एवं नगरीकरण | Relationship between industrialization and urbanization in Hindi | Industrial development and urbanization in India in Hindi
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के मध्य सम्बन्ध

औद्योगीकरण का प्रमुख परिणाम हुआ नगरों का विकास और यह नगरों का विकास ही दूसरे अर्थों में नगरीकरण कहलाता है। औद्योगीकरण की क्रिया के परिणामस्वरूप ही विभिन्न देशों में व्यापारीकरण बढ़ा है जिससे नगर बस गये हैं। आज इंग्लैण्ड में 80 प्रतिशत जनसंख्या जर्मनी में 77 प्रतिशत, अमेरिका में 66.2 प्रतिशत फ्रान्स में 69.1 प्रतिशत और भारत में 20 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में निवास करने लगी है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि नगरीकरण वह प्रक्रिया है जो औद्योगीकरण के कारण विकसित हुई है। इस प्रकार नगरीकरण एवं औद्योगीकरण एक दूसरे के पूरक माने जा सकते हैं। विश्व के विभिन्न भागों में औद्योगीकरण एवं नगरीकरण में निकट का सम्बन्ध दिखायी देता है। ऐसा लगता है कि जैसे ये दोनों एक दूसरे पर अति निर्भर हों।
किसी भी क्षेत्र में उद्योग के विकास के लिए कच्चा माल शक्ति के स्रोत एवं श्रमिकों की आवश्यकता होती है। सफल औद्योगीकरण के लिए बाजारों की सुविधाओं का होना भी आवश्यक है। इस प्रकार औद्योगीकरण के लिए दो प्रकार के क्षेत्र सर्वाधिक उपर्युक्त हैं-
(1) वे स्थान जहाँ पर पहले से ही कोई छोटा नगर विकसित होता है, तथा
(2) जहाँ औद्योगीकरण की अन्य सामान्य सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।
प्रथम प्रकार के जो नगर भारत में गत अर्द्ध शताब्दी में विकसित हुए उनमें मुम्बई, अहमदाबाद, कानपुर, कलकत्ता आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। द्वितीय प्रकार के नगर वहाँ विकसित हुए हैं, जहाँ उद्योगों की स्थापना के लिए सुविधाएँ तो प्राप्त थीं, किन्तु पहले से कोई छोटा नगर नहीं होता। ऐसे स्थानों पर नये नगर बसाये गये हैं। ये नगर औद्योगिक नगर कहलाते हैं, जैसे टाटानगर, विरलानगर, फरीदाबाद, भिलाई, राउलकेला, चितरंजन गाजियाबाद आदि।
सामान्यतः जिन स्थानों पर उद्योगों का विकास हुआ है। वहीं नगरों का भी विकास हुआ है। क्योंकि एक उद्योग की स्थापना अनेक आवश्यकताओं को जन्म देती है। जैसे दूर-दूर के नगरों तक जोड़ने वाले द्रुतगामी यातायात के साधन यथा रेलगाड़ी, बसें, वायुयान आदि पर्यान्त मात्रा में कच्चामाल, कुशल श्रमिक, शक्ति की सुविधा, आवास व जीवन के लिए सामान्य सुविधाएँ आदि। इन सब आवश्यकताओं की पूर्ति अनेक संस्थाएँ मिलकर करती हैं और वृहत्तर नगर के निर्माण में योग देती हैं। इंगलैण्ड में इस प्रकार से विकसित नगरों में बर्मिंघम, लंकाशायर, मैनचेस्टर आदि अधिक प्रसिद्ध हैं।
भारत में औद्योगीकरण मुख्यतः वर्तमान शताब्दी में ही प्रारम्भ हुआ है। धीरे-धीरे नगरों की जनसंख्या में वृद्धि हुई है और अनेक नये नगर बसे हैं। 1911 ई0 से पहले जमशेदपुर एक छोटा सा गाँव था। किन्तु लोहे का कारखाना स्थापित होने से 1971 ई० में इसकी जनसंख्या 3, 18, 162 हो गयी। वर्तमान समय में भारत की जनसंख्या 20.3 प्रतिशत नगरीय है। वर्तमान समय में भारत में तीव्रगति से नगरों का विकास हुआ है। इसका प्रमुख कारण भारत में औद्योगीकरण ही रहा है।
स्पष्ट है कि नगरीय जनसंख्या की वृद्धि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् उद्योगों के नये-नये मार्ग खुल जाने के कारण अत्यधिक बढ़ गयी है। 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगर मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली, कलकत्ता एवं हैदराबाद आदि हैं।
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की पारस्परिक निर्भरता केवल भारत में ही परिलक्षित नहीं होती। विश्व के अन्य देशों में भी इनका सम्बन्ध निरन्तर रहा है। 18वीं शताब्दी के पश्चात् इंगलैण्ड में औद्योगिक नगरों की बाढ़ सी आ गयी। इसका कारण औद्योगिक क्रान्ति और नवीन शक्तियों की खोज थी। मैनचेस्टर में जब पहली सूती कपड़े की मिल खुली तो वह एक छोटा सा कस्बा था। एक शताब्दी पश्चात् वहाँ सूती कपड़े की मिलें खुलने से आबादी दस गुना बढ़ गयी। बर्मिघंम 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में 15,000 आबादी की एक छोटी वस्ती थी। 19वीं शताब्दी के समाप्त होने के पूर्व वह 5 लाख की जनसंख्या का एक बड़ा नगर बन गया। औद्योगीकरण से नगरों की यह वृद्धि स्वाभाविक ही है। क्योंकि जहाँ कहीं भी कल कारखाने स्थापित होते हैं उनमें काम करने के लिए मजदूर आते हैं। उनकी आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए विविध प्रकार की दुकानें और व्यापारिक कार्यालय बढ़ते हैं। कल कारखानों के साथ उसकी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए लघु उद्योग विकसित होते हैं। इस प्रकार छोटी-छोटी बस्तियाँ धीरे-धीरे वृहत्तर नगरों का रूप धारण कर लेती हैं। अधिकांश जनता नगरों में रहने लगती है। इंगलैण्ड और वेल्स में 80 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में रहती है। फ्रांस में 49 प्रतिशत, उत्तरी आयरलैण्ड में 50.8 प्रतिशत, कनाडा में 53.7 प्रतिशत, संयुक्त राज्य अमेरिका में 80 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में निवास करती है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह देश औद्योगिक दृष्टि से आगे बढ़े हुए हैं।
भारत में औद्योगिक विकास एवं नगरीकरण-
भारत में औद्योगिक विकास का क्रम औद्योगिक क्रान्ति के बाद प्रारम्भ हो गया था। लेकिन सर्वाधिक विकास स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हुआ। 1951-61 ई0 की अवधि में औद्योगिक विकास चरम सीमा पर रहा है। इन दृष्टि से इस समय में धातु उद्योगों की सार्वजनिक क्षेत्र में और कुछ उद्योग संस्थानों की निजी क्षेत्र में स्थापना हुई है। इसके अतिरिक्त भारी उद्योग बिजली उद्योग, मशीनरी उद्योग, सीमेण्ट उद्योग और कागज उद्योगों का भी अत्यधिक विकास हुआ है। इसके साथ-साथ रासायनिक खादों व अन्य रसायनों के उद्योगों में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। सिलाई की मशीनें, साइकिल, टेलीफोन, कपड़ा और चीनी के उद्योग इस दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे हैं। इससे भारी संख्या में नवीन औद्योगिक नगरों की स्थापना हुई और भारी संख्या में बेकारी में कमी आयी है। इन नगरों में भिलाई, राउलकेला, दुर्गापुर, राँची, भोपाल, नेवली (चेन्नई) चितरंजन आदि नगरों में व्यापक नगरीकरण हुआ है। भारत में गत कुछ वर्षों में लोहा, अल्यूमिनियम, तांबा, सीसा आदि उद्योगों को बढ़ावा दिया गया है। इसके अतिरिक्त औद्योगिक विकास हेतु विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति का लक्ष्य निर्धारित कर लिया गया है। भारत के विभिन्न नगर औद्योगीकरण में आगे रहे। वहाँ व्यापक रूप से नगरीकरण की प्रक्रिया प्रभावशील हुई है।
रासायनिक पदार्थ एवं औषधि निर्माण उद्योग के फलस्वरूप भी नगरीकरण की प्रक्रिया विकसित हुई है। इसी प्रकार विभिन्न उद्योगों के फलस्वरूप नगरों का तीव्र विकास हुआ और नगरीकरण में तीव्र वृद्धि हुई।
स्पष्ट है कि भारत में औद्योगीकरण और नगरीकरण की प्रक्रियाओं में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। वर्तमान समय में यह औद्योगीकरण प्रगति के पथ पर है।
स्पष्टतयः भारत में नगरीकरण का एक उत्तरदायी कारक औद्योगीकरण रहा है। इस प्रकार औद्योगीकरण एवं नगरीकरण परस्पर सम्बन्धित हैं।
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