समाज शास्‍त्र / Sociology

नगरीय जीवन में मनोरंजन के महत्त्व | नगरीय मनोरंजन के प्रकार

नगरीय जीवन में मनोरंजन के महत्त्व | नगरीय मनोरंजन के प्रकार | Importance of entertainment in urban life in Hindi | Types of urban entertainment in Hindi

नगरीय जीवन में मनोरंजन के महत्त्व

प्रत्येक प्रकार की जीवन प्रणाली में व्यवस्था जैसी भी हो, मनोरंजन की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता होती है। नगरीय जीवन उद्योग, परिश्रम, मजदूरी आदि अनेक प्रकार की व्यवस्थाओं का जीवन है। ऐसे जीवन में मनोरंजन की आवश्यकता और महत्व के सम्बन्ध में कोई भी शंका नहीं कर सकता है। कुछ लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि मनोरंजन से समस्त सामाजिक व्याधियाँ दूर की जा सकती हैं जिस नगर से जितने अधिक पार्क, खेल के मैदान, मनोरंजन की सामग्री, स्वतन्त्र छुट्टियाँ होंगी, वहाँ पारिवारिक कलह और सामाजिक व सामुदायिक विघटन का उतना ही अभाव होगा। मनोरंजन से बाल व किशोर अपराधों से भी मुक्ति मिल सकती है। मनोरंजन से सामुदायिक जीवन को बल मिलता है। मनोरंजन वह घटना है जिसमें जाति, धर्म, वंश, गौरव, संस्कृति, प्रजाति, राष्ट्र एवं वर्ग की विभिन्नताएं समाप्त हो जाती हैं। तात्पर्य यह है कि नगरीय जीवन में मनोरंजन का महत्व अधिक है। वैसे मनोरंजन की व्यवस्था आदिम व ग्रामीण समाजों में भी हो रही है। मनुष्य की यह सामाजिक प्रवृत्ति होने के कारण मनोरंजन का मानव की हर व्यवस्था में महत्व रहा है।

नगरों में अत्यधिक भीड़-भाड़ स्थान की कमी, अव्यवस्थित निवास व्यवस्था, दीर्घकालीन आर्थिक क्रियाएँ आदि व्यक्ति को विक्षिप्त, एकान्तप्रिय एवं अव्यवस्थित बना देती हैं। नगरों का शोरगुल, घुआँ, गन्दगी, अत्यधिक गतिशीलता, दबाव व गन्दी बस्तियों का विकास आदि ऐसी व्याधियाँ हैं जिसमें मनोरंजन काफी सीमा तक व्यक्ति को सन्तोष प्रदान करता है। मनोरंजन व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक सन्तुष्टि देता है। नगरों में निम्न आय के लोगों की अधिकता है। ऐसी स्थिति में स्पष्ट है कि नगरीय जीवन की विशिष्टताओं को देखते हुए मनोरंजन का प्रबल महत्व है। इसीलिए दीर्घकाल के नगर प्रशासक, नगर नियोजक, समाजशास्त्री एवं मनोवैज्ञानिकों ने नगरों के लिए सुव्यवस्था पर बल दिया है। नगरीय जीवन की विशिष्टता के आधार पर ही यहाँ मनोरंजन की व्यवस्था दी जाती है। मनोरंजन वह क्रिया है जिसमें व्यक्ति खेल का सा अनुभव करें और उसे शीघ्र ही प्रसन्नता प्राप्त हो।

नगरीय मनोरंजन के प्रकार-

नगरीय मनोरंजन सामान्यतः व्यक्तिवादी प्रकति का है। यहाँ व्यक्ति की रूचि व्यवसाय और आर्थिक साधनों के अनुसार मनोरंजन पाये जाते हैं। नगरीय मनोरंजन की प्रकृति व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर करती है। यहाँ व्यक्ति की प्रकृति में निरन्तर परिवर्तन होता रहता लिण्डसे से मनोरंजन के प्रकारों को ज्ञात करने के लिए एक सर्वेक्षण किया था। सन् 1925 ई० की तुलना में 1935 ई० में मनोरंजन संस्थाओं में पर्यापत परिवर्तन पाया। मनोरंजन पर आर्थिक संरचनाओं का प्रभाव पड़ता है। मनोरंजन पर आर्थिक संरचनाओं का गहरा प्रभाव पड़ता है। औद्योगिक क्रान्ति एवं मशीनीकरण से नगरीय मनोरंजन के प्रकारों में महान परिवर्तन आ गया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने भी नगरीय मनोरंजन के स्वरुपों  को बहुत प्रभावित किया है।

नगरीय मनोरंजन के प्रकारों एवं प्रकृति पर राष्ट्रीयता एवं संस्कृति का भी प्रभाव होता है। इटली और जर्मनी में लोगों को संगीत का बड़ा शौक है। अमेरिका में बेस बॉल का खेल अधिक खेला जाता है। स्विट्जरलैण्ड एवं आस्ट्रिया में पेड़ों पर चढ़ना और बर्फ पर पिघलना प्रत्येक बच्चा जानता है। इंग्लैण्ड में क्रिकेट का खेल अधिक खेला जाता है। स्पेन, पुर्तगाल एवं मैक्सिको में साँड़ युद्ध में बहुत रूचि ली जाती है।

मनोरंजन के प्रकारों में वर्ग, आयु एवं यौन विभिन्नताओं का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही मनोरंजन पर समय व्यय की क्षमता आदि का भी प्रभाव पड़ता है। उच्च वर्ग के लोगों के मनोरंजन अधिक कीमती होते हैं। बच्चों के खेल युवकों एवं प्रौढ़ों की तुलना में भिन्न होते हैं। इसी प्रकार नगरीय मनोरंजन के माध्यमों में भी काफी भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। बुद्धिजीवी लोग, समाचार, कहानी एवं उपन्यास पढ़ना मनोरंजन समझते हैं।

उपर्युक्त विभिन्नताओं के कारण नगरीय मनोरंजन की किसी सार्वभौमिक सूची का निर्माण नहीं किया जा सकता। आधुनिक जीवन की अनेक परिवर्तनशीलताओं ने इस विषय को और अधिक जटिल बना दिया है।

संक्षेप में नगरीय मनोरंजन के प्रकारों को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

(1) खुले स्थान- नगरों में खुले स्थान भी मनोरंजन की दृष्टि से काफी उपयुक्त हैं। प्रत्येक नगर में ऐसे अनेक खुले स्थान होते हैं जहाँ व्यक्ति खेल, क्रीड़ाएं, गपशप व भ्रमण आदि कर सकते हैं। उदाहरण के लिए पुरानी दिल्ली नगर में रामलीला का मैदान, अजमेरी दरवाजे से दिल्ली दरवाजे तक का स्थान, दरियागंज से चाँदनी चौक आदि खुले स्थान इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं।

(2) उद्यान- नगरीय मनोरंजन में उद्यानों का महत्वपूर्ण स्थान रहता है। इसलिए नगर के कारपारेशन, म्यूनीसिपैलटियाँ, नगर निगम एवं नगर परिषदें आदि उद्यानों की व्यवस्था करती रहती हैं। इन उद्यानों में बाल वाटिकाएँ भी बनायी जाती हैं।

(3) जलाशय युक्त उद्यान- नगरीय मनोरंजन में जलाशय युक्त उद्यानों का भी महत्व है। ऐसे स्थानों पर लोग अपने छुट्टी का समय बिताते हैं। जहाँ भी सम्भव होता है प्रत्येक नगर में ऐसे स्थानों की व्यवस्था की जाती है।

(4) झीलें, नदियाँ, स्नानकुण्ड एवं नौका विहार- मानवीय मनोरंजन में झीलों, नदियों, स्नान कुण्डों एवं नौका विहारों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। नगर में ऐसे स्थानों की उपलब्धि होने पर लोग इसका समुचित उपयोग करते हैं। इस दृष्टि से कई नगर समुन्नत हैं। कश्मीर, जम्मू, उदयपुर, अजमेर, पुस्कर, आबू आदि नगर इस दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

(5) वन विहार नगरों में वन विहार भी एक मनोरंजन का साधन है, जिन नगरों के समीप वन-विहार के उपयुक्त स्थान होते हैं, वहाँ नगरों के लोगों का जमघट पाया जाता है। इस दृष्टि से दिल्ली में अनेक स्थान हैं। कुतुबमीनार, कालकाजी, हुमायूँ का मकबरा आदि प्रमुख हैं। नगर स्तर पर बने विशाल उद्योगों में भी वन विहार का आनन्द लिया जाता है।

(6) क्रीड़ा प्रांगण- नगरीय मनोरंजन में खेल के मैदानों का भी प्रमुख स्थान है। प्रत्येक विद्यालय, कालेज एवं विश्वविद्यालयों में इसी दृष्टि से खेल के मैदानों की व्यवस्था की जाती है। दिल्ली नगर निगम ने जनता के लिए ऐसे कई स्थानों की व्यवस्था कर रखी है।’

(7) क्लबनगरीय मनोरंजन के क्षेत्र में क्लबों का संगठन भी उल्लेखनीय स्थान रखता है। यहां लोगों की संगोष्ठी, सह-मनोरंजन, सहक्रीड़ा आदि के स्थान होते हैं। भिन्न-भिन्न व्यवसाय के लोग ऐसी सभाओं व क्लबों का संगठन करते हैं। दिल्ली में ऐसी सभाओं व क्लबों की अधिकता है। भारत के विभिन्न नगरों में लायन्स क्लब एवं रोटरी क्लब भी इस दृष्टि से प्रमुख मनोरंजन के साधन हैं।

(8) चलचित्र संगम- नगरीय मनोरंजन में व्यावसायिक मनोरंजन का अधिक महत्व है। इस दृष्टि से प्रत्येक नगर में सिनेमाओं की व्यवस्था होती है। दिल्ली नगर में इस प्रकार के सिनेमा की संख्या लगभग 20 है।

(9) जुआ जुआ भी नगरीय मनोरंजन का एक साधन है। यह मनोरंजन कई प्रकार से किया जाता है। ताश खेलकर, सट्टा लगाकर, घुड़सवारी के अवसरों पर, वर्षा ऋतु का अनुमान करके तथा चौपड़ आदि खेलकर भी जुए का आनन्द लिया जा सकता है।

(10) नृत्य संगीत- मनोरंजन के सभी स्वरूपों में नृत्य संगीत का मनोरंजन सार्वभौमिक है। यह मनोरंजन गाँवों में भी किया जाता है। वन्य जातीय नृत्य एवं लोकगीत भी इस दृष्टि से उल्लेखनीय स्थान रखते हैं। दिल्ली नगर में व्यावसायिक नाचघरों की व्यवस्था है। भरत नाट्यम, मनीपुरी आदि नृत्यों का यहाँ आयोजन होता रहता है। दक्षिण भारत क्लव, केरल क्लब, महाराष्ट्र क्लब आदि प्रमुख स्थान रखते हैं। नगर के चायघरों, होटलों आदि में भी नृत्य मनोरंजन की व्यवस्था रहती है।

(11) वेश्यालय- नगरीय मनोरंजन की दृष्टि से वेश्यालय भी इसी श्रेणी में आते हैं। इन वेश्यालयों में संगीत नृत्य के साथ यौन सन्तुष्टि का भी आनन्द उठाया जाता है। वेश्यालयों की स्थापना प्रायः प्रत्येक नगरों में हुई है। आजकल वेश्याओं का विकास बहुत तीव्र गति से हुआ है। कई स्थानों पर सोसायटी गर्ल्स, सेल्स गर्ल्स, रेस्तरा गर्ल्स आदि भी लोगों का मनोरंजन करती है।

इस प्रकार नगरीय मनोरंजन के विभिन्न प्रकार देखने को मिलते हैं- नगरीय मनोरंजन के प्रकारों का निर्धारण नगर विशेष की भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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