भूगोल / Geography

अवसादी या परतदार चट्टानें | अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ | अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण | अवसादी चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)

अवसादी या परतदार चट्टानें | अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ | अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण | अवसादी चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)

भूतल के 75% भाग पर अवसादी या परतदार चट्टानों का विस्तार है, शेष 25% भाग में आग्नेय एवं कायान्तरित चट्टानें विस्तृत हैं। इन चट्टानों का निर्माण अवसादों के एकत्रीकरण से हुआ है। अपक्षय एवं अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा धरातल, झीलों, सागरों एवं महासागरों में लगातार मलबा (Debris) जमा होता रहता है। यह मलबा परतों के रूप में जमा होता रहता है। इस प्रकार लगातार मलबे की परत के ऊपर परत जमा होती रहती है। अत: ऊपरी दबाव के कारण नीचे वाली परतें कुछ कठोर हो जाती हैं। यही परतें कठोर होकर परतदार शैलें बन जाती हैं।

इन चट्टानों में कणों के जमने का क्रम भी एक निश्चित गति से होता है। पहले मोटे कण जमा होते हैं तथा बाद में उनके ऊपर छोटे-छोटे कण जमा होते जाते हैं तथा इनके ऊपर एक महीन एवं बारीक कणों की परत जमा हो जाती है। इस प्रकार कणों का जमाव अपरदन के साधनों के ऊपर निर्भर करता है। बाद में ये चट्टानें संगठित हो जाती हैं । अवसादों के जल -क्षेत्रों में जमाव के कारण इन चट्टानों में जीवाश्म पाये जाते हैं। आरम्भिक अवस्था में इन चट्टानों का निर्माण समतल भूमि एवं जल-क्षेत्रों में होता है, परन्तु कालान्तर में इन्हीं चट्टानों द्वारा ऊँचे-ऊँचे वलित पर्वतों का निर्माण भी होता है। इन चट्टानों को जोड़ने वाले मुख्य तत्त्व कैल्साइट, लौह-मिश्रण तथा सिलिका आदि हैं। भारत में इनके क्षेत्र गंगा, यमुना, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, ताप्ती, महानदी, दामोदर, कृष्णा, गोदावरी आदि नदी-घाटियाँ हैं।

Table of Contents

अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ

अवसादी चट्टानों में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं।

  • अवसादी चट्टानों में जीवावशेष पाये जाते हैं। इन अवशेषों से इन चट्टानों के समय तथा स्थान का भूतकालीन परिचय प्राप्त हो जाता है।
  • ये चट्टानें कोमल तथा रवेविहीन होती हैं।
  • इन चट्टानों की निर्माण-प्रक्रिया में छोटे-बड़े सभी प्रकार के कणों का योग होता है जिससे इनके आकार में भी भिन्नता रहती है।
  • इन चट्टानों में परतें पायी जाती हैं जो स्तरों के रूप में एक-दूसरी पर समतल रूप में फैल जाती हैं।
  • सागरीय जल में बनने वाली चट्टानों में धाराओं तथा लहरों के चिह्न स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं।
  • ये चट्टानें सरन्ध्र अर्थात् प्रवेश्य होती हैं। जल इन चट्टानों में शीघ्रता से प्रवेश कर जाता है।
  • नदियों की बाढ़ द्वारा लायी गयी काँप मिट्टी पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो उष्णता के कारण इनमें दरारें पड़ जाती हैं। इसे पंक-फटन कहते हैं।
  • परतदार चट्टानों में जोड़ तथा सन्धियाँ पायी जाती हैं।
  • कोयला, पेट्रोल, जिप्सम, डोलोमाइट व नमक जैसे खनिज अवसादी शैलों में ही पाये जाते हैं।

शैल या चट्टान क्या है| चट्टानों का वर्गीकरण (प्रकार) | चट्टानों का आर्थिक महत्त्व

अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण

  • निर्माण में प्रयुक्त साधन के अनुसार

अवसादी चट्टानों की निर्माण-प्रक्रिया के साधनों या कारकों के आधार पर इन्हें निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है।

  • जल-निर्मित (जलज) चट्टानें

अवसादी शैलों के निर्माण में जल का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। पृथ्वी तल पर अधिकांश अवसादी चट्टानें जल द्वारा ही निर्मित हुई हैं। इनमें भी सबसे अधिक योगदान नदियों का रहा है। इन चट्टानों का निर्माण जलीय क्षेत्रों में होता है; अत: इन्हें जलज चट्टानें भी कहते हैं। जल द्वारा निर्मित अवसादी चट्टानों को तीन उपविभागों में बाँटा जा सकता है-(अ) नदीकृत चट्टानें, (ब) समुद्रकृत चट्टानें तथा (स) झीलकृत चट्टानें।

  • वायु-निर्मित चट्टानें

उष्ण एवं शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्रों की चट्टानों में यान्त्रिक अपक्षय तथा अपघटन जारी रहता है। इसलिए बहुत-सा मलबा चूर्ण एवं कणों के आकार में बिखरा पड़ा रहता है। वायु इस मलबे को समय-समय पर विभिन्न स्थानों पर लगातार परतों के रूप में जमा करती रहती है। बाद में इस जमा हुए मलबे से अवसादी चट्टानों का निर्माण हो जाता है। लोयस के जमाव इसी प्रकार होते हैं।

  • हिमानी-निर्मित चट्टानें

उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में हिमानियाँ अपरदन एवं निक्षेपण की क्रियाएँ करती हैं। निर्षेपण की क्रिया से हिमानीकृत जो अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है, उन्हें हिमोढ़ अथवा ‘मोरेन’ कहा जाता है।

  • निर्माण-प्रक्रिया के अनुसार

निर्माण प्रक्रिया के अनुसार अवसादी शैलों का वर्गीकरण इस प्रकार है।

  • बुलकृत या यन्त्रीकृत अवसादी शैलें

अपरदन के साधनों; जैसे-बहते हुए जल, हिम, पवन, लहरों के द्वारा विभिन्न आकारों में अवसाद जमा किये जाते हैं। इन अवसादों से शैलें बनती हैं। कणों की मोटाई के आधार पर चीका मिट्टी (सूक्ष्म कण), बलुआ पत्थर (मध्यम कण) तथा कांग्लो-मेरेट या गोलाश्म बलकृत अवसादी शैलों के उदाहरण हैं।

  • जैविक तत्त्वों से निर्मित चट्टानें

वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं आदि के अवशेष भूतल में दब जाने से बहुत समय बाद कार्बनिक चट्टानों के रूप में परिणत हो जाते हैं। दबाव की क्रिया के फलस्वरूप ये कठोर रूप धारण कर लेते, हैं। इस क्रिया में निर्मित चट्टानों में ‘कोयला, मूँगे की चट्टान, चूने का पत्थर एवं पीट’ आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

  • रासायनिक तत्त्वों से निर्मित चट्टानें

इन चट्टानों का निर्माण चूने एवं जीव-जन्तुओं के अवशेषों का जल में घुलकर होने से हुआ है। अधिकांशत: इन चट्टानों के जमाव समुद्री भागों में मिलते हैं। जब चट्टानों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैसें प्रवेश करती हैं तो वे चट्टानों के रासायनिक संगठन को परिवर्तित कर देती हैं। ‘खड़िया, सेलखड़ी, डोलोमाइट, जिप्सम, नमक’ आदि इसी प्रकार की चट्टानें हैं। इन चट्टानों पर अपक्षय की क्रियाओं का प्रभाव शीघ्रता से पड़ता है।

आग्नेय चट्टान | आग्नेय चट्टानों की विशेषताएँ | आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण | आग्नेय चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)

अवसादी चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)

अवसादी चट्टानें अनेक प्रकार से उपयोगी हैं। वर्तमान में सभी देशों में नदियों द्वारा निर्मित समतल अवसादी मैदान, बालू के महीन जमाव के लोयस के मैदान आदि विश्व के सबसे उपजाऊ एवं सघन क्रियाकलाप एवं सघन बसाव के प्रदेश हैं। ‘विश्व की सभ्यता के विकास का ड्रामा’ इन्हीं मैदानों में निरन्तर रचा जाता रहा है। बलुआ पत्थर, चूने के पत्थर आदि का उपयोग भवन-निर्माण में किया जाता है। चूना एवं डोलोमाइट व अन्य मिट्टियाँ इस्पात उद्योग में काम में आती हैं। अवसादी चट्टानों में चुने के पत्थर का उपयोग सीमेण्ट बनाने में किया जाता है। सीमेण्ट उद्योग आज विश्व के प्रमुख उद्योगों में गिना जाता है।

जिप्सम का उपयोग विविध प्रकार के उद्योगों-चीनी-मिट्टी के बर्तन, सीमेण्ट आदि में किया जाता है।

अनेक प्रकार के क्षार, रसायन पोटाश एवं नमक जो कि अवसादी चट्टानों से प्राप्त होते हैं-विभिन्न रासायनिक उद्योगों के आधार हैं। कोयला एवं खनिज तेल भी अवसादी चट्टानों से प्राप्त होते हैं। ये शक्ति के प्रमुख स्रोत हैं। आज का औद्योगिक विकास कोयले के कारण ही सम्भव हो सका है।

कायान्तरित या रूपान्तरित चट्टानें | रूप-परिवर्तन के कारण | कायान्तरित चट्टानों की विशेषताएँ | कायान्तरित चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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