बीसवीं शताब्दी में मानव भूगोल का विकास | मानव भूगोल में जर्मन भूगोलवेत्ताओं का योगदान | मानव भूगोल में फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं का योगदान | मानव भूगोल में अमेरिका भूगोलवेत्ताओं का योगदान | मानव भूगोल में ब्रिटिश भूगोलवेत्ताओं का योगदान
बीसवीं शताब्दी में मानव भूगोल का विकास | मानव भूगोल में जर्मन भूगोलवेत्ताओं का योगदान | मानव भूगोल में फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं का योगदान | मानव भूगोल में अमेरिका भूगोलवेत्ताओं का योगदान | मानव भूगोल में ब्रिटिश भूगोलवेत्ताओं का योगदान
बीसवीं शताब्दी में मानव भूगोल का विकास
मानव भूगोल के वैज्ञानिक रूप के जन्मदाता जर्मन वैज्ञानिक हैं। इन विद्वानों में फारेनियल, क्लुबेरियम मॉन्टेस्क्यू, हर्डर, बुशिंग, बंआसे गेटरर, होमेयर, फस्टर, रिट्टर, फ्रोबेल, हम्बोल्ट, पेशल, बुचान, हटज्ञन, कोइपेन, हैबलान, बानसारा, ग्रिसवाच, बार्मिंग, रैटजेल तथा फिटिंग उल्लेखनीय हैं। इन विद्वानों ने अपने योगदान से मानव भूगोल की नींव सुदृढ़ की। सत्रहवीं, अठारहवीं तथा उन्नीसवीं शताब्दी में जर्मन भूगोलवेत्ताओं का व्यापक प्रभाव था। वास्तव में भूगोल को वैज्ञानिक स्तर प्रदान करने तथा स्वतन्त्र विषय बताने का श्रेय जर्मन भूगोलवेत्ताओं को है, जिनमें हम्बोल्ट, कार्ल रिट्टर, रैटजेल तथा फिटिंग का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण है। जर्मन भूगोलवेत्ता निश्चयवाद के पोषक एवं समर्थक थे। इसका एक मात्र कारण यह था कि अधिकांश विद्वानों की शिक्षा भौतिक विज्ञान में थी जिससे वे वातावरण की प्रमुखता प्रदान करते थे।
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जर्मन भूगोलवेत्ताओं का मानव भूगोल की प्रगति में योगदान
हम्बोल्ट विख्यात जर्मन वैज्ञानिक थे जिन्होंने विज्ञान के विभिन्न स्वरूपों को अपने अव्ययन का कार्य क्षेत्र बनाया और वैज्ञानिक विषयों में अनुसंधान कि विषय वैज्ञानिक भ्रमणकारी, अन्वेषक, निरीक्षक तथा प्रकृति संरक्षक भूगोलवेत्ता थे। सन् 1790 से 1830 के मध्य उन्होंने यूरोप, दक्षिण अमेरिका तथा उत्तर अमेरिका के देशों की यात्राएँ कीं। उन्होंने यूरोप में भौगोलिक तत्त्वों का सूक्ष्म अन्वेषण किया और विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें लिखीं। उनका प्रसिद्ध ग्रन्थ कास्मोस पाँच खण्डों में प्रकाशित हुआ जिसमें समस्त विश्व का वर्णन था जिससे इन्हें विश्व-विख्यात ख्याति प्राप्त हुई। इस पुस्तक में हम्बोल्ट ने प्राकृतिक इतिहास एवं प्राकृतिक भूगोल की विस्तृत व्याख्या प्रदान की। उसने पृथ्वी के निर्जीव तल जीवधारियों के बीच पारस्परिक सम्बन्धों का विश्लेषण किया। यह विचारधारा मानव भूगोल की एक प्रमुख देन थी। यात्रा में फोर्स्टर के निरीक्षण, कलात्मक एवं वैज्ञानिक वर्णन का प्रभाव हम्बोल्ट पर पड़ा। साथ ही यात्राओं एवं पेरिस प्रवास काल में लुसैक, लैमार्क, लाप्लास, कुवियर, जुशियों तथा डी कएडोले विद्वानों के सम्पर्क का भी गहरा प्रभाव पड़ा।
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मानव चित्रावली का योगदान
हम्बोल्ट ने भौगोलिक अध्ययन में तुलनात्मक विधि का अनुसरण किया। उन्होंने भौगोलिक मानचित्रावली का प्रकाशन कराया जो भूगोल की नींव गहरी करने में व्यापक महत्त्व की घटना है। उसने यथार्थ निरीक्षण को पंक्तिबद्ध किया। उसका प्रयोगातमक विज्ञान पर विश्वास था। इसी कारण स्पिाइनोजा, फिशे, शेलिंग, हीगेल आदि आदर्शवादी दार्शनिकों से प्रभावित होते. हुए भी इन पर ईश्वरवादी दार्शनिकता का प्रभाव नहीं था। इनको मानचित्रों से विशेष प्रेम था। अतः समतापी रेखाओं, परिच्छेद (Section) तथा वानस्पतिक प्रदेशों का मानचित्रांकन किया।
प्रकृति की एकता में विश्वास (नियतिवाद की विचारधारा)
हम्बोल्ट प्रकृति की एकता में विश्वास करता था। इसकी मान्यता थी कि प्रकृति के पदार्थों में एक आत्मा है और पत्थरों, पशुओं तथा मानव में भी एक जीवन है। कास्मोस में उसने लिखा है कि क्षमता एवं विवेक से सम्पन्न होने पर भी मनुष्य सभी क्षेत्रों में पार्थिव जीवन से नितान्त सम्बन्धित है। एकता का यह सिद्धान्त मानव भूगोल का सिद्धान्त बना।
क्रमबद्ध भूगोल की विचारधारा
हम्बोल्ट ने क्रमिक भूगोल को जन्म दिया। वह भू-आकृति की, जलवायु विज्ञान तथा वानस्पतिक विज्ञान के क्रमिक अध्ययन को ही प्रमुखता प्रदान करता है। अतः हम्बोल्ट को मानव भूगोल का जन्मदाता कहा जाता है। हम्बोल्ट महोदय ने मानव भूगोल के अन्तर्गत अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। जैसे कि मानव भौगोलिक परिस्थितियों का दास है। ये भौगोलिकक्षपरिस्थियाँ मानव को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित करती हैं। मानव एक ऐसा प्राणी है जो कि प्राकृतिक परिस्थितियों का दास है।
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कार्ल रिट्टर का योगदान
रिट्टर एक वैज्ञानिक तथा भूगोल के प्रोफेसर थे जिनमें भौगोलिक अध्ययन की स्वाभाविक रुचि थी। उसने 19वीं शताब्दी में भूगोल का विकास किया। रिट्टर को विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो एवं पेस्टालॉजी की शिक्षा प्राप्त थी। अपनी लम्बी यात्राओं द्वारा रिट्टर ने प्रकृति से घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित किया। सन् 1804 में उसकी प्रथम पुस्तक “Europe, Geographicla, Historical and Statistical Planting” प्रकाशित हुई जिसमें यूरोप के ऐतिहासिक तथा भौगोलिक महत्त्व को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया। दो वर्ष पश्चात् यूरोप के छह मानचित्रों भी प्रकाशित हुए। सन् 1817 ई. में उसका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ अर्डकुण्डे प्रकाशित हुआ। सन् 1827 ई. में उसका सम्बन्ध हम्बोल्ट से हुआ और दोनों ने विचार-विनिमय के द्वारा भूगोल के विकास में योग दिया।
रिट्टर का मत था कि पृथ्वी एवं उसके निवासियों में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। अतः एक के बिना दूसरे का वर्णन ठीक नहीं होता है। भूमि का प्रभाव निवासियों पर और निवासियों का भूमि पर होता है। इसलिए इतिहास एवं भूगोल कभी भी पृथक् नहीं किये जा सकते हैं।
अपने विवरण में उसने यह धारणा प्रस्तुत की कि भूगोल को केवल क्षेत्रीय विवरण तक ही नहीं सीमित करना चाहिए, बल्कि विवरण का सम्बन्ध मानव क्रिया-कलापों से स्थापित करना चाहिए। भूगोल के अध्ययन को मानव पर केन्द्रित करना चाहिए क्योंकि उसका ध्येय मानव और प्रकृति के सम्बन्धों की खोज करना है और मानव इतिहास एवं वातावरण के सम्बन्धों की छानबीन करना है। तथ्यों के संकलन के साथ उनका समन्वय भी आवश्यक होता है।
रिट्टर का विश्वास था कि पृथ्वीतल के सभी कार्य निश्चित नियमानुसार चलते हैं। अतः उसने राजनीतिक प्रदेशों की अपेक्षा प्राकृतिक प्रदेशों को विशेष महत्त्व दिया और उसने प्रादेनिक भूगोल की एक निश्चित रूपरेखा प्रस्तुत की। इसी के फलस्वरूप उसने अपने ग्रन्थ लाण्डेर कुण्डे में पृथ्वीतल का विभाजन प्राकृतिक भागों में किया।
रिट्टर ने भौगोलिक अनुसन्धान तथा खोजों के लिए प्रयोगात्मक तथा तुलनात्मक दोनों विधियों को अपनाया। उसने अपनी प्रारम्भिक रचनाओं में क्रमिक भूगोल विधि को अपनाया और भू-तल का अध्ययन वर्गीकरण द्वारा किया।
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फ्रेडरिक रैटजेल का योगदान
यह मानव भूगोल का यथार्थ जन्मदाता था। इसका ज्ञान क्षेत्र विशाल था। उसका अध्ययन गहरा था। उसमें मौलिकता, तीव्रबुद्धि आश्चर्यजनक विचारशीलता तथा प्रशंसनीय विवेकशीलता- थी जिसके आधार पर इसने विश्व में सुख्याति अर्जित की थी। यह बहुत बड़ा लेखक था जिसने अनेक ग्रंथ रचे, किन्तु उसका अति प्रसिद्ध ग्रंथ एन्थ्रोपोज्योग्राफी है जो तीन खण्डों में प्रकाशित है। रैटजेल ने अपने ग्रंथों में भू-तत्त्वों का सम्बन्ध मानव से क्रमिक विधि द्वारा वर्णित किया।
निश्चयवाद की विचाराधारा
रैटजेल निश्चयवाद का समर्थक था और वातावरण को प्रभावशाली मानता था। इसका कारण था कि भौतिक भूगोल में उसकी विशेष रुचि थी। अतः मानवीय समस्याओं के समाधान में उसकी दृष्टि वातावरण की शक्तियों की ओर बरबस आती थी।
मानव भूगोल को वर्तमान वैज्ञानिक ढाँचे में लाने का क्षेत्र सर्वप्रथम रैटजेल को है। उसने भूगोल का अध्ययन डार्विन के दृष्टिकोण से किया और मानव को वातावरण की उपज मानकर विकास के अन्तिम सिरे पर मनुष्य को देखा, उसने भूगोल की परिभाषा दी कि वह मानव एवं वातावरण के सम्बन्ध का अध्ययन है।
प्रादेशिक भूगोल की विचारधारा
रैटजेल मानव भूगोल को विकसित करने में सफल हुए, उन्होंने प्रादेशिक भूगोल के पहिये को भी गतिशील रखा। रैटजेल ने राजनैतिक भूगोल को भी सबसे पहले क्रमिक अध्ययन का रूप प्रदान किया। उसने राज्यों के विकास पर प्रादेशिक सम्बन्धों के प्रभाव को भी महत्त्वपूर्ण माना। वह राज्य एवं समाज को एक जीवधारी के समान मानता था जिनके विकास की अवस्थाएँ भूमि एवं साधनों से सम्बन्धित हैं। यह उसका जैवीय विकास साक्ष्य (Organic evolution Theory) था।
रैटजेल के सम्बन्ध में फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता ब्रून्स ने लिखा है, “रैटजेल इतिहास, अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र का अध्येता था जो कि एक भूगोलवेत्ता के लिए आवश्यक है। रैटजेल का मस्तिष्क सुसम्पन्न था और उनमें विचारों का बाहुल्य था। उसके विचार सफलदायी थे।”
हम्बोल्ट, रिट्टर एवं रैटजेल के विचारों में तनिक अन्तर मिलता है। रिट्टर आदर्शवादी दार्शनिक था और प्रादेशिक भूगोल में विश्वास करता था, किन्तु हम्बोल्ट भूगोल के सुव्यवस्थित अध्ययन को महत्ता देता था। रिटूटर की रचनाओं का प्रभाव शहघ्र फैल गया, किन्तु हम्बोल्ट का प्रभाव 20वीं शताब्दी में पड़ा क्योंकि हम्बोल्ट की रचनाएँ बिखरी थीं। रैटजेल की विचारधारा बड़ी व्यापक थी जिसका प्रभाव आज भी विद्यमान है।
फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं द्वारा मानव भूगोल की प्रगति में योगदान
फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने भूगोल के अध्ययन एवं विकास में अपनी वरिष्ठता स्थापित की है। इन्होंने मानव भूगोल को एक पूर्ण इकाई के रूप में विकसित किया। इन्होंने निश्चयवाद की उपेक्षा की और साम्यवाद का समर्थन किया।
ये सभी विद्वान मानव-सूझ तथा गति को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान करते थे। वे इस बात को स्वीकार करते थे कि वातावरण मनुष्य की महत्त्वाकांक्षाओं की सीमा निश्चय करता है, किन्तु मानव अधिक शक्तिशाली होता है। फ्रेबे ने इस दृष्टिकोण को सम्भववाद कहा जिसका प्रतिपादन उसने अपनी पुस्तक ‘Geographical Introduction’ में किया। प्रायः सभी फ्रांसीसी विद्वानों ने संभववाद का समर्थन एवं पोषण किया। इसका कारण था कि भूगोलवेत्ता इतिहास के आरम्भिक अध्येता थे।
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विडाल डी ला ब्लांश का योगदान
ब्लांश 20वीं शताब्दी के विख्यात मानवशास्त्री प्रोफेसर थे। ये सम्भववादी ांसीसी विचारधारा के अग्रणी समर्थक तथा जन्मदाता थे। उसने ‘Geographic Universities’ पुस्तक में समस्त संसार का प्रादेशिक भूगोल लिखा। प्रोफेसर ब्लांश ने क्षेत्र अध्ययन को विशेष प्रोत्साहित किया और तथ्यों एवं खोजों को अपनी पत्रिका ‘Annale de Geogrpahic’ में प्रकाशित किया।
प्रोफेसर ब्लांश के भूगोल सम्बन्धी सिद्धान्तों की विवेचना उनकी मृत्यु के पश्चात् Principles de Geographic Humanic’ में प्रकाशित हुई। इसमें भौगोलिक एकता, वातावरण के महत्त्व तथा वातावरण पर मानव की क्रियाओं का महत्त्व उल्लिखित है। इस पुस्तक के तीन खण्ड हैं। प्रथम खण्ड संसार में जनसंख्या का वितरण, घनत्व एवं प्रवास का विवरण है। द्वितीय खण्ड में मानव द्वारा वातावरण का विकास तथा मानव संस्कृति का विश्लेषण है। तीसरे खंड में मानवीय क्रिया-कलाप, परिवहन एवं संचार का विशद् वर्णन मिलता है। ब्लांश की “Tableua lau eGeograpic de la France’ तथा उनके सहयोगी अनुसन्धानकर्ता एवं छात्रों की प्रादेशिक भूगोल सम्बन्धी रचनाएँ उच्चकोटि की हैं जिनमें प्राकृतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक तत्त्वों के प्रभावों का विस्तृत उल्लेख मिलता है। ब्लांश की यह पुस्तक प्रादेशिक भूगोल की श्रेष्ठ रचना मानी जाती है।
ब्लांश का मत था कि भूगोल प्राकृतिक विज्ञान तथा मानव विज्ञान का संशिलष्ट रूप है। इसके समर्थन में उन्होंने निम्न सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है:
- पार्थिव घटनाओं की एकरूपता,
- प्राकृतिक दृश्यों में परिवर्तनशीलता,
- वातावरण के विभिन्न रूपों का अध्ययन,
- भू-दृश्यों के अध्ययन में वैज्ञानिक विधि का उपयोग,
- पृथ्वीतल के भू-दृश्यों का भूगोल में वर्णन,
- वातावरण में मानवीय कार्यों द्वारा परिवर्तन।
2. जीन ब्रून्स का योगदान
ब्रून्स महान् भूगोलवेत्ता, प्रोफेसर तथा निपुण द्रष्टा थे और ब्लांश के परम शिष्ट तथा सम्भववाद के प्रकाण्ड समर्थक थे। इनकी शिक्षा इतिहा, प्राकृतिक कानून, विज्ञान, राजस्व तथा मानव भूगोल में हुई थी। सन् 1910 में उनकी मानव भूगोल की पुस्तक ‘Geographic Humantic’ प्रकाशित हुई जिसका अंग्रेजी अनुवाद आई. सी. लीकम्पेट ने किया। इस पुस्तक में मानव भूगोल के तथ्यों को तीन वर्गों, छह प्रकारों में वर्णित किया गया है। प्रोफेसर ब्रुन्स ने पुस्तक में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा ऐतिहासिक तथ्यों का प्रभाव मानव समाज पर प्रदर्शित किया हैं। उसने स्पष्ट व्यक्त किया है कि मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं में प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव भिन्न-भिन्न होता है। मानव भूगोल की यह प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है।
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डीमांजिया का योगदान
यह फ्रांस का प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता था। इसने यूरोप का भौगोलिक अध्ययन तथा मानव निवास पर गवेषणाएँ कीं। इसने सम्भववाद का प्रबल समर्थन किया। उसकी पुस्तक “Problem de Geographic Humine’ उसकी मृत्यु के उपरान्त प्रकाशित हुई। उसके मतानुसार मानव भूगोल प्रथमतः मनुष्य एवं वातावरण के मध्य संघर्ष के अध्ययन है, तत्पश्चात् इस संघर्ष से प्राप्त अनुभवों का विश्लेषण है। मानव क्रिया को महत्त्व देते हुए वातावरण में परिवर्तन की विधियों का भी उल्लेख उसने किया है। पुस्तक में सम्भववाद की विचारधारा का विस्तृत उल्लेख मिलता है।
अमरीकी भूगोलवेत्ताओं का मानव भूगोल की प्रगति में योगदान
इन भूगोलवेत्ताओं में कुमारी सेम्पुल, हंटिंगट, ग्रिफिथ टेलर, टैथम, डेविस कार्ल सावर, इसाआह वामैन, ह्वाइट एवं रेनर, मार्श डब्ल्यू. डी. मैथ्यू हार्सकोविट्ज तथा निकालस उल्लेखनीय हैं। इनमें कुमारी सेम्पुल, हंटिंगटन, ग्रिफिथ टेलर विशेष महत्त्व रखते हैं।
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कुमारी ई. सी. सेम्पुल का योगदान
कुमारी सेम्पुल रैटजेल की शिष्या थीं जिन्होंने रैटजेल की निश्चयवाद की विचारधारा को अपनाया और इस विचारधारा को अंग्रेजी भाषी जनता के समक्ष प्रस्तुत किया। इसकी पुस्तक “Influence of Geographicl Envornment” सन् 1911 में प्रकाशित हुई। यह उसकी महान कृति है जिसमें प्राकृतिक वातावरण का सर्वांगीण नियन्त्रण मानव के क्रिया-कलापों, जीविका उपार्जन, सामाजिक संगठन, रीति-रिवाजों तथा संस्कृति पर सोदाहरण दिया गया है। उसने मनुष्य को पृथ्वी की उपज माना है।
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एल्सवर्थ हंटिंगटन का योगदान
मानव भूगोल के गण्यमान भूगोलवेत्ता हंटिंगटन ने भूगोल पर तीन पुस्तकें लिखी हैं जिनमें ‘Palse ofasis CivilizationandClimate’ तथा ‘Principle Human Geography मुख्य है। हंटिंगटन निश्चयवाद के समर्थक थे और प्राकृतिक वातावरण का मानव क्रिया- कलापों पर नियन्त्रण को स्वीकार करते थे। उनकी पुस्तक ‘Climation Factor’ भी बहुत प्रसिद्ध हैं। इनके द्वारा प्रस्तुत मानव भूगोल के तथ्यों का विभाजन सरल एवं सारगर्भित है और भूगोल-जगत् में प्रतिष्ठित है। बाद में इनका झुकाव नवनिश्चयवाद की ओर हो गया था।
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ग्रिफिथ टेलर का योगदान
इस कनाडियन विद्वान् ने नव-निश्चयवाद का समर्थन किया। टेलर की पुस्तकें ‘Environment, Rase and Migration’ तथा ‘Geography in the 20th Century’ बहुत विख्यात है। उनके मत में प्रकृति प्लान रचती है अौर उसमें मानव के द्वारा ही संस्कृति प्रगति करती है। मानव पर प्रकृति का प्रभाव है आर मानव इन सीमाओं के अन्तर्गत प्राविधिक ज्ञान द्वारा आर्थिक एवं सांस्कृतिक उन्नति करता है। इनके विचार में न तो प्रकृति का पूर्ण नियन्त्रण मनुष्य पर है और न मनुष्य प्रकृति का विजेता है। मानव विकास के लिए दोनों का सहयोग आवश्यक है।
मानव भूगोल की प्रगति में ब्रिटिश भूगोलवेत्ताओं का योगदान
ब्रिटिश भूगोलवेत्ताओं का योगदान 20वीं शताब्दी की देन है। इनमें प्रमुख मैकिंडर, हरबर्टसन, सी. डी. फोर्ड, राक्सर्व पल्यूर, सी. डी. पी., ब्रूक्स, कोवर, तांसले, बुलरिज, स्टाम्प प्रमुख हैं। एच. जे. मैकिण्डर ऐतिहासिक भूगोल का ज्ञाता था। उसकी पुस्तक ब्रिटेन एवं ब्रिटिश सी प्रथम कोटि का ग्रन्थ माना जाता है। ए. जे. हरवर्टसन की पुस्तक “मानव एवं उसके कार्य, प्रादेशिक भूगोल का आधार है।”
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