भूगोल / Geography

मृदा नमी संरक्षण (Soil Moisture Conservation)

मृदा नमी संरक्षण (Soil Moisture Conservation)

मृदा नमी संरक्षण- मृदा नमी प्राणिवर्ग के लिए अत्यन्त आवश्यक है। मानव जीवन के विविध क्रियाकलाप प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मृदानमी पर आधारित है। मानवीय अतिक्रमण ने मृदानमी का दुरुपयोग किया है। अतः आवश्यकता है कि मृदा नमी के संरक्षण सम्बन्धी निम्न नियमों का परिपालन किया जाय –

  1. मृदा नमी संरक्षण वर्षण जल के धरातलीय सम्पर्क के साथ होना चाहिए। वर्षण जल को यदि सतह पर बहने से रोक दिया जाय और भूमिगत होने के लिए प्रयास किया जाय तो भौम जल वृद्धि के साथ मृदा नमी में वृद्धि होगी।
  2. मृदा नमी संरक्षण के लिए भूमि क्षरण पर नियन्त्रण करना आवश्यक है। मृदा अपरदन को रोकने के लिए ढालों के सहारे सीढ़ीनुमा खेतों, वेदिकाओं तथा अन्य विधियों का प्रयोग किया जाय जिससे मृदा नमी में वृद्धि हो।
  3. मृदा में जीवांश की मात्रा बढ़ाने की मात्रा बढ़ाने से नमी धारण करने की शक्ति बढ़ जाती है इसलिए मृदानमी में वृद्धि के लिए जीवांश की मात्रा को बढ़ाना आवश्यक है।
  4. मृदा नमी संरक्षण के लिए मृदा जल सोखने की क्षमता अधिक होनी चाहिए। जिस सतह पर गहरी पोली मिट्टी, घास की परत, चौड़ी पत्ती वाले वनों के नीचे सूखी पत्ती का आवरण होता है वहाँ मृदा नमी का संचयन अधिक होता है। अतः इस प्रकार की सतहों का होना मृदा नमी संरक्षण के लिए आवश्यक है।
  5. मृदा नमी संरक्षण के लिए धरातलीय सतह पर घास के मैदानों, वनस्पतियों एवं घने वनारोपण का होना आवश्यक है। वानस्पतिक आवरण के द्वारा जल के अपवाह गति में अवरोध होता है। परिणामस्वरूप मृदा में जल संचय की गति बढ़ जाती है। इसके साथ ही साथ पेड़ पौधों के अवशिष्ट भाग मृदा गुणों में परिवर्तन कर देते हैं जिसके कारण जल सोखने की शक्ति एवं क्षमता अधिक हो जाती है।
  6. कृषि क्षेत्रों में फसलों के साथ अनावश्यक खरपतवार उगे रहते हैं जिनके द्वारा वाष्पोत्सर्जन से मृदानमी का हास होता है। अतः मृदा नमी संरक्षण के लिए ऐसे खरपतवारों का निवारण आवश्यक है।
  7. नदियों, जलाशयों के सहारे बाँध का निर्माण एवं शुष्क प्रदेशों में कन्टूर बाँध (Contour Bund) का निर्माण करके मृदा नमी का संरक्षण किया जा सकता है।
  8. मृदा संरचना एवं बनावट का मृदा नमी पर प्रभाव पड़ता है। रेन्ध् युक्त मृदा में नमी अधिक होती है।
  9. सूर्यातप के प्रभाव से वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है और मृदा नमी का क्षय होता है। मृदा नंमी वाष्प बनकर वायुमण्डल में विसर्जित हो जाती है। इस प्रकार मृदा नमी क्षय को रोकने के लिए कृषि क्षेत्रों में गोबर की खाद एवं पोली मिट्टी की परत बिछा देनी चाहिए। इसके अलावा धरातल पर कम मात्रा में वाष्पीकरण-वाष्पोत्सर्जन करने वाली वनस्पतियों एवं घासों का आवरण भी होना चाहिए जो मृदा नमी को वाष्पन से रोक सके।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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