भूगोल / Geography

मानव भूगोल के विकास में जर्मन भूगोलवेत्ताओं का योगदान | रैटजेल का मानव भूगोल में योगदान

मानव भूगोल के विकास में जर्मन भूगोलवेत्ताओं का योगदान | रैटजेल का मानव भूगोल में योगदान

मानव भूगोल के विकास में जर्मन भूगोलवेत्ताओं का योगदान

मानव भूगोल के विकास में जर्मन भूगोलवेत्ताओं का योगदान – 17वीं शताब्दी में जर्मन विद्वान क्लुवेरियल एवं वारेनियस ने पुस्तकें लिखीं जिसमें गणित, भूगोल एवं ब्रह्माण्ड का विस्तृत उल्लेख था। वारेनियस ने मानव भूगोल को विशेष भूगोल की संज्ञा प्रदान की। उसकी मृत्यु के बाद छपी ‘स्पेशल ज्याग्रफी’ में पार्थिव पदार्थ एवं जलवायु, वातावरण, वनस्पति एवं पशुजीवन की अभिन्न एकता तथा देश-विदेश के निवासियों, तथा शासन का वर्णन है। हार्टशोर्न के मतानुसार क्रमबद्ध भूगोल पर सबसे प्रथम ग्रन्थ वारेनियस ने लिखा था।

18वीं शताब्दी में माण्टेस्क्यू तथा डर्डर ने मनुष्य पर प्रकृति के प्रभाव का अध्ययन किया और पृथ्वी को मानव एवं मानव संस्कृति के विकास का रंगमंच बताया। इसी समय भूगोल को स्वतन्त्र विज्ञान का स्थान मिला। जर्मन वैज्ञानिक बुशिंग बुआसे तथा गैटरर ने भौगोलिक अध्ययन में चार-चाँद पिरोये। बुशिंग की रचनाएँ बहुत महत्त्वपूर्ण रहीं। बुआसे ने पृथ्वी का ढांचा बेसिनी से निर्मित बताया जिनके मध्य पर्वतों की लगातार श्रृंखलाएं एवं समुद्री रीढ़ें थीं। इस सिद्धान्त को समोच्च रेखाओं द्वारा निर्मित धरातलीय मानचित्रों द्वारा समर्थन मिला। राज्यों एवं देशों की सीमाओं के स्थान पर पर्वतों द्वारा निर्मित रेखाओं को महत्ता मिली। गैटरर ने बुआसे के सिद्धान्त के आधार पर संसार को प्राकृतिक प्रदेशों में विभक्त किया जिसका प्रयोग भूमध्यसागरीय प्रायद्वीपों में किया गया। अन्य जर्मन विद्वान होमेयर, जिउन, जे. आर. तथा जे. जी. फोर्स्टर ने प्राकृतिक वातावरण एवं मानव क्रिया-कलापों में समन्वय स्थापित करने का प्रशंसनीय प्रयास किया जिससे फार्स्टर को प्रथम श्रेणी का आदर्श भूगोलविद् कहा गया। होमेययर ने बुआसे के सिद्धान्त को पुष्ट किया और राजनीतिक सीमाओं का पूर्णतः उल्लघंन किया और देशों को प्राकृतिक प्रदेशों में विभक्त किया जो प्रधानतः नदियों के वेसिन थे। उन्होंने पृथ्वी की सतह, आकृति तथा क्षेत्रफल को प्राकृतिक प्रदेशों से सम्बन्धित किया। जिउन ने पौधों, पशुओं एवं मनुष्य की प्रकृति के अध्ययन पर विशेष बल दियां उसकी अवधारणा थी कि प्रकृति द्वारा उपस्थित सीमाओं का प्रभाव भौतिक तथ्यों पर पड़ता है। पर्वत श्रेणियाँ जल-विभाजन का कार्य करती हैं जिनका प्रभाव प्राकृतिक वनस्पति एवं पशुओं के वितरण पर पड़ता है। उसने पौधों, पशुओं तथा मनुष्य में पारस्परिक सम्बन्धों की खोज की। फोर्स्टर बन्धुओं की रचनाएँ पृथ्वी एवं स्थल, जल एवं सागर, वायुमंडल, ग्लाब के परिवर्तन, पशु एवं वनस्पति तथा मानव पर  प्रकाशित हुई। इनमें मानव बसाव, जनसंख्या के घनत्व तथा परिवहन की सुविधाओं के मध्य समन्वय लाने का प्रयास मिलता है।

18वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में जर्मन वैज्ञानिक कार्ल रिट्टर एवं भूगोलवेत्ता अलेक्जेण्डर वोन हम्बोल्ट द्वारा भूगोल का अत्यन्त विकास हुआ जिसको भूगोल का चिरसम्मत काल (Clasical Period) माना गया। कार्ल रिट्टर ने मनुष्य एवं भूमि के सध्य  घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किया तथा वातावरण को एक रंगमंच बताया जिस पर मानव महत्त्वपूर्ण अभिनेता है। इस प्रकार रिटर के विचार में भूगोल का केन्द्र मानव एवं उनके कार्य है। फिर भी मानवीय तत्त्वों को भली प्रकार समझने के लिए प्रादेशिक भूगोल के गहन विश्लेषण की ओर उनका ध्यान अधिक आकषिर्रत था। हम्बोल्ट ने अपनी विशद् यात्राओं के फलस्वरूप कास्मेस ग्रन्थ की रचना की। उन्होंने प्राकृतिक तथ्यों के मध्य एकता स्थापित करने का स्तुत्य प्रयास किया जो मानव भूगोल में विश्वास करते थे, जबकि हम्बोल्ट सुव्यवस्थित अध्ययन को प्रमुखता प्रदान करते थे। इस शताब्दी में रूसी भूगोलवेत्ता रेमेजोव तथा चिररिकोव ने एटलस तथा चित्र बनाये।

एम० बी० लोमोनसोव विश्व का प्रथम भू-आकृतिक वैज्ञानिक था जिसने यह विचार दिया कि स्थलरूपों का निर्माण पृथ्वी की आन्तरिक और बाह्य शक्तियों की प्रक्रियाओं से होता है।

19वीं शताब्दी में प्रोफेसर फ्रोबेल, ओस्कर पेशल, डेविस, बुचान, हान, कोइपेन, हैबरनाल, ग्रिसवाच, ए. पेक तथा बोमिंग ने भूगोल विषय के विभिन्न अंगों की व्याख्या की और मानव भूगोल को स्वतन्त्र शाखा का रूप प्रदान किया।

फ्रोबेल ने पृथ्वी के धरातल का अध्ययन सुचारु रूप से किया। स्थल की प्राकृतिक बनावट, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, पशु तथा मानव के तथ्यों का संकलन किया और मानव भूगोल को एक विज्ञान का रूप देने का प्रयास किया।

ओस्कर पेशल ने विभिन्न प्रकार के भू-दृश्यों का विवरण विस्तृत रूप से प्राकृतिक भूगोल में दिया। डब्ल्यू. एम० डविस ने पृथ्वी के अपरदन सम्बन्धी तथ्यों को एक सिद्धानत के रूप में प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त की विभिन्न प्रणालियों ने इस विषय को विशेष महत्त्वपूर्ण बना दिया।

रैटजेल का मानव भूगोल को योगदान

19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में फ्रेडरिक रैटजेल ने अपनी रचनाओं में पृथ्वी का अध्ययन मानव जीवन के सन्दर्भ में किया। इन्होंने विकास के अन्तिम छोर पर मानव को देखा तथा मानव को वातावरण की उपज माना। उन्होंने मानव भूगोल को विकसित किया और मानवीय कार्यों का निरीक्षण भूगोलवेत्ता की दृष्टि से अधिक किया। फलतः रैटजेल मानव भूगोल के जन्मदाता माने जाते हैं। इनके लेखन एवं विवेचन का मूल तत्त्व पृथ्वी तल पर मानव के स्थैतिक विवरण प्रतिरूप और गत्यात्मक पक्षों का वातावरण से सम्वन्ध है। कार्ल हाशफोर ने भू- राजनीति पर पुस्तकें लिखीं।

रैटजेल की शिष्या अमेरिकी कुमारी सेम्पुल ने रैटजेल की विचारधारा का प्रतिपादन एवं प्रसार किया, किन्तु वातावरण का नियन्त्रण मानव के प्रत्येक कार्य पर व्यापक बताकर यह भ्रम पैदा किया कि रैटजेल नियतिवादी अवधरणा के पोषक हैं। यद्यपि रैटजेल प्राकृतिक वातावरण तथा मानवीय तत्त्वों के क्षेत्रीय सह-सम्बन्ध के विश्लेषक थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने प्रत्येक तत्त्व का वर्गीकरण, उनके विवरण प्रतिरूप का निरूपण, इन तत्त्वों के पारस्परिक सम्बन्ध, उनके उद्भव एवं विकास की प्रक्रिया के विश्लेषण पर विशेष बल दिया।

रैटजेल के समकालीन जर्मन भूगोलवेत्ता रिचथोफेन ने मानव भूगोल के गत्यात्मक स्वरूप के अध्ययन पर विशेष बल दिया। उनका तात्पर्य था कि मानव पर विभिन्न क्षेत्रों के वातावरण का प्रभाव तथा मानव द्वारा प्राकृतिक वातावरण को परिवर्तित एवं परिष्कृत करने की प्रक्रिया स्पष्ट हो जाय।

उधर अमेरिका भूगोलवेत्ता मार्श ने अपने देश के मानव भूगोल की नींव डाली। उन्होंने को गत्यात्मक शक्ति के रूप में प्राकृतिक वातावरण के साथ अविवेकपूर्ण आचरण करते देखा  और मनुष्य के इस प्रकार के आचरण को खतरनाक घोषित किया। उन्होंने सुझाव दिया कि प्राकृतिक वातावरण के साथ मनुष्य को सामंजस्य स्थापित करना चाहिए और संसाधन में निर्धन देशों में सम्पन्न बनाने का प्रयास करना चाहिए।

अन्य भूगोलवेत्ताओं का योगदान

रूसी वैज्ञानिक वाइकाफ भी मनुष्य के विनष्टकारी कार्यों पर चिन्तित थे। ये प्राकृतिक वातावरण को दूषित करने का कारण नगरों के विकास को ही मानते थे। उनकी अवधारणा थी। कि प्राकृतिक वनस्पति के नष्ट होने से जलवायु और अन्ततः सम्पूर्ण प्रकृति प्रभावित होती है। इसी प्रकार फ्रांसीसी वैज्ञानिक रेवल्यूज ने लिखा है कि “अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु मनुष्य प्राकृतिक सौन्दर्य को नष्ट करता है और सिंचाई के लिए नहरें, जलशक्ति के लिए बाँध तथा स्व- सुविधा के लिए परिवहन के साधनों का निर्माण करता है। इस प्रकार मनुष्य प्रकृति के सन्तुलन को बिगाड़ देता है।” फ्रांसीसी भौतिक वैज्ञानिक रेवल्यूज की सम्मति में मनुष्य को प्रकृति के सौन्दर्य के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए। इस प्रकार मानव भूगोल में वातावरण तथा मानव के अर्न्तसम्बन्ध का विवेचन संरक्षात्मक और इसका विषय-क्षेत्र, जनसंख्या का वितरण, आदिम एवं प्रजातियों का वितरण आदि था।

20वीं शताब्दी मानव भूगोल के इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसमें फ्रांसीसी, अमेरिकी, जर्मन एवं अंग्रेज भूगोलवेत्ता के अमूल्य सहयोग उपलब्ध हुए। प्रसिद्ध फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता, ब्लांश, ब्रून्स एवं डीमांजिया, अमेरिका हंटिंगटन एवं सेम्पुल, ब्रिटेन के सी. सी. फोबी एवं पल्यूर ने मानव भूगोल को नई प्रेरणा प्रदान की। इन लोगों ने मानव भूगोल को सभी सामाजिक विज्ञनों में श्रेष्ठ ठहराया। इस शताब्दी में मानव भूगोल की विषय-सामग्री में विशेष विकास हुआ और आज भी यह प्रवृत्ति बलवती होती जा रही है।

भूगोलवेत्ताओं के सम्प्रदाय

इस शताब्दी में भूगोलवेत्ताओं में दो सम्प्रदाय हो गये। एक अंग्रेजी भाषी विचारकों का सम्प्रदाय बना जो कुमारी सेम्पुल से प्रभावित था। ये लोग नियतिवादी विचाराधारा के समर्थक थे और प्राकृतिक वातावरण के व्यापक प्रभाव के हामी थे। दूसरे फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता थे जिनमें अग्रणी ब्लांश थे।

ब्लांश ने मानवीय तत्त्वों का विश्लेषण ऐतिहासिक क्रम में किया है और मानव द्वारा प्राकृतिक वातावरण में परिष्कर को प्रमुखता प्रदान की है। ब्रून्स की अवधारणा है कि “वातावरण को परिष्कृत करने की शारीरिक-मानसिक क्षमता मनुष्य में हैं।”

फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं का प्रभाव अंग्रेजी-भाषी विचारकों पर पड़ा जिसके फलस्वरूप ये लोग वातावरण-मानव अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या सम्भववाद के परिप्रेक्ष्य में करने लगे। बैरो ने वातावरण के स्थान पर मानव को प्रधानता दी। सन् 1925 में अमेरिका विचारक कार्ल साचर ने मानव भूगोल के अध्ययन का उद्देश्य मानव भू-दृश्य का विश्लेषण बताया।

फ्रांस के भूगोल सोरे ने चार खण्डों की एक प्रुस्तक लिखी जो मानव भूगोल की आदर्श पुस्तक मानी जाती है, इसके बाद सन् 1951 में अमेरिका ग्रिफिथ टेलर द्वारा प्रतिपादित नवनिश्चयवाद (Newo-Determinism) संकल्पना तथा ऑस्ट्रेलियाई विद्वान् स्पेट द्वारा प्रस्तुत सम्भाव्यवाद (Prosaism) की संकल्पना ने लोगों को आकर्षित किया। सन् 1960 के पश्चात् मानव भूगोल के विभिन्न पक्ष गहन अध्ययन के विषय बन गये हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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