हिन्दी नाटक का उद्भव और विकास | भारतेन्दु-पूर्व हिन्दी नाटक | हिन्दी नाटक के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिये

हिन्दी नाटक का उद्भव और विकास | भारतेन्दु-पूर्व हिन्दी नाटक | हिन्दी नाटक के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिये हिन्दी नाटक का उद्भव और विकास भारतेन्दु-पूर्व हिन्दी नाटक वास्तविक हिन्दी नाटक का समारम्भ भारतेन्तु हरिश्चन्द्र (1907-1941) से हुआ। किन्तु उनसे पूर्व भी एक क्षीण नाट्य-परम्परा हिन्दी साहित्य के आदिकाल से चली आ रही थी।…

प्रेमचन्द का उपन्यास निर्मला | प्रेमचंद- कृत निर्मला उपन्यास नारी जीवन की करुण त्रासदी है।’’-इस कथन की समीक्षा

प्रेमचन्द का उपन्यास निर्मला | प्रेमचंद- कृत निर्मला उपन्यास नारी जीवन की करुण त्रासदी है।’’–इस कथन की समीक्षा प्रेमचन्द का उपन्यास निर्मला प्रेमचन्द का उपन्यास ‘निर्मला’ नारी प्रधान रचना है। यही कारण कि इसका नामांकन लेखक ने प्रमुख नारी पात्र निर्मला के नाम पर किया है। इस उपन्यास में नारी पात्रों को स्थान दिया है,…

‘उसने कहा था’ के आधार पर लहनासिंह का चरित्र-चित्रण | पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ के आधार पर लहनासिंह का चरित्र-चित्रण | लहनासिंह का चरित्र-चित्रण

‘उसने कहा था’ के आधार पर लहनासिंह का चरित्र-चित्रण | पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ के आधार पर लहनासिंह का चरित्र-चित्रण | लहनासिंह का चरित्र-चित्रण ‘उसने कहा था’ के आधार पर लहनासिंह का चरित्र-चित्रण चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी उसने कहा था’ पवित्र, वासना रहित, निर्मल और सच्चे प्रेम पर आधारित…

उसने कहा था कहानी की समीक्षा

उसने कहा था कहानी की समीक्षा | चन्द्रधर शर्मा गुलेरी – उसने कहा था | कहानी कला की दृष्टि से ‘ उसने कहा था’ का मूल्यांकन | कहानी-कला के तत्वों के आधार पर उसने कहा था’ कहानी की समीक्षा

उसने कहा था कहानी की समीक्षा | चन्द्रधर शर्मा गुलेरी – उसने कहा था | कहानी कला की दृष्टि से ‘ उसने कहा था’ का मूल्यांकन | कहानी-कला के तत्वों के आधार पर उसने कहा था’ कहानी की समीक्षा उसने कहा था कहानी की समीक्षा गुलेरीजी की उसने कहा था’ कहानी एक सफल कहानी है।…

गुल्ली-डंडा | प्रेमचन्द – गुल्ली डंडा | कहानी कला की दृष्टि से गुल्ली डंडा का मूल्यांकन

गुल्ली-डंडा | प्रेमचन्द – गुल्ली डंडा | कहानी कला की दृष्टि से गुल्ली डंडा का मूल्यांकन गुल्ली-डंडा ‘गुल्ली डंडा’ एक ऐसी कहानी है। इस कहानी में लेखक ने न केवल गुल्ली डंडा की विशेषताओं का बखान किया है बल्कि इस खेल की बारीकियाँ भी बताई हैं, गोया किसी को गुल्ली डंडा खेलना सिखा रहे हों।…

चीफ की दावत सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या | भीष्मसाहनी – चीफ की दावत

चीफ की दावत सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या | भीष्मसाहनी – चीफ की दावत चीफ की दावत आखिर पाँच बजते-बजते तैयारी मुकम्मल होने लगी। कुर्सियाँ, मेज, तिपाइयाँ नैपकिन, फूल बरामदे में पहुँच गये। ड्रिंक का इन्तजाम बैठक में कर दिया गया। अब घर का फालतू सामान आलमारियों के पीछे और पलंगों के नीचे छुपाया जाने लगा। तभी…

पुरस्कार सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या | जयशंकर प्रसाद – पुरस्कार

पुरस्कार सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या | जयशंकर प्रसाद – पुरस्कार पुरस्कार मधूलिका ने राजा का प्रतिदान, अनुग्रह नहीं लिया। वह दूसरे खेतों में काम करती और चौथे पहर रूखी-सूखी खाकर पड़ी रहती। मधूक वृक्ष के नीचे छोटी-सी पर्ण-कुटी थी। सूखे डंठलों से उसकी दीवार बनी थी। मधुलिका का वहीं आश्रम था। कठोर परिश्रम से जो रूखा…

सिरी उपमा जोग सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या | शिवमूर्ति – सिरी उपमा जोग

सिरी उपमा जोग सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या | शिवमूर्ति – सिरी उपमा जोग सिरी उपमा जोग अर्दली लड़को.…………हुआ लगता है। सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यावतरण हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति के “सिरी उपमा जोग” नामक कहानी से अवतरित है। इसमें गाँव से आया लड़का ए.डी.एम. साहब से एकान्त में मिलना चाहता है, किन्तु अर्दली उसे अनुमति नहीं…

भूख सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या | चित्रा मद्गल – भूख

भूख सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या | चित्रा मद्गल – भूख भूख क्या वह नहीं जानती.……….कौन सी दिक्कत। सन्दर्भ – प्रस्तुत कहानी ‘भूख’ के लेखक प्रख्यात कहानीकार मराठी लेखिका चित्रा मुद्गल हैं। कहानी में मजदूर वर्ग की एक महिला की विवशता एवं वेदना का मार्मिक ढंग से चित्रण है। व्याख्या – सावित्री अक्का, लक्ष्मा की कोई दुश्मन…