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भूख सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या | चित्रा मद्गल – भूख

भूख सन्दर्भः प्रसंग- व्याख्या | चित्रा मद्गल – भूख

भूख

  1. क्या वह नहीं जानती.……….कौन सी दिक्कत।

सन्दर्भ – प्रस्तुत कहानी ‘भूख’ के लेखक प्रख्यात कहानीकार मराठी लेखिका चित्रा मुद्गल हैं। कहानी में मजदूर वर्ग की एक महिला की विवशता एवं वेदना का मार्मिक ढंग से चित्रण है।

व्याख्या – सावित्री अक्का, लक्ष्मा की कोई दुश्मन नहीं, वह तो उसका भला चाहती है। तीनों बच्चे जो लक्ष्मा के हैं- भूख से बिलबिलाते हुए देख उसे तरस आ गया। लक्ष्मा बच्चों को अन का तिनका भी नहीं खिला पाती। अगर यही हालात रहे तो बच्चों की क्या स्थिति होगी। कलाबाई के मुँह से यह सुनकर कि वह अपने छोटू को भिखारिन जागूबाई को दे दे बदले में दो रूपये उसे देगी। किन्तु ऐसी हरकत से तो अच्छा होता कि आदमी मर जाए। यह जानते हुए कि सावित्री ने लक्ष्मा को इस विषय में कुछ नहीं बताया। सारी रात वह विचार करती रही कि क्या उचित है और क्या अनुचित है। उसको यह लग रहा था कि लक्ष्मा की यह कठिन परीक्षा की घड़ी है और इसमें अधिक सोच-विचार की आवश्यकता नहीं है। अगर आगे से कोई मिल जाता है तो अपने बच्चों का पालन-पोषण आसानी से कर सकती है और उसे अपना बच्चा वापस पाने में भी किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं है। सावित्री के समझाने पर वह अपने बच्चे को उस भिखारिन औरत को भीख मांगने के लिए दे देती है।

  1. लेकिन … बंधी हुई उम्मीद …….. टंटा खत्म।

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश प्रसिद्ध कहानी ‘भूख’ से अवतरित है। इसकी लेखिका चित्रा मुद्गल हैं। चित्रा मुद्गल मराठी लेखिका है।

व्याख्या – सावित्री अक्का से एकदम शिष्टभाव में होते हुई लक्ष्मा ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया कि वह बच्चे को कदापि किसी भिखारिन को दे रही। कल से वह मजदूरी करने को जा रही है, किन्तु थोड़ी देर में उसकी आशाओं पर पानी फिर गया। यह कैसी परीक्षा है जिसका कोई ओर- छोर नहीं है। वह बहुत थक गयी है और अब नहीं चल सकती। उसके मन में निराशा के भाव जन्म ले रहे थे। उसके मन में एक भयानक विचार आया। उसने धीरे से अपना सिर उठाया। वह तीन बच्चों के साथ है। जिन्दा तो सभी हैं, किन्तु वे सभी मुर्दे की तरह से है। सहसा उसके मन में एक विचार पनपता है कि क्यों न हम सभी समुद्र में कूद कर अपनी जान दे दें। ताकि दुखों का बखेड़ा समाप्त हो जाय। न रहेगा बास न बजेगी बाँसुरी।

  1. डॉक्टर ने पलभर ………बेहोशी सी छाने लगी।

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश प्रख्यात कहानी लेखिका चित्रा मुद्गल की भूख कहानी से अवतरित है। इस गद्यांश में बच्चे को चिकित्सालय में भर्ती करा दिया गया है, जहाँ परीक्षणों परान्त यह साबित हो जाता है कि बच्चे की मौत ‘भूख’ के कारण हुई है।

व्याख्या – बच्चे की तबियत खराब होते देख लक्ष्मा और सावित्री अक्का उसे लेकर अस्पताल जाते हैं। उसकी नाजुक हालत देखकर डॉक्टर उसे भर्ती कर लेता है। ग्लूकोज की बॉटल लगा दी जाती है। करीब ढाई घन्टे की प्रतीक्षा के बाद डॉक्टर साहब वार्ड से बाहर आये। उनका प्रश्न था कि आप चारों में से बच्चे की माँ कौन है? कांबले ताई ने लक्ष्मा की ओर इशारा किया। डॉक्टर ने बड़े गौर से लक्ष्मा को देखा फिर बिगड़कर,बोले – क्या बच्चे को खिलाती पिलाती नहीं थी? बच्चा भूखा था वह भूख के कारण से मर गया न खाने से उसकी आंते चिपक गयी थीं। यह सुनने के उपरान्त लक्ष्मा को हृदय फूट पड़ा एक करुणा पूर्ण रूदन से। अरे! यह नहीं हो सकता वह भिखारिन जग्गूबाई से कहती थी वह बच्चे को दूध देती, बिस्कुट खिलाती बड़े प्यार से रखती। तो क्या ये सब झूठा वादा था। लक्ष्मा अपने को संभाल न सकी और करुण क्रन्दन करती हुई बेहोश हो जाती है।

  1. ऐसे मरे या वैसे…………. हत्या नहीं।

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश प्रख्यात हिन्दी मराठी लेखिका चित्रा मुद्गल की प्रसिद्ध कहानी ‘भूख’ से उद्धृत है। जिसमें एक गरीब मजदूर महिला की विवशता का चित्रण किया गया है।

व्याख्या – लक्ष्मा गरीब महिला है। अपना जीवन तथा बच्चों के जीवन को दाँव पर लगा देती है। वह आत्महत्या के लिए कई बार प्रयास कर चुकी है। उसने निश्चय किया हुआ है कि एक दिन मरेंगे जरूर। उसे हत्या की ही कोटि में रखा जायेगा और वह हत्यारिन भिखारिन भूखे बच्चे को समुचित भोजन न देकर उन्हें तड़पा-तड़पाकर मारना, यह भी तो हत्या की ही कोटि में आता है। इस प्रकार लक्ष्मा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और कौन सा कदम उठाये।

  1. सहसा बिजली………………साथिन है ही।

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश प्रख्यात हिन्दी मराठी लेखिका चित्रा मुद्गल की प्रसिद्ध कहानी ‘भूख’ से उद्धृत है। विवशता और लाचारी का इसमें सुन्दर चित्रण प्रस्तुत है।

व्याख्या – तीन बच्चों की माँ होना लक्ष्मा की सबसे बड़ी कमजोरी है, जिससे ठेकेदार भी उसे काम पर नहीं रखता है। एका-एक उसके मन में एक विचार आया आँखों में चमक थी। बच्चों को इस भूख और बेवशी से बचाया जा सकता है अमर छोटू को उस भिखारिन औरत का किराये पर उठा दिया जाय। छोटे बच्चे छोटू का तो पेट भरेगा ही ऊपर से दो रूपये प्रतिदिन मिल भी जायेंगे। उस पैसे से कम-से-कम किलो भर मोटा चावल तो आ ही जायेगा। जिसे इन दोनों बच्चों की भूख शान्त होगी और भूखे पेट न सोना पड़ेगा। छोटू को उसे हमेशा के लिए किराये पर तो देना नहीं है। कुछ दिन में कहीं-न-कहीं जुगाड़ अवश्य लग जायेगा। जब मजदूरी मिलने लगेगी तो वह छोटू को भिखारिन से छुड़ा लेगी। इस बात का किसी को कानो-कान भनक तक न लगेगी। सावित्री अक्का जो उसकी हर-हाल की साथी है। उसकी मदद करती है। उनका भी सम्मान रह जायेगा और संकट की यह घड़ी पार हो जायेगी। सावित्री अक्का तो नेक महिला है ही। वह तो हमारी सहायता के लिए सदा तत्पर रहती हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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