जनार्दन रेड्डी समिति – 1992 | जनार्दन रेड्डी समिति के शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
जनार्दन रेड्डी समिति – 1992 | जनार्दन रेड्डी समिति के शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
जनार्दन रेड्डी समिति, 1992
(Janardan Raddi Comitties, 1992)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में राममूर्ति समिति ने अपनी रिपोर्ट सितम्बर, 1990 में प्रस्तुत की। 1992 में सरकार ने इस नीति के क्रियान्वयन की समीक्षा करने हेतु श्री जनार्दन रेड्डी की अध्यक्षता में एक नई समिति का गठन किया। इस समिति की समीक्षा एवं सिफारिशों का क्रमबद्ध विवरण निम्न प्रकार है-
पूर्व प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
समिति ने देखा कि शिशु कल्याण योजनाओं को पूर्ण उत्तेजना के साथ नहीं चलाया जा रहा था। उसने सुझाव दिया कि शिशुओं की देखभाल, परिवार कल्याण, पोषण एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं में गति लाई जाए, आँगनबाड़ियों में कार्यरत व्यक्तियों का कार्य-क्षेत्र विस्तृत किया जाए और इनके प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए।
प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
समिति ने देखा कि प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लिए किए जा रहे प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। उसने 20 वीं शताब्दी के अन्त तक 14 वर्ष तक के बच्चों की अनिवार्य एंव नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था के लिये पहला सुझाव यह दिया कि 8वीं योजना के दौरान सभी बच्चों को 1 किमी क्षेत्र के अन्दर प्राथमिक स्कूल उपलब्ध कराए जाएँ, सभी बच्चों का नामांकन सुनिश्चित किया जाए और अपव्यय एवं अवरोधन को कम किया जाए। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष प्रबन्ध किए जाएँ, जो बच्चे किसी कारण स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं उनके लिए अनौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए। पर यह अनौपचारिक शिक्षा औपचारिक शिक्षा के स्तर की ही होनी चाहिए। समिति ने देखा कि उस समय प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों का अनुपात 4 : 1 था, उसने इसे 2.1 अनुपात में लाने का सुझाव दिया। उसने यह भी सुझाव दिया कि ब्लैक बोर्ड योजना उच्च प्राथमिक स्कूलों में भी लागू की जाए। उसने प्राथमिक स्तर के लिए न्यूनतम अधिगम स्तर की प्राप्ति पर भी बल दिया।
माध्यमिक शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
समिति ने देखा कि उस समय माध्यमिक शिक्षा परिषदं अपने कार्य का सम्पादन ठीक ढंग से नहीं कर पा रही थीं। उसने सुझाव दिया कि इनको पुर्नगठित किया जाए और इन्हें स्वायत्तशायी बनाया जाए। उसने प्रधानाचार्यों को प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकार देने का सुझाव भी दिया। उसने माध्यमिक स्तर पर खुली शिक्षा के विस्तार की बात भी कही। माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को लागू करने और इस स्तर पर कम्प्यूटर शिक्षा की व्यवस्था करने पर इसने विशेष बल दिया। + 2 पर व्यावसायिक धारा को सुदृढ़ किया जाए, इसके लिए उच्च माध्यमिक विद्यालयों को साधन सम्पन्न किया जाए। समिति ने नवोदय विद्यालय योजना को चालू रखने का सुझाव दिया और शेष जिलों में उन्हें शीघ्रातिशीघ्र स्थापित करने की बात कही, पर साथ ही इनकी प्रवेश परीक्षा एवं कार्य प्रणाली में सुधार का सुझाव दिया। समिति की सम्मति में इस स्तर पर भी न्यूनतम अधिगम स्तर (MILL) की प्राप्ति के लिए प्रयास किये जाने चाहिये।
उच्च शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
समिति ने अनुभव किया कि उच्च शिक्षा का स्तर सही नहीं है। इस सम्बन्ध में उसने पहला सुझाव यह दिया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के क्षेत्रीय कार्यालय अतिशीघ्र स्थापित किए जाएँ। दूसरा सुझाव यह दिया कि पाठ्यक्रम विकास केन्द्र योजना जारी रखी जाए। तीसरा सुझाव यह दिया कि नए-नए पाठ्यक्रम लागू किए जाएँ। चौथा सुझाव यह दिया कि उच्च शिक्षा शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए एकेडमिक स्टाफ कॉलिज योजना का विस्तार किया जाए और पाँचवा सुझाव यह दिया कि निम्न स्तर की उच्च शिक्षा संस्थाएँ बन्द कर दी जाएँ।
प्रौढ़ शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
समिति ने सुझाव दिया कि केन्द्र और प्रान्तीय सरकारें प्रौढ़ शिक्षा को प्राथमिकता दें और उसकी उचित व्यवस्था के लिये वित्त की व्यवस्था करें। उसने यह भी सुझाव दिया कि नव साक्षरों के लिए उत्तर साक्षरता कार्यक्रम व सतत् शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
समिति ने देखा कि उस समय तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था सही नहीं थी। उसने सुझाव दिया कि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (AICTE) की क्षेत्रीय समितियाँ गठित की जाएँ जो नए तकनीकी शिक्षा संस्थान खोलने, नए पाठ्यक्रम लागू करने और तकनीकी शिक्षा का स्तर मान बनाए रखने के लिए उत्तरदायी हों।
शिक्षक शिक्षा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
शिक्षक शिक्षा के सम्बन्ध में समिति ने पहला सुझाव यह दिया कि किसी भी स्तर के शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रम में प्रवेश की प्रणाली में सुधार किया जाए। दूसरा सुझाव यह दिया कि प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों (DIETS) में की जाए।
भाषा सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
समिति ने इस सन्दर्भ में पहला सुझाव यह दिया कि केन्द्रीय भाषा संस्थान को स्वायत्तशायी निगम का दर्जा दिया जाए जिससे वह भारतीय भाषाओं के विकास के लिए स्वतन्त्र रूप से कार्य कर सका दूसरा सुझाव यह दिया कि माध्यमिक शिक्षा स्तर पर पूरे देश में त्रिभाषा सूत्र को समान रूप से लागू किया जाए और तीसरा सुझाव यह दिया कि उच्च शिक्षा स्तर पर भारतीय भाषाओं के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए।
प्रशासन एवं वित्त सम्बन्धी समीक्षा एवं सुझाव
समिति ने देखा कि सरकार न तो शिक्षा का प्रशासन उचित ढंग से कर पा रही है और न उसकी वित्त व्यवस्था सही ढंग से कर पा रही है। उसने सुझाव दिया कि जिला शिक्षा परिषदों की शीघ्रातिशीघ्र स्थापना की जाए। वित्त के सम्बन्ध में उसने पहला सुझाव यह दिया कि राज्य प्राथमिक शिक्षा को प्रथम वरीयता दे और अपने संसाधनों का सर्वाधिक प्रयोग इसकी व्यवस्था पर करे और उच्च एवं तकनीकी शिक्षा को धीरे-धीरे स्ववित्तपोषित बनाए।
शिक्षाशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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- नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1988 | राष्ट्रीय शिक्षा नीति-उद्देश्य तथा निर्देश
- राममूर्ति समीक्षा समिति – 1990 | राममूर्ति समीक्षा समिति की अपनी समीक्षा रिपोर्ट
- संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 1992 | शिक्षा प्रबन्ध और नीति 1992 | संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का दस्तावेज
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