Joseph Priestley

जोजेफ प्रीस्टले | Joseph Priestley in Hindi

जोजेफ प्रीस्टले | Joseph Priestley in Hindi (Joseph Priestley)

आवसीजन गैस की खोज जोजेफ प्रीस्टले। शराबखाने की बगल में एक छोटा-सा घर था। शराबखाने के पास अनेक खाली और भरे हुए ड्रम पड़े रहते थे, उनसे बू उठती रहती थी। पास के घर में एक गरीब पादरी रहता था । उसने सोचा कि ड्रमों से उठने वाली बदबूदार गैस क्या है- क्यों न इस बात की खोज की जाए। इसी सोच के कारण बह वैज्ञानिक बन गया। उसने उस गैस पर परीक्षण किए। माचिस की एक तीली जलाकर उस गैस को आग लगानी चाही, परन्तु तीली बुझ गई। उसने इसे ‘स्थिर गैस’ का नाम दिया और इसे बनाने के उपाय भी खोजे। इसे आज ‘कार्बनडाई आक्साइड’ के नाम से पुकारते हैं।

आज सारे संसार में अरबों-खरबों रुपये कोकाकोला जैसे शीतल पेयों पर खर्च होते हैं। जोजेफ प्रीस्टले को क्या पता था कि कार्बन डाइ-आक्साइड को पानी में मिला देने से संसार में एक नया ही कारोबार चल पड़ेगा और अरबों-खरबों इस पर खर्च होने लगेंगे । इस पेय के आविष्कार के लिए उसे स्वर्ण पदक मिला था। परन्तु प्रीस्टले को इस लिए वैज्ञानिक नहीं माना जाता कि उसने सोडा वाटर का आविष्कार किया, बल्कि इसलिए कि उसने प्राणदायिनी ‘आक्सीजन’ गैस का पता चलाया।

प्रीस्टले का जन्म इंगलैंड के लीड्स शहर के पास एक गांव में 13 मार्च, 1733 को एक गरीब जुलाहे के घर हुआ। वह जुलाहा भी उसे सात साल की आयु में अनाथ छोड़ कर चल बसा। चाची ने उसे पाल-पोस कर बड़ा किया और वह एक छोटे-से गिरिजाघर में 15 रुपए सप्ताह पर नौकर हो गया। इतने से काम न चलता था, टयूशने करता, किताबें लिखता और अनेक भाषाएं सीखने के साथ रसायन विज्ञान भी पढ़ता। जब बेंजामिन फेंकलिन अमरीकी उपनिवेशों की स्वतन्त्रता के लिए समर्थन जुटाने इंगलैंड आया तो प्रीस्टले उस वैज्ञानिक से मिला और दोनों आजीवन मित्र बन रहे। प्रीस्टले ने फंकलिन के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ‘विद्युत की वर्तमान स्थिति का इतिहास’ पुस्तक लिख डाली।

इन्हीं दिनों अध्ययनशील लार्ड शेलबर्न ने उसे अपना लाइब्रेरियन नियुक्त कर लिया और ढाई सौ पौण्ड वार्षिक वेतन दिया। यहीं पर प्रीस्टले ने आक्सीजन संबंधी परीक्षण किए और उसका पता लगाया। उसने देखा कि आक्सीजन वाले बर्तन में मोमबत्ती ज्यादा चमक से जलती है।

उसने पता लगाया कि फूल, पत्तों और पौधों से आक्सीजन किस प्रकार तैयार होती है। उसने एक पौधे को बोतल में बन्द कर दिया। और उसमें से आक्सीजन निकाल दी । कुछ दिन बाद उसने उसमें मोमबत्ती जलाकर देखी । उसने इससे सिद्ध कर दिया कि पौधे वातावरण मे आक्सीजन छोड़ते और कार्बन-डाइ आक्साइड सोखते हैं ।

प्रीस्टले चर्च का विरोधी था। उसका कहना था कि धर्में और राज्य की सीमाएं पृथक होनी चाहिए। इंगलैंड के हाऊस ऑफ कामन्स में उसकी बातों का विरोध किया गया जिस पर उत्तेजित भीड़ ने 14 जुलाई, 1751 के दिन उसके घर में आग लगा दी और उसकी विज्ञान के प्रति की गई 20 साल की मेहनत पांच मिनट में धूल में मिला दी। प्रोस्टले और उसका परिवार उस समय वहां नहीं था इसलिए वह बच गये ।

लन्दन से प्रीस्टले अमेरिका आ गए। अमरीकी जनता ने उन्हें सिर-आंखों पर बिठाया-धार्मिक, वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ आदि सभी क्षेत्रों के नेताओं ने प्रीस्टले का स्वागत किया। उन्हें बड़े-बड़े पद देने की बात कही गईं, सम्मान दिए गए परन्तु वह एक शान्त वातावरण में स्थित प्रयोगशाला में अपने को खपा देना चाहते थे । इसके लिए उन्होंने नार्थम्बरलैंड को चुना। वहीं अपने घर में प्रयोगशाला स्थापित की और फिर विभिन्न गैसों की खोज और परीक्षणों में लग गए। यहीं 80 वर्ष की अवस्था में उन्होंने प्राण त्याग दिए। आज उनका घर राष्ट्रीय संग्रहालय के रूप में सुरक्षित है।

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