प्रसिद्ध वैज्ञानिक / Famous Scientists

एडवर्ड जेनर | Edward Jenner in Hindi

एडवर्ड जेनर | Edward Jenner in Hindi

चेचक के टीके का आविष्कार एडवर्ड जेनर (Edward Jenner)। 1700 – 1800 के बीच के वर्ष बहुत भयंकर थे। अकेले यूरोप में 6 करोड़ आदमी चेचक के शिकार होकर कीड़े मकोड़ों की मौत मर गए। अमेरिका भी इस रोग से अछूता नहीं बचा। अकेले बोस्टन के आधे नागरिक चेचक से ग्रस्त मौत की घड़ियां गिनते रहते थे- 10% तो मौत के मुंह में समा ही जाते थे।

जादू टोने, टोटके आज भी होते हैं, तथा रोगों के वैज्ञानिक विश्लेषण और चिकित्सा के बाद उनका कोई महत्व नहीं रह गया है, परंतु टोटकों के समय भी जो अंधविश्वास प्रचलित थे उनके पीछे भी कुछ न कुछ तथ्य अवश्य था। उदाहरण के लिए, काई और फफूंदी का प्रयोग बीमारी को फैलाने से रोकने के लिए बहुत पहले से हो रहा था, जबकि उससे ही पेनिसिलिन का आविष्कार बहुत बाद में फ्लेमिंग ने किया इसी तरह दांत के दर्द में लौंग चबाने के लिए कहा जाता था, आवाज बैठ जाने पर प्याज का रस इस्तेमाल किया जाता था।

कुछ रोगों के संबंध में यह अंधविश्वास था कि यदि जीवन में वह रोग एक बार हो जाए तो दोबारा नहीं होता। खसरा और चेचक के बारे में भी यही विचार प्रचलित था। कुछ लोग चेचक के कीटाणु अपने शरीर में एक बार प्रविष्ट करके सदा के लिए उस रोग से बचना चाहते थे। परंतु ऐसा हर बार नहीं होता था और बहुत से लोग मर भी जाते थे। इस महामारी को दूर करने के लिए एडवर्ड जेनर ने एक टीका तैयार किया जिसे बच्चे को एक बार लगा देने पर आयु भर उसे यह रोग नहीं घेरता।

संभवतः आप के कंधे के पास दाएं बाजू पर टीके के निशान होंगे। आप स्नान करते समय प्रतिदिन इन चिन्हों को देखते होंगे, पर शायद ही आप जानते हो कि इस टीके की खोज एडवर्ड जेनर ने की थी।  

जेनर का जन्म इंग्लैंड के ग्लोस्टरशायर कस्बे में 17 मई, 1749 को हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उसकी रुचि प्राणी और चिकित्सा शास्त्र में हुई और वह एक डॉक्टर का शिष्य बन गया। उन दिनों डॉक्टरी पढ़ने का तरीका यही था। पढ़ने वाला किसी डॉक्टर का शागिर्द हो जाता था। वह डेनियल लुड़लो नामक शल्य चिकित्सक का शिष्य बन गया। इसके बाद वह लंदन के सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल में वहां के प्रमुख सर्जन जान हंटर की देखरेख में काम करने लगा। हंटर बड़ा उत्साही डॉक्टर था और कई बार अनेक परीक्षण व स्वयं अपने शरीर पर ही कर लिया करता था। वह जेनर को प्रेरणा देता रहता था कि गांव में जाकर स्वयं परीक्षण करके देखो और रोगों का इलाज करो।

जेनर अपने गांव ग्लोस्टरशायर आ गया। वहां उसने सुना कि माता नामक बीमारी गांय से मनुष्यों को लगती है उसे “काऊपाक्स” भी कहा जाता था। जबकि यह बीमारी घोड़ों के सुमो से गांय को लगती है ऐसा संभवत एक हीं तबेले में बंधे रहने के कारण होता था। जेनर ने चेचक की स्थिति का अध्ययन आरंभ किया और अंत में वह अपने परीक्षण में सफल हुआ। उसने अपने परीक्षणों में कई लोगों को यमलोक भी पहुंचाया परंतु अंत में वह प्रभावशाली टीका बनाने में सफल हो गया। इसी अद्भुत टीके के कारण आज विश्व भर में चेचक समाप्त हो चुकी है।

जब जेनर ने अपने निष्कर्ष जनता के सामने रखे तो उसका सभी जगह सम्मान होने लगा। ब्रिटिश सरकार ने उसे 2 हजार पाउंड इनाम दिए; ऑक्सफोर्ड ने मानद की डिग्री दी, रूस के जार ने सोने की अंगूठी भेंट की, नेपोलियन ने भी उसकी खोलकर प्रशंसा की और अमेरिका से भी एक प्रतिनिधिमंडल ने आकर जेनर को उपहार दिए। उसने अंधविश्वास के पर्दे को हटाकर तथ्य की खोज की और एक भयंकर बीमारी से संसार को बचा लिया। मानव की सेवा में अपना जीवन खपा देने वाले इस वैज्ञानिक की मृत्यु अपने गांव के खेतों में 1823 में हुई।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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